माला के बिखरे मोती (भाग ५८)
माला के बिखरे मोती (भाग ५८)
यश की इस बात पर सभी बेटों ने अपना सिर हिलाकर हां में हां मिलाई है।
जय: आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पापा। आपका सोचना और घर का सबसे बड़ा बेटा होने के नाते मेरा सोचना भी हमेशा से यही रहा है कि हमारे घर की हर बहू बेटी को हर सुख सुविधा मिले और उनकी हर इच्छा पूरी की जा सके।
अजय: अब हमको भी अपना नज़रिया थोड़ा सा बदलना होगा। हमें यह सोचना होगा कि अगर घर की कोई बहू और बेटी घर से बाहर निकल कर सम्मान के साथ कुछ काम करना चाहती है, तो इसमें कुछ बुराई नहीं है।
संजय: अजय भैया, मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं। हमें चांदनी भाभी को एकेडमी खोलने देनी चाहिए।
धनंजय: हां भैया, मुझे भी यही लगता है। मेरी ईशा भी तो बहुत उत्साहित है एकेडमी खोलने के विचार से। उसका भी समय कट जाया करेगा।
विजय (खुश होते हुए): पापा और सभी भाईयों की मंज़ूरी के बाद अब हम सब इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि मेरी चांदनी को एकेडमी खोलने की इजाज़त दे देनी चाहिए।
यश: लेकिन बच्चों, एकेडमी खोलने की कोई जगह भी तो बढ़िया सी होनी चाहिए। उसके बारे में क्या सोचा है तुम सबने?
जय: यह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए पापा। मैं यह काम कुछ लोगों को सौंपता हूं। वे लोग जल्द से जल्द एकेडमी के लिए जगह ढूँढ लेंगे।
अजय: यह बढ़िया रहेगा। एकेडमी के लिए जगह फ़ाइनल होते ही, उसमें एकेडमी के हिसाब से इंटीरियर डेकोरेशन का काम देखना मेरी ज़िम्मेदारी होगी।
संजय: मैं एकेडमी की पब्लिसिटी और प्रमोशन का काम देख लूंगा। एकेडमी का नाम एक बार फ़ाइनल हो जाए, तो फिर उसके लिए पोस्टर्स और बैनर्स छपवाने और लगवाने की ज़िम्मेदारी मेरी रहेगी।
धनंजय: हमें एकेडमी का ऑनलाइन प्रोमोशन भी करना होगा, जिससे दूर दूर के लोगों को चांदनी की एकेडमी के बारे में पता चल सके। इसलिए ऑनलाइन प्रोमोशन मेरी ज़िम्मेदारी होगी।
विजय (हँसते हुए): अरे बड़े भाईयों और छोटे भाईयों, आप सबने एकेडमी की सारी ज़िम्मेदारियाँ आपस में ही बाँट ली है। कुछ काम मुझे भी तो करने दीजिए। चलिए, फिर मैं एकेडमी में एडमिशन की प्रक्रिया और उसकी फ़ीस आदि का काम देख लूंगा। यह काम चांदनी और ईशा को सौंपा नहीं जा सकता है। वर्ना उनका फ़ोकस डांस और गाना सिखाने से भटक सकता है। उनको तो बस डांस और गाना सिखाने पर ध्यान देने को बोलना होगा।
यश (खुश होते हुए): बच्चों, मुझे तुम सब पर बहुत नाज़ हो रहा है। देखो, कल तक जो एकेडमी खोलने का विचार हमको परेशान सा कर रहा था, आज एकेडमी खोलने पर सहमति भी बन गई और कितनी आसानी से उसकी सारी ज़िम्मेदारी को तुम सबने आपस में बाँट भी लिया है। अब तो बस शाम को घर जाकर सबको यह खुशख़बरी देनी है। सब बहुत खुश हो जाएंगे। ख़ास तौर पर चांदनी और ईशा की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहेगा।
सब बेटों ने पापा की इस बात पर बहुत खुश होकर हां में हां मिलाई है। अब सबका खाना भी ख़त्म हो गया है और लंच ब्रेक का समय भी ख़त्म हो चला है। इसलिए सभी लोग अपनी अपनी जगह से खड़े हो गए हैं और अपने हाथ धोने चले गए हैं।
हाथ धोने के बाद एक बार फिर से कुछ पलों के लिए सब इकट्ठे हुए हैं और अब हुईं बातों पर संतोष ज़ाहिर किया है। फिर सब अपने अपने केबिन की ओर बढ़ गए हैं। सारा ऑफ़िस स्टाफ़ भी रोज़ की तरह लंच के बाद वापस काम पर लग गया है। कुछ चपरासियों ने खाने की प्लेटों और टिफ़िनों को धोकर रख दिया है।
अब शाम हो चली है। यश के घर पर शाम की चाय के लिए सभी महिला सदस्य डाइनिंग टेबल पर जमा हुई हैं। सब अपने मन में यही सोच रही हैं कि आज ऑफ़िस में एकेडमी खोले जाने के बारे में न जाने सबकी क्या सहमति बनी होगी। सभी बहुओं के मन में बहुत उथल पुथल मची हुई है। लेकिन माला एकदम शांत बैठी हैं और मंद मंद मुस्कुरा रही हैं। क्योंकि अभी घर में वे ही एक ऐसी सदस्य हैं, जिनको पता है कि एकेडमी खोलने के बारे में क्या फ़ैसला आने वाला है। लेकिन वे अभी इस बारे में बहुओं से चर्चा नहीं कर रही हैं। क्योंकि वे चाहती हैं कि यश का बड़प्पन और सम्मान बने रहें और वे ही घर आकर चांदनी को अपना फ़ैसला सुनाएं।
देखते ही देखते रात हो गई है। डिनर की तैयारी चल रही है। सभी पुरुषों का ऑफ़िस से आने का समय भी हो चला है। सबका बहुत बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है। इस दौरान चांदनी और ईशा की नज़रें आपस में कई बार टकराई हैं। दोनों की ही आँखों में ढेरों शंकाएं और सवाल हैं कि न जाने एकेडमी के बारे में क्या फ़ैसला लिया गया होगा। बाक़ी तीन बहुएं भी बेचैन हैं। आरती, भावना और देविका भी एकेडमी खोले जाने के मुद्दे को लेकर ही सोच रही हैं। ये तीनों कभी सोचती हैं कि चांदनी और ईशा को एकेडमी खोलने की अनुमति न ही मिले तो अच्छा होगा। वर्ना चांदनी और ईशा अब से घर पर ध्यान देना बंद कर देंगी और घर की सारी ज़िमेदारी उनके कंधों पर ही आ जाएगी। नाम और पैसा चांदनी और ईशा कमाएंगी और काम का बोझ हमें झेलना पड़ेगा। दोनों में अहंकार भी आ सकता है। साथ ही, कुछ दिनों में घर में सबकी लाडली भी ये दोनों बहुएं ही बन जाएंगी।
लेकिन आरती, भावना और देविका फिर दूसरे ही पल यह भी सोचने लगती हैं कि अगर चांदनी और ईशा को एकेडमी खोलने की इजाज़त दी गई, तो भविष्य में अपनी इच्छा से काम करने का हमारा रास्ता भी खुल जाएगा। फिर हम भी क्यों एक आदर्श बहू होने का फ़र्ज़ निभाती रहें। हम भी घर की बजाय अपने काम पर ही ध्यान देंगी। वैसे भी घर की ज़िम्मेदारी उठाने पर किसी गृहणी को कोई सम्मान या वीरता पुरस्कार थोड़े ही मिल जाता है। अरे, घर का काम भी कोई काम होता है। घर के काम किसी को दिखाई थोड़े ही देते हैं। घर के काम करने से कोई आमदनी थोड़े ही होती है।
आरती, भावना और देविका ये सब सोच ही रही थीं कि घर के पुरुष सदस्य ऑफ़िस से आ गए। घर के अंदर आकर सबके एक दूसरे से मिलने के बाद, बाक़ी सभी सदस्य तो डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए हैं और पुरुष सदस्य फ्रेश होने के लिए अपने अपने वाशरूम की ओर चले गए हैं। (क्रमशः)