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SANGEETA SINGH

Inspirational

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SANGEETA SINGH

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बेगम हजरतमहल

बेगम हजरतमहल

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  कुछ वीरांगनाएं जिन्हें इतिहास ने वो सम्मान नहीं दिया जिसकी वो हकदार रहीं,लेकिन फिर भी आम जनता के बीच वे अमर हैं।ऐसी ही एक वीरांगना बेगम हजरतमहल जो अवध के जनमानस के दिलों पर राज करती है,वो न किसी राजपरिवार का हिस्सा थी ना ही किसी रईस परिवार में पली बढ़ी।

  एक दासी से महलों की रानी और स्वतंत्रता की महानायिका बनने तक का सफर भी कम दिलचस्प नहीं था बेगम हजरतमहल का।

     बेगम हजरतमहल का जन्म 1820 ईस्वी में फैजाबाद में हुआ था ,उनका बचपन का नाम मोहम्मदी खानम था।

उस दौर में नवाब वाजिद अली शाह 1847 में अवध की गद्दी पर आसीन हुए।वो मिजाज से काफी रंगीन किस्म के इंसान थे।उनकी 300 से ज्यादा बेगमें थीं ज्यादातर से उन्होंने मुताह विवाह किया था।

   मोहम्मदी खानम के माता पिता बहुत गरीब थे,एक समय ऐसा आया कि उनके माता पिता ने उनका सौदा कर दिया,और वे पहुंचा दी गईं तवायफ के कोठे पर और वहां से बादशाह के हरम में एक दासी के रूप में।

    जब वो वाजिद अली ने उन्हें देखा तो उनका दिल एक बार फिर से उनकी खूबसूरती पर धड़का और उन्हें परीखाना भेज दिया गया।परीखाना में गायन और नृत्य की तालीम दी जाती थी रक्स और सितार में वो पारंगत थीं।वहां उनका नाम मोहम्मदी खानम से महक परी हो गया।

    कुछ दोनों के बाद  जब महक परी गर्भवती हुई तो नवाब की खुशी का ठिकाना न रहा, उन्हें इफ्तकार _उन_निशा के खिताब से नवाजा गया। शहजादे बिरजिस कद्र को जन्म देने के बाद उनका नाम  बेगम हजरतमहल पड़ा  ।बेगम के रूतबे  और नवाब से उनकी नजदीकी से हरम के अंदर अन्य बेगमें ईर्ष्या करती थीं।इसीलिए हरम के अंदर भी उनका जीवन आसान नहीं था।

   अवध क्षेत्र अपनी समृद्धि के लिए प्रसिद्ध था।लॉर्ड डलहौजी की योजना पूरे भारत को हड़प अंग्रेजी शासन में मिलाना था।इसीलिए उसने भारतीय राज्यों को मिलाने के लिए हड़प नीति चलाई थी। 

  अवध के नवाब कमजोर थे इसीलिए अंग्रेजों ने काफी किले अंग्रेजी शासन में मिला लिया था।उनका राजकाज में बहुत दखल था।इसके लिए एक रेजिडेंट नियुक्त था।1849 में स्लीमन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि "अवध में अब कोई सरकार नहीं है।गवइयों और जनखों के अलावा किसी से नहीं मिलता।प्रशासन की कोई परवाह नहीं और न नवाब जानने की कोशिश ही करता है कि उसकी सल्तनत में क्या हो रहा है।"

   उसके बाद आउट्रम ने भी अपनी रिपोर्ट में वही लिखा कि"नवाब हमेशा हरम में नाच गाने में व्यस्त रहता है।

 आखिरकार चारित्रिक और नैतिक आक्षेप लगाकर 13 फरवरी 1856 में नवाब को अंग्रेजी फौज ने गिरफ्तार कर लिया ,एक मशहूर किस्सा इस समय का है"जब अंग्रेजों ने पूछा कि महल में जब अंग्रजी सेना प्रवेश कर रही थी आपको खबर लगी तो आप भागे क्यों नहीं?"

नवाब ने उत्तर दिया "मेरी जूती पहनाने वाला आया नहीं तो मैं कैसे भागता।" इससे ये पता चलता है कि नवाब कितने सरल थे ।

    वे कला के परखी थे।उन्हें शायरी,नृत्य आदि से अत्यंत प्रेम था।वे बेवजह युद्ध में विश्वास नहीं करते थे शायद इसे उनका ये विश्वास था कि वे अंग्रेजों से युद्ध में जीत नहीं सकेंगे।

    लखनऊ से गिरफ्तार कर उन्हें कोलकाता रवाना किया गया ।उनके साथ उनके नौकर चाकर ,बेगमें और बच्चे गए।जबकि हजरतमहल और 8 बेगमें लखन

ऊ रह गईं।उन्हें उन्होंने तलाक दे दिया ,लेकिन हजरतमहल नवाब के वारिस की माता थी इस वजह से उन्हें बेगम का खिताब हासिल था।

  नवाब के सत्ता से बेदखल होते अंग्रेजों और जनता ने  खजाने की खूब लूट खसोट की।फर्श तोड़ तोड़ कर खजाने निकाले  गए।

   बेगम के लिए ये बुरा दौर था। खजाना खाली था उन्होंने अपने गहने जेवरात बेचकर चार लाख रुपए जमा करके टकसाल बनवाई।

  1857 के विद्रोह के नायक मंगल पांडे को फांसी मिली तो पूरा भारत जल उठा।बेगम ने अपनी सेना संगठित कर बिरजिस कद्र को नवाब घोषित किया ।अंग्रजों को चिनहट के पास युद्ध में मात दी। 1858 तक बेगम ने लखनऊ में विद्रोहियों का नेतृत्व किया।वो हाथी पर चढ़ अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया करती थीं। परीखाना में फूलों के नाम से महिला सैनिकों की टुकड़ी बनाई गई थी।जिसमे महिलाओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था।

   बकौल रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि "अगर यूरोप में कोई महिला वीरांगना देश के लड़ती तो उसका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता लेकिन भारत में कुछ एक को छोड़ ज्यादातर को भुला दिया जाता है।"

 चिनहट की जीत विद्रोहियों के लिए  बहुत बड़ी जीत थी जिससे उनमें खुशी का संचार हुआ ।

इस बीच 3 महीने तक 37 एकड़ में फैले  रेसीडेंसी की विद्रोहियों ने घेराबंदी कर दी जिसमे तीन हजार महिलाएं,बच्चे,सैनिक,भारतीय सैनिक उनके समर्थक और नौकर शामिल थे। वहां की हालत बद से बदतर होती जा रही थी।अंग्रेज रेजिडेंट जेम्स नील ने लॉर्ड कैनिंग को लिखा था ,"रेसीडेंसी के अंदर के हालात  गंभीर हो चुके हैं।"

नवंबर 1857 में कोलिन कैंपवेल के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने वहां मौजूद बचे खुचे लोगों को  बाहर निकाल पाने में सफलता हासिल की।

 लेकिन उसके बाद पासा पलटा ,अंग्रेजों ने सरेआम बगावती विद्रोहियों को फांसी लटकाया कुछ को तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया गया।

 बेगम के साथ उनकी महिला सैनिक टुकड़ी भी संघर्ष कर रही थीं। जिसमें शहीद मक्का पासी की पत्नी उदा देवी पासी थी।सिकंदरबाग के पास मुठभेड़ में उदा देवी ने न जाने कितने अंग्रेजों को अपनी गोलियों से शांत कर दिया था । लगातार अंग्रेजों की मौत देख किसी को अंदाजा ही नहीं हो रहा था कि कहां से गोलियां चल रही हैं। आखिरकार किसी अंग्रेज की जब नजर पीपल के पेड़ के उपर गई तो गोली की दिशा समझ आई। अंधाधुंध गोलियों की फायरिंग की गई जिससे एक सैनिक नीचे गोलियों से छलनी गिरा ।जब शिनाख्त की गई तो वह बहादुर सिपाही ,एक महिला निकली ।वही उदा देवी जिसने अपने पति की शहादत को यूं ही जाने नहीं दिया।

  आखिरकार आलमबाग के युद्ध में अंग्रेजों ने बेगम को हरा दिया और बेगम को अपने पुत्र सहित नेपाल भागना पड़ा।

  उन्हें अंग्रजों ने आत्मसमर्पण के लिए कहा ,जो उन्होंने ठुकरा दिया ।दिन सप्ताह,महीने साल गुजरते रहे ।बेगम अपनों से दूर तिल तिल कर असफलता की आग में जलती रहीं।

 1 अप्रैल 1879 की सुबह बेगम  को हल्का बुखार आया जो दिन ढलते और बढ़ता गया।बुखार और दस्त ने बेगम को कमजोर कर दिया दवा दारु का कोई असर न हुआ और 5,6 दिन बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें अपने वतन की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई।

 ऐसी वीरांगना थी बेगम हजरतमहल ।


  

   


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