V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

आना तो पूरी तरह आना

आना तो पूरी तरह आना

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काव्या इन दिनों खुद अपनी ही बातों में उलझ गई थी

"इस जीवन में हम नहीं कह सकते कि कब हमारे साथ कोई है और कब हमारा साथ कोई छोड़ देगा!"

बड़े ही दार्शनिक अंदाज में काव्या ने कहा।


"क्यों ....? ऐसा क्या हो गया?"


नीलिमा जो उसकी बचपन की सहेली थी और कुछ दिनों के लिए उसके पास आई थी।उसके इस अंदाज पर थोड़ा आश्चर्यचकित हुई। क्योंकि काव्या हमेशा बिंदास रहती थी और जिंदगी में हंसना खिलखिलाना उसका शगल हुआ करता था।


काव्या और नीलिमा दोनों एक साथ ही बढ़ी हुई एक ही कॉलेज में पढ़ाई किया और अब नीलिमा की शादी बनारस में हो गई थी और काव्या कि पति ने शादी के एक साल के बाद उसे तलाक दे दिया था पता चला कि उसका किसी ऑफिस की एक सहकर्मचारी से पहले से ही प्रेम था। उसने यह शादी माता-पिता के दबाव में आकर की थी।

शादी के एक साल के बाद काव्या फिर वहीं खड़ी थी। जहां बाद शादी के पहले, मतलब...पी जी के इस कमरे में।

लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।


अपनी नौकरी पर ध्यान दिया और हाल ही में उसने एक 1BHK फ्लैट खरीद लिया था। और मन में निश्चय कर लिया था कि अब वह दोबारा किसी से शादी नहीं करेगा जिंदगी में कई बार जीवन साथी से ज्यादा जरूरत दोस्तों की होती है जो वक्त वक्त वक्त साथ निभाते हैं और एहसान भी नहीं बताते। इसीलिए नीलिमा काव्या का साहस बढ़ाने चली आई थी।


 क्योंकि काव्या के इस निर्णय से उसके घर वाले भी उससे काफी नाराज हो गए थे। क्योंकि नीलेश तो उसे अपने साथ रखना चाहता था, लेकिन शर्त थी कि अंजलि और सुरेश साथ में रहेंगे। और कभी-कभी सुरेश काव्या के पास आ जाया करेगा।इस बात पर काव्या राजी नहीं थी। उसे या तो पति का पूरा प्यार चाहिए था या तो नहीं। और इसीलिए उसने सुरेश से अलग होकर तलाक देना ही सही समझा था।

जब दोनों सहेलियां साथ बैठी थी।

तब... मां काव्या इस प्रयास की सराहना कर रही थी।माँ कह रही थी कि...


" यह समझ लो कि अब तुम्हारा एक नवजीवन शुरू हो रहा है। इस जीवन में तुम्हें सबसे ऊपर अपने आप को रखना है। अपनी खुशी और अपने स्वाभिमान के साथ जीओगी तो भले ही तुम्हें वह सुख और खुशियां ना मिले जो औरों को हासिल है, लेकिन रात में जब सोने जाओगी तो एक सुकून होगा और सुबह जब काम पर निकलोगे तो तुम्हारे कदम आप विश्वास और स्वाभिमान से भरे होंगे।


यह एक ऐसी उपलब्धि है... जो एक व्यक्तित्व को पूरा करती है। तुम एक संपूर्ण व्यक्तित्व हो। नवजीवन की ओर बढ़ो काव्या ,और जिन्दगी को पूरी तरह अपनाओ !"


नीलिमा के यह शब्द काव्या के अंदर नवजीवन का संचार कर रहे थे।

और....काव्या अपने अंदर एक नई स्त्री को जन्मते हुए महसूस कर रही थी।


अब सुरेश से अलग होकर काव्या ने अपना व्यक्तित्व तराश करना शुरू कर दिया था।ज़िन्दगी पहले से काफ़ी बेहतर हो गई थी और दबे पाँव खुशियाँ घर में प्रवेश कर चुकी थी।


साथ ही...काव्या के जीवन में भी उजाला हो गया था।


(समाप्त )




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