V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

बुढ़ापे का कोहबर

बुढ़ापे का कोहबर

18 mins
333



मृदुला जी आज जब बालकनी में अपनी कॉफी का मग लेकर बैठी थी तो सुबह से तल्ख मन फिर सामने के बालकनी को निहारने लगा था।


"लगता है .…आज विकास जी घर पर नहीं हैँ। नहीं तो इस वक्त वह अपने बालकनी में पौधों में पानी देते हुए दिख जाते थे और एक सामान्य अभिवादन हो जाता था!"


जिससे मृदुला को लगता था कि कोई है जिससे मेरी रोज बातचीत होती है। एक सामान्य अभिवादन में ही इतना अपनापन और इतनी सारी अनकही बातें होती थी कि कई बार रातों में जब मृदुला को अकेलापन लगता था तो उसे लगता कि कोई और भी है जो मेरे इस अकेलेपन का साथी है।


आज सुबह से उसका मन थोड़ा उदास था क्योंकि इस बार नकुल ने कह दिया था कि वह शायद नहीं आ पाएगा। मृदुला जी को बड़ा अजीब लगता है ज़ब कोई किसी बात को सीधे से नहीं मना करके शायद लगाकर छोड़ देता है। एक झूठी उम्मीद लगाकर खामखा क्यों इंतज़ार करूँ... अब बच्चे बड़े हो गए हैँ। सबका अपना घर संसार है। अब थोड़ी ना किसीको माँ के प्यार की वैसी ज़रूरत है!"भर आई आँखों से मृदुला जी ने सोचा।


वैसे बात सिर्फ उनके खुद के जन्मदिन की कहाँ थी। अब चौवन वर्ष की उम्र में खुद का जन्मदिन इतना मायने कहां रखता था । वह तो उनके नाती चीनू का जन्मदिन भीसाथसाथ एक ही दिन पड़ता था। वरना वह अपना जन्मदिन नहीं मनाती।


और .... मृदुला जी का जन्मदिन तो उनके पति ललित जी मनाया करते थे ... बड़ी धूमधाम से।


उनके जाने के बाद नीना और नकुल ही अगर कुछ आगे बढ़ कर कर देते और चीनू का जन्मदिन साथ में मना देते थे तो ठीक नहीं तो मृदुला कहां मनाती थी अपना जन्मदिन?


वैसे तो विकास जी को इस फ्लैट में आए हुए मात्र दो साल ही हुए थे। पर एक तो एकदम सामने के पड़ोसी होने के नाते दूसरे सुबह की सैर के वक़्त की 'हाई' 'हैल्लो' से एक परिचित जैसा होने का आभास होने लगा था। बातें तो बहुत कम होती थीं पर पिछले कुछ महीनों से उनमें हाई हैल्लो से कुछ ज़्यादा बात होने लगी थी। जबसे विकास जी की बहू बेटे और पोता आकर गए थे। उनकी बहू मृदुला जी से हल्की फुलकी बातचीत कर लेती थी और जाते समय उनसे मिलने आई तो उसने अनायास ही मृदुला जी के पैर भी छुए और ना जाने उन्हें कैसे बड़े अधिकार से कहते हुए गईं कि,


"बाबुजी का ध्यान रखियेगा!"


कितना अपनापन और विश्वास था उसके शब्दों में।


तबसे मृदुला जी अक्सर अपनी कामवाली सविता के हाथों कुछ अच्छा बनता तो भिजवा देती थी। या कभी बातों बातों में मालूम पड़ता कि उन्हें कोई चीज पसंद है खाने में तो ज़रूर बनाती और उन्हें भिजवाती थीं। विकास जी के पास किताबें बड़ी अच्छी अच्छी थीं जो वह अक्सर मृदुला जी को दिया करते थे पढ़ने को। यूँ अनजाने में एक डोर सी बँधी हुई थी दोनों के बीच।


विकास जी को तो कभी मृदुला जी के जन्मदिन के बारे में पता भी नहीं चलता।


वह तो एक बार शाम में सब्जियां लेते हुए रास्ते में विकास जी टकरा गए थे और सामान्य अभिवादन से कुछ ज्यादा खुलकर बात करने लगे थे कदाचित अपने फ्लैट के आसपास के लोगों की परवाह करके और उससे भी ज्यादा मृदुला के सम्मान की परवाह उन्हें ज्यादा थी। इसलिए घर के आसपास उससे बिल्कुल अजनबी की तरह व्यवहार करते ताकि एक अकेली रहने वाली महिला और एक विधुर पुरुष को लेकर समाज बाते ना बनाएं।


"अरे ...आज तो आप काफी सारी सब्जियां लेकर जा रही हैं वैसे आप के बैग में मैंने हमेशा बहुत कम सब्जियां देखी हैं क्या बात है कोई पार्टी वार्टी है तो हमें भी बुलाया जाएगा कि नहीं?"


विकास जी ने यूं ही चुटकी लेते हुए कहा तो एकबारगी मृदुला को यकीन नहीं आया कि धीर गंभीर से विकास जी ऐसी चुहल भी कर सकते हैं।


" अरे... कुछ खास नहीं, मेरे नाती का जन्मदिन है और इस बार भी वह लोग यहां मनाने वाले हैं। यह मैं सोच रही हूं कि तब तक कुछ सामान लाकर रख दूँ और उनके आने पर अच्छी-अच्छी सब्जियां बना दूंगी जो उसे पसंद है। अलबत्ता मेरा नाती चीनू छोटा बच्चा है लेकिन उसे मेरे हाथ की आलू मटर की सब्जी बहुत पसंद है। मुश्किल से , छह साल का है लेकिन अभी भी कहता है नानी के हाथ का आलू मटर खाऊंगा और साथ में कुछ और चीजें ले लिया है। बेटी को पसंद है गाजर के हलवा तो बेटा को मेरे हाथ की खीर बहुत पसंद है। दोनों बच्चे सपरिवार आने वाले हैं और मुझे लग रहा है कि अरसे बाद मेरे घर में त्योहार है।क्योंकि साल में एक बार ही दोनों बच्चे आप आते हैं अपने पिता की बरसी पर।


ना जाने अंतिम वाक्य बोलते बोलते कैसे मृदुला जी की आंखें भर आई । आज भी वह इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहती है कि ललित जी नहीं रहे । इसलिए उनके बरसी की बात पर उसकी आंखें भीग गई थी।


विकास जी मृदुला जी की खुशी देख रहे थे । सच संतान की खुशी संतान से जुड़ाव एक माह का एक ऐसा रिश्ता चेक मां के आत्मा से लेकर पूरे शरीर की हरकतों में दिखता है रोज बेजान से चलने वाले मृदुला जी के कदम आज सोलह साल की चंचल नवयुवती जैसे लग रहे थे। वह रह रहकर मुस्कुरा पडती थीं। आज तो मृदुला जी विकास जी से भी तेज चल रही थी। और विकास जी एक तरह से मंत्रमुग्ध होकर अपनी सल्लज मुस्कान वाली बेहद सौम्य पड़ोसन को देख रहे थे।


दो दिन बाद ही तो सब आने वाले थे और शनिवार के साप्ताहिक बाजार में सब्जियां वगैरा लेने के बाद अब एक तरह से मृदुला जी अपने मन में विचार करने लगी थी कि क्या-क्या चीजें बनाई जा सकती हैँ।वह तो अच्छा था कि सोमवार को छुट्टी पड़ रही थी और सोमवार को ही वह लोग आने वाले थे। एक तरह से उन्हें काफी सारा समय मिल जाएगा बाकी ऑफिस के कुछ कैजुअल लिव बचे थे इससे उन सबको मिलाकर पांच दिन का लीव ले लिया था। बेटी नीना और दामाद जी एएक सप्ताह रहनेवाले थे। बेटा नकुल सुबह मना कर चूका था कि वह नहीं आ पायेगा


नकुल और सुमित्रा पुरे पांच दिन रुकनेवाले थे। पर अब तो वो लोग आ ही नहीं रहे थे।


खैर... चलो कोई बात नहीं। कम से कम नीना तो आ रही थी। उन्हें इसी बात का संतोष था।। अभी तो उन्हें अपने नन्हें नाती चीनू के लिए बहुत सारी तैयारी करनी थी और इन तैयारियों में उसने अपनी कामवाली सविता को भी लगा रखा था।शाम में नीना का फोन आया कि,


 " माँ! अचानक निखिल की तबियत ख़राब हो गई इसलिए,हम लोग नहीं आ पाएंगे!सॉरी माँ! हम लोग गर्मी छुट्टी के समय आ जाएंगे।"


सुनकर मृदुला जी पर जैसे ब्रजपात हुआ। मृदुला जी फ़ोन कटने के बाद भी कुछ देरतक स्तब्ध खड़ी रहीं फिर उन्हें कुछ याद नहीं। उनके हाथ पैर ठंडे हो गए थे और पसीना आ रहा था। सीने में दर्द भी बहुत था।उनका सर इतनी जोर से चकराया था कि उन्हें सहारे के लिए अपने बगल की तिपाई पकड़नी पड़ी थी।  वह सोफे पर ही बेहोश होकर गिर पड़ी।


वह तो अच्छा था कि तभी घर में कामवाली बाई सविता घर पर ही थी और उन्हें सहारा देकर लिटाकर किसी तरह बालकनी से आवाज़ देकर विकास जी को बुला लिया था।

अब जब फोन पर उन्होंने सुना कि बच्चे नहीं आ रहे हैं तो चक्कर खाकर गिरने ही वाली थी कि सविता की नजर उन पर पड़ी। वह झाड़ू लगा रही थी । हड़बड़ी में झाड़ू वाले हाथ से ही उसने उन्हें बैठा दिया ।उसे इतना भी याद नहीं रहा कि उसने हाथ में झाड़ू पकड़ा हुआ है।


मृदुला जी को नीना की बात से हल्का सा दिल का दौरा पड़ गया था जिसे विकास जी और सविता ने समय रहते संभाल लिया था।


वैसे ...ललित जी के जाने के बाद यह पांचवा साल था जब उनका नाती अपने जन्मदिन मनाने के लिए नानी के पास नहीं आ रहा था। कुछ सालों से नीना ने एक नियम बना रखा था कि हर साल वह चीनू का जन्मदिन अपनी नानी के साथ ही मनाने चली आती था। इस तरह से बच्चे को नानी का आशीर्वाद मिल जाता और वह अपने बहुत सारे गम भूल जाती थी । इसी बहाने से होली में एक तरह से घर में चहल-पहल होती थी।



कभी-कभी नकुल आता तो कभी नहीं आ पाता था। पर इस साल नकुल भी बड़ोदरा से आने वाला था और कोटा से नीना आने वाली थी। वैसे देखा जाए तो सूरत वडोदरा कोटा यह जगह इतनी दूर नहीं थी लेकिन अभी मृदुला जी की उम्र हो गई थी और साथ में बैंक की नौकरी सब मिला जुला कर वह कहीं जा नहीं पाती थी। घर में इतना सामान भी था और एक तरह से अपनी नौकरी के साथ नियमित दिनचर्या में वह रम गई थी। उन्हें किसी और जगह जाने पर एडजस्ट करने में बहुत मुश्किल होती थी। बेटी नीना का ससुराल वैसे भी जॉइंट फैमिली वाला था ।


इधर नकुल की मलयालम बीवी के साथ उन्हें संवाद स्थापित करने में थोड़ी मुश्किल होती थी। उसने मलयालम लड़की से शादी की थी वैसे तो सुमित्रा अच्छी थी लेकिन पता नहीं कैसे मृदुला उनके साथ एक बॉन्ड नहीं बना पाई थी शायद मां बेटी का तगड़ा बॉन्ड देखकर सुमित्रा ने भी उनके बीच में अपनी कोई पहचान बनाने की कोशिश नहीं की थी नीना मृदुला जी को बहुत प्यार करती थी और एक तरह से मृदुलाजी भी अपनी बेटी पर सारा प्यार लुटाकर खाली हो चुकी थी।



वैसे भी उनके ख्यालात सुमित्रा से थोड़े अलग थे सो बहू को उन्होंने बहू ही रहने दिया , बेटी बनाने की कोशिश नहीं की। इधर उनकी बहू सुमित्रा भी अपने लिमिटेशंस समझती थी। इसलिए वह कभी भी आगे बढ़कर के अधिकार नहीं जमाती थी। एक तरह से ऐसा रिश्ता था तो झगड़ा था ना ही अतिरिक्त प्रेम था।


एक और बात थी जिस वजह से नीना उनकी बहुत परवाह करती थी कि ललित जी अपने रिटायरमेंट के एक साल पहले ही फ्लैट में शिफ्ट हुए थे। उन्होंने नया घर लिया था और आवासीय फ्लैट में से यह फ्लैट बहुत अच्छा था। लेकिन यहां उनकी लोगों से ज्यादा जान पहचान नहीं थी। एक साल के अंदर ही वह इस दुनिया से चले गए तो मृदुला जी अपने आप में और भी सिमट गई थी। एक दो बार उनकी पार्क में कभी मुलाकात हो जाती और या फिर कभी मंदिर में उनकी मुलाकात कुछ पड़ोसन से हो जाती थी।इसके अलावा उनकी पड़ोस में कोई ज्यादा जान पहचान नहीं थी ।


हां ...विकास जी उस बैंक में सीनियर अफसर थे, जहां मृदुला का बैंक अकाउंट था इसीलिए अक्सर उनसे उसकी बातचीत हो जाती थी।


फिर संजोग ऐसा था कि दोनों के घर भी आसपास थे तो इसीलिए अभिवादन से बढ़कर भी कभी-कभी कुछ बातें हो जाती थी अलबत्ता दोनों समाज के नियमों से इतना घिरे हुए थे और संस्कारी भी थे । इसलिए सब के सामने दोनों बात नहीं करते थे। सबको पता था कि मृदुला जी और और विकास जी में बात होती है, और कभी-कभी विकास जी चाय पीने भी आते हैं।


इसलिए आज मृदुला जी की तबियत खराब होते ही सविता सीधे उन्हें ही बुला लाई थीं। संजोग अच्छा था कि छुट्टी का दिन होने की वजह से वह घर पर ही थे। सविता के बुलाने पर वह बदहवास से हवाई चप्पल में ही आ गए और मृदुला जी को तुरंत अपनी गाड़ी से अस्पताल पहुँचाया। वहां डॉक्टर ने हल्का सा दिल का दौरा बताया था उन्होंने फटाफट मृदुला के फोन से मीना और नकुल को फोन किया पहला फोन भी नहीं उठाया और जैसे उसे मालूम पड़ा कि माँ अस्पताल में है।वह फूट-फूट कर रोने लगी। फोन पर उसने बताया कि,


"हम लोग तो माँ को सरप्राइज देना चाहते थे। इसलिए हमने कहा कि हम नहीं आ रहे जबकि अभी रास्ते में हैं तीन घंटे बाद हम वहां पहुंच जाएंगे!"


वक्त की नजाकत देखकर विकास जी चुप रह गए थे वरना उन्हें नीना पर बहुत गुस्सा आया था उम्र के इस पड़ाव पर भी कोई अपनी मां से ऐसा मजाक करता है भला ?


शाम तक नीना आ गई थी और तब तक मृदुला जी को भी होश आ गया था। डॉक्टर ने रातभर ऑब्जरवेशन में रहने की बात कही थी कल सुबह होने डिस्चार्ज मिल जाता उस रात घर में नकुल भी आ चुका था और नीना भी दोनों के बच्चे और सुमित्रा गरम गरम खाना बनाकर जब अस्पताल में ले गई ।


उस वक्त ना जाने वाला जी के मन में कैसा प्रेमभाव आया कि उन्होंने सुमित्रा का हाथ पकड़ लिया कदाचित सामान्य मृत्यु मृत्यु को इतने सामने देखकर उनके मन में कादाचित छोटे-छोटे कलुषित विचार और भेदभाव तिरोहित हो गए थे।आज उन्होंने सुमित्रा को भी लगभग अपना लिया था।


रात में उनके पास सुमित्रा रुक गई थी क्योंकि नीना उनकी अनुपस्थिति में घर को संभाल रही थी और सबको देख रही थी।और .... वहीं रुक गए थे विकास जी।


वह चुपचाप बेंच पर बैठे रहे थे। हालांकि डॉक्टर ने कितनी बार आकर कहा कि वह घर जा सकते हैं पर उन्होंने उनकी बात नहीं मानी उनकी फिक्र देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मृदुला जी उनकी पत्नी नहीं हैं।


रात आधे से ज्यादा बीत चुकी थी। मृदुला जी दवा के प्रभाव से सो रही थी। तभी सुमित्रा आकर विकास जी के बगल में बैठ गई और बोली,


" अंकल जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आप नहीं होते तो पता नहीं मम्मी जी का क्या होता आप उनका इतना ध्यान रख रहे हैं ।हमें इस बात की बहुत खुशी है!"


सुमित्रा की तमिल टोन वाली हिंदी सुनकर विकास जी के चहरे पर मुस्कुराहट आ गई ।काफी देर रुक देर के बाद उनके चेहरे पर मुस्कान आई थी।


कुछ औपचारिक बातों के बाद दोनों कुछ अनौपचारिक बातें भी करने लगे उसी में पता चला कि सुमित्रा अच्छे घर की थी और एक तरह से वह और नकुल वैचारिक क्षमता की वजह से करीब आए थे वैसे तो उनकी शादी माता-पिता की मर्जी से हुई थी ललित जी और मृदुला जी ने दिल से स्वीकार किया था यह रिश्ता । लेकिन पता नहीं क्यों मृदुला जी सुमित्रा से थोड़ी खींची खींची रहती थी इसलिए भी सुमित्रा थोड़ा डरीसहमी रहा करती थी ।


अब... मृदुला जी और सुमित्रा में भी दिलों की दूरी कम होती जान पड़ती थी।


आज बातों ही बातों में सुमित्रा को भी विकास जी के बारे में काफी सारी बातें पता चली।जैसे कि.... विकास जी का एक ही बेटा है जो अमेरिका में रहता है… और उनकी पत्नी का देहांत हुए लगभग आठ साल हो गए हैं। वह अपनी पत्नी को इतना प्यार करते थे कि उनकी यादों से पीछा नहीं छुड़ा पाए थे। इसलिए उस घर से कहीं नहीं जाती हैं। और उनके रिटायरमेंट में अब मात्र दो साल बचे हुए हैं। एक तरह से उन्हें मृदुला जी की काफी फिकर थी।और बहुत सोच समझकर कदम रखने वाले विकास जी उस फिक्र को सिर्फ एक पड़ोसीधर्म कह रहे थे।


अब तक चाहे जितनी भी उम्र थी सुमित्रा की , वह इतना ज़रूर जान चुकी थी कि विकास जी और मृदुला जी अनजाने में एक डोर से बंधे हुए हैं। और एक दूसरे के सम्मान के साथ कहीं ना कहीं एक दूसरे के लिए मन में प्रेम की भावना भी प्रस्फुटित हो चली है। क्योंकि सुमित्रा मृदुला जी से बात करते-करते कई बार विकास जी का नाम सुन चुकी थी । और अभी पिछले एक घंटे में जितनी भी बातें विकास जी से हुई थी ....



उसमें सिर्फ मृदुला जी के बारे में चिंता ही झलक रही थी। उन्हीं के बारे में ही बात हो रही थी। कुछ तो चल रहा था सुमित्रा के मन में लेकिन वह से कहने की हिम्मत नहीं कर सकती थी।


सुमित्रा अब तक अंदाजा लगा चुकी थी कि कुछ तो एकाकीपन था और फिर दोनों एक दुसरे के घर के सामने भी तो रहते थे।


यह भी एक तरह से संजोग था ....इसीलिए विकास जी और मृदुला जी से बातचीत होती रहती थी।

बहरहाल ….....बहुत दिन के बाद आज पूरा परिवार इकट्ठा बैठा था।मृदुला जी अस्पताल से घरआ चुकी थीं। वह पहले से काफी बेहतर लग रही थी और पूरे परिवार के बीच काफी खुश भी लग रही थी।


इस बीच विकास जी दो बार घर पर आकर उनका हालचाल पूछोगे थे बाकी समय में हर दिन तीन चार घंटे में व्हाट्सएप पर उनका मैसेज आ जाता कि ,


"कैसी हो ?"


इन सब बातों में मीना एक बात गौर कर रही थी कि जब तब मां अपना फोन खोल कर देख लेती थी। पहले तो मृदुला जी को बच्चों के साथ रहते हुए याद ही नहीं रहता था कि उनका फोन कहां पर है। लेकिन अब वह अपने फोन को लेकर बहुत सचेत रह रही थी । इसके अलावा जब कभी मां का हाल चाल पुछने विकास जी घर पर आते तो मां के चेहरे पर एक लुनाई देखती और कई बार मां की आंखें शर्म से झुक जाती।


एक बार ऐसा ही मौका था विकास जी ने मां को ,"अपना ध्यान रखना" कहा था और मां की आंखें झुक गई थी ।


नीना केसाथ नकुल ने भी इस बात पर गौर किया था। और जैसे ही उसने अपनी नजर उठाई तो उसकी नजर सुमित्रा से टकराई थी दोनों में कहीं ना कहीं एक ही बात चल रही थी जो दोनों बोलने से कतरा रही थी।आखिरकार... नीना ने ही हिम्मत की।



शाम के समय थोड़ा पार्क में टहल आने की बात कहकर वह सुमित्रा को लेकर चल दी। और उसने बड़ी ही गंभीर आवाज में सुमित्रा से कहा,


"भाभी! आप गौर कर रही हो कि मां विकास जी के साथ काफी जुड़ गई हैं और विकास जी भी उनकी बहुत फिक्र करते हैं!" कहकर सुमित्रा ने सिर्फ सहमति में सिर हिलाया।


वह बेचारी क्या कहती इन मां बेटी के बीच में उसे कुछ भी बोलते हुए डर लगता था एक तो। वह दूसरे प्रदेश से आई थी इसके अलावा कहीं ना कहीं सुमित्रा जी पहले जो उससे एक दूरी बरसती थी इसलिए वह भी अपने खोल से बाहर नहीं आती थी।लेकिन ....आज जब नीना ने यह बात कही तो उसने भी अपनी सहमति जताई और कहा था,


"नीना दीदी! अगर दोनों साथ रहकरखुश रहते हैं तो हमें उनके बारे में कुछ सोचना चाहिए!"


"वही तो ... वही तो ...भाभी !मैं भी तो यही कहना चाह रही हूं हमें ही कुछ करना पड़ेगा। वरना मां तो शर्मीली है ही विकास जी भी उनसे कुछ दो कदम आगे ही लग रहे हैं। ऐसी हालत पर दोनों इतने सब और संस्कारी हैं कि उनके मुंह से तो कोई बात निकलने से रही!"


नैना के कहने पर अब सुमित्रा भी योजना बनाने लगी कि ऐसा क्या होगी आसानी से यह बात कही जा सके अचानक नीना ने कहा,


" हम दोनों तो स्त्रियां हैं । इसलिए स्त्री के मनोभाव को समझती हैं । पर पता नहीं नकुल भैया और निखिल जी के लिए यह स्वीकार करना आसन होगा कि नहीं।आज आप उनके मन की थाह लीजिएगा फिर जैसा भी हो मुझे बताइएगा। फिर हम इस बात को आगे बढ़ाएंगे!"

इसके साथ ही उनकी पार्क की छोटी सी सभा खत्म हो गई थी।दोनों जब घर आए तब उन्हे एक आश्चर्यजनक चीज देखने के लिए मिला।


विकास जी घर आए हुए थे और भैया विकास जी और मां दोनों के लिए चाय बना रहे थे उस वक्त नीना के पति निखिल चीनू को लेकर बाजार गए हुए थे।भैया जिस ढंग से विकास जी को चाय लेने का आग्रह कर रहे थे और दोनों घुल मिलकर बात कर रहे थे इतना सहज बातचीत और इतने सहज व्यवहार को देखकर सुमित्रा और नीना को अपना आगे का काम कुछ आसान सा लग रहा था।


उस रात का खाना उन लोगों ने मां के बाद खाया वैसे सब साथ में खाते थे लेकिन आज उन्होंने निश्चय कर लिया था कि इस बारे में बात करनी है।जब उन्हें अंदाजा हो गया कि मृदुला जी सो चुकी हैं तब सबसे पहले नीना नहीं बात शुरू की।


" भैया और निखिल जी आप देख रहे हैं मां का ख्याल कितना रख रहे हैं विकास जी!"


वही तो वही तो मैं भी सरप्राइस हूं कि दोनों को देखकर लगता ही नहीं कि दोनों एक दूसरे को बरसों से नहीं जानते हैं और मां को तो विकास जी के पसंद नापसंद भी पता है और विकास जी को भी मां के बारे में काफी कुछ पता है बहुत अच्छा लगा कि हमें अम्मा की चिंता थोड़ी कम होगी क्योंकि विकास जी उनकी पर वार करने के लिए है!"

नकुल ने कहा।


" फिर हमलोग चले जाएंगे तब पर तब शायद मां इतना खुलकर विकास जी से बात नहीं कर पाएगी हमारा समाज आज भी स्त्री-पुरुष के बातचीत के सामान्य बातचीत को सामान्य नहीं समझता !"


यह निखिल का अनुभव स्वर था।


"हां ....! जीजा जी आप सही कह रहे हैं मैं सोच रहा था कि....!"


"भैया! हम भी वही सोच रहे हैं !"नकुल की बात बीच में ही काट करकेनीना ने कहा।


और उसके बाद....दोनों को शादी के लिए मनाने में तो बहुत मुश्किल हुई थी । विकास जी थोड़े नानू कुर के बाद मान गए थे। मां शरमाई लजाई ही रहीं पर असहमति भी नहीं जताई ।


विकास जी के बेटे को भी खबर दे दी गई तो उनका बेटा जब अमेरिका से आया तो काफी नाराज था । उसे ज्यादा मतलब इस बात से था कि कहीं मृदुला जी के नाम यह घर ना कर दे तो उसे स्पष्ट कर दिया गया था कि ऑलरेडी मृदुला जी का फ्लैट उनके नाम है इसलिए इस घर पर वह अधिकार नहीं जमाएंगी।


विकास जी को अपने बेटे प्रबुद्ध के सोची चोट पर अफसोस हो रहा था।लेकिन एक प्रेम कहानी में सब कुछ अगर बहुत अच्छा हो तो मजा नहीं आता यह नीना का शब्द के शब्द थे ।और फिर शुभ मुहूर्त में दोनों की पहले कोर्ट में शादी हुई फिर उन्हें आसपास के पड़ोसियों को बुलाकर एक प्रीतिभोज का आयोजन कर दिया था। हमेशा की तरह समाज में कुछ लोगों ने इस की सराहना की तो कुछ दबी जुबान पर बुढ़ापे की शादी पर हंस रहे थे तो कुछ तो दबी जुबान से यह भी कह रहे थे कि,

"क़ब्र में पैर अटके पड़े हैँ और इनके शौक देखो!"


लेकिन ना तो नीना को ना सुमित्रा को ना निखिल को ना नुकूल को इसकी परवाह थी। क्योंकि उनके चेहरे पर इसलिए इत्मीनान था क्योंकि उनकी माँ आज खुश थी।

हालांकि इस उम्र में सच्चे और सही जीवन lसाथी शादी का मिलना कितना मुश्किल होता है क्योंकि शारीरिक आकर्षण शारीरिक संबंधों को लेकर तो विवाह होता नहीं सिर्फ मन मिले की बात है और विकास जी और मिथिला जी का मन मिला हुआ था एक तरह से इसे मन का मीत मिलना कह सकते हैं।


सात दिनों के लिए आई थी नीना और लगभग सतरह दिन बाद जा रही थी। नकुल ने भी अपनी छुट्टी बढ़ा ली थी और अपनी मां का हाथ उनके जीवन साथी के हाथ में सौंप कर कदाचित निश्चिंत भाव से वह रवाना हुए थे.आज विकास जी और मृदुला जी दोनों तक दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बने हुए थे।


शादी के बाद यह पहला अवसर था जब बालकनी में कॉफी पीती हुई मृदुला जी अकेली नहीं थी। उनके बगल में विकास जी भी बैठे हुए थे। और दोनों सामने की बालकनी को देख कर हंस रहे थे। जो फ्लैट प्रबुद्ध गुस्सेऔर असुरक्षा की भावना के तहत अपने नाम करा गया था ।बच्चों ने आग्रह करके विकास जी को मां के साथ रहने का आग्रह किया था जिसे विकास जी जैसे स्वाभिमानी और सज्जन पुरुष बहुत मुश्किल से ही मान पाए थे।यह एक ऐसी शादी थी जिसमें लड़का लड़की के घर रहने आया था।वैसे भी किसी ना किसी को तो किसी के घर जाना होता इस बार विकास जी ने यह कदम उठाया था और मृदुला जी ने उनकी इस कदम की सराहना की थी।


यह एक ऐसा अनोखा विवाह जिसमें मन मिले थे और घरवालों की भी सहमति थी। क्या हुआ जो विकास जी का बेटा प्रबुद्ध को मंजूर नहीं था कल को वह भी इस रिश्ते की मंजूरी जरूर दे देगा ,ऐसा विकास जी को विश्वास था।आज दो कांपते हाथ एक दुसरे का सहारा पाकर मजबूत हो गए थे। चाहे उनके विचार विपरीत रहे हों पर जीवन के सफर में आगे साथ चलना दोनों ने मन से स्वीकार किया था।

अब नीना और नुकुल को इस बात की फिक्र नहीं थी कि... उनकी मां के बुढ़ापे की लाठी कौन बनेगा।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational