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SANGEETA SINGH

Romance Tragedy drama

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SANGEETA SINGH

Romance Tragedy drama

बूंदों की बातें

बूंदों की बातें

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" सत्यम जल्दी घर चलो, आसमान पर काले बादल छा गए हैं ।अंधेरा छाने लगा है, साइकिल जल्दी चलाओ ,वरना हम घर तक पहुंचते पहुंचते भींग जाएंगे"_साइकिल के पीछे बैठी राधा चिल्ला रही थी।

सावन के महीने में प्रकृति हरी चादर से ढंक जाती है । खेतों में महिलाएं गीत गाती हुई, धान रोपती हैं।  बारिश वो मौसम है जिसमें प्रकृति अपने पूरे यौवन में अंगड़ाई लेती है। बारिश की बूंदें जब धरती पर पड़ती है और उसकी सोंधी खुशबू फिजाओं में एक मतवाली सुगंध बिखेर देती है। सत्यम और राधा दोनों शहर से पढ़कर गांव लौट रहे थे। बीएसी का आखिरी साल सत्यम का था जबकि राधा फर्स्ट ईयर में थी।सत्यम ने साइकिल की स्पीड बढ़ा दी।लेकिन घर पहुंचने से पहले बारिश तेज  होने लगी।अब आगे बढ़ना मुश्किल था।तभी थोड़ी दूर पर एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी। शायद वहां कोई नहीं रहता था।दोनों दौड़ कर वहां पहुंचे।

  दोनों इतनी ही देर में बुरी तरह भींग गए थे।राधा का गुस्सा चरम पर था ,उसने गुस्से से सत्यम की ओर देखा ।सत्यम आराम से एक ओर खड़ा बारिश के रुकने का इंतजार कर रहा था।हवा चल रही थी ।शायद ये हवा बारिश उड़ा दे,क्यों राधा? _राधा के गुस्से से बेखबर सत्यम ने राधा की ओर देखा।

 राधा पूरी भींग गई थी ,गीले कपड़ों में उसका अंग प्रत्यंग झांक रहा था। कुछ देर तक सत्यम उसे निहारता रह गया ,उसके होंठ जैसे चिपक गए थे।बचपन से आज तक उसने कभी राधा पर गौर ही नहीं किया था।राधा उसके पास थी ,दोनों लड़ते झगड़ते ,दोनों कब जवान हो गए पता ही नहीं चला। राधा से उसकी नज़र हट ही नहीं रही थी ,आखिरकार राधा अपने चिपके कपड़ों को ठीक करती बोली"क्या निहार रहे हो मुझे ,आज से पहले कभी देखा नहीं क्या?"सुना है कॉलेज में अपने क्लास की चित्रा को अपने दिल के कैनवास पर उतार रहे हो,शिवम बता रहा था।

  सत्यम सकपका गया ,जैसे राधा को इस तरह देखते उसकी चोरी पकड़ी गई हो,उसने हकलाते हुए कहा_"क्या कह रही हो तुम ,पता नहीं कहां कहां से लोकरूचि समाचार ले आती हो।वो चित्रा अपने आप को दिखाने के लिए उटपटांग हरकतें करती रहती है।"

"अरे चलो ! बड़े आए हो सीधे बनने !"_राधा ने छेड़ा।

सत्यम उसकी ओर बढ़ा ,उसने राधा के बाल खींचना चाहा ,बचपन में सत्यम उसकी चुटिया खींच कर भाग जाता था और राधा उसके पीछे पीछे दौड़ती थी।जब थक जाती तो उसकी शिकायत बापू(रामलाल)से करती थी।रामलाल दोनों की शैतानियों पर हंस देते ,और राधा को खुश करने के लिए सत्यम को झूठी डांट लगा देते।

 आज वो बढ़ा तो लेकिन राधा के अंग से अंग लगते ही ,सिहर उठा एक तरंग दोनों ओर से उठी।अभी तक जो भावनाएं एक जवान स्त्री पुरुष के बीच दबी थीं आज उस अहसास को बारिश की बूंदों ने जगा दिया। सत्यम ने राधा को अपने मजबूत बाहुपाश में जकड़ लिया । राधा के थरथराते अधर पर तप्त अधर से चुम्बन की मुहर लगा दी । कुछ देर तक वो उसी स्थिति में बने रहे।राधा ने भी विरोध नहीं किया।अचानक जैसे सत्यम को होश आया ,वो राधा को छोड़ अलग हुआ।देखा तो बारिश बंद हो गई थी।

दोनों चुप थे ,सत्यम ने साइकिल पोछी,और फिर दोनों चल पड़े घर की ओर।   रामलाल इधर उधर बेचैनी से चहलकदमी कर रहे थे।उन दोनों को देख कहा"अरे तुम दोनों काफी भींग गए ,जल्दी जाकर कपड़े बदल लो।"मैं चाय बना कर देता हूं।"

 राधा कुछ न बोली और कमरे में चली गई।सत्यम ने कहा " बाबा! कॉलेज से निकलने में देर हो गई और रास्ते में बारिश तेज होने लगी वरना हम दोनों आ जाते।"

”कोई नहीं बेटा मौसम ही बारिश वाला है , बरसाती (रेनकोट),छाता लेकर जाया करो।" जाओ तुम भी कपड़े बदलो।

 रामलाल चाय बनाने चले गए।थोड़ी देर बाद आए तो दोनों को चाय देकर खेत में मेड़ बंधवाने चले गए।

 अब सत्यम और राधा ही घर में थे। लब खामोश लेकिन अंदर बहुत कुछ चल रहा था।

सत्यम को राधा के बापू रामलाल कुंभ मेले से ले आए थे।राधा की मां बचपन में ही भगवान को प्यारी हो गई थी। सौतेली मां आयेगी राधा का ख्याल रखेगी की नहीं यही सोच रामलाल ने दूसरी शादी नहीं की।वह अकेला ही राधा की परवरिश करने लगा।रामलाल के भाई की पत्नी बीच बीच में चुपके से रामलाल का सहयोग कर देती। दोनों भाइयों में आपस में पटती नहीं थी ,इसीलिए वो अपनी पत्नी को रामलाल के घर जाने से रोकता था।

  कुंभ का मेला लगा था , उस समय राधा 4 साल की थी ।गांव के कुछ लोग गंगा नहाने जा रहे थे ,रामलाल भी उन लोगों के साथ कुंभ जा रहा था और राधा को लेकर जाना उसकी मजबूरी थी आखिर किसके सहारे राधा को छोड़ता। उस दिन भी अचानक बारिश शुरू हो गई।पीपे से बना पुल टूट गया,भगदड़ मच गई।बहुतेरे लोग गंगा में समा गए कुछ को जलपुलिस किनारे खींच लाए।कुछ भगदड़ में कुचले गए।सत्यम भी कहीं से अपने माता पिता के साथ आया था ।भगदड़ में वो अपने माता पिता से बिछड़ गया । उसके सर से खून निकल रहा था ,वो भागते समय किसी पत्थर से टकरा कर वहीं रास्ते में गिर गया था ।

 घायल सत्यम को जब रामलाल ने देखा तो वो उसे किनारे सुरक्षित जगह ले गया ।उससे उसके माता पिता का नाम पूछा , डर और दहशत की वजह से सत्यम कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।वो लगातार रो रहा था।आखिरकार रामलाल ने निश्चय किया कि वो उसे नियति के हवाले नहीं छोड़ सकता ,जब बच्चा अपने होशो हवास में आ जाएगा तो वह उसे उसके माता पिता के पास छोड़ आएगा। उसने मेले में सत्यम का फर्स्ट_ एड करवाया और अपने साथ गांव ले आया ।बच्चे के गले में एक लॉकेट था। स्वस्थ होने के बाद भी सत्यम को अपने माता पिता और शहर का नाम याद नहीं आया ।डॉक्टरों ने बताया शायद सर में लगी चोट ,(जो शायद टेंपोरल लोब में लगी हो )के कारण ये पिछली अपनी सारी यादें भूल चुका है,हो सके ये अल्पकालिक हो या हो सकता है इसे कभी अपना अतीत याद ही न आए।

 उस दिन के बाद उसे रामलाल ने नया नाम दिया सत्यम।उसने लॉकेट गले से निकाल सुरक्षित रख दिया था।

राधा को अपने साथ खेलने वाला दोस्त मिल गया।दोनों साथ खेलते ,झगड़ते,एक साथ स्कूल जाते।सत्यम का दिमाग तेज था ,वह स्कूल में भी अव्वल था ,और रामलाल के साथ खेत में भी हाथ बंटाता था।

 समय कहां रुकता है ,सत्यम और राधा जवानी की दहलीज पर आ गए थे ,रामलाल अब धीरे धीरे उम्र के अवसान की ओर खिसक रहे थे।

  आज बारिश ने दोनों के अंदर सोए जज्बातों को जगा दिए था।जो राधा ,आंखों में आंखे डाल दिन भर लड़ने को आमादा रहती वो आज चुप थी,उसकी आंखें सत्यम को जी भर कर देखना चाहती थी ,लेकिन आंखें ये हिमाकत करने से इतना डर क्यों रही थीं,ये बात राधा को समझ नहीं आ रही थी।

  सत्यम ने मजाक में राधा से कहा "राधा तुम इतनी सुंदर हो ,मैंने तो ध्यान ही नहीं दिया। "

  राधा चौंकी,फिर बोली"क्यों आज से पहले तुम्हारी ये दो आंखें,आंखें नहीं बटन थी क्या?"

"शायद,आज ही बटन आंख बनी हो,"कहकर सत्यम हंसने लगा।बारिश ने उन दोनों के बीच प्यार का बीज प्रस्फुटित हो गया था।

 फिर उसने कहा, काफी देर हो गई है ,रुको बाबा को देख कर आता हूं ।

राधा कुछ न बोली।वो तो सत्यम को बहुत पहले से पसंद करती थी ,लेकिन कभी दिल की बात जुबान पर नहीं आई ,डरती थी कहीं सत्यम उसका मजाक न उड़ा दे।

 गांव का एक आपराधिक प्रकृति का लड़का गौरव अपने दोस्तों के साथ उसे जब भी अकेले देखता तो छेड़ा करता ,भद्दी भद्दी बातें उसके और सत्यम के बारे में कहता ,राधा हर बार इग्नोर करती ,उसने सत्यम और रामलाल को नहीं बताया कि ख्वामखाह लड़ाई होगी। कभी कभी किसी बात का विरोध न करना सामने वाले को अपनी मंशा को शह देना होता है। गौरव भी और मनबढ़ होता गया।

 सत्यम के एग्जाम खत्म हो चुके थे ,उसने घर में ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी शुरु कर दी थी।

 सत्यम ने राधा से वादा किया था कि जिस दिन वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा उस दिन वो उसके बापू से सदा के लिए राधा का हाथ मांग लेगा।

  प्रेम ऐसी स्थिति है जब इंसान बिना बात के ही अकेले अकेले मुस्कुराता है ,खुद से बातें करता है ।बुजुर्ग रामलाल की पारखी आंखें भी राधा में आए परिवर्तन को भांप चुकी थी।

राधा अपनी गांव की ही एक सहेली रूपा के साथ कॉलेज जाने लगी । 

एक दिन वो कॉलेज जाने के लि

ए गांव के मोड़ तक पहुंची ही थी कि गौरव अचानक अपने साथियों के साथ उसके सामने आ कर खड़ा हो गया और उसका दुपट्टा पकड़ कर खींचने लगा। राधा डर गई और चिल्लाने लगी। सत्यम किसी काम से बाजार गया था , ऐन वक्त पर पहुंच गया।राधा उसकी ओर दौड़ी ,और उससे लिपट कर रोने लगी।वो हड़बड़ा गया,उसने पूछा _क्या हुआ रूपा ,राधा क्यों रो रही है।

तब तक गौरव वहां से निकल चुका था।रूपा ने बताया "सत्यम ,ये जो गौरव और उसके दोस्त हैं ये अक्सर आते जाते राधा को तुम्हारे नाम को जोड़ भद्दी भद्दी बातें कर छेड़ा करते हैं।

क्या? सत्यम ने राधा की ओर देखा ,सत्यम की आंखें गुस्से से लाल थी।उसने गुस्से से घूरते हुए राधा से कहा "तुमने मुझसे पहले क्यों नहीं बताया?"

राधा कुछ न बोली,वो सिर्फ रोती रही। उस दिन वो कॉलेज नहीं गई।

रामलाल तक बात पहुंची ।रामलाल ने पंचायत बुलाने की बात कही ,जिससे गौरव की कारस्तानी पूरे गांव को पता चले।रामलाल और राधा ने सत्यम को कसम दी कि उस लफंगे के मुंह न लगे ।

सत्यम गुस्से से हाथ मलता रहा,राधा ने कसम न दी होती तो गौरव का वो ऐसा हाल करता कि भविष्य में गौरव किसी के मुंह दिखाने लायक न रहता।

 अगले दिन पंचायत में पूरे गांव वालों ने एक स्वर में गौरव को राधा से माफी मांगने को कहा ,इतना तक की उसे बहन की नजर से देखे ऐसा फैसला सुनाया।

सबकुछ शांत हो गया,अब अगर राधा कभी गौरव के सामने पड़ती भी तो गौरव उससे नजरें हटा ,अपने रास्ते निकल लेता।

 समय बीत रहा था।सत्यम का बैंक में सिलेक्शन हो गया था।उसे अब जाना था।

गौरव प्रकरण के बाद सत्यम को हर पल रूपा की ही चिंता रहती ,वो एक पल भी राधा से दूर रहना नहीं चाहता था।

  जाते समय राधा उससे लिपट कर खूब रोई । सत्यम ने वादा किया वो जल्द ही लौट कर आएगा ,और सबको अपने साथ शहर ले जाएगा।उसने भारी मन से सबसे विदा लिया।उसे नहीं पता था कि उसके जाते ही बहुत कुछ बदल जाएगा।

  अब तक जो गौरव शांत दिख रहा था उसने अपना असली रंग फिर से दिखाना शुरू किया।

  एक दिन घनघोर बारिश हो रही थी, बादल की गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमक रही थी। बड़ी भयानक रात थी।सारा गांव गहरी नींद में डूबा था।आधी रात को गौरव अपने दोस्तों के साथ रूपा के घर घुस आया रूपा को बिस्तर से गालियां देते घसीटने लगा ।राधा गिड़गिड़ाने लगी। आवाज सुन रामलाल की आंख खुल गई उसने प्रतिरोध किया तो गौरव के दोस्त ने उसके सर पर लाठी से वार किया।वार इतना तेज था कि रामलाल के प्राण पखेरू उड़ गए।

  उसने राधा के एक एक कर सारे कपड़े उतारे उन सबकी बेशर्मी भरी अट्टहास बारिश के शोर में खो गई थी। और शुरू हुआ उनका बेशर्मी से भरा खेल ।

कहते थे कि अपने गांव की बेटियां पूरे गांव की लाज होती थीं आज उसी गांव के वहशी दरिंदो ने उसकी अस्मिता को तार तार कर दिया।बारी बारी से सबने उसे भोगा,और उसे अधमरा छोड़ हंसते हुए वहां से निकल गए।

बारिश ने उसका सब कुछ छीन लिया था।कभी ये बारिश की बूंदें आंसू भी छुपा देते हैं।

 सुबह बड़े भाई की पत्नी किसी काम से घर में आई तो वहां का मंजर देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।वो दौड़ कर कमरे से चादर लेकर आई और सबसे पहले नग्न राधा को चादर में लपेट दिया । फिर अपने पति को खबर दी।धीरे धीरे ये खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल गई ।पूरा गांव इकट्ठा हो गया। हर कोई सन्न था इतनी बड़ी घटना आज तक कभी गांव में नहीं घटी थी।

  राधा गूंगी हो चुकी थी उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। किसी ने सत्यम को खबर की।

  सत्यम बदहवास भागता हुआ, गांव पहुंचा। रुंधे गले से उसने रामलाल को अंतिम विदाई दी।

उसके बाद वो हॉस्पिटल गया।पुलिस ने गौरव और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया था। राधा की हालत सत्यम से देखी नहीं जा रही थी। राधा बेहोश थी ।होश आने के बाद सत्यम को देख, उसने दूसरी ओर मुंह फेर लिया मानो कह रही हो ,सत्यम अब मैं तुम्हारे लायक न रही।उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

   सत्यम ने राधा का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा "राधा मैं सदैव तुम्हारा हूं, मेरे लिए तुम गंगा की तरह निर्मल और पवित्र हो।"

एक सप्ताह बाद राधा की अस्पताल से छुट्टी हुई तो सत्यम उसे लेकर घर आया।राधा के सामने वही मंजर जो रात को उस दिन उन पापियों ने तांडव किया था ,नाच गया।वो चीखने लगी।सत्यम ने प्यार से संभाला।रामलाल के तेरहवीं के कार्यक्रम खत्म होते ही वो राधा को अपने साथ शहर ले गया।

    जहां शुभ मुहूर्त देख राधा के साथ विवाह कर लिया।लेकिन अभी भी उनकी जिंदगी का इम्तहान बाकी था।

    गौरव जेल में कहां चैन से सजा काटने वाला था ।वो जेल कर्मचारियों की मिलीभगत से एक दिन जेल से चंपत हो गया।उसके भागने की खबर से पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया।पुलिस की एक टीम उसके गांव गई।जहां उसके पुराने मित्रों से सख्ती से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया शायद वो सत्यम और राधा से बदला लेने उनके घर गया हो।

 जेल होते हैं आत्ममंथन के लिए ,प्रायश्चित के लिए ,लेकिन कुछ लोग अपनी झूठी  शान के लिए अपने असली लक्ष्य से भटक बेकार की चीजों में लगे रहते हैं।

  यही हाल गौरव का भी था ।एक निर्दोष की हत्या के बावजूद भी उसके अंदर की ज्वाला बुझने का नाम नहीं ले रही थी।उसके निशाने पर राधा और सत्यम ही रहे। 

 जेल से भागने के बाद वो सीधे सत्यम के घर पहुंचा।

  रविवार का दिन था ,अलसाई सुबह।सत्यम उस दिन देर से उठता था।राधा रोज की तरह उठकर नहा कर पूजा कर सत्यम के उठने का इंतजार कर रही थी।दो तीन बार जगाने भी गई लेकिन सत्यम तो उसे ही बिस्तर पर खींच लेता ,प्यार मनुहार करने लगता ।आखिर थोड़ी देर के बाद सत्यम उठा और सीधे अखबार लेकर बैठ गया।अखबार का पन्ना पलटते ही गौरव के जेल से भागने की खबर से उसकी आंखें फैल गई।उसने राधा को आवाज़ लगाई।राधा जल्दी आओ।चाय का प्याला ट्रे में रखती राधा ने कहा "आ रही हूं क्यों इतना चिल्ला रहे हो अभी तो बिस्तर से उठ नहीं रहे थे।

 राधा बड़बड़ाती सत्यम के पास पहुंचती कि अचानक दरवाजे पर जोरदार आवाज हुई ,धड़ाम से दरवाजा खुल गया।सामने गौरव को देख राधा चिल्लाई"तुम"।

 गौरव गाली देता तमंचा निकाल  राधा की ओर बढ़ा ,सत्यम दौड़ा ।गौरव के सर पर खून सवार था उसने जोर दार धक्का दिया ।सत्यम का सर पास रखे स्टूल से टकराया और वो बेहोश हो गया।

 चीख पुकार की आवाज सुन लोग जुटने लगे ।पुलिस उसी समय पहुंच गई,उसने गौरव को गिरफ्तार कर लिया।

सत्यम को अस्पताल  में भर्ती कराया गया।सत्यम बेहोश था।राधा का रो रो कर बुरा हाल था।थोड़ी देर में अस्पताल के न्यूरोफिजिशियन आए उन्होंने  सत्यम की जांच की,और कुछ टेस्ट कराने को कहा।

 अचानक उनकी नजर सत्यम के गले में पड़े लॉकेट पर गई ।एक पल के लिए उनके सामने 25 साल पहले का दृश्य घूम गया।कैसे कुंभ के मेले ने उनकी इकलौती संतान को छीन लिया था,तब से उनकी पत्नी न कुछ बोलती ,बस चुपचाप सूनी आंखों से सबको देखा करती थीं।

  उन्होंने राधा से उस लॉकेट के संदर्भ में पूछा तो राधा ने बताया कि ये लॉकेट बचपन से ही उसके गले में है।पिता के गुजर जाने के बाद घर के सामान समेटने में ये लॉकेट मिला था ।तब से ये सत्यम के गले में है।अगले दिन सत्यम को होश आ गया ।शहर के मशहूर न्यूरोफिजिशियन डॉक्टर अतुल पांडे उसके पिता थे।लॉकेट में माता पिता के साथ उनके गुरु की तस्वीर थी।जिसे कभी किसी ने खोल कर देखा ही नहीं था।आखिर में सत्यम को अपने माता पिता मिल गए।उनकी जिंदगी ही एक हादसा थी जो कभी हंसाती तो कभी रुलाती।

समाप्त

   




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