फ़रिश्ते
फ़रिश्ते


बहु मंजिला सरकारी अस्पताल का निर्माण कार्य पूरा होने पर था कि एक हिस्सा ढह गया। सूचना मिलते ही जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक धटना स्थल पर पहुंचे। अभियंता और ठेकेदार हाजिर थे। बच्चों सहित मजदूर परिवार खड़े थे। कुछ बच्चे स्कूल जाने की उम्र के थे।
जिलाधीश ने घटना का ब्यौरा लिया। मजदूर परिवारों से मिले।बच्चों से परिचय किया उनके स्कूल का नाम पूछा। ज्ञात हुआ कि बच्चे स्कूल नहीं जाते। क्योंकि स्कूल यहां से बहुत दूर है। बिल्डिंग का काम खत्म करके गांव लौटने पर बच्चे गांव में पढ़ेंगे। जिलाधीश अभियंता से मुखातिब होते हुए बोले बच्चों की पढ़ाई में हर्जा हो रहा है। बच्चों को पास के सरकारी स्कूल में प्रवेश करवा दिया जाए।अभियंता को स्कूल और रिक्शा की व्यवस्था सौंपकर आफिस में मिलने का आदेश देकर जिलाधीश निकल गए।
"सर आप गरीब बच्चों को स्कूल पहुंचने में मदद करके बड़ा ही सुन्दर कार्य करते हैं। पुलिस अधीक्षक बोले। जिलाधीश सुन कर मुस्कुरा दिए।
जिलाधीश आनंद ने चंद महीनों पहले ही जिला संभाला था। संवेदनशील स्वभाव और कर्मठता से शीघ्र लोकप्रिय बन गये। प्रशासन गांव की ओर ,सर्व शिक्षा अभियान के लिए प्रशंसापत्र भी पा चुके थे।
पुलिस अधीक्षक मोहक सालभर से जिले में सेवारत थे। कड़क छवि के कारण अपराध नियंत्रण में थे। जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक अल्प समय में ही अच्छे दोस्त बन गए ।
सुबह बैड़मिंटन कोर्ट में मिलते , खेलने के बाद साथ बैठते ,जिले के विकास पर चर्चा करते। रविवार एक दूजे के घर परिवार सहित भोजन करते।
पत्नी और बेटी के शहर से बाहर होने के कारण रविवार की शाम को आनंद अकेले ही मोहक के घर पहुंचे। आइये सर !लाॅन में बैठते हैं" मोहक ने स्वागत किया।
कई महीनों के बाद शाम का आनंद ले रहे हैं,क्यों मोहक! हां जी, विधानसभा चुनाव ने बहुत व्यस्त कर दिया था। मंत्रियों के दौरे , रैलियां, सभाएं बहुत ही चुनौती भरा समय था।चलो सब शांति से हो गया।सुना है तुम आजकल कहानियां लिख रहे हो कहां तक पहुंचा लेखन आनंद ने पूछा।
इतने में अर्दली सूप ले आया। सूप पकड़ाते हुए मोहक बोले "आपकी इजाजत हो तो आज मैं आपके बारे में कुछ जानना चाहता हूं । आपका बचपन , शिक्षा और यहां तक का सफर। मुझे एक अच्छी कहानी का उम्दा कथानक मिल जायेगा ।आज कितने अफसर हैं जो आप की जैसी सोच और मानवीय व्यवहार रखते हैं।
मेरा मानना है कि हम सिविल सेवक सरकारी योजनाओं को नीचे तक पहुंचायेगें तभी तो आम आदमी आगे बढ़ पायेगा।मैं गरीब बच्चों को स्कूल पहुंचाने में मददगार बनता हूं क्योंकि इनके संरक्षकों को पता नहीं होता कि बच्चों की शिक्षा के लिए सरकार कितनी सुविधायें मुफ्त में देती है। मै इनकी परेशानी महसूस कर पाता हूं, क्योंकि मैं भी इन में से एक हूं।मेरा बचपन कुछ ऐसा ही था।मेरे पिताजी मजदूर थे ।जब गांव में मजदूरी नहीं मिली तो शहर चले आए। शहर आते ही मेरा स्कूल छूट गया। मैं सारा दिन अपनी पुरानी किताबों को पढ़ता रहता। मेरी पढ़ने में बहुत रूचि थी ।मैं पूरा साल स्कूल न जा पाता था।इंम्तिहान नहीं दे पाता था ।
फिर भी नियति से आप यहां तक पंहुच गये ।हां एक अद्भुत संयोग बना था ।
मां पिताजी उन दिनों पुल निर्माण करने वाली संस्था के साथ मजदूरी कर रहे थे।साइट बदलती रहती थी। इंजीनियर साहब का दौरा था । साथ में उनका बेटा भी था। वह मेरे पास आकर बातें करने लगा। मैं अपनी पुरानी किताबें पढ़ रहा था। काम खत्म कर इंजीनियर साहब भी बेटे की तरफ चले आये। उन्होंने मेरी नोट बुक देखी और पिताजी को पूछने लगे "बच्चा किस स्कूल में है। साहब एक ठिकाना हो तो भेजूं ।"
"तुम्हारा ठिकाना ना सही, बच्चे का एक ठिकाना हो सकता है।"
"वो कैसे साहब?"
वो ऐसे कि बच्चे को नवोदय स्कूल में दाखिल करवा सकते हो ।ये स्कूल ऐसे बच्चों के लिए ही तो बने हैं । बच्चे वहीं रहते हैं। ऐसे स्कूल का खर्च हम कैसे उठा सकते हैं।"
"क्या वे हमारे बच्चे को प्रवेश देंगे।"
"हां क्यों नहीं बच्चे की छोटी सी परीक्षा लेंगे। तुम्हारा बच्चा पास हो जायेगा मुझे भरोसा है।मैं इसकी नोट बुक देख कर कह रहा हूं । बच्चे की पढ़ाई का खर्च सरकार उठाएगी।कल तुम्हें स्कूल जाने के लिए आधे दिन का अवकाश देता हूं । स्कूल के प्राचार्य से भी बात करूंगा।वे मदद करेंगे।ठीक है साहब।
यूं मेरी पढाई को सही दिशा मिली। स्कूल के बाद सरकारी कालेज में प्रवेश मिल गया।
सिविल सेवा में आना भी एक प्रेरणास्पद किस्सा था।कालेज के वार्षिक समारोह में जिलाधीश श्री अजय मुख्य अतिथि बन कर थे। उनके भाषण और व्यक्तित्व से मैं इतना ज्यादा प्रभावित हुआ कि मैंने जिलाधीश बनने का ख्वाब देख लिया ।मेरा जुनून मुझे उनके दफ्तर तक खींच ले गया।उन्होंने मुझे बहुत ही प्यार से बिठाकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के बारे में बताया। मैंने उनके मार्गदर्शन में मेहनत से तैयारी की और चयन हो गया।
मैं गांव से पहला जिलाधीश बना।पूरा गांव खुश था।समाचार पत्रों में मेरी फोटो छपी थी। पिताजी और मैं इंजीनियर साहब से मिलने गए। मेरी आंखों में उनके प्रति कृतज्ञता का भाव देख वे बोले "आनंद मुझे तुम पर गर्व है"।
अकादमी में प्रशिक्षण के पहले दिन वैल्कम सैशन के लिए पहुंचा तो स्टेज पर श्रीमान अजय को बैठे देखा।अद्भुत संयोग था। मुझे देख उनकी आंखों में चमक आ गई।कार्यक्रम के बाद अपने रूम में बुला कर मुझे बधाई देते हुए कहा "वाह आनंद !तुमने कर दिखाया"। यूं फ़रिश्ते मेरे जीवन में आये और जीवन की राह बदल गई।
मैं चाहता हूं शिक्षा रुपी चिराग हर बालक के हाथ में हो। कोई भी बालक शिक्षा के हक से वंचित न रहे।हमें उन्हें स्कूल तक पहुंचने में निमित्त बनना चाहिए। सभी बच्चे अफसर बनें जरूरी तो नहीं। किंतु अपना भला बुरा सोचने लायक तो बनेंगे।"