माला के बिखरे मोती (भाग ६२)
माला के बिखरे मोती (भाग ६२)
शांति ने महसूस किया कि आरती भाभीजी के मन में अभी से चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी के लिए कड़वाहट आनी शुरू हो गई है। शांति आख़िर शातिर दिमाग़ की जो ठहरी। उसको अब इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाने का मौक़ा गंवाना बिल्कुल सही नहीं लगा। वह समझ गई इस घर में तनाव पैदा करवाने की उसकी कोशिश में घर की एक कमज़ोर कड़ी आरती भाभीजी ही हैं।
शांति: मैं क्या ही बताऊं आरती भाभीजी। मैं तो अपने सीधे रास्ते आपके कमरे में आ रही थी। लेकिन रास्ते के बीच से ही मेरा हाथ पकड़कर चांदनी भाभीजी लगभग मुझे घसीटती हुईं अपने कमरे में ले गईं। मैं तो हैरान रह गई कि आख़िर अचानक चांदनी भाभीजी को हो क्या गया है। मुझे कमरे में ले जाकर उन्होंने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया और खुशी के मारे नाचने सी लगीं। मैंने हैरानी से पूछा तो उन्होंने बताया कि अब उनकी डांस एकेडमी खोलने के रास्ते से सारे रोड़े हट गए हैं। अब उनकी डांस एकेडमी खुलकर ही रहेगी। किसी के बाप में भी दम नहीं है, जो अब डांस एकेडमी खुलने से रोक सके।
आरती (गुस्से से चिढ़ते हुए): किसी को क्या ज़रूरत पड़ी है, जो उसकी डांस एकेडमी खुलने में रोड़े अटकाए। और क्या बोली चांदनी?
शांति: भाभीजी, इसके आगे की बात आप न ही पूछिए तो बेहतर होगा। क्योंकि आप सुन नहीं पाएंगी और मैं बता नहीं पाऊंगी।
आरती: ऐसा क्या कह दिया चांदनी ने, जो तू बता नहीं पाएगी? क्या हमारे बारे में कुछ कहा उसने?
शांति: नहीं भाभीजी, आपके बारे में आपका नाम बीच में लाकर तो कुछ नहीं कहा। लेकिन....
आरती: लेकिन क्या...? बोल न?
शांति: चांदनी भाभीजी कह रही थीं कि अब तू देखना शांति। मैं अब क्या करती हूं। पापाजी और मम्मीजी को मैं दिखा दूंगी कि मैं ही उनकी सबसे लायक बहू हूं। अब ये घर गृहस्थी के छोटे छोटे काम मैं नहीं करने वाली। मैं तो सुबह को तैयार होकर डांस एकेडमी के लिए घर से निकल जाया करुंगी और ईशा भी मेरे साथ ही जाया करेगी। घर के काम अब बाक़ी की बहुएं किया करेंगी। ये काम सूट भी उनको ही करता है। घर के कामों के अलावा वे तीनों बहुएं कुछ और कर भी नहीं सकती हैं। घर के काम करके कभी वे पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में चढ़ पाई हैं? मैं उनको दिखा दूंगी कि पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में कैसे चढ़ा जाता है।
आरती: अच्छा, ऐसा कहा चांदनी ने? उससे यह उम्मीद नहीं थी। अभी तो डांस एकेडमी खुली भी नहीं है और अभी से उसको घर गृहस्थी के काम छोटे लगने लगे हैं। भई वाह...!
शांति: वही तो भाभीजी। अभी तो कुछ हुआ नहीं है और अभी से उन्होंने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं।
आरती: शांति, मैं तो सबसे बड़ी बहू हूं इस घर की। सबसे पहले मैं इस घर में शादी करके आई थी। सबसे बड़ी बहू होने के नाते कितनी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, यह केवल मैं ही समझ सकती हूं। मैं तो हमेशा अपना सिर झुकाए अपना फ़र्ज़ निभाती रही हूं। मैंने तो कभी कोशिश नहीं की, पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में चढ़ने की। बड़ी आई चांदनी मुझे दिखाने वाली कि पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में कैसे चढ़ा जाता है। अगर मैंने इस तरह सोचा होता, तो मेरे पास तो सबसे ज़्यादा मौक़ा था, पापाजी और मम्मीजी की नज़रों में चढ़ने का। लेकिन क्या ही कह सकते हैं। चांदनी ठहरी सर्वगुण संपन्न...! जबसे वह शादी करके इस घर में आई है, वही तो पापाजी और मम्मीजी की सबसे लाडली बहू रही है। हम सब बहुओं में सबसे ज़्यादा सुंदर है और हर काम में होशियार है। मुझ में तो जैसे कोई गुण है ही नहीं। न ही मैं उसके जितनी सुंदर हूं।
शांति: नहीं भाभीजी, ऐसी बात तो नहीं है। आप भी सुंदर हैं और हर काम में निपुण भी हैं। बस आपके साथ दिक्कत यह रही कि आपकी कद्र किसी ने नहीं समझी। आपने कभी अपनी अहमियत जतानी नहीं सीखी। घर की ज़िम्मेदारियों में बिना किसी स्वार्थ के बस रम सी गई थीं। मैं तो आपसे कुछ साल छोटी ही हूं। आप शादी के समय अट्ठारह बरस की ही तो थीं। वह भी कोई उम्र थी इतने बड़े घर की और इतने बड़े परिवार की ज़िमेदारी उठाने की। लेकिन फिर भी आपने बिना कोई शिकायत किए और हँसते हंसते सारी ज़िम्मेदारी उठाई थी और अब तक उठा रही हैं।
आरती (हैरानी से खुश होते हुए): तुझे याद है सब कुछ?
शांति: हां भाभीजी। मुझे सब याद है। तभी तो आपके लिए मुझे सबसे ज़्यादा दुख होता है। सबकी सेवा की आपने और मेवा खाएंगी चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी। मैं कहे देती हूं भाभीजी। आपका ऐसे चुप बैठकर तमाशा होते हुए देखने से कुछ नहीं होगा। आपको चांदनी भाभीजी और ईशा भाभीजी को सबक सिखाना ही चाहिए। इससे पहले कि उनके पर निकल आएं, उनके पर आपको ही कतरने होंगे। अब रोज़ इस घर में आपकी बेइज़्जती हुआ करेगी। मुझसे तो देखी नहीं जाएगी।
आरती: हां, मैं कुछ करती हूं। बाद में देखेंगे कि क्या हो सकता है। अभी तू जा। नहीं तो बाक़ी बहुएं कुछ उल्टा सीधा सोचने लगेंगी। उन्हें लगेगा कि मैंने बात करने के लिए तुझे रोक रखा है।
शांति: ठीक है भाभीजी। आप चिंता मत करिएगा। ऊपरवाला सब ठीक करेगा।
आरती: हां, अब तो ऊपरवाले का ही सहारा है। अच्छा सुन, बाहर जाकर मेरी तेरी बातचीत का किसी को पता नहीं चलना चाहिए। वर्ना सब सोचेंगी कि मैं चांदनी और ईशा से जल रही हूं।
शांति: आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए भाभीजी। मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी। आपको तो पता है कि मैं तो सिर्फ़ अपने काम से काम रखती हूं।
आरती (हँसते हुए): हां, यह बात तो सबको पता है। तू किसी एक की बात किसी दूसरे से नहीं कहती है। तुझमें सबसे बड़ा गुण तो यही है। तू तो बहुत भोली भाली और सीधी सादी है।
शांति (मुस्कुराते हुए): भोली भाली तो मैं हूं। अच्छा, अब मैं तो चली। भावना भाभीजी के कमरे से उनके कपड़े भी ले लूं। वे भी मेरी राह देख रही होंगी। देर हो जाएगी, तो वे मुझसे दस सवाल करेंगी। झूठ मैं बोलती नहीं हूं। सच मैं बताऊंगी नहीं।
क्रमशः