मलिन बस्ती
मलिन बस्ती


गलत संगत, और नशे में डूबा सोहन,माता पिता को उसके लिए वक्त नहीं था।
ऐशो आराम के सारे संसाधन थे,सोहन के पास।
मुंह खोलने की देर नहीं होती की दुनिया की बड़ी से बड़ी चीज उसके सामने हाजिर थी, बस एक ही चीज नहीं हासिल थी, उसके माता पिता का वक्त और उनका प्यार।
वह जब स्कूल में कम नंबर ले आता, तो माता पिता की जगह अपने रामू काका से कॉपी में साइन करा ले जाता,कुछ बड़ा हुआ तो खुद से ही साइन करने लगा।पेरेंट्स टीचर मीटिंग में माता पिता बुलाए नहीं जाते थे, क्योंकि वे ही स्कूल के ट्रस्टी थे।
18 साल का होते ही, पिता ने लाखों रुपए उसे दिए और कहा, ये लो पैसे और जाओ ऐश करो।
ऐश का मतलब पहली बार शराब, कबाब,और सबाब का उसने स्वाद चखा।
फिर क्या था, बोतलें खुलती,जाम टकराए जाते,और रात भर पार्टी होती।देशी, विदेशी लड़कियां आतीं।
त्योहारों का मौसम था, लोग अपनी अपनी फैमिली के साथ डिनर करने होटल आए थे, वहीं होटल में सोहन भी अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था। लाउड म्यूजिक की बीट पर सब थिरक रहे थे । परिवार के साथ आए सभी लोग परेशान हो रहे थे ।तभी एक सज्जन उठे और उन्होंने म्यूजिक बंद करा दिया।ये बात सोहन को नागवार गुजरी और उसने किसी व्यक्ति से म्यूजिक को लेकर कहा सुनी हो गई, सोहन ने शराब के बोतल उस आदमी का सर फोड़ दिया,और गुस्से में उसके परिवार को देख लेने की धमकी भी देता वापस घर चला आया।
उसे लगा रसूख,और पैसे के बदौलत वो सब कुछ अपने पक्ष में कर सकता है।
पुलिस घर आई, सोहन को मार पीट के इल्जाम में धारा 323,507के अंतर्गत मुकदमा लिख थाने भेज दिया।
पैसा का जोर वर्दी पर नहीं चला, क्योंकि जिस व्यक्ति का उसने सर फोड़ा था वह एक पुलिस अधिकारी प्रतीक था।
सोहन ने थाने से अपने पिता को फोन किया,पिता जरूरी मीटिंग में थे, उन्होंने सोहन को अपनी मम्मी को फोन करने को कहा।
सोहन ने मम्मी को फोन किया, उस समय वो किशोर सुधार गृह के उद्घाटन में व्यस्त थी।
उन्होंने अपने असिस्टेंट से सोहन को बात करने को कहा।
सोहन ने असिस्टेंट को सारी बात बताई।असिस्टेंट ने, डीजी, एसपी सबको फोन घुमाया ।
बड़े अधिकारियों ने फोन नही उठाया तो शहर सबसे जाने माने वकील से संपर्क किया, वो भी शहर से बाहर थे,दूसरे वकील ने बताया कि अब तो अदालत सोमवार को खुलेगी इसलिए सोहन को एक दिन जेल में गुजारनी होगी।
शनिवार की रात थी,कोर्ट बंद हो गया था,रविवार को भी बंद ही रहता।
शाम को बड़े बड़े नेता,वकील,पुलिस सबको सोहन के पिता ने फोन लगाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
सोमवार को कोर्ट में पेशी हुई, जिरह हुई,पहला अपराध और उम्र (उम्र कम बता)का हवाला दिया गया।
इस धारा में 3 साल सश्रम या जुर्माना होता है, परंतु जज साहब ने एक अनोखा फैसला किया।
सोहन को जुर्माना देकर छोड़ने के अलावा, उसे मलिन बस्तियों में 1 साल तक लगातार जाकर वहां के बच्चों को पढ़ाना होगा।
पहले तो सोहन सुनकर तैयार नहीं हुआ, तब उसके वकील, और माता पिता ने समझाया की तुम बस जाकर घूम आना ।
सोहन की जिंदगी में ये नया तूफान था या सचमुच उसकी जिंदगी सुधरने वाली थी,ये एक यक्ष प्रश्न था।
अगला दिन
कार में फल,पेप्सी, स्प्राइट की बॉटल,चिप्स,कुरकुरे,मिनरल वाटर,चॉकेट्स,पिज्जा,बर्गर सब रखे जा रहे थे।
ग्लव्स, सैनिटाइजर सोहन ने अपने लिए रख लिए थे।
आखिर सोहन को बस्ती जाना था, वहां कैसे वो दो चार घंटे वो समय काटता ।सोशल मीडिया में डाल रखा था,।
पिकनिक with poor children
सोहन पूरे ताम झाम के साथ मलिन बस्ती पहुंचा,साथ में दोस्त भी थे।
वहां बड़ी सी गाड़ी कौतूहल का विषय था,बच्चे जो खेल रहे थे,खेल छोड़ गाड़ी के पास पहुंच गए,जो खाना खा रहे थे वो खाना छोड़ गाड़ी के पास आकर खड़े हो गए।
कोई बड़ी गाड़ी में बैठे उन नमूनों को आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर देख रहा था, तो कोई इतनी बड़ी गाड़ी को छूना चाहता था।
सोहन पेप्सी की बोतल मुंह में लगाए उतरा।बच्चे रास्ता देने के लिए किनारे हो लिए ।
एक गंदी बास सोहन के नाक में घुसी, सोहन को लग रहा था कि अब उसे उबकाई आ जाएगी।
उसके दोस्त तो गाड़ी से उतरे ही नहीं।
सोहन ने उन्हें बुलाया, लेकिन वो गाड़ी से नहीं उतरे।
सोहन उतरा, तब तक भीखू दौड़ा आया,"आइए बाबू आइए, मैने आपके लिए एक कमरा तैयार कर दिया है,बाबू जी ने पैसे दिए थे उसमें एसी लगवा कर कमरे को साफ सुथरा करवा दिया है।"
सोहन भीखू के साथ चल पड़ा, चारो ओर गंदगी ही गंदगी।पाइपलाइन तोड़ वहीं से पानी की आपूर्ति ये बस्ती वाले ले रहे थे कबाड़,गंदगी का ढेर, भरा था बस्ती में ।
घर की महिलाएं,पुरुष काम करने सुबह चले जाते, बच जाते तो सिर्फ छोटे,और किशोरावस्था की वय प्राप्त करते बच्चे।
एक एक घर में चार पांच बच्चे,मुश्किल से पेट पालते माता पिता।
बचपन, अभाव और तंगी से गुजरता तो किशोरावस्था आते आते बच्चे नशा,चोरी, जुआ के शिकार हो जाते।
हुंह !!!_सोहन ने लंबी श्वास ली।
सोहन को भीखू
बस्ती में बने एक एनजीओ ऑफिस के कमरे में ले गया।
सोहन जाकर उसमें बैठ गया,कुछ देर बाद वही बच्चे नहा धोकर साफ कपड़े पहन कर सोहन के सामने खड़े हुए।
सोहन देख रहा था, कि वो बच्चे जो अभी तक मैले कुचैले कपड़े पहने बच्चे अचानक साफ सुथरे कपड़े पहन कर कैसे आ कर सामने खड़े हो।
सोहन के साथ जज साहब ने एक कांस्टेबल नियुक्त किया था,जिसका काम उसके हर दिन के कार्यकलाप पर नजर रखना था।
सोहन को सब कुछ अजीब लग रहा था, लेकिन उसे यहां रोजाना एक घंटे का समय देना ही था।
उन बच्चों को देखकर ज्यादा अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन मजबूरी जो न कराए।
उसने उनसे नाम पूछना शुरू किया।सब धीरे धीरे नाम बताने लगे।
एक ने पूछा भैया, आपका नाम क्या है?
सोहन चिढ़ गया _तुम लोग अपने काम से काम रखो, मेरा नाम जान कर क्या करोगे।
एक बच्ची ने कहा भैया भूख लगी है,आज घर में कुछ खाने को नहीं था,आप दिलवा दोगे।
सोहन ने ड्राइवर को इशारा किया, ड्राइवर कुछ देर में ब्रेड और बिस्कुट के पैकेट लेकर आया।
सभी बच्चे टूट पड़े।सोहन ने जोर से डांटा और लाइन में आने को कहा तब वे शांति से लाइन में लग कर ब्रेड और बिस्कुट का पैकेट लेने लगे,उनके चेहरे पर अजीब संतुष्टि का भाव था, और उनकी निश्छल हंसी सोहन को आत्मिक सुख दे रहा था।
उसने देखा बस्ती में सभी लोग जानवरों के जैसे जिंदगी जी रहे थे।कुछ भी सड़क पर मिल जाता बच्चे, बड़े,बूढ़े कुत्तों की तरह झपटने लगते।
सोहन ने जिंदगी में पहली बार भूख, प्यास से बिलखते, फटे हाल लोगों को नजदीक से देखा था।
उसके बस्ती में रहने के आज के घंटे पूरे हो गए थे, वह उठ खड़ा हुआ, जब गाड़ी के पास आया तो उसके दोस्त जा चुके थे।बच्चे उसे जाते उम्मीद की नजर से देख रहे थे।
सोमू ने पक्या से कहा, ये साहब कल फिर आयेंगे, कल और अच्छी अच्छी चीज लायेंगे, और भीखू दादा हमें नए नए कपड़े देंगे पहनने को, कितना मजा आ रहा है न।
पक्या ने कहा _हां वो तो है।
घर पहुंच कर वह फ्रेश होकर कमरे में गया तो पिता का फोन आ गया_हैलो बेटा, कैसा रहा,तुम्हारा दिन।
देखो तुम चिंता मत करना मैं जल्द ही तुम्हारी सजा के लिए जज साहब से बात करूंगा, तुम् पर जमानत की राशि और बढ़ा कर पर छोड़ देंगे। तुम परेशान मत होना।
सोहन ने कोई जवाब नहीं दिया।
उसका सर भारी था,और मन दुखी।
उसने रामू काका से सर दर्द की दवा ली,और खाकर लेट गया।
उसका मन कर रहा था कि, मम्मी होती तो आज वो उनके गोद में अपना सर रख सोता, लेकिन मम्मी के पास ही कहां वक्त था, अपने बेटे के लिए।
तब तक उसके दोस्तों का फोन आ गया जो उसे पार्टी में आने को बुला रहे थे।
सोहन ने मना कर दिया।
सोहन ने उस दिन कुछ खाया भी नहीं
पहले ही दिन से इसके अंदर बैठा इंसान जाग रहा था, अभी तक उसने महल की चहारदीवारी के अंदर की जिंदगी देखी थी,अभाव, गरीबी कैसे लोग कीड़े मकोड़ों की तरह जिंदगी बसर कर रहे उसे आज करीब से देखने का मौका मिला था।
पहले रामू काका को वह महज एक नौकर के रूप में देखता था,जो पैसा लेकर उसका ध्यान रखते हैं,लेकिन आज उनके वात्सल्य को वह महसूस करने लगा।
वो बीमार होता तो, माता पिता तो डॉक्टर बुला थोड़ी देर बाद अपने कमरे में चले जाते, लेकिन रामू काका पूरी रात उसके सिरहाने के पास बैठे रहते, जब तक वो ठीक नहीं हो जाता, एक पैर पर ही खड़े रहते।
अगले दिन जब वह उठा तो, नई स्फूर्ति, नया जोश था,सिगरेट,और शराब के नशे से दूर।
आज तक उसने सुबह के सूरज को उदीयमान होते नहीं देखा था।आज उसने सूरज को धीरे धीरे अपनी रश्मियों को बिखेरते देखा।
सब कुछ नया नया था।वह बच्चों से मिलना चाहता था, लेकिन उस बस्ती की गंदगी और बदबू से उसका मन खराब हो जाता।
समय हो गया था, उसका बस्ती जाने का, उसने खूब सारे फल,मिठाई रखवाए।
बच्चे उसका इंतजार कर रहे थे ।
वह जब बच्चों को फल और मिठाइयां देता तो उनका चेहरा खिल उठता, और सोहन के अंदर से एक अजीब सा संतोष महसूस करता।
समय बीतता गया_
धीरे धीरे वे बच्चे उससे इतना घुल मिल गए, उनकी प्यारी बातें उसे खूब अच्छी लगती थी,वह सब कुछ भूल एक अच्छा इंसान बन चुका था।
बदबू, घुटन भरी बस्ती में अपने इन एक साल की सजा में उसने अपने पिता से कह कर उसने सबके लिए पक्के मकान,
बनवा दिया था, बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल, और जनशक्ति की कमी तो वहां थी नहीं तो कुटीर उद्योग स्थापित करवाया।
एक साल बाद जज साहब जब उस बस्ती में गए तो कायापलट देख हैरान हो गए।
उन्होंने सोचा नहीं था कि एक बिगड़ैल बड़े बाप मां का बेटा इतना सुधर जाएगा।
सोहन के उस प्रयास से बस्ती में हर बच्चे के हाथ में किताब और, चेहरे पर मुस्कान लौट आई।
जज ने सोहन के माता पिता को कहा, ,"आप लोग पैसे कमाने की होड़ में इतने अंधे हो जाते हैं कि अपनी औलाद को अनदेखा करते हैं, जिस उम्र में उन्हें आपके प्यार और देखभाल की जरूरत होती है वो नहीं मिलती और वो गुनाह के अंधेरे में डूबता चले जाते हैं।
आखिर क्या करेंगे इस बेहिसाब दौलत का "।
सोहन के माता पिता का सर शर्म से झुक गया।