SANGEETA SINGH

Action Inspirational

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SANGEETA SINGH

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माटी का लाल अल्बर्ट एक्का

माटी का लाल अल्बर्ट एक्का

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1947 का भारत, आजादी के साथ साथ विभाजन का दंश भी। देश का विभाजन हो चुका था।

पूर्वी बंगाल और पश्चिम में लाहौर, सिंध मिला कर एक नए राष्ट्र का गठन हुआ जिसे हम पाकिस्तान कहते हैं।

लेकिन लगातार सत्ता में पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का वर्चस्व, राजभाषा उर्दू को लेकर टकराव क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में बंगला बोली जाती थी उसे भी राजभाषा में शामिल करने को नकार दिया गया, आर्थिक सुधारों में भी वहां के लोगों की अनदेखी, दमनकारी नीति पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में आक्रोश भर रहा था।

पूर्वी पाकिस्तान के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रह था।

6 दिसंबर 1970 में अवामी पार्टी के शेख मुजीबुर्रहमान भारी मतों से जीते, लेकिन उन्हें बंदी बना लिया गया।

बांग्लादेश के नागरिकों का लगातार भारत में पलायन हो रहा था। स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने जब ये बात पाकिस्तानी हुक्मरानों से कही तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया, ये कहते हुए की ये आपकी समस्या है।

पूर्वी पाकिस्तान ने मुक्ति वाहिनी सेना बनाई जिसे अप्रत्यक्ष रूप से भारत का समर्थन भी प्राप्त था।

लेकिन पाकिस्तान ने एक बहुत बड़ी गलती कर दी, वो थी भारतीय एयर बेस में बमबारी करा कर।

फील्ड मार्शल मानेक शॉ से बात कर तत्कालीन इंदिरा जी ने तुरंत भारतीय सेना को युद्ध के लिए कूच करने का आदेश दिया।

भारतीय सेना ने पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर अपनी कमान संभाल ली।

मात्र 13 दिन में हमारे जवानों ने पाक सेना को धूल चटवा दी।

अगरतल्ला को पाक कब्जे से अपने कब्जे में ले लिया।

 और पूर्वी बांग्लादेश के संघर्ष का फायदा उन्हें नए राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में मिला।

पूर्वी पाकिस्तान पाक से अलग हो बांग्लादेश बन गया था।

इस विजय में भारत ने अपने करीब 3500 सपूत खोए, कुछ लापता हो गए, कुछ आज भी शायद उनकी जेल में बंद हैं ।

16 दिसंबर 1971 को पाक से मिली जीत हर भारतवासी को गौरवान्वित करती है और इस दिन को विजय दिवस के रूप मनाया जाता है।

आज मैं ऐसे ही वीर से आपका परिचय करा रही हूं, जिसने अपने अदम्य साहस से गोलियों से लथपथ शरीर को तब तक मौत को आगोश में लेने नहीं दिया जबतक की फतह नहीं दिला दी।

उनकी अनुपम बहादुरी के कारण भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा।

29 साल का युवा, शांत, धुन का पक्का, अल्बर्ट एक्का जिनका जन्म झारखंड के गुमला जिले में हुआ था।

आदिवासी जनजाति के होने के कारण, तीर धनुष, निशानेबाजी में महारथ हासिल थी।

प्रकृति के करीब होने के कारण, जंगलों, पथरीली, दलदली हर तरह के रास्तों से उसे कोई परेशानी नहीं थी।हॉकी का बहुत अच्छा खिलाड़ी।

दिसंबर 1962 में वह भारतीय सेना में बिहार रेजीमेंट में शामिल हुआ।

और जब 14 गार्ड्स बटालियन का गठन हुआ तो उसे उस बटालियन में स्थांतरित कर दिया गया।

उसके अनुशासन और अदम्य साहस के कारण उसे लांस नायक बना कर पूर्वोत्तर के दंगा प्रभावित क्षेत्र में भेज दिया गया।

3 दिसंबर 1971 को 14 गारद बटालियन को गंगासागर फतह करने का आदेश दिया गाय।गंगासागर को जीतना बांग्लादेश में दाखिल होने के लिए अहम था ।दो टीम भेजी गईं, जो क्रमश अल्फा और ब्रावो।ये इलाका काफी दलदली था, और पाकिस्तानी सैनिकों ने बारूदी सुरंग बिछाई हुई थी।इसलिए दोनों कंपनियां रेलवे पटरियों के किनारे किनारे चलने लगीं।

एक टीम की अगुवाई अल्बर्ट कर रहे थे, दूसरे की गुलाब सिंह।

रात के दो बजे थे, कंपकंपाती ठंड सैनिक दबे पांव पाकिस्तानी सैनिकों के बंकर की तरफ बढ़ रहे थे कि अचानक एक सैनिक का पैर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बिछाए ट्रिप प्लेयर वायर पर पड़ा एक तेज रोशनी हुई, ऐसा लगा दिन निकल आया। पाकिस्तानी सिपाही सतर्क हो ऑटोमैटिक लाइट मशीनगन चलाने लगे।

अल्बर्ट ने अपने से 40 फुट की दूरी पर बने बंकर पर खड़े संतरी को अपनी संगीन घोंप दी।

और आगे बढ़ कर सैनिकों ने बंकर पर कब्जा कर लिया और पाक सैनिकों को मार मशीनगन अपने कब्जे में ले लिया।

अल्बर्ट की बांह में गोली लगी थी।

रेलवे की दो मंजिला बिल्डिंग से पाकिस्तानी सैनिक लगातार मशीनगन चला रहे थे, और उन्होंने रोशनी वाले गोले चला, पूरे इलाके में उजाला कर दिया ।

अल्बर्ट की बांह, गर्दन में गोली लग गई थी, इसकी परवाह किए बिना, वो पेट के बल लेटकर उस बिल्डिंग में एक जंग लगी सीढ़ी से चढ़ उसकी खिड़की से हैंड ग्रेनेड अपनी कमर से निकाल अंदर फेंक दिया।भगदड़ मच गई, कुछ के परखच्चे उड़ गए जो बचे उन्हें कुछ समझ में आता इससे पहले अल्बर्ट कमरे में दाखिल हो बचे सैनिकों को मशीनगन से भून दिया।

अब कब्जा भारतीय सैनिकों का हो गया था।

सीढ़ियों से उतरते उनका शरीर निढाल हो गया, और वो वीरगति को प्राप्त हुए।

भारत सरकार ने ऐसे वीर को परमवीर चक्र, बांग्ला देश ने फ्रेंड्स ऑफ लिबरेशन वॉर ऑनर से सम्मानित किया।त्रिपुरा में धूलिया नामक गांव में उनकी समाधि, और अगरतल्ला mr आदमकद प्रतिमा के साथ साथ इस वीर के नाम पार्क भी है और स्कूल की पुस्तकों में इनकी वीरता को पढ़ाया भी जाता है।

धन्य है, ये भूमि जिसने ऐसे सपूतों को जन्म दिया है ।

सरहद की हर हद पर तुम हो

दुश्मन की हर जिद में तुम हो

लेते जो स्वतंत्र सांस हम

उस हर सांस के रक्षक तुम हो।

जय हिंद



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