अनोखा रिश्ता
अनोखा रिश्ता


" रचना ......रचना!"_राहुल ने रचना को आवाज़ लगाई।
"आती हूं बाबा ,क्यों तान लगा रहे हो?"_अंदर से आती रचना ने शिकायती लहज़े में कहा।
"अरे!वो तारा राखी में नहीं आ रही ,अभी जीजा जी का फोन आया था ।
क्यों ?"_रचना ने पूछा।
"अरे क्या बताऊं ,अभी दो दिन पहले उसका फोन आया था ,मैं ऑफिस में व्यस्त था तो मैंने कह दिया क्या आफत आई रहती है जो हर समय फोन किया करती हो,तुमको तो कोई काम रहता नहीं ।बस नाराज़ हो गई ,उसके बाद ऑफिस के आने के बाद कई बार फोन लगाया उसने उठाया ही नहीं।अब परसों राखी है ,जीजाजी ने बताया कि वो गुस्सा है ,इस बार राखी में नहीं आएगी।"
" ओह!तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था।खैर मैं फोन करती हूं,साल भर का त्योहार है।"
" राहुल सुनो ना ",क्यों न हम लोग ही राखी के दिन तारा के घर चले चलते हैं।उसको भी अच्छा लगेगा"_रचना ने कहा।
" ठीक है बाबा जैसी आपकी इच्छा,अभी बहन ही नाराज़ है ,कहीं घरवाली नाराज़ हो गई तो खाना पानी भी मिलना मुश्किल हो जायेगा"_राहुल ने हंसते हुए कहा।
रचना ने कई बार राहुल के ऑफिस जाने के बाद फोन मिलाया ,लेकिन रचना ने नहीं उठाया।
आखिरकार एक घंटे बाद रचना का फोन आया"सॉरी भाभी मैं थोड़ा बाजार आई थी,आप कैसी हैं?
" मैं ठीक हूं ,पर तुझे क्या हुआ ,राहुल बता रहे थे तू रक्षा बंधन में नहीं आएगी।"_रचना ने सवाल किया।
" भाभी इस विषय पर बात न करें ,नहीं तो मैं फोन रख दूंगी"से_,तारा ने कहा।रचना समझ गई अभी मामला गरम है ,घर तो जाना ही है वहीं जाकर बात करूंगी।
वो फिर कुछ नहीं बोली इधर उधर की बात करके उसने फोन रख दिया।
राहुल के जाने के बाद वो चाय लेकर बैठ गई, आज बरसों पहले की बात उसे अचानक कचोटने लगी। उसकी नई नई शादी हुई ,एक बड़ा भाई और वो छोटी संतान होने के कारण वो सबकी दुलारी थी।खुला परिवेश ,तार्किक,और खुले दिमाग की होने के कारण शादी के बाद उसे राहुल के साथ सामंजस्य बिठाने में दिक्कतें आई।राहुल ग्रामीण परिवेश से थे।माता पिता का बहुत पहले ही देहांत हो गया था।चाचा , ताऊ की मदद से उन्होंने खुद की पढ़ाई कर नौकरी हासिल की तारा की पढ़ाई चल रही थी ,बड़े होने के कारण उसने रचना के साथ शादी हुई।
रचना और तारा में खूब पटती थी ,वो दोनों ननद भाभी नहीं बहनों की तरह थीं।राहुल ने शुरुवात से संघर्ष देखा था।
रचना अपने परिवार में छोटी थी,कोई जल्दी से उसे डांटता तक नहीं था।राहुल पुरुषवादी मानसिकता का था ,वो अपनी हर बात रचना पर थोपना चाहता था लेकिन रचना खुली सोच की थी वो जब विरोध करती तो राहुल गुस्से से बिफर जाता और झगड़ा ,मार पीट तक खत्म होता।घर में तारा रचना का पक्ष लेती तो उसे भी डांट खानी पड़ती।
रचना का भाई दूसरे शहर में था जबकि माता पिता बहुत दूर थे।इसीलिए वो भाई से ही राहुल की शिकायत करती, भाई रचना को ही समझा बुझा कर शांत कर देता क्योंकि उसे पता था , कि छोटी मोटी लड़ाइयां हर घर में होती है और वो घंटे दो घंटे में सुलझ ही जाती हैं।
रचना को लगता था कि ,राहुल की गलती पर भी अगर उसका भाई नहीं बोलेगा तो राहुल को ये लगेगा कि मैं चाहे जो करूं कोई मुझे रोकेगा नहीं।ऐसे ही
एक दिन रचना को बिना गलती के राहुल ने बहुत डांटा , उस दिन रचना घर छोड़ कर बाहर निकल गई तब मोबाइल फोन कम थे उसने पीसीओ से भाई को फोन किया कि वो उसे ले जाए,अब वो राहुल के साथ नहीं रहना चाहती । उस दिन भाई ने कहा "तुम लोगों का रोज का यही किस्सा है ,शादी हो गई है ,अपना मामला खुद सुलझाओ। उस दिन ये सुन रचना के पैरों तले जमीन खिसक गई।उसे ये उम्मीद नहीं थी जिस रिश्ते पर उसे इतना गुरुर था उसे लगता था दुनिया की पूरी ताकत उसका भाई है वो अगर उसके साथ है तो वो दुनिया से लड़ सकती है।उसके बाद से उसने खुद को संभाला और ये सोच लिया मैं मरूं या जियूं,लेकिन कभी भी भाई से कुछ न कहूंगी।उसने पूरी तरह खुद को गृहस्थी में झोंक दिया तारा को मां की तरह प्यार दिया ,उसकी और अमित की शादी कराई।राहुल के हर रिश्ते नाते को बखूबी निभाया।धीरे धीरे राहुल में भी परिवर्तन आने लगा ,अब वो रचना की अहमियत को समझने लगा।
लेकिन उस वाकए के बाद उसने कभी अपने भाई से बात नहीं की न ही राखी बांधी। हर राखी वो बाजार जाती और दो राखी खरीद कर लाती ।एक भाई के लिए और एक अपने कान्हा के लिए ।जो उसके लिए हर मुसीबत में खड़े थे जो कभी उसे दुत्कारते नहीं थे।बरसों से भाई की राखी ढेर सारी जमा हो गई थी।
दो दिन बाद रचना और राहुल ढेर सारा गिफ्ट लेकर तारा के घर पहुंचे।तारा ने रचना को देखते गले से लगा लिया,और राहुल से भी ऐसे बात की जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।रचना ने तो सोचा था कि तारा को रिश्ते निभाने का लेक्चर देगी लेकिन यहां तो ऐसी कोई वजह ही नहीं दिखाई दे रही थी।
तारा उसे अंदर ले गई ,वहां अपने भाई को देख वो हैरान रह गई । भाई ने कहा "कैसी हो गुड़िया"?
वो कुछ बोल नहीं पा रही थी ,उसकी आंखों में आंसू भर आए,और वो बाहर आ गई।
तारा ने कहा "भाभी कब तक आप रूठी रहोगी।रिश्ते तोड़ने के लिए नहीं होते इन्हें जोड़ कर रखना ही सही है।जिंदगी छोटी है ,कब कौन बिछड़ जाए क्या पता?
सहेज लो भाभी इन रिश्तों को ।मैने आपको राखी के दिन छिप छिप कर कान्हा की मूर्ति के पास रोते देखा है।मैं ये भी दावे के साथ कहती हूं कि भैया भी राखी के दिन अपनी सूनी कलाई देख दुखी होते आपको याद करते होंगे।भाभी भैया बहुत बीमार रहते हैं।एक दिन मार्केट में मेरी राहिल भैया से मुलाकात हुई थी उन्होंने आपके बारे में पूछा , वे आज तक ग्लानि से भरे हुए हैं। तब मैंने,अमित और राहुल भैया ने ये प्लान बनाया था कि इस राखी पर हम आप दोनों को एक करके रहेंगे।
अगर भाभी आपको ये अच्छा न लगा हो तो प्लीज मुझे माफ कर देना लेकिन भाभी ,आज राखी पर मैं यही तोहफा आपसे मांगती हूं,प्लीज भाभी बरसों से रिश्तों पर जमी धूल की परत साफ कर दो।
रचना के पास कोई जवाब नहीं था ,उसने तारा का हाथ दबाया और किचन में चली गई ।अपने अंदर उमड़ते सैलाबों को शांत किया और देखने लगी कि तारा ने क्या क्या बनाया ।बहुत कुछ बना रखा था तारा ने।
आरती की दो थाल तारा ने सजा रखी थी।आज आंसुओं से सारे दिल के मैल धुल गए।रचना ने भाई की सूनी कलाई पर अपने स्नेह के धागे को बांध उसके कुशल क्षेम की ईश्वर से प्रार्थना की,और तारा के सयानेपन पर मंद मंद मुस्कुरा उठी।
समाप्त