Amit Singhal "Aseemit"

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माला के बिखरे मोती (भाग ६४)

माला के बिखरे मोती (भाग ६४)

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  भावना के कमरे से निकलकर अब शांति सीधे देविका की कमरे में पहुंची है। देविका रोज़ की तरह इस समय नहा धोकर पूजा करने के लिए बैठती है। देविका अभी नहा धोकर तैयार ही हो रही है, तभी शांति आ गई है। 


   देविका ने शांति की ओर अनमने मन से देखा है। लेकिन शांति को इस बात की कोई परवाह नहीं है।


देविका: शांति, आज तो तूने बहुत देर लगा दी आने में। वैसे तो अक्सर मेरे नहाने जाने से पहले ही धुलने के लिए कपड़े लेने आ जाती है। आज मैंने नहाने से पहले तेरा बहुत इंतज़ार किया कि तू कपड़े लेने आने ही वाली होगी। लेकिन जब तू नहीं आई, तो मैंने सोचा कि मैं पहले नहा ही लूं। वर्ना मुझे पूजा में बैठने में देर हो जाती। कहां रह गई थी तू?


शांति: देविका भाभीजी, यह तो आपने बहुत अच्छा किया कि आपने मेरा ज़्यादा इंतज़ार नहीं किया और पहले आप नहा लीं। वर्ना आज मैं क्या ही बताऊं कि मैं कहां रह गई थी। अभी आपके कमरे में आने से पहले भावना भाभीजी भी मुझसे यही सवाल पूछ रही थीं कि मैं कहां रह गई थी।


देविका: भावना भाभीजी? लेकिन मेरे कमरे में आने से पहले तो तू चांदनी भाभीजी के कमरे में जाती है। आज तू नहीं गई चांदनी भाभीजी के कमरे में?


शांति: भाभीजी, मैं आपको क्या ही बताऊं...! आज तो जैसे सारी भाभियाँ मेरे साथ बतियाने को ख़ाली बैठी हैं। मैं तो सबसे पहले सीधे आरती भाभीजी के कमरे में जा रही थी कि अचानक चांदनी भाभीजी ने मुझे रास्ते में रोक लिया और घसीटते हुए अपने कमरे में ले गईं।


देविका: अच्छा, आज अचानक चांदनी भाभीजी को तुझसे क्या काम आ पड़ा, जो तुझे घसीटते हुए अपने कमरे में ले गईं?


शांति: असल में उन्हें मुझसे काम तो कुछ नहीं था। बस अपनी एकेडमी खुलने की पापाजी से अनुमति मिलने का अहंकार दिखा रही थीं। वे तो खुशी के मारे नाच रही थीं।


देविका (हँसते हुए): अच्छा, डांस एकेडमी खुलने से पहले ही चांदनी भाभीजी का नाचना शुरू हो गया। भई वाह, उनके क्या कहने...! क्या उन्होंने अपने पैरों में घुंघरू भी बाँध रखे थे...!


शांति: नहीं भाभीजी। उन्हें तो इस समय घुंघरूओं की ज़रूरत भी नहीं है। उनकी खुशी की छन छन की आवाज़ ही काफ़ी है। 


देविका: यह तो तू ठीक कह रही है शांति। उन्होंने वह कर दिखाया, जो इस परिवार में किसी औरत ने कभी नहीं किया। उनका खुश होना लाज़मी है।


शांति: भाभीजी, आप बहुत भोली हैं। आप ठहरी पूजा पाठ करने वाली साफ़ दिल की औरत। आपको तो सब भले लगते हैं। लेकिन चांदनी भाभीजी आपकी तरह भोली नहीं हैं। यह बात तो अभी वे ख़ुद ही बोल रही थीं।


देविका: अच्छा, ऐसा कहा उन्होंने? और क्या क्या कहा उन्होंने तुझसे?


शांति: आज तो उन्होंने अपने अहंकार के आगे किसी को कुछ नहीं समझा। मेरे सामने आप सभी की खिल्ली उड़ा रही थीं।


देविका: उन्होंने मेरे बारे में कुछ कहा क्या? और वे आरती भाभीजी और भावना भाभीजी के बारे में भी कुछ बोलीं? सब खुलकर बता न।


शांति: भाभीजी, मुझे पहले ही बहुत देर हो गई है। फिर कभी आराम से बताऊंगी।


देविका: देख शांति, ज़्यादा भाव मत खा। सीधे सीधे बता कि उन्होंने सबके बारे में क्या क्या कहा।


शांति: आपके बारे में बोल रही थीं कि देविका को अपने पूजा पाठ और वहमी स्वभाव से ही छुट्टी नहीं मिलती। तो वह क्या ही जाने घर से बाहर निकल कर काम करना और पैसे कमाना क्या होता है। देविका को तो अपने भाग्य पर और पूजा पाठ पर भरोसा है। लेकिन मुझे अपने कर्म और टैलेंट पर भरोसा है। देविका की तरह मैं बेवकूफ़ नहीं हूं। जो सिर्फ़ दिन रात पूजा पाठ में लगी रहती है और दुनिया भर के अजीब अजीब वहम पालती रहती है। उसका बस चले, तो संजय भैया को भी घर से बाहर पैर न रखने दे।


देविका (रोते हुए): क्या ऐसा कहा चांदनी भाभीजी ने मेरे बारे में? शांति, तू ही बता, क्या पूजा पाठ करना बुरा होता है? क्या भगवान में विश्वास होना बुरा होता है? मैं तो हमेशा से इस परिवार का अच्छा ही चाहती आई हूं। तेरे संजय भैया के लिए मेरा व्यवहार बिना किसी कारण के तो नहीं है। यह बात तो तू भी जानती है। 


शांति: यही बात तो चांदनी भाभीजी ने आपकी खिल्ली उड़ाते हुए कही कि देविका इतनी बेवकूफ़ है कि एक बार उसने लाल मिर्च वाला हवन करके पूरे परिवार की जान को ख़तरे में डाल दिया था। देविका तो बहुत बड़ी पागल है।


देविका (जोश में): मैं अभी जाकर उनसे पूछती हूं कि क्या मैं उन्हें पागल दिखती हूं। आज उन्होंने लाल मिर्च वाले हवन वाली बात फिर से उठाकर अच्छा नहीं किया। वे क्या समझती हैं कि सिर्फ़ उन्हें ही इस परिवार के सदस्यों की जान की परवाह और मुझे नहीं है। उस हवन को करने में ख़ुद मेरी जान को भी तो ख़तरा हो गया था। वे मुझे ज़रा सोच कर बता दें कि उन्होंने इस परिवार के लिए क्या क्या काम किए हैं। वे तो इस घर में आते ही पापाजी और मम्मीजी की सबसे लाडली बहू बन गई थीं। हम बाक़ी बहुएं कुछ भी कर लें, वह पापाजी और मम्मीजी को कभी नहीं दिखता है। उस हवन को करने में मैंने कितनी पीड़ा सही थी, यह सिर्फ़ मैं जानती हूं। फिर भी पापाजी के गुस्से का सामना मुझे ही करना पड़ा था। किसी ने एक शब्द भी मेरे पक्ष में नहीं बोला था। उस हवन में मेरी जान भी चली जाती, तो भी दोष मुझे ही दिया जाता।


शांति: आप सही कह रही हैं भाभीजी। बस पापाजी मम्मीजी के नज़रिए का फ़र्क है। आपने किसी का बुरा तो नहीं चाहा था। लेकिन आप सबकी नज़रों में बुरी बन गई थीं। अच्छा भाभीजी, अब मैं चलती हूं। अभी ईशा भाभीजी, छाया दीदी काया दीदी और फिर पापाजी मम्मीजी के कमरों में जाकर उनसे भी कपड़े लेने हैं।


देविका: देख शांति, हम दोनों के बीच जो भी बातें हुई हैं, वे सब बाहर जाकर किसी से भी मत कहना। ख़ास तौर से, ईशा से। ईशा पर आजकल चांदनी भाभीजी का ही रंग चढ़ा हुआ है। तू उससे कुछ भी कहेगी, तो बिना बात का बतंगड़ बन जाएगा और फिर सबको मौक़ा मिल जाएगा, मुझे खरी खोटी सुनाने का।


शांति: आप निश्चिंत रहिए भाभीजी। मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी। (क्रमशः)


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