V. Aaradhyaa

Tragedy

4.5  

V. Aaradhyaa

Tragedy

छुटकी कहाँ रहेगी...?

छुटकी कहाँ रहेगी...?

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"कुछ सोचा है ,बड़े भैया,अब छुटकी कहाँ रहेगी ?"


"सोचना क्या हैमझले,जैसे आज तक़ एक केयर-टेकर की तरह इस घर की देखभाल करती आई है,वैसे ही आगे भी घर का ख्याल रखेगी और जैसे अम्मा-बाबुजी की सेवा करती थी,वैसे ही अब हमारी सेवा करेगी!"


"बात तो ठीक कह रहे हैं भैया!लेकिन उसका भी इस घर में कोई हिस्सा तो होना चाहिए ना! "


 छोटे भैया के मन में अभी भी छोटी बहन के लिए प्यार शेष बचा था। इसलिए चिंता जताते हुए पूछा।


अबके जवाब बड़े भैया ने नहीं बड़ी भाभी ने दिया,


"देवरजी, मैं एक बात पूछती हूं,जब छोटी के माता-पिता यानि अम्मा-बाबुजी ने ही उनके बारे में नहीं सोचा तो हम क्या सोचे ?एक माता-पिता का फर्ज़ होता है अपने बच्चे का भविष्य सुरक्षित करना । अगर उन्होंने ही अपनी बेटी के सिर पर छत का कोई इंतज़ाम नहीं किया तो हम क्या कर सकते हैं ?उन्हें चाहिए था कि....इतने बड़े मकान का कम से कम एक हिस्सा तो उसके नाम कर जाते!" अब ज़ब उन दोनों ने नहीं सोचा तो हम क्या कर सकते हैं ?


भाभी की बात सही तो थी।अम्मा-बाबुजी ने तो छोटी के बारे में सोचा ही नहीं। जिंदगी भर सिर्फ बेटों के बारे में ही सोचते रहे ।


छोटी चुपचाप सिर झुकाए खड़ी थी। आँखों से आँसू टप-टप गिर रहे थे।


आज अम्मा बाबूजी को गए हुए चौदह दिन ही तो हुए थे।


 सब बस ऊपर से छोटी की चिंता दिखा रहे थे कि तभी वकील साहब आए और उन्होंने वसीयत खोल दिया।


 बाबूजी घर के साथ सारा सामान छोटी के नाम पर गए थे।


बड़ी भाभी का मुंह उतर गया था और बड़े भैया को सूझ नहीं रहा था कि अब वह आगे क्या कहें!


आखिर अपनी विधवा बेटी को वो बेघर कैसे छोड़ सकते थे ?


पर आज छोटी को सबके असली चेहरे दिखे गए थे।


 अम्मा खुश थी कि उनके बाद उनकी बेटी को बेघर नहीं रहना पड़ेगा कम से कम उसके सिर पर छत तो रहेगा भले ही उन्होंने अपनी बेटी को सुहाग और बच्चे का सुख नहीं देख दिया था लेकिन कम से कम वह स्वाभिमान से तो जी सकेगी।


 इधर छुटकी सोच रही थी कि...


तीनों भाई इतने बड़े-बड़े पद पर हैं। और उनके घर हैँ,बच्चे भी हैं।सब सुख सब सुखी संपन्न है. फिर भी उन्हें छुटकी के छोटे से मकान पर नजर है।उनमें से किसी को भी यह ध्यान नहीं है कि कल अम्मा बाबूजी चले गए तो छुटकी अनाथ हो जाएगी।


फिर...उसके देखभाल कौन करेगा...?



 तब तक छुटकी की उम्र भी ज्यादा हो जाएगी तो शायद वह बाहर जाकर नौकरी करने लायक भी ना रहे।


 पर यह ख्याल किसी को नहीं था।


और छुटकी सो रही थी कि उसे सुहाग का सुख भी नहीं मिला ना उसकी कभी गोद भरी और ना ही उसकी गोद में कोई किलकारी गूंजी । लेकिन इतनी कमियों के बावजूद वह मुस्कुराती है तो उसका दर्द कोई नहीं समझता है बस अम्मा बाबूजी ने उसके सिर पर छत रख दिया। और स्वाभिमान की जिंदगी दे दी। वह इसी से खुश थी।



 पर... साथ ही इस स्वार्थ की दुनिया में सबके असली चेहरे देखकर हैरान थी।


 क्या भाई बहन के रिश्ते पैसों की चमक के बीच खो जाते हैं..?

 क्या बचपन का प्यार बड़े होकर वसीयत के बंटवारे के बीच दब जाता है...?


 छुटकी के मन में तमाम उठाते हुए सवाल का जवाब शायद किसी के पास नहीं था।


प्रिय पाठकों,


 छुटकी के मन में उठे हुए इन ज्वलंत सवालों का जवाब शायद आपके पास हो।


इन सवालों का जवाब हो तो अवश्य दें.




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