असल ज़िंदगी की प्रेम कहानी
असल ज़िंदगी की प्रेम कहानी
"अरे, इतना परेशान क्यों होती है मुग्धा बेटी? अनुराग और तेरे विचार हर विषय पर एक जैसे न होना सामान्य सी बात है। अनुराग से तेरी शादी हुए अभी समय ही कितना हुआ है। अभी सिर्फ़ तीन महीने ही तो हुए हैं। अनुराग तुझे कुछ कुछ समझने भी लगा है। थोड़ा धीरज रख।"
मुग्धा की माँ ने मुग्धा को समझदारी सिखानी चाही। लेकिन मुग्धा ठहरी फ़िल्मों की शौक़ीन, फ़िल्मी अंदाज़ में बोली,
"माँ, कुछ कुछ समझने के कोई अर्थ नहीं होते। यदि तुम समझ सकते हो तो पूर्णतया, नहीं तो बिल्कुल नहीं। अनुराग आख़िर पति है मेरा। वह मुझे समझे, यह उम्मीद मैं उससे नहीं करूंगी तो भला किससे करूंगी?"
बहुत देर से चुपचाप, माँ और बड़ी दीदी मुग्धा की बातें सुनकर छोटी बहन नीरजा बोली,
"दीदी, ये फ़िल्मी संवाद बोलना बंद करो। जीजू तुम्हारे पति हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें तुम्हारी हर आदत हर बात का पहले से अंदाज़ा होना चाहिए। किसी को पूर्णतया समझने में पूरी उम्र भी काफ़ी नहीं होती। बचपन से साथ रहे माँ बाप और भाई बहन भी किसी को पूर्णतया समझ नहीं पाते हैं। जीजू से तुम्हारा प्रेम विवाह भी नहीं है। तो उनको थोड़ा समय दो। धीरे धीरे अपनी प्रेम कहानी आगे बढ़ने दो।"
शायद माँ जो न समझा पाईं, वह बात छोटी बहन ने समझा दी। माँ ने देखा कि मुग्धा अब मुस्कुरा रही है। मुग्धा नीरजा के गले लगकर बोली,
"अच्छा मेरी प्रेम कहानी की लेखिका, मैं अब असल ज़िंदगी की प्रेम कहानी का मतलब समझ गई।"