V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

अगर मैं हरिजन ना होती तो...

अगर मैं हरिजन ना होती तो...

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उसने उसे गौर से देखा...

इंद्रधनुष के सारे रंग समा गए थे उसे लड़की में... सिर्फ रंग थोड़ा पक्का था, लेकिन ये कमी उसकी सुगठित देहयेष्टि पूरी कर रही थी।


" आह....इतनी सुगढ़ देह और ऐसे नूकीले नैन नक्श...!"


अमन के मुँह से आह निकल कर ही रही।


अमन ने मंदिर की सीढ़ियों पर ज़ब अंतरा को देखा था तो देखता ही रह गया था। यह पहली नजर का प्यार था या आकर्षण था लेकिन उसे वह बहुत अच्छी लगी थी।


 " एक्सक्यूज मी...आप मेरे सैंडल पर खड़े हैं। आप अपना पर हटाए तो मैं सैंडल पहनू!"


 यह कहकर जिस लड़की ने अपन को संबोधित किया था वह अंतर थी और उसकी लंबी खुले बाल और सुंदर सा चेहरा देखकर अमन अपने होश खो बैठा था।


 और.....उस दिन तो वह कुछ नहीं बोला।


 अगले दिन वह फिर मंदिर गया। उसके अगले दिन भी गया। लेकिन वह लड़की फिर आई सोमवार को आई।


अमन समझ गया कि प्रत्येक सोमवार को वह लड़की मंदिर आती है।


 अमन मिश्र ने अगले सोमवार को ज़ब उसे को देखा और उसका नाम पूछा तो अंतरा ने अपना नाम बताया।


 दोनों कुछ दिन घूमे फिरे।


 अंतरा की बातों में अमन को जाता था और उसे अंतर से दिन प्रतिदिन प्यार होता जाता था।


और... एक दिन...


बातों ही बातों में अमन को पता चला कि उसका नाम अंतरा है और वह हरिजन है। उसके पिता एक ऑफिस में चपरासी हैं।


 अंतरा ने गौर किया कि वह हरिजन है यह जानने के बाद विजय के चेहरे का भाव बदल गया था।


 अमन के मुँह से निकल गया कि....

" मुझे नहीं पता था कि तुम हरिजन हो !"


 एक पल को अंतरा को लगा कि...


शायद उसने कुछ गलत सुना है।


 लेकिन जब उसने दोबारा अमन के चेहरे की तरफ देखा तो शायद अमन भी उन शब्दों को दोबारा दोहराना चाहता था,

जो अभी-अभी अंतरा ने सुना था।


 पलांश में न जाने अंतरा के अंदर ऐसी कौन सी शक्ति आ गई थी कि.... उसका स्वाभिमान जाग गया था।


 अंतरा ने अमन की आंखों में आँखें डालकर दृढ़ शब्दों में पूछा...


और अगर मैं हरिजन नहीं होती तो...!"


" अरे....तो फिर तो कोई बात ही नहीं थी। मैं तुरंत तुमसे शादी कर लेता। अब तुम हरिजन हो, यह जानने के बाद शायद मेरे मेरी घरवाले हमारे रिश्ते के लिए नहीं मानेंगे और मुझे उनकी पसंद की लड़की से शादी करनी पड़ेगी।


 हां मैं तुम्हारे साथ जिंदगी भर रह सकता हूं। अगर तुम मेरी प्रेयसी बनकर रहोगी तो जिंदगी भर तुम्हारा खर्च का वाहन करूंगा और तुम्हारा साथ दे सकता हूं। लेकिन मैं तुम्हें अपनी भार्या नहीं बन सकता !"


 अमन के लड़खड़ाते शब्दों से अंतरा जितनी आहत हुई।


उससे भी कहीं ज्यादा वह इस बात से आहत हुई कि ऐसे पुरुष के साथ वह अपने भविष्य की कल्पना कर रही थी।


" ओह....प्रेयसी बनकर मतलब रखैल बनकर !"


 अंतर मन ही मन में बुदबुदाई।

और अमन की तरफ...


 एक विद्रुप सी हंसी हंस कर बोली,


" अमन मिश्र जी ! अब तुम्हें हरिजन हूं तो हूं। और यही सच है... कि आप ब्राह्मण टोला से हैं और मैं हरिजन टोला से।


 और...हमारा मेल कभी नहीं हो सकता। 


रही बात... उम्र भर आपकी प्रेयसी बनकर रहने की तो....

 आपकी वासना का साधन बनकर और आपकी रखैल बनकर मैं कभी नहीं रहूंगी। और एक बात भी सच है कि...


 मैंने आपको सच्चा प्यार किया था और आपके बारे में शायद गलत समझा था !"


 " ओह...अंतरा....अंतरा मेरी बात तो सुनो ! तुम शायद कुछ गलत समझ गई !"


 हाथ से चिड़िया को फिसलते देखकर अमन ने अपना पैंतरा बदला। इधर अंतरा भी तैयार थी, अपने निर्णय पर अडिग।


" मिश्र जी ... मैं कह चुकी हूं कि मैं आपकी रखैल बन कर नहीं रह सकती। आप भले ही इसे प्रेम का नाम ले लें। लेकिन मैं तो इसे व्यापार ही समझूँगी। मैं आपकी वासना की पूर्ति का साधन नहीं बनूंगी !"

 सलीके से कपड़े पहनने वाला और बाहर संजीदा बात करने वाला। घुंघराले बालों वाले जिस गोरे लड़की पर अंतरा रीझ गई थी, वह अंदर से मन का इतना काला होगा....


यह तो उसने कभी सोचा ही नहीं था।



उस पल अंतरा ने अमन की आंखों में जो देखा,


वह उसे अपने और अमन के रिश्ते का सच समझ गया था।


ब्रांडेड कपड़े में भी आज उसे अमन बिल्कुल अनावृत्त लग रहा था।


 जिसका मन भेदभाव और गंदगी से भरा हुआ था और जो स्त्री को सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु समझता था और कुछ नहीं।



 उस दिन दृढ़ कदमों से अंतराल लौट गई।



 और फिर अमन से मिलने कभी नहीं आई।



 उसका स्वाभिमान जाग गया था।


स्त्री किसी भी जाति या समुदाय की हो। है तो वह एक मानिनी स्त्री।


और अपने आप का मान उसकी नजरों में कभी कम नहीं हुआ था। न ही वह किसी और क्या अधिकार दे सकती थी कि वह उसके सम्मान में जरा सी भी कमी करे।


 इसके साथ ही अंतरा गई थी कि...

प्रेम अपनी जगह और जाति भेद अपनी जगह।



वह अमन के दिल भी कभी भी सम्मान नहीं पाएगी।


क्योंकि वह हरिजन है और ऐसे पुरुष को अंतरा कभी नहीं अपना सकती जो उसे जाति के आधार पर चयन करे।


और...एक बार फिर...


एक स्त्री ने गुलाब को छोड़कर काँटों को चुना था।


वस्तुतः...


एक और स्त्री ने...


 अपने प्रेम से ऊपर अपने स्वाभिमान को चुना था।


(समाप्त )


©®V. Aaradhyaa



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