SANGEETA SINGH

Inspirational

4.5  

SANGEETA SINGH

Inspirational

मेरा देश महान

मेरा देश महान

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  तमाम उतार चढ़ाव के बाद इंदू विदेश गई थी। अनिकेत ने उसे विदेश नहीं ले जाने के लिए न जाने कितनी दलीलें दी,लेकिन ठाकुर विक्रम सिंह (अनिकेत के पिता) के आगे एक न चली।

 ठाकुर विक्रम सिंह और इंदू के पिता ठाकुर रघुनाथ सिंह की दोस्ती लोगों के बीच मिसाल थी। दोनों जिगरी दोस्त थे। विक्रम सिंह का एक बेटा और रघुनाथ सिंह की सिर्फ एक ही बेटी थी। असमय पारिवारिक दुश्मनी के कारण रघुनाथ सिंह के बहनोई ने उनकी हवेली में रात के वक्त आग लगवा दी जिससे पूरा परिवार उसी में झुलस कर मर गया। इंदू बच गई थी क्योंकि वो अपनी मौसी के पास गई थी।

  इतनी भयावह मौत की खबर सुन विक्रम सिंह बेहाल हो गए,रिश्तेदार को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगवा दिया। इस कारण उनके परिवार से भी दुश्मनी हो गई, अनिकेत को उन्होंने विदेश भेज दिया उसके मामा के पास, जबकि इंदू की शिक्षा का प्रबंध मौसी के घर ही किया गया। घर पर सख्त पहरा था,कोई अनजान व्यक्ति आस पास नहीं जा सकता था।

  साल बीतते गए। अनिकेत और इंदू युवा हो चुके थे। अनिकेत की परवरिश अमेरिका में होने के कारण वो गांव के लोगों को चींटी की तरह समझता था, संस्कार शायद वहां रहकर मामा जी ही भूल गए थे तो अनिकेत को क्या देते। मामा जी ने वहीं की लड़की से विवाह कर लिया था,जिसके कारण अब वे भारत कभी कभी ही आ पाते।

 एक दिन विक्रम सिंह इंदू से मिलने उसकी मौसी के घर गए। इंदू को कई सालों बाद देख पहचान नहीं पाए,गोरा रंग,आंखें बड़ी बड़ी कजरारी,लंबे काले बाल जैसे काली नागिन की तरह लहरा रहे थे।

उसके रूप, गुण और संस्कार को देख ठाकुर साहब को एक ख्याल आया कि अनिकेत के लिए इससे बेहतर लड़की हो ही नहीं सकती, साथ ही डर भी था कि अनिकेत का बिगड़ैल स्वभाव जो अपनी संस्कृति की कद्र नहीं करता क्या वो इंदू को अपनाएगा।

 लौट कर ठाकुर साहब घर आ गए उनके अंदर द्वंद चल रहा था क्या अनिकेत इंदू के लिए सही है? लेकिन तमाम अंतर्द्वंद्व के बाद उन्हें यही सही लगा कि अनिकेत को सही रास्ते में लाने के लिए इंदू से अच्छा कोई नहीं हो सकता।

 अनिकेत अमेरिका से अपनी नौकरी बदल जर्मनी आ गया था। वहां वो और भी बहक गया था, काम के बाद दोस्तों के साथ क्लब, कभी कभी ड्रग्स भी ले लिया करता। दोस्त भी निकम्मे थे ज्यादातर अनिकेत के पैसे पर ऐश करते। कुछ महिलाएं भी उसकी मित्र थी जो अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उसका उपयोग कर रही थीं।

  विक्रम सिंह ने अपनी बीमारी का बहाना बना अनिकेत को भारत बुला लिया। वो चाहते थे कि अनिकेत की शादी इंदू से करवा उसे उसके साथ भेज दें।

  तमाम मान मनौव्वल के बाद अनिकेत को मनाया गया। अनिकेत के लिए वो बस एक देहाती लड़की थी जिसे उसके पिता ने उसके साथ बांध दिया था। अनमने अनिकेत ने मजबूरी में इंदू से विवाह तो कर लिया लेकिन वो उससे दूर ही रहता। इंदू ने अपने बर्ताव,संस्कारों से सबका दिल जीत लिया था।

  कुछ ही दिनों में इंदू का पासपोर्ट वीजा तैयार करवा ठाकुर साहब ने अनिकेत के साथ उसे भी भेज दिया।

  सात समंदर पार अपने घर से दूर अकेली इंदू बहुत दुखी थी। अनिकेत हमेशा अपनी महिला दोस्तों के साथ पार्टी करता और रात को शराब पी कर लौटता ।

 इंदू दिन भर अकेली ऊबती रहती, वो बहुत सुंदर पेंटिंग करती थी, अनकहे अल्फाज उसने कैनवास पर उतारना शुरू कर दिया। शाम के वक्त वो पार्क में जाती और चुपचाप बच्चों को खेलते देखती। इला भी पार्क में आती थी, वो रोजाना इंदू को देखती थी, आखिर उसने हिम्मत करके उससे बातचीत शुरू की। इला बहुत सालों से जर्मनी में रहती थी। कुछ दिनों की मुलाकात के बाद वो दोनों अच्छी दोस्त बन गईं, अब दोनों एक दूसरे से अपनी दिल की बातें करने लगी। इला के प्रयास से भारतवंशी समुदाय के बच्चे छुट्टी के दिन इंदू से पेंटिंग सीखने आने लगे। अब इंदू खुश रहने लगी। अनिकेत को उसके अंदर आए परिवर्तन को देख आश्चर्य होता।

    एक रात अनिकेत नहीं लौटा तो इंदू बेचैन हो कमरे में चहलकदमी कर रही थी, अचानक फोन बजा उसने उठाया तो किसी अंजान शख्स ने बताया कि अनिकेत नाम का व्यक्ति रास्ते में बुरी तरह घायल मिला है। उन्होंने उसके फोन से घर का नंबर डायल किया था ।

 इंदू ने लोकेशन पूछा और कार ड्राइव कर उस जगह पहुंच गई। दो लोग उसका इंतजार कर रहे थे उन्होंने इंदू से पूछा _क्या ये आपके पति हैं। इंदू के हां कहने के बाद उन्होंने बताया कि, " जब वे ऑफिस से लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कुछ लोग एक व्यक्ति को मारते नज़र आए, कार की लाइट चेहरे पर पड़ते वे हड़बड़ा कर पास खड़ी नीली कार में बैठ भाग खड़े हुए,लेकिन आपके पति बुरी तरह घायल थे । हमने पुलिस को फोन कर दिया है, हमें जल्दी जरूरी काम से जाना इसीलिए हमने आपको सूचित किया,आप जल्द से जल्द इन्हें हॉस्पिटल ले जाइए।  

 इंदू ने कहा _"कोई बात नहीं आप लोगों ने इतना किया वही काफी है। उन दोनों की मदद से उसने अनिकेत को गाड़ी की सीट पर लिटाया, तब तक पुलिस आ गई उन्हें उन दोनों ने हमलावर का हुलिया बता दिया वे उन्हें पकड़ने के लिए हर चौराहे पर नाकाबंदी करने को सूचना देकर आगे निकल गए।

 इंदू उसे लेकर हॉस्पिटल ले गई,वहां उसके स्टूडेंट के पिता ही सर्जन थे,जो अच्छी हिंदी बोल लेते थे। परदेश में किसी को विदेशी को अच्छी हिंदी बोलते देखना सुखद आश्चर्य था। हमारे अपने देश में लोग हिंदी बोलने से कतराते हैं, आज भी इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं। न्याय व्यवस्था में भी हिंदी की जगह अंग्रेजी बोली जाती है।

  उनकी मदद से अनिकेत जल्द ही ठीक होने लगा। इंदू ने डॉक्टर थॉमस से पूछा "डॉक्टर आप इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल लेते हैं?

 उसने जवाब दिया "मैंने शुरू में जब प्रैक्टिस शुरू की तो लोगों की इलाज के दौरान मृत्यु देख मेरा मन विचलित हो जाता, कई कई दिन मुझे खाना नहीं खाया जाता था। मैं अवसाद में जाने लगा। मेरी पत्नी बहुत परेशान थी, तभी हमें किसी ने सलाह दी कि भारत आध्यात्मिक देश है, वहां जाओ आपको शांति मिलेगी। हम ऋषिकेश आ गए वहां आश्रम में रहकर ध्यान किया, गुरुजी के द्वारा गीता के व्याख्यानों को सुना । मन में अजीब सी शांति मिली। इसी दौरान मैंने हिंदी सीखी। आपका भारत बहुत महान है, यहां हर धर्म और भाषा को पूरा सम्मान मिलता है। मुझे हिंदी बोलना बहुत अच्छा लगता है, मेरे घर में गीता रखी है आप तो मेरे बेटे को जानती हैं वो आपकी बहुत तारीफ करता है, मैं फ्रेंच में गीता का अनुवाद कर रहा हूं, लेकिन समय कम मिल पाने की वजह से देर हो रही है।

 इंदू का सर डॉक्टर के सामने श्रद्धा से झुक गया। अनिकेत ये सब बातें सुन रहा था, उसे खुद पर शर्म आ रही थी कि हिंदुस्तानी होने की वजह से कई बार उसे रंगभेद का भी शिकार होना पड़ा, विदेशी उसे हेय दृष्टि से देखते हैं और वो उनकी भाषा,संस्कृति अपना कर गर्व महसूस करता रहा ।

  अनिकेत ठीक होकर घर आ गया। पुलिस ने हमलावरों को पकड़ लिया था। वे हमलावर ड्रग पेडलर थे जिनसे उसके दोस्त ड्रग लेते थे,उन्होंने पैसे लेने को अनिकेत से कहा था । अनिकेत ने पैसे देने से जब इंकार किया तो वे उसे जान से मारने पर उतारू हो गए।

    अनिकेत इस घटना के बाद बदल गया,अब इंदू ही उसकी जिंदगी थी। वो ऑफिस से घर टाइम से आता इंदू जिस प्यार से बचपन से महरूम रही अब अनिकेत ने उसकी कमी पूरी करनी शुरू की।

  ठाकुर विक्रम सिंह खुश थे कि इंदू की तपस्या सफल हो गई।  

  आज खुशखबरी इंदू देने के लिए बेसब्री से अनिकेत का इंतजार कर रही थी । अनिकेत के ऑफिस से लौटते इंदू ने चहकते हुए कहा"आज मैं डॉक्टर के घर गई थी। "

अनिकेत ने चौंक कर पूछा "तुम तो ऐसे बता रही हो जैसे शॉपिंग पर गई थी,औरतें तो इतनी खुश शॉपिंग करके ही होती हैं,डॉक्टर के पास जाकर कोई भला इतना खुश होता है क्या,मैने तो नहीं देखा।

मसखरी के बाद अनिकेत गंभीर हो गया उसके माथे पर बल पड़ गए,उसने पूछा _ " क्या हुआ क्यों गई थी डॉक्टर के पास तुम्हारी तबियत तो ठीक है। "

   इंदू ने कहा "मुझे कुछ कहने देंगे या खुद ही कहते रहेंगे। "आप पापा बनने वाले हैं।

 क्या......_अनिकेत का मुंह खुला रह गया। खुशी से उसने जल्दी से दौड़ कर इंदू को गोद में उठा लिया और बेतहाशा चूमने लगा।

  इंदू कसमसा कर खुद को छुड़ाती हुई बोली "अरे अब छोड़िए भी। "

 अनिकेत होश में आया, और मुस्कुराते हुए कहा _"आज मैं भी तुम्हें खुशखबरी देने वाला हूं। "

 अच्छा !_इतराती हुई इंदू ने कहा।

 उसने जेब से टिकट निकाले, इंदू की आंखें आश्चर्य से फैल गई,वो जोर से चिल्लाई _हम भारत जा रहे हैं?

हां डार्लिंग अब हम भारत हमेशा हमेशा के लिए लौट रहे हैं। मेरा बच्चा अपनी मातृभूमि पर जन्म लेगा अपनों के बीच रहेगा ।

 अनिकेत और इंदू की आंखों में भावनाओं का ज्वार आंसू बन कर बह निकला। दोनों को छोड़ने मामा आए उन्हें भी दुख था कि वो वापस नहीं जा सकते उनकी गोरी पत्नी कभी भारत नहीं जाना चाहती।

 भारत की जमीन पर विक्रम सिंह ने जोरदार बेटे बहू का स्वागत किया। उनकी बहू आज उनके बेटे को सही सलामत लेकर आई थी। आज तक वो आत्मग्लानि की ज्वाला में धधक रहे थे कि अपने दोस्त को क्या मुंह दिखाऊंगा, उसकी बिटिया को किस नालायक से बांध दिया। आज बेटे बहू का स्वागत करते अनायास उनकी आंखें ऊपर आसमान की ओर उठीं और उन्होंने एक आंख दबा दी, जैसे उनका दोस्त मुस्कुरा रहा हो ।


समाप्त


  


   

  


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