SANGEETA SINGH

Romance

4  

SANGEETA SINGH

Romance

प्रेम ही प्रेम

प्रेम ही प्रेम

12 mins
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  बहुत दिनों बाद आज थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा कि थोड़ी साफ सफाई कर ली जाए।आलमारी ऐसी भरी पड़ी थी कि हर बार खोलते वक्त कुछ न  बहुत दिनों बाद आज थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा कि थोड़ी साफ सफाई कर ली जाए।आलमारी ऐसी भरी पड़ी थी कि हर बार खोलते वक्त कुछ न कुछ सामान गिर ही जाता ,समय के अभाव में फिर से उठा कर कपड़े ,सामान ठूंस फिर से आलमारी को बंद कर दिया जाता। बेचारी आलमारी अपनी दशा पर आंसू बहाती रह जाती ,उम्मीद करती शायद कभी तो मुझे उसपर तरस आ जाए ।

 आज ऋषि पार्टी की मीटिंग के लिए दूसरे राज्य गए थे , उन्हें बहुत मिस कर रही थी,इसीलिए सोचा कि आज अपनी आलमारी पर कुछ रहम कर दूं ,उसे चुस्त ,दुरुस्त करूं ताकि वो सांस ले सके।

 आलमारी खोलते ही धड़ाम से कुछ नीचे गिरा,मैने देखा वो हमारी शादी का एल्बम ।

 बेचारी आलमारी की उम्मीद पर फिर से पानी फिर गया, उसे लगा था आज उसे शायद फिर से सांस लेने का मौका मिलेगा,लेकिन मेरे हाथ वो चीज लगी थी जिसे लेकर मैं अपना पूरा दिन निकाल सकती थी।

मैने आलमारी पुनः बंद की और एल्बम लेकर बेडरूम चली आई।

 पहले ही पेज पर मुस्कुराती और शरमाते मैं और ऋषि थे।कितने हैंडसम थे ऋषि और मैं भी छुई मुई सी ,लेकिन कहां से हममें इतनी हिम्मत आ गई कि हम दोनों ने अंतरजातीय विवाह कर लिया ।इसके लिए क्या क्या पापड़ नहीं बेलने पड़े।    कहते हैं ना प्यार में इतनी ताकत होती है कि कमजोर से कमजोर व्यक्ति मजबूती से खड़ा हो अपने प्यार को पाने के लिए जी जान लगा देता है आखिर प्यार अंधा जो होता है ,ये न धर्म देखता है न उम्र देखता इसे किसी सीमा में भी नहीं बांधा जा सकता।

  अचानक बाहर आसमान में बादल घिर आए ,सावन का महीना था कभी भी बादल आ जाते ,कुछ देर बरसते और निकल लेते ।आज की बारिश में मुझे वो बचपन के दिन याद आ गए।जब ऋषि ने एक घरौंदा बनाया ,अगले दिन हम उसमें गुड्डा _गुडिया की शादी रचाने वाले थे लेकिन मूसलाधार बारिश ने हमारे उस घरौंदे को तोड़ दिया।मैं रोने लगी तब ऋषि ने कहा_

  " रो मत सिमरन ,मैं फिर से हम दोनों के लिए एक घरौंदा बनाऊंगा। "

 मैं और ऋषि एक अपार्टमेंट में रहते थे। फर्क इतना था कि मैं फ्लैट में और ऋषि सोसाइटी वाले सर्वेंट क्वार्टर में।

   मेरे पिता बहुत बड़े इंजीनियर थे जबकि ऋषि के पिता वहीं अपार्टमेंट में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे। बचपन में ,मैं बहुत मोटी थी तो और बच्चे मुझे मोटी मोटी कह कर चिढ़ाया करते थे इसीलिए मैं उनके साथ नहीं खेलती ।एक दिन मैं अकेले झूले पर बैठी थी कि कुछ बच्चों ने आकर मुझे तंग करना शुरू किया , वे झूले को पीछे से तेज धकेल कर भाग गए, जिससे मैं डर कर चिल्लाने लगी ।तब तक आवाज़ सुन वहीं खेल देख रहा ऋषि दौड़ा आया और मुझे झूले से उतारा।

 मैं भाग कर अपने फ्लैट में गई और डैडी को सारी बात बताई उसके बाद सेक्रेटरी ने उन सभी बच्चों के पेरेंट्स को बुला काफी फटकार लगाई,लेकिन उस दिन के बाद से ऋषि और मैं दोस्त बन गए।अब मैं और ऋषि साथ खेलते थे। डैडी और मम्मी खुश थे कि सिमरन को कोई दोस्त मिल गया।

 कुछ महीनों के बाद डैडी का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया और हमें जाना पड़ा । उस दिन ऋषि बहुत दुखी था उसकी सूनी आंखें बहुत कुछ बोल रही थीं, मैं भी उदास थी।

  समय कहां रुकता है ,ये पंख लगाकर उड़ता ही जाता है।मैं भी अपनी नई दुनिया में खो गई और ऋषि को भूल गई।नए दोस्त ,अब तो नया कॉलेज भी। बीए होने वाला था मैं आगे क्या करना है सोच नहीं पा रही थी,डैडी एमबीए करने को कह रहे थे,लेकिन ईश्वर ने कुछ और ही कहानी सोच रखी थी।

 जिंदगी नया मोड़ लेने वाली थी ।इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई ,अचानक ऋषि से मेरा मिलना नाटकीय अंदाज में हुआ।

 मैं सहेलियों के साथ मां शारदा मंदिर गई थी । मंदिर में मैं ऋषि से टकरा गई।बहुत देर तक हमने एक दूसरे को पहचाना नहीं , बार बार एक दूसरे को देखते रहे,और पहचानने की कोशिश करने लगे।

 अचानक मेरी सहेली ने मेरे नाम से पुकारा_" सिमरन" ।तुरंत ऋषि के दिमाग की बत्ती जल गई वो दौड़ा दौड़ा मेरे पास पहुंचा और उसने कहा " सिमरन ,मैं ऋषि।"

 मैं तुरंत पहचान गई।मैने पूछा_ "यहां कैसे ?"

उसने कहा "मैने यहीं ईंट भट्ठे का काम अपने दोस्त के साथ मिल कर कर रहा हूं।

"तुम कहां रहती हो"_ऋषि ने पूछा था।

 मैं राजेंद्र नगर कॉलोनी में रहती हूं।

 तब तक रितिका ने पुकारा _"सिमरन चल,देर हो रही है।"

 और हम वहां से चले गए ,लेकिन एक मीठी सी कसक दिल के किसी कोने में जाग गई ।

अब ऋषि घर पर आने लगा ,शुरुवात में मम्मी डैडी को लगा ये औपचारिक आना जाना है ,लेकिन उसका लगातार आना और मुझसे बातें करना मम्मी डैडी की पारखी आंखों में खटकने लगा।

 हम प्यार के रास्ते पर आगे बढ़ चुके थे ,अगर एक दिन भी ऋषि से मुलाकात न हो तो खालीपन लगता ,किसी काम को करने का मन नहीं करता।

  आखिरकार मैने और ऋषि ने मम्मी डैडी को बताया कि हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं,और शादी करना चाहते हैं।

 ये डैडी के लिए एक शॉक था ,कहां हमारा स्टैंडर्ड और कहां ऋषि ,दूसरा हम दोनो अलग अलग जाति के थे,दुनिया समाज क्या कहेगा ।

 अब ऋषि का आना जाना बंद हो गया।मेरा भी बाहर निकलना बंद करा दिया गया।

   आज की तरह मोबाइल नहीं था उस समय ,एक दूसरे का हाल खबर लेने का एक ही जरिया था पत्र।

 पत्र एक दूसरे को कभी दूध वाले के जरिए तो हमारी काम वाली के जरिए पहुंचता था।  

   आखिरकार इतनी पाबंदियां हम दोनों का अब नागवार लगने लगी।उसके घर वाले हमारी शादी को राजी थे ,लेकिन मेरे घर वाले....।अब हमने भागने का प्लान बनाया।

 हम दोनों पुणे चले गए ,वहां ऋषि का एक दोस्त रहता था।वहीं पर हमने कोर्ट मैरेज के लिए आवेदन कर दिया। डैडी और मम्मी ने बिना शिकवा शिकायत किए मुझसे रिश्ता तोड़ लिया था।

  हम खुश थे ले।लेकिन बिना पैसे की खुशी ज्यादा दिन कहां टिकती है। हमारे पास कोई काम नहीं था ,पैसे जो थे वो खत्म हो गए थे।अब हमें पुणे से वापस लौटना ही पड़ा । ऋषि अपने पुराने शहर लौट आए। डैडी की साख को धक्का लगेगा इसीलिए हम सतना नहीं गए।

 सास ससुर ने अपने बचाए पैसे से हमें एक दुकान खरीद दी।जिसे ऋषि चलाते थे ,वो न रहें तो मैं देख लेती ।कंजूसी से घर की गाड़ी मैं चला रही थी।महलों में रहने वाली आज इतने संघर्ष की जिंदगी में खुश थी क्योंकि ऋषि था मेरे पास।

 इसीलिए कहते हैं

" ये इश्क नहीं आसान,बस इतना समझ लीजे 

एक आग का दरिया है ,और डूब के जाना है।"

 हम परिस्थितियों से परेशान होते लेकिन एक दूजे का हाथ हमने कस कर पकड़ा था कि चाहे जो भी हो हम हमेशा साथ रहेंगे।हमारा प्यार दिन प्रतिदिन निखर रहा था।

 ऋषि का व्यवहार ,सबकी सहायता के लिए आगे खड़े रहना उनको लोगों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया था।

 तभी किस्मत फिर पलटी ,एक मशहूर राजनीतिक पार्टी को ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो जमीन से जुड़ा हो ,जिसकी जनता के बीच अच्छी पैठ हो।लोगों ने ऋषि का नाम सुझाया और आखिर ऋषि को हमारे शहर के उम्मीदवार के रूप में विधायक का चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार को धूल चटवा दी।

  हमारा संघर्ष और प्यार जीत गया ,आज वो विधायक हैं।मम्मी डैडी ने हम लोगों को अपना लिया।उन्होंने मेरी पसंद का सपनों का आशियां भेंट किया और पूछा याद है आपको मिट्टी का घर।मैने कहा "हां आपने वादा पूरा किया।

 अगर प्यार साथ हो तो कठिन से कठिन मंजिल मिल ही जाती है।

 मैं अभी भी उन यादों में डूबी थी कि अचानक मोबाइल बज उठा,ऋषि का वीडियो कॉल था।मुझे हंसी आ गई , मुआ ये भी नहीं था हमारे समय नहीं तो जिंदगी थोड़ी आसान होती।

 मैने फोन उठाया,उन्होंने पूछा" कैसी हो ,मिस तो नह सामान गिर ही जाता ,समय के अभाव में फिर से उठा कर कपड़े ,सामान ठूंस फिर से आलमारी को बंद कर दिया जाता। बेचारी आलमारी अपनी दशा पर आंसू बहाती रह जाती ,उम्मीद करती शायद कभी तो मुझे उसपर तरस आ जाए ।

 आज ऋषि पार्टी की मीटिंग के लिए दूसरे राज्य गए थे , उन्हें बहुत मिस कर रही थी,इसीलिए सोचा कि आज अपनी आलमारी पर कुछ रहम कर दूं ,उसे चुस्त ,दुरुस्त करूं ताकि वो सांस ले सके।

 आलमारी खोलते ही धड़ाम से कुछ नीचे गिरा,मैने देखा वो हमारी शादी का एल्बम ।

 बेचारी आलमारी की उम्मीद पर फिर से पानी फिर गया, उसे लगा था आज उसे शायद फिर से सांस लेने का मौका मिलेगा,लेकिन मेरे हाथ वो चीज लगी थी जिसे लेकर मैं अपना पूरा दिन निकाल सकती थी।

मैने आलमारी पुनः बंद की और एल्बम लेकर बेडरूम चली आई।

 पहले ही पेज पर मुस्कुराती और शरमाते मैं और ऋषि थे।कितने हैंडसम थे ऋषि और मैं भी छुई मुई सी ,लेकिन कहां से हममें इतनी हिम्मत आ गई कि हम दोनों ने अंतरजातीय विवाह कर लिया ।इसके लिए क्या क्या पापड़ नहीं बेलने पड़े।    कहते हैं ना प्यार में इतनी ताकत होती है कि कमजोर से कमजोर व्यक्ति मजबूती से खड़ा हो अपने प्यार को पाने के लिए जी जान लगा देता है आखिर प्यार अंधा जो होता है ,ये न धर्म देखता है न उम्र देखता इसे किसी सीमा में भी नहीं बांधा जा सकता।

  अचानक बाहर आसमान में बादल घिर आए ,सावन का महीना था कभी भी बादल आ जाते ,कुछ देर बरसते और निकल लेते ।आज की बारिश में मुझे वो बचपन के दिन याद आ गए।जब ऋषि ने एक घरौंदा बनाया ,अगले दिन हम उसमें गुड्डा _गुडिया की शादी रचाने वाले थे लेकिन मूसलाधार बारिश ने हमारे उस घरौंदे को तोड़ दिया।मैं रोने लगी तब ऋषि ने कहा_

  " रो मत सिमरन ,मैं फिर से हम दोनों के लिए एक घरौंदा बनाऊंगा। "

 मैं और ऋषि एक अपार्टमेंट में रहते थे। फर्क इतना था कि मैं फ्लैट में और ऋषि सोसाइटी वाले सर्वेंट क्वार्टर में।

   मेरे पिता बहुत बड़े इंजीनियर थे जबकि ऋषि के पिता वहीं अपार्टमेंट में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे। बचपन में ,मैं बहुत मोटी थी तो और बच्चे मुझे मोटी मोटी कह कर चिढ़ाया करते थे इसीलिए मैं उनके साथ नहीं खेलती ।एक दिन मैं अकेले झूले पर बैठी थी कि कुछ बच्चों ने आकर मुझे तंग करना शुरू किया , वे झूले को पीछे से तेज धकेल कर भाग गए, जिससे मैं डर कर चिल्लाने लगी ।तब तक आवाज़ सुन वहीं खेल देख रहा ऋषि दौड़ा आया और मुझे झूले से उतारा।

 मैं भाग कर अपने फ्लैट में गई और डैडी को सारी बात बताई उसके बाद सेक्रेटरी ने उन सभी बच्चों के पेरेंट्स को बुला काफी फटकार लगाई,लेकिन उस दिन के बाद से ऋषि और मैं दोस्त बन गए।अब मैं और ऋषि साथ खेलते थे। डैडी और मम्मी खुश थे कि सिमरन को कोई दोस्त मिल गया।

 कुछ महीनों के बाद डैडी का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया और हमें जाना पड़ा । उस दिन ऋषि बहुत दुखी था उसकी सूनी आंखें बहुत कुछ बोल रही थीं, मैं भी उदास थी।

  समय कहां रुकता है ,ये पंख लगाकर उड़ता ही जाता है।मैं भी अपनी नई दुनिया में खो गई और ऋषि को भूल गई।नए दोस्त ,अब तो नया कॉलेज भी। बीए होने वाला था मैं आगे क्या करना है सोच नहीं पा रही थी,डैडी एमबीए करने को कह रहे थे,लेकिन ईश्वर ने कुछ और ही कहानी सोच रखी थी।

 जिंदगी नया मोड़ लेने वाली थी ।इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई ,अचानक ऋषि से मेरा मिलना नाटकीय अंदाज में हुआ।

 मैं सहेलियों के साथ मां शारदा मंदिर गई थी । मंदिर में मैं ऋषि से टकरा गई।बहुत देर तक हमने एक दूसरे को पहचाना नहीं , बार बार एक दूसरे को देखते रहे,और पहचानने की कोशिश करने लगे।

 अचानक मेरी सहेली ने मेरे नाम से पुकारा_" सिमरन" ।तुरंत ऋषि के दिमाग की बत्ती जल गई वो दौड़ा दौड़ा मेरे पास पहुंचा और उसने कहा " सिमरन ,मैं ऋषि।"

 मैं तुरंत पहचान गई।मैने पूछा_ "यहां कैसे ?"

उसने कहा "मैने यहीं ईंट भट्ठे का काम अपने दोस्त के साथ मिल कर कर रहा हूं।

"तुम कहां रहती हो"_ऋषि ने पूछा था।

 मैं राजेंद्र नगर कॉलोनी में रहती हूं।

 तब तक रितिका ने पुकारा _"सिमरन चल,देर हो रही है।"

 और हम वहां से चले गए ,लेकिन एक मीठी सी कसक दिल के किसी कोने में जाग गई ।

अब ऋषि घर पर आने लगा ,शुरुवात में मम्मी डैडी को लगा ये औपचारिक आना जाना है ,लेकिन उसका लगातार आना और मुझसे बातें करना मम्मी डैडी की पारखी आंखों में खटकने लगा।

 हम प्यार के रास्ते पर आगे बढ़ चुके थे ,अगर एक दिन भी ऋषि से मुलाकात न हो तो खालीपन लगता ,किसी काम को करने का मन नहीं करता।

  आखिरकार मैने और ऋषि ने मम्मी डैडी को बताया कि हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं,और शादी करना चाहते हैं।

 ये डैडी के लिए एक शॉक था ,कहां हमारा स्टैंडर्ड और कहां ऋषि ,दूसरा हम दोनो अलग अलग जाति के थे,दुनिया समाज क्या कहेगा ।

 अब ऋषि का आना जाना बंद हो गया।मेरा भी बाहर निकलना बंद करा दिया गया।

   आज की तरह मोबाइल नहीं था उस समय ,एक दूसरे का हाल खबर लेने का एक ही जरिया था पत्र।

 पत्र एक दूसरे को कभी दूध वाले के जरिए तो हमारी काम वाली के जरिए पहुंचता था।  

   आखिरकार इतनी पाबंदियां हम दोनों का अब नागवार लगने लगी।उसके घर वाले हमारी शादी को राजी थे ,लेकिन मेरे घर वाले....।अब हमने भागने का प्लान बनाया।

 हम दोनों पुणे चले गए ,वहां ऋषि का एक दोस्त रहता था।वहीं पर हमने कोर्ट मैरेज के लिए आवेदन कर दिया। डैडी और मम्मी ने बिना शिकवा शिकायत किए मुझसे रिश्ता तोड़ लिया था।

  हम खुश थे ले।लेकिन बिना पैसे की खुशी ज्यादा दिन कहां टिकती है। हमारे पास कोई काम नहीं था ,पैसे जो थे वो खत्म हो गए थे।अब हमें पुणे से वापस लौटना ही पड़ा । ऋषि अपने पुराने शहर लौट आए। डैडी की साख को धक्का लगेगा इसीलिए हम सतना नहीं गए।

 सास ससुर ने अपने बचाए पैसे से हमें एक दुकान खरीद दी।जिसे ऋषि चलाते थे ,वो न रहें तो मैं देख लेती ।कंजूसी से घर की गाड़ी मैं चला रही थी।महलों में रहने वाली आज इतने संघर्ष की जिंदगी में खुश थी क्योंकि ऋषि था मेरे पास।

 इसीलिए कहते हैं

" ये इश्क नहीं आसान,बस इतना समझ लीजे 

एक आग का दरिया है ,और डूब के जाना है।"

 हम परिस्थितियों से परेशान होते लेकिन एक दूजे का हाथ हमने कस कर पकड़ा था कि चाहे जो भी हो हम हमेशा साथ रहेंगे।हमारा प्यार दिन प्रतिदिन निखर रहा था।

 ऋषि का व्यवहार ,सबकी सहायता के लिए आगे खड़े रहना उनको लोगों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया था।

 तभी किस्मत फिर पलटी ,एक मशहूर राजनीतिक पार्टी को ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो जमीन से जुड़ा हो ,जिसकी जनता के बीच अच्छी पैठ हो।लोगों ने ऋषि का नाम सुझाया और आखिर ऋषि को हमारे शहर के उम्मीदवार के रूप में विधायक का चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार को धूल चटवा दी।

  हमारा संघर्ष और प्यार जीत गया ,आज वो विधायक हैं।मम्मी डैडी ने हम लोगों को अपना लिया।उन्होंने मेरी पसंद का सपनों का आशियां भेंट किया और पूछा याद है आपको मिट्टी का घर।मैने कहा "हां आपने वादा पूरा किया।

 अगर प्यार साथ हो तो कठिन से कठिन मंजिल मिल ही जाती है।

 मैं अभी भी उन यादों में डूबी थी कि अचानक मोबाइल बज उठा,ऋषि का वीडियो कॉल था।मुझे हंसी आ गई , मुआ ये भी नहीं था हमारे समय नहीं तो जिंदगी थोड़ी आसान होती।

 मैने फोन उठाया,उन्होंने पूछा" कैसी हो ,मिस तो नहीं कर रही थी। कहो aa जाऊं,बड़ी प्यारी लग रही हो।"

 मैने शरारत भरी आंखों से कहा_आ जाइए ,हम तो पलकें बिछाए बैठे हैं।

 उधर से उन्होंने कहा _जानेमन ,बस जल्दी ही मीटिंग निपटा कर पहुंचता हूं आपकी बाहों में। हां और बताइए कुछ लाना है आपके लिए।

 क्यों पूछते हैं,बिना कहे तो बहुत कुछ ले आते हैं,मुझे क्या कमी है।आप आ जाओ बस_मैने उदास होते हुए कहा।

 उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा _आपकी इसी अदा पर तो प्यार आता है।अच्छा फोन रखता हूं ।

 मेरे चेहरे पर खुशी की लहर खेल गई ।फोन रखकर मुड़ी तो आलमारी और एल्बम दोनों अपनी अपनी जगह मुझे घूर रहे थे।



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