माला के बिखरे मोती (भाग ६५)
माला के बिखरे मोती (भाग ६५)
देविका के कमरे से निकल कर शांति अब ईशा के कमरे में आई है। ईशा तो बहुत देर से शांति की राह देख रही थी, इसलिए शांति को देखकर एकदम उस पर बरस ही पड़ी।
ईशा (गुस्से में): तू आज कहां अटक गई थी शांति? आज तो तूने देर से आने की हद ही कर दी।
शांति: माफ़ करिएगा ईशा भाभीजी। हां, आज मुझे थोड़ी सी देर हो गई...
शांति अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि ईशा ने उसकी बात को बीच में काट दिया।
ईशा: थोड़ी सी देर? इसको तू थोड़ी सी देर बोल रही है। रोज़ जहां तुझे सब भाभियों के कमरों से कपड़े लेते हुए मेरे कमरे तक पहुंचने में बीस पच्चीस मिनट से ज़्यादा नहीं लगते हैं, वहीं आज तो तूने घंटे भर से ज़्यादा लगा दिया मेरे कमरे में पहुंचने तक। किसके काम में लगी थी?
शांति: किसी के काम में नहीं लगी थी ईशा भाभीजी। बस सबके कमरों से कपड़े लेकर ही आ रही हूं।
ईशा: कपड़े तो रोज़ ही लेती है सबसे। मैं तो यह पूछ रही हूं कि आज यह एक घंटे से ज़्यादा का समय कैसे लग गया? तुझे दूसरों के समय की कद्र है या नहीं? अब तो कुछ दिनों के बाद से सुबह को मेरे पास तेरा इस तरह इंतज़ार करते रहने का समय नहीं रहा करेगा। मुझे सुबह को चांदनी भाभीजी के साथ एकेडमी जाना होगा।
शांति: हां भाभीजी। एकेडमी खुलने के बारे में मुझे पता चल गया है। आपको बहुत बहुत बधाई। आज मुझे ये सारी देरी इस एकेडमी के चक्कर में ही तो हुई है।
ईशा: तुझे देरी एकेडमी के चक्कर में हुई है? क्या मतलब है तेरा? अभी तो एकेडमी खुली नहीं है। अभी उसमें इंटीरियर आदि का काम शुरू हुआ है।
शांति: हां भाभीजी। मुझे एकेडमी के चक्कर में ही देर हुई है। आज सभी भाभियाँ मुझे रोक रोक कर एकेडमी के बारे में और एक दूसरे के बारे में बात कर रही हैं। ख़ास तौर से, चांदनी भाभीजी और आपके बारे में।
शांति ने ईशा के सामने अपनी कुटिलता दिखानी शुरू कर दी है।
ईशा: अच्छा, अब मैं समझी कि तुझे आज देर कहां लग गई। सभी भाभियाँ तुझसे एकेडमी के बारे में बात कर रही हैं। साथ में, चांदनी भाभीजी और मेरी बुराई कर रही होंगी। आरती भाभीजी, भावना भाभीजी और देविका भाभीजी को हमसे जलन हो रही है क्या?
यह कहते हुए ईशा खिलखिलाकर हँसने लगी है।
शांति: आप बिल्कुल सही कह रही हैं भाभीजी। आरती भाभीजी, भावना भाभीजी और देविका भाभीजी को चांदनी भाभीजी और आपसे जलन हो रही है। बल्कि आप यूं समझिए कि ये तीनों भाभियाँ तो एकेडमी खुलने के नाम से ही बौखला सी गई हैं। इनको आपका और चांदनी भाभीजी का घर से बाहर जाकर कुछ करना बर्दाश्त नहीं हो रहा है। इन तीनों भाभियों को लग रहा है कि आप दोनों भाभियाँ इन तीनों से आगे निकल गई हैं और ये तीनों आप दोनों से पीछे रह गई हैं। आप दोनों ही बिना कुछ किए पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में चढ़ गई हैं और ये तीनों घर परिवार की सारी ज़िम्मेदारी उठाने के बावजूद भी पापाजी और मम्मीजी के मन में जगह नहीं बना पाई हैं।
ईशा: अच्छा, ये तीनों भाभियाँ ऐसा बोल रही हैं तुझसे? तू ही बता शांति, क्या चांदनी भाभीजी और मैंने इस घर की कोई ज़िम्मेदारी कभी नहीं उठाई?
शांति: ऐसा तो बिल्कुल नहीं है भाभीजी।
ईशा: हां, मैं मानती हूं कि मैं इस घर की सबसे छोटी बहू हूं। तो इस वजह से मुझे ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ नहीं उठानी पड़ी हैं। लेकिन मुझे जो भी ज़िम्मेदारी दी गई, हमेशा उसको अच्छी तरह उठाया है। तेरे धनंजय भैया ने सबसे छोटे होने के बावजूद भी कारोबार की बहुत सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों के ऊपर ले रखी है। इसी वजह से सुलेख और अभिलेख पर तेरे भैया कभी ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं। भले ही सबका सहयोग रहा हो, लेकिन एक तरह से सुलेख और अभिलेख की देखभाल अकेले मैंने ही की है, क्योंकि सभी भाभियों के अपने अपने बच्चे भी हैं। अब सुलेख और अभिलेख थोड़े बड़े हो गए हैं। इसलिए उनको कुछ समय के लिए मेरी देखभाल की ज़रूरत नहीं है। तो अब जाकर मैंने अपने लिए कुछ करने का सोचा है। इसमें कुछ ग़लत है क्या शांति, तू ही बता?
अपनी बात पूरी करते हुए ईशा का गला भर आया है और उसकी आँखों से आँसू निकल आए हैं। यह देखकर शांति मन ही मन बहुत खुश हो रही है कि आज उसके सारे तीर निशाने पर लग रहे हैं।
शांति: भाभीजी, आप दुखी मत होइए। आप बिल्कुल सही कह रही हैं। आपने हमेशा अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह पूरा किया है। आप अब अपने लिए कुछ करना चाहती हैं, तो इसमें बुराई ही क्या है? पता नहीं आरती भाभीजी, भावना भाभीजी और देविका भाभीजी क्यों जल भुन रहीं हैं। असल में, बात यह है कि वे तो इस घर की चार दीवारी से बाहर निकलकर कुछ कर नहीं पाईं। इसलिए ये तीनों आपसे और चांदनी भाभीजी से जल रही हैं।
ईशा: कोई बात नहीं शांति। तू जलने दे इन तीनों भाभियों को। आजकल कोई किसी की तरक्की से खुश थोड़े ही न होता है। मैं तो अपने काम पर ध्यान दूंगी। वैसे भी कल का किसको पता है। हो सकता है कि मैं एकेडमी में गाना सिखाना चालू ही न रख पाऊं। हो सकता है कि चांदनी भाभीजी और मुझ में कोई व्यावसायिक मतभेद ही हो जाए। या ऐसा न भी हो, तो मेरा ही मन काम से ऊब जाए। तो क्यों अभी से बड़ी बड़ी बातें करूं।
शांति ने महसूस किया कि ईशा भाभीजी पर उसके भड़काने का कोई ख़ास असर नहीं हुआ है। इसलिए अभी शांति ने बात को आगे न बढ़ाते हुए चुपचाप वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी।
शांति: होने को तो कुछ भी हो सकता है ईशा भाभीजी। आप सही कह रही हैं। लेकिन भाभीजी, एक बात का ध्यान रखिएगा। अपनी आँखें और अपने कान खुले ही रखिएगा। पता चला कि आप तो एकेडमी चली जाया करें और आपकी पीठ के पीछे आपकी ये तीनों घरेलू भाभियाँ आपके खिलाफ़ कोई साजिश रचने लगें। ये तीनों भाभियाँ अब पूरी कोशिश में लग जाएंगी कि आपको पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में बुरा बनवाया जाए। साथ ही, चांदनी भाभीजी को आपसे बेहतर साबित करने की कोशिश भी करेंगी। जिससे चांदनी भाभीजी और आप में मतभेद पैदा हो।
ईशा: हां, मैं ध्यान रखूंगी। अब तू ज़्यादा बातें न कर। अब जा यहां से।
शांति: मैं तो इस घर का हमेशा भला ही सोचती हूं। आगे आपकी मर्ज़ी। अच्छा, अब मैं तो चली। (क्रमशः)