V. Aaradhyaa

Tragedy Crime

4.5  

V. Aaradhyaa

Tragedy Crime

गदराई माल

गदराई माल

5 mins
121


" यार... ज़रा देख ना उस गदराई माल को। उसे ठंड नहीं लगती क्या...? "


 पार्टी में दिनेश ने रोहित को एक आंख दबाकर एक लड़की की तरफ इशारा किया तब रोहित की नजर भी उसे पर जम सी गई।


उफ्फ्फ.... क्या कयामत थी वह स्त्री सर से ऊपर तक जन्नत।


 लाल रंग के परिधान में उसका गोरा गदबदा सा जिस्म बिल्कुल बाहर आने को था। साड़ी भी उसने ऐसी बांधी थी कि उसके उभरते उरोज़ और भी गोलाईयों में दिख रहे थे। वक्षस्थल से लेकर नाभि तक उसका कटि प्रदेश भी बहुत अच्छे से दिखाई दे रहा था।


 और तो और...

उसने बड़ी नफासत और बड़ी चालाकी से अपनी सुंदरता की हर एक जगह पर कोई ना कोई छोटा सा गहना पहन कर उसे विशिष्ट बना दिया था।


 रोहित ने भी आह भरकर कहा,


" मार डाला यार.... अगर एक रात के लिए ये माल मिल जाए तो जिंदगी संवर जाए। है किसकी... कौन है यह...? जरा पता तो कर...!"


 दोनों उसे एक तक निहार रहे थे कि तभी...


 एक बुजुर्ग आया और उस कंचन कामिनी के कंधे पर हाथ रख कर उसे किसीसे मिलवाने ले गया।


" अरे....यह तो शहर का मशहूर बिजनेसमैन मिस्टर राघव है। सुना था कि उसने किसी पटाखा से दूसरी शादी की है। तो यह है तो उसकी दूसरी बीवी !"


 दिनेश बोला और फिर उसने रोहित को बताना शुरू किया।


" राघव जी की कंपनी मैं एक मुलाजिम था जिसने अपना कर्ज नहीं चुकाया तो राघव जी ने उसे उसकी बेटी से शादी करने की शर्त रख दी। और... तुमको पता है उनकी पहली पत्नी की मौत भी कोई साधारण मौत नहीं थी।उसे जहर देकर मारा गया था !"


 " सच यह शरीर का आकर्षण क्या ना करवाए...?

अब इस लड़की के शरीर के आकर्षण में आकर सेठ जी ने अपनी पहली पत्नी को ही जहर देकर मरवा दिया। बोलो तो भला.... कैसा आकर्षण है शरीर का...? और कैसे लोग मांसल बदन देखकर उसके पीछे पागल हो जाते हैं !"


दिनेश ने जब कहा तो रोहित जोर से हंसते हुए बोला

....


" अरे साले....! ज्यादा आदर्श मत छांट। अभी तू भी तो उसके शरीर के अंग प्रत्यंग को निहार रहा था और उसके साथ एक रात सोने की कल्पना में खुश हो रहा था।और अब तू जब जान चुका है वह लड़की एक मजबूर गरीब लड़की है और सेठ ने कैसे उसके बाप की गरीबी और मज़बूरी का फायदा उठाकर उससे शादी की है। तब तू अपने शब्दों से पलट रहा है। तू भी एक नंबर का चोट्टा है चोट्टा !"


 " कुछ भी कहो यार...! औरत है बिल्कुल मालदार। माल ही माल है इसके पास। बस इसे देखकर जब हमारी यह हालत है तो सोच जो इसके साथ रोज सोता होगा उसे कितना मजा आता होगा !"


 रोहित ने कहा.....


" अरे वह सेठ राघव...? वह तो बुड्ढा है। वह इस जवान जिस्म की प्यास क्या बुझाएगा...?


 ज़रा सोचो, इसे सर्दी क्यों नहीं लगती...?


अरे...यह जवान है... गर्म खून है। उफान मारता हुआ यौवन है। इसलिए इसे सर्दी नहीं लगती। उस बुड्ढे के साथ बेचारी किस मजबूरी में रहती है...और पता नहीं अपनी रातें कैसे गुजरती होगी...? "


अचानक रोहित गंभीर हो गया तो दिनेश उसकी चेहरे की तरफ देखकर बोला।


 " देख यार...अब तू ज़्यादा डिप्लोमेट बातें मत कर। एक तरफ तू कहता है कि इसके जवान जिस्म के साथ खेलने में मजा आएगा और दूसरी तरफ तू उसे लड़की पर तरस खा रहा है आखिर तो कहना क्या चाहता है...? "


 मैं यह कहना चाहता हूं कि...


चाहे चाय औरत हो या मर्द... हर किसी के जिस्म की प्यास होती है। अपने -अपने जिस्म की एक मांग होती है। अब जवानी में किसी बुढ़ापे के साथ रहना पड़ जाए तो उसे तकलीफ तो होती ही होगी ना। जिस्म की अलग-अलग भाषा होती है और जिस्म की अलग एक मांग होती है। वह भला यह राघव सेठ क्या समझना होगा वह तो अपने शेयर मार्केट में अपनी पोजीशन बढ़ाने के बारे में सोचता होगा लिए अपने शरीर की मांग से बेबस रात भर तड़पती होगी !"


 रोहित की बातों से दिनेश भी एक पल को सोच में पड़ गया। उसने तो ऐसे कभी सोचा ही नहीं था कि....


 कोई स्त्री अपने शरीर की मांग को लेकर भी परेशान और मजबूर हो सकती है. और तभी उसने दिखावा करके ऐसे कपड़े पहने हैं।


या फिर क्या पता.... उसे ऐसे कपड़े पहनने के लिए राघव सेठ ने मजबूर किया हो।


 अचानक वह गदराई माल उसे एक बेचारी स्त्री लगने लगी थी। जो मजबूर होकर एक वृद्ध के साथ अपनी जिंदगी बिताने के लिए मजबूर थी।



 और शायद उसे ठंड भी लग रही होगी लेकिन उसके पति ने उसे कम कपड़े इसलिए पहनाया होंगे ताकि वह सोसाइटी में उसके साथ चलकर अपने डेलीगेट से मिलकर अपनी पोजीशन बढ़ाए।


 वैसे भी सुंदर और सेक्सी बीवी सोसाइटी में स्टेटस सिंबल तो होती ही है।


 दिनेश ने रोहित की तरफ देखते हुए कहा...


" यार उस औरत की की जिंदगी और उसकी रंगीन रातों के बारे में मैं सोच रहा था... लेकिन इस बुड्ढे के साथ मजबूरी में उसकी जिंदगी क्या ही रंगीन होगी...? उल्टे उसकी जिंदगी बजरंग हो गई होगी !"


 " सही कह रहा है तू दिनेश...! ना जाने ऐसी कितनी ही मजबूर लड़कियां है जो किसी मजबूरी में एक अपने से दुगने ने उम्र के व्यक्ति से ब्याह दी जाती है। और अपनी जिंदगी को फिर दूसरे के अधीन जीने के लिए मजबूर हो जाती है !"


तभी दिनेश और रोहित दोनों की नजर फिर से उस कंचन कामिनी पर पड़ी।


वह अपनी साड़ी के आंचल से खुद को ढकने की कोशिश कर रही थी। शायद उसे ठंड लग रही थी। और सेठ उसके आंचल को हटा हटाकर अपने फॉरेन के डेलीगेट से मिलवा रहा था।


और एक पल में....


जिंदगी का सबसे बड़ा सच उन दोनों के सामने था।


शाशक और शोषित वर्ग का महीन सच...!


धनवान और निर्धन का सच....!


मज़बूर और मज़बूत होने का सच....!


और सबसे बढ़कर स्त्री और पुरुष के बीच अंतर का सच...!


 जब तक समाज में मजबूर स्त्रियों की मजबूरी का फायदा उठाया जाता रहेगा तब तक इंसान की मजबूरी उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बनती रहेगी।


 अगर स्त्रियां शिक्षित हो मजबूत बने और अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने का लक्ष्य रखें...


तभी उन्हें ऐसी ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा जिसमें नीम सर्दी में भी इंसान को अपनी कंपकंपी छुपाकर सर्दी में भी दूसरों को खुश करने के लिए मुस्कुराना पड़ता है और अपने जिस्म की नुमाइश करनी पड़ती है ठंड को झेलते हुए भी खुद को गर्म दिखाने की कोशिश में कम कपड़े पहनने पड़ते हैं।


(समाप्त )


©®V. Aaradhyaa 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy