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Ragini Ajay Pathak

Inspirational

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Ragini Ajay Pathak

Inspirational

बातों की मार

बातों की मार

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"चेहरा है या चांद खिला है,जुल्फ घनेरी शाम है क्या सागर जैसी आंखों वाली" गाना अकसर रमा के पति अमर उसके लिए गुनगुनाया करता थे। रमा ने आज खुद को आईने में देखा जिस सुंदरता और खूबसूरत लंबे बालों की तारीफ सभी किया करते थे वो आज पूरी तरह से गायब हो चुका था। ना चाहते हुए भी रमा के मुंह से सिसकियां निकल गयी। उसने सिसकियों को रोकने की कोशिश मुँह पर हाँथ रख के करनी चाही। लेकिन तभी पास रखे टेबल पर पानी का गिलास हाँथ से लग के नीचे गिर गया।

जिसकी आवाज़ से अमर चौंककर उठकर बैठे गए और कहा, “क्या हुआ रमा? तकलीफ़ ज़्यादा है क्या?”

आजकल ये हर रोज की ही बात हो गयी थी, अमर के साथ साथ पूरा परिवार ही मन ही मन डरा हुआ रहता कि कब क्या हो?

“नहीं…” रमा सोच में पड़ गयी. कैसे बताये? कि ये दर्द... शरीर से ज्यादा मन को है...

“थोड़ा पानी चाहिए था…” रमा ने कहामैं ले लुंगी आप सो जाइये

पानी पीकर... रमा लेट गयी.अमर भी लेट गये. रमा शान्त पड़ी रही, ताकि अमर को ऐसा लगे की वो सो गयी है।


इधर रमा को ऐसा लग रहा था कि वो एक जीवित लाश बन कर रह गयी है. शरीर है, पर जान नहीं. उसे ऐसा लग रहा था कि वो अपनी सुंदरता और एक औरत की गरिमा से खो चुकी है. सिर पर बंधा कपड़ा जब उसने खोला तो खुद को आईने में देखते उसकी आँखों से निरंतर आँसू बह ने लगें वो अपने इस रूप को स्वीकार नही कर पा रही थी उसे अपना पुराना रंग रूप अपने घने लंबे बाल और चेहरा बार बार याद आता | खुद को ऊपर से नीचे तक भरपूर नजर से वो खुद को नही देख पा रही थी. फिर उसने अमर की तरफ देख कर सोचा कि कैसे. अमर .मुझे स्वीकार करेंगे.. इन सब बातोंके बारे में सोच के रमा की आंखें डबडबा गयीं. रात का सन्नाटा चाबुक की तरह प्रतीत हो रहा था. बातूनी रमा को अब खामोशी पसन्द आने लगी थी.इधर अमर गहरी नींद में सो रहे थे. रमा ने आंखें बन्द करनी चाही तो दो बूंद आंसू गालों से होते हुए तकिए पर ढुलक गये.

रमा को अपने स्तन कैंसर की कीमो और ऑपरेशन के दर्द से ज्यादा मन मे खुद को आईने में देखने से होता था इन दिनों रमा बहुत-ही उदास रहने लगी थी. डॉक्टर राधिका ने रमा को पहले ही समझाया था कि किसी भी बीमारी या परेशानी में डरने की बजाय डट कर उसका सामना करने से जीत निश्चित होती है और हमारा डर हमें सिर्फ कमजोर बनाता है। इस बीमारी से लड़ने के लिए सबसे पहले पॉजिटिव रहने की कोशिश करो.. रमा। डॉक्टर रमा की खास मित्र भी थी. तो उसको हमेशा ही सकारात्मक रहने के लिए कहती।


इधर रमा के दोनों बच्चे आदित्य और अदिति . अदिति का हाईस्कूल था और आदित्य का बारहवीं.बच्चो की पढ़ाई की भी चिंता होती। बोर्ड की परीक्षा ऊपर से ये बीमारी ....कैसी विपदा है डाली भगवान ने मुझपे और मेरे परिवार पर|


क्योंकि बीमार व्यक्ति से ज्यादा परेशान परिवार वाले होते है.सारी बातें मन ही मन रमा सोचती और मन ही मन खुद से कहती" कि सब मेरी वजह से कितना परेशान हो रहे है। खासकर अमर तो शारिरिक और आर्थिक दोनों तरीके से परेशान है।"

रमा सोचने लगी..."कितना कुछ बदल दिया. इस बीमारी ने मेरे जीवन मे..... इस बीमारी का पता चलते सबकुछ बदल गया।"वो अपनी पुरानी यादों को सोचने लगी..


अमर की नौकरी भी अच्छी खासी थी.दो प्यारे बच्चें....एक खुशहाल सामान्य परिवार को और क्या चाहिए |ज़िन्दगी हँसी खुशी चल रही थी .हरदम खुश रहने वाली और मिलनसार रमा को किटी पार्टी, शॉपिंग, अमर और बच्चों का साथ,सबसे बहुत खुशी मिलती थी. लेकिन अचानक एक दिन पता चला कि रमा को स्तन कैंसर है।ये बात सुनते रमा घर आ के धड़ाम बेड पर गिर के रोने लगी। बच्चें, अमर सब समझाने की कोशिश करने लगे । सब एक दूसरे से छुप के रोते पर सामने सब ठीक होने की कोशिश करते।


पिछले कुछ दिनों में रमा ने महसूस किया कि उसका वजन एकदम से घटने लगा था। वो जल्दी थकने लगी थी। न कोई दर्द न कोई और लक्षण। थकान से उसका रूटीन गड़बड़ाने लगा |तो वो अपने फिजिशियन के पास गई। कुछ दिन सामान्य इलाज चला, कुछ फायदा नहीं हुआ तो मेमोग्राफी कराई गई, कुछ नहीं निकला। एक और बार मेमोग्राफी हुई, पर फिर कुछ नहीं निकला। हालांकि रमा को आशंका पैदा हो चुकी थी। अपने फिजिशियन की सलाह पर वो दोनो आंकोलाजी सर्जन के पास गए, एफएनसी कराई तो पुष्टि हो गई कि ब्रेस्ट कैंसर है। कुछ पलों के लिए पूरा परिवार सदमे में आ गया। इसके बाद डॉक्टर के साथ मीटिंग हुई। डॉक्टर ने कुछ जरूरी चीजें बताईं और रमा की शंका का समाधान किया । कहा कि आप चिंता ना करें |पूरा स्तन नही निकाला जाएगा सिर्फ प्रभावित हिस्से को ही हटाया जाएगा तो भी रमा का मन डरता रहा और कीमो शुरू होते ही रमा की स्किन और बाल दोनों पर असर पड़ा ।जिसे वो अब तक छोटी मोटी बीमारी समझ रही थी। वो इतनी बड़ी निकलेगी उसने सोचा नही था इस बीमारी ने रमा में एक खालीपन-सा भर दिया। इस बीमारी ने रमा को तोड़ कर रख दिया. डॉक्टर ने साफ़ कह दिया कि ऑपरेशन और कीमो ही इसका एकमात्र इलाज है. यदि इसमें देर की या लापरवाही बरती तो कुछ भी हो सकता है, ये भी हो सकता है कि हमें पूरा स्तन हटाना पड़े। अमर तो परेशान हो गया. रमा और बच्चें भी घबरा गए. रमा के सभी शुभचिन्तकों ने उसे ऑपरेशन करवा लेने और डॉक्टर बात मानने की सलाह दी.

मायके में कोई ऐसा नहीं था जिसे कुछ दिनों के लिये रमा बुला लेती. क्योंकि वो मातापिता की इकलौती संतान थी और माता पिता का देहांत हो चुका था .इधर ससुराल में भी अम्माजी बाबुजी का देहान्त बहुत पहले हो चुका था. एक ननद थी वो आयी लेकिन वो भी कितने दिन रुक पाती। कीमोथैरेपी की वजह से रमा के बाल झड़ने लग गए...रमा अंदर ही अंदर टूटने लगी थी उसको कुछ बीमारी तोड़ रही थी तो कुछ उसकी नकारात्मक सोच।कुछ दिनों के लिए अमर ने ऑफ़िस से छुट्टी ले ली थी.अमर रमा की नींद सोते और रमा की ही नींद से जागते. खाना बनाने के लिए एक बाई रख दी थी. इधर घर पर लोग रमा से मिलने आते रहते. और सब समझा के जाते अच्छा सोचो, खुश रहो, सब अच्छा करेंगे भगवान.... रमा ऊपर से हंसने का प्रयास करती, पर अन्दर से टूट रही थी. रमा जब भी अपने कपड़ों की अलमीरे को खोलती... तो अपने कपड़े देखते रो पड़ी। रमा को फैंशी कपड़े और श्रृंगार का बहुत शौक था

अलमीरे से चिपक कर सोचने लगी...क्या अमर अब भी मुझे वैसे ही प्यार करते रहेंगे, ये प्रश्‍न बार-बार रमा के जेहन में उभर रहा था.


जिस दिन रमा घर आयी, उस दिन उसके दोनों बच्चें आदित्य और अदिति बहुत ख़ुश हुए, “मम्मा, अब आप आराम करेंगी. घर के किसी काम का टेंशन आप नहीं लेंगी. हम दोनों ने एक दूसरे में काम बांट लिया है ।डॉक्टर ने आपको आराम करने को कहा है.” पापा ने हमे बताया।

रमा इतना सुन के मुस्कुरा दी. उनको देख के मन ही मन सोचने बीमारी ने बच्चों को भी कितना समझदार बना दिया। जो कभी एक गिलास पानी उठ के लेने में आना कानी करते थे माँ माँ करते आगे पीछे घूमते रहते थे आज घर सम्भालने की बात कर रहे है।

समय धीरे-धीरे खिसकने लगा. अदिति और आदित्य की बोर्ड की परीक्षा क़रीब आ गयी थी. वो दोनों पढ़ाई में जुट गए थे. बच्चे भी अब ज़्यादा समय नहीं दे पा रहे थे . अमर ने भी ऑफ़िस ज्वॉइन कर लिया था.क्योंकि बिना काम किये घर कैसे चलेगा?

घर पर रह गयी थी सिर्फ रमा और सूनी दीवारें.

रमा को अब अपनी सहेलियो और क्लब की मित्रो के साथ मिलना या व़क़्त बिताना पसंद नही आता.सभी फोन करके बुलाते तो रमा मना कर देती और किसके पास इतना व़क़्त था? जो हर रोज उसके पास आ कर बैठता सबकी अपनी-अपनी गृहस्थी थी.

एकदिन शाम को अमर ऑफिस से बड़े अच्छे मूड में आये . अमर ने रमा की कमर को अपनी बांहों के घेरे में लेकर प्यार से पूछा, “क्या किया सारे दिन?मुझे कितना याद किया?”

“क्या करती, अब करने को रह ही क्या गया है?” रमा के स्वर की निराशा अमर से छुपी न रही.

अमर ने प्यार से रमा को पलंग पर बिठाया, फिर रमा का चेहरा ऊपर उठा कर बोले, “देखो !!रमा, तुम ख़ुद को पहले बीमार मत समझो. बस थोड़ी कमज़ोर हो गयी हो, पर अपने ऊपर ध्यान देने से क़मजोरी भी दूर हो जायेगी. तुम वही हो जो पहले थी. तुम आज भी उतनी ही सुन्दर हो जितनी थी। फिर थोड़ा गंभीर होते हुए रमा के गले मे अपनी बाहों को डालते हुए कहा रमा!! तुम्हारे कई शौक़ ऐसे थे, जिन्हें तुम घर की जिम्मेदारियों के कारण पूरा नहीं कर पाई. अब तुम उन्हें बैठे-बैठे पूरा कर सकती हो. जैसे तुम्हें लिखना पसंद है ना तो ये देखो मैं तुम्हारे लिए ये लेपटॉप लाया हूं। कहानियां, कविता, शेरो शायरी जो मन करे लिखो.. करो”

दूसरे दिन शाम को अमर कई सारी सीडी लेकर आ गए. देखो रमा , धर्मेंद्र की फ़िल्में पसन्द हैं न, तुम्हें मैं तुम्हारी पसन्द की फिल्मों का कलेक्शन लाया हूं.”

तीसरे दिन अमर रमा के लिये कुछ कपडे ले के आये जिसे देखते रमा ने उसे गुस्से में खुद से दूर फेंक दिया। अमर अब मैं इतनी सुंदर कहा" जो ये गाउन पहन सकूँ तुम भूल गए लगता है। कह के वहां से चली गयी"

अमर हर रोज तरह तरह की चीजें लाकर रमा का मन बहलाने की कोशिश करते...लेकिन रमा को कुछ भी ना भाताधीरे-धीरे समय बीतता गया.

एक दिन रमा को उसकी सहेली सरला का फ़ोन आया कि वो भी मुंबई में ही शिफ्ट हो रही है. ये खबर सुन के रमा थोड़ी खुश हुई क्योंकि दोनों बचपन की सहेलियां थी. सहेलियों से ज़्यादा दोनों सगी बहनो की तरह थी. ‘चलो कुछ तो अकेलापन कटेगा’ रमा ने सोचा.


सरला कुछ दिनों बाद रमा से मिलने आयी. रमा से लिपट कर पहले तो गिले-शिकवे हुए, “तेरा ऑपरेशन था मैं नही आ पायी इसके लिए माफ कर दे. बता अब कैसी है?”

तुझसे क्या झूठ बोलना“ठीक नहीं हूं… शरीर से भी नहीं और मन से भी.”

“रमा, देख मन को तो तुझे बांधना ही होगा.”

रमा ने कहा."मतलब"

“मेरा मतलब अमर जीजा से है. जीवन के इस परिवर्तन को तुझे बर्दाश्त करना ही होगा.मानती हूं ये इतना आसान नही होगा लेकिन कोशिश तो करनी पड़ेगी तुझे”

“तू कहना क्या चाहती है? खुलकर बता न.” रमा ने हैरान होकर पूछा.

“तुझे याद है ये बीमारी मेरी माँ को भी थी.तब मैं मात्र सत्रह साल की थी. माँ भी हमेशा उदास रहती और खुद को अपूर्ण सोच कर.. ....शुरुआत में पापा ने कोशिश की माँ को खुश करने की लेकिन बाद में दूर होते गए. लेकिन कुछ दिनों बाद ही मैंने और माँ ने भी खुद महसूस किया कि पापा बुझे-बुझे और उदास रहते थे. इस वजह से माँ हमेशा दुःखी और आत्मग्लानी में होती. और आगे का तुझे सब पता ही है ,मैं सब कुछ ठीक करना चाहती थी माँ पापा को पहले की तरह खुश देखना चाहती थी लेकिन मैं चाहकर भी माँ के लिए कुछ नही कर पायी. और माँ हम सब को छोड़कर इस दुनिया से चली गयी। मैं नहीं चाहती कि तेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो, इसलिए तेरा दिल करे न करे, पर तू अपनी तरफ़ से अपनी उदासीनता अमर पर ज़ाहिर न करना.”सरला चली गयी, पर रमा को अन्दर तक हिला गयी.


रमा के सामने सरला की माँ का दुःखी चेहरा घूमने लगा कि कैसे अंकल जी उनको छोड़ कर अस्पताल में चले गए थे? वो सोचने लगी तो क्या अब मैं अमर के लायक नहीं रही? अब मैं उसे पहले की तरह प्यार नहीं कर पाऊंगी? और अमर का प्यार भी मेरे लिए खत्म हो जाएगा। क्या अमर का प्रेम सिर्फ दिखावा है.. सरला चली गयी परपीछे से बहुत से सवाल छोड़ गयी, और अब रमा के मन में शक का एक और बीज बो गयी. रमा के मन में अब शंकाओं ने घर बना लिया. अब जब अमर रमा को प्यार करते तो अमर का प्यार रमा को दिखावटी लगता, जैसे किसी अपाहिज पर दया कर दी जाए, तो कितना मानसिक संताप होता है उसे. कुछ ऐसी ही स्थिति रमा की भी हो रही थी.रमा धीरे-धीरे अमर से कटने लगी. रमा का किसी से बात करने का दिल ही न करता.

एक बार चेकअप के लिए रमा अमर के साथ डॉक्टर के पास गयी . रमा ने डॉक्टर को अकेला पाकर उनसे पूछा, “राधिका एक बात पूछनी थी, सच सच बता ...क्या ये बीमारी मेरी वजह से मेरी बेटी को भी लग सकती है क्या इस ऑपरेशन के बाद पति-पत्नी के बीच शारीरिक दूरियां हो जाती हैं? मेरा मन अब बहुत चिंतित और उखड़ा हुआ रहता है. कही भी मेरा मन नही लगता”

राधिका ने रमा को समझाया, “ये स़िर्फ तेरा वहम है. कोई जरूरी नही की ये बीमारी अदिति को भी हो और हाँ दूसरी बात दूरी न शारीरिक होती है, न मानसिक. मुझे लगता है तू ख़ुद को एक सामान्य महिला नहीं समझ रही हैं. इस ऑपरेशन का पति या पत्नी के संबंध से कोई मतलब नहीं है. कुदरत की दया से तेरे तो बच्चे बड़े हो गये हैं. मैंने कई ऑपरेशन ऐसे भी किए हैं, जिनके बच्चे बहुत छोटे थे और आज वो सामान्य जीवन जी रहे हैं. रमा, अपने मन से ये भ्रम निकाल दो. मैं मानती हूं कि पति-पत्नी का रिश्ता स़िर्फ भावनाओं से ही नहीं चलता. उसमें शारीरिक सुख बहुत मायने रखता है. लेकिन अगर तु ख़ुद को बीमार समझे गी, तो रिश्ते की रेत तेरी मुट्ठी से फिसल जायेगी.” रमा जाने लगी तभी राधिका ने कहा

अच्छा! सुन अमर को अंदर भेज देना कुछ काम था,


अरे! बाबा ऐसे मत देख कुछ पेपर पर साइन चाहिए था।रमा बाहर आयी तो अमर बाहर इंतज़ार कर रहे थे.रमा ने कहा "आपको राधिका ने अंदर बुलाया है।"

अमर अंदर गए तो राधिका ने कहा" अमर मुझे लगता है तुम कुछ ज्यादा ही परवाह करने लगे हो, रमा की। उसके साथ नार्मल व्यवहार करो। जैसे पहले करते थे हो सके तो कही घूमने चले जाओ तुमदोनो। ताकि रमा खुद को अलग या लाचार ना समझे।अब सब कुछ ठीक है। बस ध्यान रखने की जरूरत है"

अमर बाहर निकल कर आये तो रमा ने पूछा क्या कहा राधिका ने

“ कुछ नही....एवरीथिंग इज़ नॉर्मल?” रमा के प्रश्‍न का अमर ने जवाब दे दिया.

किसी भी बात को समझने के दो पहलू होते हैं. एक व्यावहारिक दूसरा भावनात्मक. राधिका और अमर के भी बार बार समझाने का रमा पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. लेकिन कहते है ना कि किसी भी चीज़ को समझने के लिए उसका प्रैक्टिकल करना ज़रूरी होता है. रमा सोचने लगी वो तो डॉक्टर है और डॉक्टर तो कितनों को रोज़ ऐसे ही समझाती होंगी. राधिका ने रमा को पूरा आराम और पॉजिटिव रहने की सलाह दी था.कई महीने बीत गए.अदिति का हाई स्कूल हो गया और आदित्य का बारहवीं हो गया ।


अब कभी-कभी अमर के समझाने क्लब पार्टी में जाने लगी थी. लेकिन वहाँ भी सबको देख के उसका मन उदास हो जाता ... और सबके सामने बनावटी मुस्कान लिए रहती। और सबके बीच खुद को असहज महसूस करती ।उसे रह रह के सरला की बाते ही याद आती। जो शक रमा के अपने मन में बो लिया था, उसने धीरे-धीरे नागफनी का रूप ले लिया था. अमर अपने काम में बहुत ज़्यादा व्यस्त रहनेलगा. कुछ महीने बाद ही दोनों के शादी की वर्षगांठ थी. रमा सोचने लगी कितना हो हल्ला और धूम-धड़ाका हम हर साल मचाते थे. मैं और अमर मिलकर शॉपिंग करते. टाई और सूट के मैचिंग पर ख़ूब झिक-झिक होती. किसको बुलाना है, कहां फंक्शन करना है, इस पर चर्चा चलती. लेकिन इस बार एकदम सन्नाटा था. बच्चे भी ख़ामोश और अमर भी कुछ नहीं बोल रहे. शादी की वर्षगांठ के दो दिन पहले जब राहुल ऑफ़िस से लौटे, तो साथ मे उसकी ननद विभा भी थी रमा उनको देखते आश्चर्य में पड़ गयी। विभा ने आगे बढ़ के रमा को गले लगाया। तो रमा ने पूछ लिया "आप का आना कैसे हुआ?क्यों भाभी अब बिना बताए आ भी नही सकती।

नही मेरा मतलब वो नही थातभी अमर ने एक लिफ़ाफ़ा रमा की तरफ़ बढ़ाया. “ये लो.”


रमा का मन उन चंद पलों में तमाम आशंकाओ से भर गया मन ही मन सोचने लगी ।कही अमर भी तो मुझे तलाक नही दे रहे। क्या सरला सही कह रही थी?

रमा ने चौंककर देखा. लिफ़ा़फे पर उसका नाम लिखा था. खोला कर देखा तो. अन्दर शिमला हिल स्टेशन के लिए दो टिकट थे. “ये टिकट.”

“हां.” अमर ने कनखियों से रमा की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “इस बार हम अपनी एनिवर्सरी शिमला में मनाएंगे.”

“लेकिन अमर…”

"भाभी.” आप चिंता मत करो ।आपके पीछे से मैंअदिति और आदित्य दोनों और आपके घर का भी पूरा ध्यान रखूंगी। विभा ने आकर रमा के कंधे पर अपना सिर टिका दिया. “आप मना नहीं करेंगी. यहां का जब तक आप नही आएंगी मैं सब सम्भाल लुंगी…”

ओह तो ये सरप्राइज़ ग़िफ़्ट था

"हाँ !"मेरी प्यारी भाभी भाई की तरफ़ से. आज रमा पहली बार मन से मुस्कुराई.क्योंकि शिमला में ही वो अपने पहले हनीमूम पर भी गयी थी।

शिमला पहुंचकर वहां की हसीन वादियों में रमा खो-सी गयी. उसे यहाँ से जुड़ी अपनी पहले की यादें याद आने लगी।ऐसा लग रहा था मानो रमा फिर से नयी शुरुआत कर रही हो उसके पुरानी यादें लौट आयी हो. रमा ने खुल के सबके लिए शॉपिंग की. अमर बस दूर से रमा को शॉपिंग करते हुए देख रहा था.

तभी रमा ने कहा

“अमर!!ऐसे क्या देख रहे हो?” रमा ने मुस्कुराकर पूछा.

“देख रहा हूं आज तुम कितने दिनों बाद फिर पहले-सी दिखी हो. इस बीच तुम बहुत उदास रहने लगी थी.”क्या बोलती रमा, अमर सच ही तो कह रहा था.

शायद रमा इतनी दुखी न होती, अगर सरला ने रमा के मन में वो बात ना डाली होती,वो बात रमा के मन मे ऐसे बैठा था कि निकलने का नाम नहीं ले रहा था.

रात में अमर ने खाना कमरे में ही मंगवा लिया. खाने के बाद वो दोनों टीवी लगाकर बैठ गए और रमा वहीं बिस्तर पर लेट गयी. अचानक अमर ने पलट के रमा का हाथ अपने हाथ में लेकर प्यार से कहा, “रमा… मुझे लगता है तुम कुछ कहना चाहती हो और कह नहीं पा रही हो. आज कह दो जो मन में हो…”

“अमर, सच कहा तुमने कहना तो बहुत कुछ चाहती हूं लेकिन कैसे कहूं? अमर!मुझे लगता है मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. तुम्हें कोई सुख नहीं दे पा रही हूं. अधूरी हो गयी हूं मैं. अब मैं पहले जैसे सुंदर भी नही रही”

“रमा, तुम ये सब क्यों सोचती हो ।जीवन हर समय एक अलग मोड़ लेकर आती है. इसे हमेशा ग्रहण कर लेना चाहिए. मैं तुम्हारी मनोदशा समझता हूं. क्या पति पत्नी के बीच सिर्फ शारिरिक सुख होता है. क्या वो हमेशा युवा ही रहता है? क्या मुझमें कुछ शारिरिक परेशानी आती तो तुम मुझ से मुँह मोड़ लेती।नही ना....

रमा!!पति-पत्नी के बीच एक व़क़्त ऐसा भी आता है, जब वो शरीर के स्तर से ऊपर उठकर निश्छल प्रेम में ही जीते हैं. फिर एक ऑपरेशन ने तुम्हारे मन में ये डर बैठा दिया है कि तुम अब मेरे लायक नही रह गयी हो. तुम आईने में अपनी खूबसूरती को देखती और ढूंढती हो। जबकि सच तो ये है कि वो आईना तुम्हारा मन नही देख पाता वरना तुम्हें सच पता होता। कि तुम्हारी असली खूबसूरती तुम्हारा खूबसूरत मन है जिस वजह से मैंने तुमसे सदा प्रेम किया। और आज भी करता हूं। ये तुम्हारा भ्रम है रमा, तुम कहीं से भी अपूर्ण हो,तुम तो मेरी पूर्ण खुशी हो जिससे मैंने प्रेम न सुंदरता से न शरीर से किया बल्कि तुम्हारे सुंदर मन से किया…” कहते हुए अमर ने रमा को अपनी बांहों में भर लिया. रमा ने अपना सिर अमर के सीने पर टिका दिया. हाँ!अमर शायद तुम सही कह रहे हो मैं कुछ ज्यादा ही सोचने लगी थी

एक अर्से के बाद आज रमा सुख की नींद सोई.

शिमला की पहाड़ियों से जब सूर्य ने अपनी किरणें बिखेरीं, उस समय रमा होटल की खिड़की से खड़ी हाँथ में कॉफी का मग लिए उसे ही निहार रही थी. अचानक रमा को लगा कोई कह रहा है, जीवन की हर सुबह की शुरुआत नए जीवन की तरह करें। तो हर दिन, तन और मन युवा ही रहता है. बिस्तर पर अमर तकिये को सीने से लगाये सो रहा था. अमर के चेहरे पर एक संतुष्टी का भाव था, जो रमा के प्रति उसके मानसिक प्रेम को छलका रहा था रमा सोचने लगी क्यों शक कर रहीथी अमर के निश्छल प्रेम पर। क्या हो गया था मुझे


सामने लगे शीशे में रमा का प्रतिबिंब पड़ रहा था. रमा के लंबे खुले हुए बालों की जगह छोटे बाल, पिंक नाइटी में रमा आज भी उतनी ही खूबसूरत दिख रही रही थी लेकिन आज रमा के मन मे निराशा नही थी ये खूबसूरती एक आत्मविश्वास की थी जो आज रमा के मन मे उत्पन्न हो गया था। बालकनी के बाहर देखती रमा अब मन ही मन सोच रही थी कि अब वो पहले की ही तरह खुश रहेगी।


तभी अचानक अमर ने कहा" चेहरा है या चांद खिला" कौन कहता है मेरी रमा पूर्ण नहीं है? मैं तो आज भी तुम्हारी सागर जैसी इन आँखों मे खो जाऊ" अमर ने पीछे से रमा की कमर को अपनी बाहों में लेते हुए उसके कंधे पर अपना सिर टिका के कहाअमर की बातें सुन रमा के मन का शक कब बाहर निकल गया, रमा जान ही न पायी.रमा ने कहा हाँ अमर तुम सही कह रहे हो, ‘मैं अब भी पहले जैसी हूं…’ मुझे ये बीमारी तोड़ नही सकती।

रमा ने खुद से मन ही वादा किया कि जिंदगी जितनी भी बची हो. लेकिन अब वो अपने परिवार के साथ पहले की तरह ही खुश रहेगी। और एक अच्छी याद बना के हँसते हँसते इस दुनिया से जाना पसंद करेंगी।


दोस्तों उम्मीद करती हूं कि मेरी ये कहानी आप सब को पसंद आएगी। ये पूर्णतया काल्पनिक कहानी है।इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं। बल्कि इसका सार सिर्फ इतना है कि जिंदगी के किसी भी बुरे दौर में जीवनसाथी और परिवार का साथ और विश्वास मिल जाये तो। मुश्किल राह भी आसान हो जाती है। दूसरी की हमेशा हमें यही कोशिश करनी चाहिए कि बीमार व्यक्ति से कभी कोई दुखद बात या ऐसी कोई बात ना कहे जो उसे या उसके मनोबल को कमजोर कर दे


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