SANGEETA SINGH

Action Inspirational

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SANGEETA SINGH

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कर्म फल

कर्म फल

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 सुदर्शन एक हृष्टपुष्ट जवान था, पढ़ाई लिखाई उसने की नहीं, गरीब माता पिता के गुजर जाने पर दो रोटी का जुगाड़ भी खत्म हो चुका था।

गांव के दोस्तों के साथ शहर आ गया।वहां उसके गांव का एक लड़का पहले से किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम कर रहा था, उसके छोटे से घर में चार लोग रूक गए।अगली सुबह वह काम पर गया वहां उसने अपने सुपरवाइजर से चारों के लिए मजदूरी की बात की।सुपरवाइजर को भी नए कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरों की जरूरत थी।

शहर से दूर एक अपार्टमेंट बनने वाला था।चारों को वहीं भेज दिया गया।वहीं उनलोगो ने ईंटों से अपने _अपने लिए एक झोपड़ी बनाई।कुछ बर्तनों का जुगाड़ किया ताकि खाना बन सके।

सुदर्शन शरीर से मजबूत था लेकिन उसने कभी मेहनत का कार्य नहीं किया था, इसीलिए अक्सर वो बीमार हो जाता।सुपरवाइजर जब पैसे काटने की बात करता तो वो कहता "अगले दिन ज्यादा काम कर दूंगा"।

एक दिन, देर रात सर में टॉर्च लगाए वो काम कर रहा था तो अचानक उसके फावड़े से कोई चीज टकराई, ठन.. ठन।उसे लगा जैसे कोई पीतल की चीज उसके फावड़े से टकराई थी।वो विस्मय से नीचे कूदा जहां की मिट्टी उसने खोदी थी।

हाथ के सहारे उसने मिट्टी हटाई तो एक पीतल का घड़ा निकला, जिसका मुंह लाल कपड़े से बंद था।उसने इधर उधर देखा चारो ओर सन्नाटा था, उसने अपने गमछे से उस घड़े को लपेटा और सीधे अपने कमरे में चला गया।8 बजे थे, सभी साथी खाने बैठ गए थे।किशोर ने आवाज दी, सुदर्शन आओ जल्दी हाथ मुंह धुल कर खाना खा लो।

 सुदर्शन की तो भूख प्यास गायब थी, उसे तो जल्द से जल्द उस मटके को खोल कर देखना था। उसने कहा"मुझे भूख नहीं है।"

 आपस में तीनों दोस्तों ने कहा "क्या बात है, इसकी तबियत फिर तो खराब नहीं हो गई।ये लगता है यहां काम नहीं कर पाएगा "।

 खाने के बाद सब अंदर आए, "क्या हुआ सुदर्शन तू ठीक तो है?"

 सुदर्शन सोने का उपक्रम करता लेटा था, उसने धीमे से कहा "नहीं, भाईयों मेरी तबीयत ठीक है, बस आज भूख नहीं लगी और नींद बहुत आ रही है।

 किशोर ने कहा "ठीक है भाई, तू सो जा।सुबह मिलते हैं।कह कर सभी अपने अपने कमरे में चले गए।

उनके जाते ही सुदर्शन धीरे धीरे उस पीतल के घड़े के पास पहुंचा, जल्दी जल्दी कपड़े की रस्सी खोल, घड़ा खोला, झांक कर देखा तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।उसमें सोने की मोहरें, सिक्के, सोने और चांदी के जेवरात भरे पड़े थे।जिंदगी में पहली बार इतना सोना, चांदी कभी देखा नहीं था वो कुछ देर वो जड़ बना रहा।थोड़ी देर बाद खुद को संयत किया, और जल्दी जल्दी अपना सामान समेटने लगा, अब उसे यहां से कहीं दूर जाना था ।जहां वो इन रुपए पैसे का सही उपयोग कर सके।उसने पीतल के घड़े को भी सामान में बांध लिया, नहीं तो लोगों को शक हो सकता था।सामान समेटने के बाद उसने कमरे में फैली मिट्टी को साफ किया, और सुबह होने का इंतजार करने लगा।सुबह के चार बज रहे थे, वह धीरे से उठा और स्टेशन के लिए निकल पड़ा।पैसे उसके पास थे, सुपरवाइजर ने कल ही उसकी तनख्वाह दी थी ।स्टेशन पर ट्रेन खड़ी थी, वो उसमें चढ़ कर बैठ गया।ट्रेन बिहार जा रही थी।टिकट उसने जल्दबाजी में लिया नहीं था और न ही उसे पता था कहां जाना है, इसीलिए वो सोनपुर में उतर गया ।सोनपुर बिहार का एक जिला है, जहां सबसे बड़ा पशु मेला लगता है।

उसने वहां किराए पर घर लिया, धीरे धीरे जवाहरातों को बेचना शुरू किया और उससे व्यवसाय शुरू किया।उसकी किस्मत और पैनी बुद्धि से व्यवसाय चमक गया।वो 3, 4 साल के अथक मेहनत के बाद शहर का सबसे धनी व्यवसाई बन गया।

अत्याधिक लक्ष्मी अगर ऐसे इंसान के पास आ जाए जिसने कभी देखा न हो, तो या तो वो व्यसनी हो जाता है या अत्यंत अहंकारी।

 सुदर्शन अत्यंत अहंकारी हो गया था, वो अपने आगे किसी को नहीं समझता, सीधे मुंह बात नहीं करता।

 पैसे के बल पर उसने एक गरीब लड़की से शादी कर अपना घर बसा लिया।समय गुजरा वो दो बच्चों का बाप बन गया।उसके घमंडी स्वभाव के कारण लोग उससे कटते थे।दोस्तों को कहीं से मालूम हुआ तो वे उससे मिलने आए और मदद मांगी ।सुदर्शन ने नौकरों से धक्के मार कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखवा दिया।

 कोई भिखारी उसके दरवाजे पर आ जाता तो वो उन पर कुत्ते छुड़वा दिया करता।

 एक दिन एक लड़का काम की तलाश में आया, मिन्नतों के बाद उसने उसे रख तो लिया लेकिन उसने उससे कहा "सुन रे लड़के तुम्हें खाना, कपड़ा इस घर से मिलेगा लेकिन पगार नहीं मिलेगी। जो भी काम कहा जाएगा उसे तुम्हें करना होगा।

लड़के ने सर झुका कर हां कह दी।वो दिन भर सुदर्शन और उसकी पत्नी, बच्चों के इशारे पर नाचता रहता, जब खाने का समय आता तो सुदर्शन उसे भरपेट खाने की जगह 1 सूखी रोटी दिलवा देता। चंदन कुछ न कहता चुपचाप से खा लेता।

 नियति के सीख देने के भी ढंग बड़े निराले हैं, कब कैसी परिस्थिति आ जाए कोई नहीं जानता।

सुदर्शन को खतरनाक चर्म रोग हो गया, जिसके कारण उसके अपने भी उससे दूर होने लगे।डॉक्टरों ने उसके रोग को लाइलाज बताया।पत्नी और बच्चों ने उसके पास जाना छोड़ दिया।

वह पत्नी बच्चों को अपने पास बुलाता तो कोई उसके पास न जाते।उसका खाना उसके कमरे में चंदन ले जाता।

 उसका बाहर निकलना बंद हो गया, अब उसका जीवन एक कमरे में सिमट गया।

 उसका सारा व्यवसाय लड़के देखने लगे, कुछ समय बाद पत्नी बच्चों को लेकर अलग रहने लगी।बच गया सिर्फ चंदन और सुदर्शन।एक दिन सुदर्शन ने चंदन से कहा "मेरे अपने मुझे ऐसी हालत में छोड़ कर चले गए, जिनके लिए मैने सबकुछ किया पर तू क्यों नहीं जाता?"

चंदन ने कहा_"मालिक आपने मुझे मेरे बुरे समय में सहारा दिया, मैं आपको छोड़ कर जाऊं, इसके लिए मेरा ईश्वर मुझे कभी माफ नहीं करेगा।"

 सुदर्शन हंसने लगा_"तू क्या नहीं जानता कि मैने तुझे कितना सताया, तुझे भूख 4 रोटी की होती तो मैं सिर्फ 1 देता, मैने तोतुझे मुफ्त का नौकर रखा था ।"

चंदन ने कहा "मैं सब जानता हूं मालिक, लेकिन मैं आपको ऐसी स्थिति में कदापि नहीं छोड़ सकता।

 आज सुदर्शन को अहसास हुआ, कि पैसे से हर चीज नहीं खरीदी जा सकती।

संस्कार ऐसा गहना है जो जन्म से जीन में पड़ जाती है।वो पैसे के घमंड में कितना खो गया था कि उसे लगा था कि दुनिया का सारा ऐश्वर्य वो पैसे से खरीद सकता है, लेकिन आज वो कितना बेबस है।इसीलिए कहते हैं ईश्वर की लाठी में आवाज़ नहीं होती।

चंदन ने उसका साथ नहीं छोड़ा, जिस रोग को अंग्रेजी दवा ठीक नहीं कर पाई, उसे उसने आयुर्वेद के वैद्यों की मदद से ठीक कर दिया।

 चंदन के अथक प्रयास ने सुदर्शन को दूसरा जन्म दिया।सुदर्शन ने ठीक होते चंदन को अपना वारिस बना दिया।

 ये एक सीख है कि पैसा सब कुछ नहीं है जीवन में, दुआएं एकत्रित करें, अच्छे कार्य करें। पैसा है तो उसका सदुपयोग करें।


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