V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

अब मेरा हमसफ़र... मैं खुद हूँ

अब मेरा हमसफ़र... मैं खुद हूँ

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बहुत बदल सी गई थी ज़िन्दगी उसके जाने के बाद...मानव को याद कर वह रो पड़ी।आज भी लगता है जैसे अभी अभी ये हादसा गुजरा हो।उस दिन काव्या का दुर्भाग्य प्रबल था जो मानव को उससे दूर ले गया था।


मानव बहुत तेज मोटरसाईकिल चलाया करता था। लेकिन अब जब से काव्य गर्भवती हुई थी मानव बहुत ध्यान रखता था और कोशिश करता था कि धीरे धीरे चलाए।उस दिन मानव काव्या से कह रहा था,


"मैं अब और मेहनत करूंगा और इस बच्चे के जन्म से पहले एक गाड़ी जरूर ले लूंगा। मैं नहीं चाहता कि मोटरसाइकिल में बार-बार बच्चे को ले


पर विधि को कुछ और ही मंजूर था मानव बड़ी मस्ती में काव्या से बात करते हुए मोटर साइकिल चला रहा था कि सामने से आते हुए ट्रक को नहीं देख सका और उसका मोटरसाइकिल ट्रक के चपेट में आ गया।


उधर काव्या छिटक कर दूर गिरी और किस्मत ऐसी थी कि उसके गर्भस्थ शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। वह काल तो सिर्फ मानव को ग्रसने आया था।कुछ ही पलों में काव्या की दुनियाँ उजड़ गई थी।हँसता खेलता मानव इस दुनिया से अलविदा हो चुका था और काव्या अपने गर्भस्थ शिशु के साथ नितांत अकेली हो गई थी।


दुर्घटना स्थल पर लोग बाग जमा हुए। मानव की सांस तभी भी चल रही थी और वह काव्या का हाथ जोड़ से पकड़े हुए था। एंबुलेंस से अस्पताल जाते जाते मानव ने जोर से काव्या का हाथ पकड़ा हुआ था और दर्द से बिलबिला रहा था। तभी मानव की पकड़ ढीली हुई और उसका हाथ छूटकर झूल गया।


मानव की सांस ने उसका और मानव ने काव्या का साथ छोड़ दिया था। और उसी एक समय में काव्य सिर से भी एक सहारा चला गया।मानव के जाने के बाद ससुराल वालों की निगाहें तो बदल ही गई थी।


घर आने पर उसे तानों उलाहनों के साथ अपशकुनी भी सुनने के लिए मिला। सबको उम्मीद थी कि मानव के रूप में काव्या के पेट में जो शिशु पल रहा है वह जब जन्म लेगा तब उनकी जिंदगी के कुछ दुखों को कम करेगा।


पर ...किस्मत ने यहाँ भी काव्या के साथ ऐसा खेल खेला कि उसे ससुराल से भी बेदखल कर दिया। काव्या को बेटी हुई और घरवालों का रुख उसके प्रति बहुत ही खराब हो गया। लगभग एक साल उनके साथ रहने के बाद और कष्ट न सह पाने की स्थिति में काव्या ने मायके का रुख किया था।


भाभी भैया और भाभी उसके साथ लाए हुए सामान को देखकर समझ गए कि यह बहुत दिनों के लिए आई है तो पहले ही दिन से उन लोगों ने बहुत ही बेरुखी दिखाई।


पर...कम से कम यहाँ मिन्नी के साथ उसके माता पिता अच्छा व्यवहार करते थे। काव्या को इसी बात का संतोष था। यहाँ मिन्नी को दूध भी पूरा मिलता था जबकि काव्या का दूध नहीं उतरने पर ससुराल में मिन्नी को भी बहुत कोस कोस कर दूध दिया जाता था। क्योंकि पहले ही उसकी जेठानी की दो दो बेटियां थी तो इस तीसरी बेटी के लिए किसी के मन में ना तो प्रेम था और चुंकि मानव भी नहीं रहा था तो सबको माँ बेटी दोनों ही बोझ लगते थे और मनहूस भी।


अब मायके आए हुए काव्या को दो महीने होने को आए थे। धीरे धीरे उसकी भाभी रत्ना ने अपने छोटे बच्चे का बहाना करके रसोई के काम के साथ घर के अन्य काम का बोझ भी काव्या के ऊपर डाल दिया था। माँ सब देखती समझती पर चुप रहती थी क्योंकि बाबुजी रिटायर्ड हो चुके थे और घर रमेश की कमाई से ही चलता था। काव्या अपने आने से उनके बढ़े हुए खर्चे को समझ रही थी और कुछ काम करके थोड़ा आर्थिक संबल पाना चाहती थी। पर कैसे और क्या काम करे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। क्योंकि वह सिर्फ ग्रेजुएट थी और नौकरी करने के लिए कुछ टेक्निकल डिग्री भी चाहिए थीं।


फिर अभी मिन्नी लगभग साल भर की होने जा रही थी। सो उसे किसके भरोसे छोड़कर जाती। इसलिए काव्या कुछ और सोच नहीं पा रही थी।


एक दिन शाम को काव्या उदास बैठी थी कि तभी पड़ोस में रहने वाली एक चाची आई और बातों बातों में उसने उसकी माँ से कहा कि,


"काव्या चाहे तो कोई काम कर सकती है!"


उसकी माँ ने कहा,"यह तो सिर्फ ग्रेजुएट है इसे भला क्या काम मिलेगा!"


सुनीता चाची ने कहा कि ,उनकी बहू पहले नौकरी करती थी। अब उसकी नौकरी कोरोना की वजह से चली गई है तो उसने घर में ही टिफिन सर्विस शुरू किया है। और उसके लिए उसके कि उसे किसी सहायिका की जरूरत है। अगर काव्या चाहे तो उनका हाथ बंटा सकती है। इससे उसका समय भी अच्छा बीत जाएगा और पैसे भी मिल जाया करेंगे जो कि उसके और मिन्नी के परवरिश में काम आएंगे।


बात सबकी समझ में आ गई और काव्या ने सुनीता चाची की बहू मीना के साथ टिफिन सर्विस में उनके साथ काम शुरू कर दिया। वह अपने साथ मिन्नी को भी ले जाती वहाँ मीना भाभी के बच्चों के साथ मिन्नी भी खेलती रहती। अब धीरे-धीरे जब घर में पैसे आने लगे तो उसे ऊपर का एक कमरा दे दिया गया वह और मिन्नी अब पहले से बेहतर जिंदगी जी रहे थे। भाभी और भैया की नजरें भी थोड़ी बदल गई थी अम्मा बाबुजी भी अब उसको लेकर कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं करते थे।


इधर खाना बनाने में मीना भाभी की सहायता करने के साथ कुछ लोगों को टिफिन पहुँचाने का काम भी कभी-कभी काव्या को करना पड़ता था। वैसे तो मीना ने एक सहायिका पुष्पा को भी रखा था जो कि ऊपर का काम करती थी। जैसे सामान लाना, मसाला लाना और टिफिन पहुंचाना। पर कभी-कभी उसका काम ज्यादा हो जाता या फिर वह नहीं आ पाती तो टिफिन पहुंचाने का काम काव्या को करना पड़ता था।


घर से बाहर जाकर काम करना पड़ा तब काव्या को कुछ अच्छे कपड़ों की जरूरत महसूस हुई तो उसने अपने लिए कुछ अच्छे कपड़े खरीदे और लगे हाथों अपने बाल भी कटवा लिए उसका रूप भी बदल गया था। और काम करने से उसमें एक आत्मविश्वास भी आ गया था।


अब काव्या ने एक नई ज़िन्दगी शुरू कर दी थी। अब काव्या को मायके में भी सम्मान मिलने लगा था। अब वह इस कोशिश में थी कि जल्दी ही कोई अच्छा घर किराए पर ले ले और बिटिया के साथ वहाँ शिफ्ट कर जाए ताकि मायके में हमेशा उसका सम्मान बना रहे।


काव्या ने हौसला किया और उसकी स्थिति पहले से बहुत बेहतर हो गई। काव्या अब यह बात बेहतर समझ गई थी कि आत्मसम्मान की ज़िन्दगी जीने के लिए हिम्मत करनी पड़ती है और मेहनत और लगन से काम करना पड़ता है तभी सफलता हासिल होती है।



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