Meera Ramnivas

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रौनिका और लक्ष्मी

रौनिका और लक्ष्मी

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   सुबह सैर करते वक्त एक आठ नौ साल की बालिका मिल गई। मैं आदतन बच्चों को देख मुस्कुरा देती हूं। मैं उसे देख मुस्कुराई और नाम पूछा। उसने अपना नाम रौनिका बताया था। सच में रौनक बिखेर रही थी। बेटियां घर की रौनक ही तो होती हैं। कुछ बेटे भी रौनक होते हैं ।

     उसकी उम्र लगभग आठ नौ साल की होगी। मैंने पूछा रौनिका क्या तुम स्कूल जाती हो?

नहीं ---क्यों?----दाखिला नहीं हुआ।

घर कहां है? उसने पास ही बनी झोपड़ी की तरफ इशारा किया।

       मुझे समझने में देर न लगी। उसके माता पिता गांव से मजदूरी के लिए आए थे। पास ही मैट्रो का काम चल रहा था।

बच्ची का स्कूल में दाखिला नहीं करवाया था। स्कूल दूर होगा या फिर गांव जाकर फिर वहीं पढ़ाना था।

     न जाने ऐसी कितनी ही बेटियां हैं जो स्थानान्तरण के कारण रैगूलर स्कूल जाने से वंचित रहती हैं।

      इसी तरह शाम को टहलते वक्त एक बालिका सही जगह सही समय पर मुझे अपने पिता एवं भेड़ बकरियों संग हाईवे पर मिला करती थी। कितने ही दिन हम एक दूसरे को देख मुस्कुराते रहे। फिर एक शाम नाम पूछ लिया। बातों का सिलसिला शुरु हुआ। युवती ने अपना नाम लक्ष्मी बताया वह बारहवीं की पढ़ाई कर रही है। उसने बताया सुबह स्कूल जाती हूं। दोपहर घर आती हूं। होमवर्क करके पिता की मदद करने आती हूं। शाम को घर काम में मां की मदद करूंगी। मां घरों में बर्तन मांजने का काम करती है।

          मैंने पूछा तुम्हारा कोई भाई नहीं है क्या? है एक भाई। वो पिताजी की मदद नहीं करता। नहीं वो कहता है उसे शर्म आती है भेड़ बकरियां ले जाते हुए। स्कूल से आता है बस्ता पटक कर खेलने चला जाता है। शाम पड़े लौटता है। पिताजी कुछ नहीं कहते क्या। कहते हैं पर वो सुनता ही नहीं है।

   पिताजी कहते हैं रविवार को आधा दिन आ जाया कर जिससे घर के दूसरे काम काज कर सकूं। किंतु मानता ही नहीं। मैं आ जाती हूं। फिर भी पढ़ाई में उससे अच्छे नंबर लाती हूं। मां पिताजी मुझे प्यार करते हैं वह भी उसे अच्छा नहीं लगता।

       मैं उसे देखकर अक्सर सोचा करती थी कि शायद उसका कोई भाई नहीं है तभी उसे आना पड़ता है। किंतु ऐसा न था। मैंने उसे पूछा भी था तुम तक नहीं जाती? नहीं तो मुझे अच्छा लगता है। रात को सुख की नींद आती है कि मैंने घर के लिए कुछ किया।

    लड़कियां संवेदनशील होती हैं। लड़की होने के नाते मां पिता के प्रति उनका स्वाभाविक लगाव होता है। कुदरत ने उन्हें ये गुण दिया है कि वे प्रवाह करती हैं। मां पिता की सेवा करके खुशी होती हैं। यही संस्कार ससुराल में काम आता है। हर आंगन एक बेबी चाहता है।


                  


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