SANGEETA SINGH

Inspirational

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SANGEETA SINGH

Inspirational

फ्रेंड्स फॉरएवर

फ्रेंड्स फॉरएवर

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 दोस्ती वो रिश्ता है जो हर रिश्ते से बड़ा होता है,जिसमें न औपचारिक शिष्टाचार का बंधन होता है अर्थात जो दिल में आए बोल दो कोई सफाई नहीं नो थैंक यू ,नो सॉरी ।खून का रिश्ता न होते हुए भी दिल के सबसे करीब होता है।

दोस्त के भी कई प्रकार होते हैं। हाय हैलो वाले दोस्त"जो कभी कभार मिल गए तो दुआ सलाम हो जाए।

_कुछ मौकापरस्त दोस्त जो काम पड़ने पर आपके आस पास चीनी की चाशनी में डूबो डुबो कर शब्दों की रचना करते हैं।

आज बातें करते हैं अपनी दोस्ती की जो स्कूल से शुरू हुई और आज तक है।आज हम दोनों दूर होकर भी पास हैं।

नाम था रागिनी,माता पिता ने नाम बड़ा सटीक रखा था बहुत मधुर आवाज थी उसकी लेकिन ,बोलती कम थी।दुबली पतली गोरी ,कम बोलने के कारण उसके दोस्त कम ही थे।हम इस मामले में एक जैसे ही थे दोनों ही कम बोलने वाले,इसीलिए एक दूसरे की ओर खिंचाव होता गया।

 हमारा घर भी ज्यादा दूर नहीं था ,वो मेधावी थी मैं औसत। मुझे एग्जाम के समय टीचर की नज़र बचा अपनी कॉपी दिखा दिया करती।उसकी मम्मी बहुत अच्छा खाना बनाती थीं।उसकी टिफिन में रोटी , सब्जी रहती थी जिसके खुलते ही सब्जी की सुगंध नथुनों में प्रवेश करती और हमारे उदर में भूख की तीव्रता बढ़ जाती ज्यादातर मेरे टिफिन में पराठा और आलू की सूखी सब्जी रहती जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं थी।उसकी मम्मी का उसको कठोर इंस्ट्रक्शन था कि पूरा टिफिन समाप्त करके ही आना है।रोटियां 4 होती ,शेयरिंग के बाद भी वो 2 ही खा पाती,बाकी मैं ही खत्म करती।

 हम ज्यादातर एक दूसरे के साथ ही रहते थे।कॉलेज आकर हम दोनों के विषय बदल गए,अब हम दोनों को अलग अलग क्लास में बैठ पढ़ना था ,हमारे दोस्त बदल गए,लेकिन हम फिर भी रविवार को मिलते,खूब सारी बातें होती।

 कॉलेज के बाद मेरी शादी हो गई और मैं बहुत दूर चली आई,फिर हमारा मिलना नहीं हुआ,क्योंकि उस शहर में मेरे पिता जब तक थे तब तक किसी कारणवश मेरा जाना नहीं हुआ।पिता रिटायर होकर हमारे शहर में आ गए।पुराना शहर छूट गया रागिनी छूट गई।

 सब अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त हो गए , कोविड का समय आया हम एक दूसरे से फोन पर ही बात कर पा रहे थे।जब भी फुर्सत मिलती बचपन की बातें याद करके हंसी आती और एक कसक होती ,काश उसका पता मिलता ,उससे मुलाकात हो पाती।

 इंटरनेट के दौर में अब सब संभव है।सोशल मीडिया में मेरी एक सहेली जो उसके ही शहर में थी उसने मुझे बताया कि रागिनी मिली थी ,उसका फोन नंबर ये है,उसने नंबर दिया।फिर क्या था ,मेरे पैरों में तो जैसे पंख लग गए ,पल भर की देरी अब बर्दाश्त नहीं थी,मैने अपने मोबाइल से उसका नंबर मिलाया ,उधर से उसकी आवाज़ सुनाई दी ,ऐसा लगा की एक साथ कई मधुर स्वरलहरियां कानों में घुल गई।बहुत सारी बातें हुईं,एक दूसरे से मिलने का भविष्य में वादा हुआ।

एक दिन उसका फोन आया उसका कुशल क्षेम पूछा तो पता चला कि उसकी आर्थिक स्थिति डावांडोल है। कोविड में उसके पति की नौकरी जाती रही,अनिश्चितता का अंदेशा नहीं था ,ज्यादा कुछ बचा कर नहीं रख पाए।जितनी जमा पूंजी थी वो पढ़ाई ,फीस और कोचिंग में जा रही है।उसके पति को थोड़ी सहायता चाहिए थी अपना बिजनेस शुरू करना था,बैंक से भी लोन लिया था ।उसने न उम्मीदी से धीमी आवाज में कहा "क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?

मैं डर गई ,पता नहीं कितने की मदद कहेगी ,मैं ठहरी होममेकर अपने खर्च बचा कर कुछ पैसे तो जमा किए थे ।पति से कोई उम्मीद नहीं थी कि वो मेरी सहेली की मदद करेंगे।

मैने डरते डरते कहा"कितना?

 उसने कहा "दो लाख"।हम जल्द ही तुम्हें लौटा देंगे,फिर भी एक साल का समय तो लग ही जाएगा ,तुम आराम से सोच लो।रकम बड़ी है ,लेकिन बहुत उम्मीद,और हिम्मत जुटा कर तुमसे कहा है। 

मैने फोन रखा ,कुछ देर के लिए मानवीय स्वभाव तोल मोल करने लगा।बार बार यही लगने लगा कि नाहक ही नंबर मिला।

फिर मैं उसकी जगह खुद को रख कर सोचने लगी ",जीवन है सुख दुख तो आते रहते हैं।बुरा समय आकर निकल जाता है , उस समय याद आता है कि किसने साथ दिया किसने नहीं" ।मैने पति से पूछा तो उन्होंने कहा तुम्हें अपनी सहेली की मदद करनी चाहिए ,लेकिन.......मुझसे उम्मीद न करो।

दूसरे दिन मैंने उससे उसका अकाउंट नंबर लिया और पैसे ट्रांसफर किए।एक सकून और संतोष था मेरे दिल में वो शब्दों में बयां नहीं कर सकती।

 दो चार महीने तक उसका फोन नहीं आया।6 महीने देखते देखते निकल गए।एक दिन अचानक फोन आया उसने मुझसे कहा "तेरे पैसे ने मेरे पति के बिजनेस में बरकत कर दी।उनका बिजनेस बहुत अच्छा चल रहा है।मैं आज तुम्हारा पैसा ट्रांसफर कर रही हूं।उसके मुंह में दुआएं थीं और ढेर सारा प्यार।

 मैं भी बहुत खुश थी कि मेरी सही वक्त पर की गई मदद ने मेरी सहेली के अच्छे दिन ला दिए।

आज हमारा रिश्ता अटूट बन गया, इसीलिए कहते हैं फ्रेंड्स फॉरएवर।


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