माला के बिखरे मोती (भाग ५९)
माला के बिखरे मोती (भाग ५९)
थोड़ी देर के बाद सभी पुरुष सदस्य फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पर अपनी अपनी जगह आकर बैठ रहे हैं। घर के कुछ सेवकों ने खाना डाइनिंग टेबल पर लाकर रखना शुरू कर दिया है। इस दौरान सभी सदस्यों में हल्की फुल्की बातचीत हो रही है और बच्चों की शरारत भरी आवाजें भी माहौल को हल्का कर रही हैं।
सब सदस्यों ने अपनी अपनी प्लेटों में खाना परोसना शुरू किया है। हमेशा की तरह घर की महिला सदस्य पुरुष सदस्यों के खाना खाने की शुरुआत का इंतज़ार कर रही हैं। सबसे पहले यश ठाकुर ने ही पहला निवाला अपने मुंह में लिया है और बहुत स्वाद लेकर खाया है। फिर खाने की तारीफ़ भी की है। फिर घर के बाक़ी सदस्यों ने खाना शुरू कर दिया है।
अभी सबने खाने के कुछ निवाले ही खाए होंगे, तभी आँखों ही आँखों में सबके इशारे होने लगे हैं। यश ठाकुर चुपचाप खा रहे हैं, लेकिन उन्होंने ये इशारे नोटिस भी कर लिए हैं। इशारे देखकर वे हौले हौले मुस्कुराने लगे हैं। उनको मुस्कुराते हुए देखकर घर के सभी बेटे भी मुस्कुराने लगे हैं। अब तो अपने अपने पतियों को मुस्कुराते हुए देखकर घर की बहुएं भी मुस्कुराने लगी हैं। इन सभी को मुस्कुराते हुए देखकर छाया काया और घर के सभी बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे हैं। बच्चों को खिलखिलाकर हँसते हुए देखकर अब तो सभी बड़े भी खिलखिलाकर हँसने लगे हैं। इस हँसी के पीछे की वजह सबको पता है। वजह है कि सबको अब एकेडमी के बारे में लिए गए फ़ैसले के बारे में बात करनी है।
तो इस हँसी की आवाज़ के बीच से यश ठाकुर ने बोलना शुरू किया है।
यश (हँसते हुए): तुम सबको एकेडमी खोलने के फ़ैसले के बारे में जानना है न?
माला (हँसते हुए): जी, आपने बिल्कुल सही कहा। ये सब एकेडमी का फ़ैसला जानना चाहते हैं। अब इनको ज़्यादा इंतजार मत करवाइए।
जय (हँसते हुए): लेकिन मम्मी, पहले सब खाना तो खा लें। उसके बाद आराम से एकेडमी के बारे में बात हो जाएगी न।
अजय (हँसते हुए): हां जय भैया, आपने सही कहा। पहले सब आराम से खाना खा लेते हैं।
विजय (हँसते हुए): वाकई आज तो खाना बहुत टेस्टी बना है। भोज काका के खाने की तारीफ़ करनी पड़ेगी।
संजय (हँसते हुए): आपने सही कहा विजय भईया खाना सचमुच लाजवाब बना है। मैं ढेर सारा खाना खाऊंगा और वह भी आराम आराम से स्वाद लेकर खाऊंगा।
धनंजय (सब महिलाओं की ओर देखकर हँसते हुए): अरे भाभियों, आप भी आराम से खाना खाइए न। खाना सचमुच बहुत टेस्टी बना है। एकेडमी कहाँ भागी जा रही है।
ईशा (धनंजय की ओर देखकर): अजी, अब आप भी सब में शामिल होकर हम बहुओं की खिंचाई करने लगे हैं। अब जल्दी से बता भी दीजिए कि एकेडमी खोलने के बारे में क्या फ़ैसला हुआ है। नहीं तो चांदनी भाभी और मेरे गले से खाना नीचे नहीं जाएगा।
धनंजय: ईशा, मुझे पता है कि तुम्हें और सब भाभियों को एकेडमी खोलने के फ़ैसले के बारे में जानना है। लेकिन यह फ़ैसला पापा का है। इसलिए पापा ही सबको अपना फ़ैसला सुनाएंगे।
चांदनी (यश की ओर देखकर बहुत विनम्रता से): पापाजी, प्लीज़ अब बता दीजिए न कि क्या आप मुझे एकेडमी खोलने की इजाज़त देंगे?
यश: देखो चांदनी बहू, हमने आज ऑफ़िस में इस बारे में बहुत सोच विचार किया था। बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि...!
चांदनी: कि क्या पापाजी? प्लीज़ जल्दी बताइए न।
यश (हँसते हुए): मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि एकेडमी खोलने में बहुत बाधाएं आएंगी और...
चांदनी: कोई बात नहीं पापाजी। मुझे आपका फ़ैसला मंज़ूर है। एकेडमी नहीं खुलेगी। आपका फ़ैसला सिर आँखों पर...
यह कहते हुए चांदनी की आँखें भर आईं हैं। आरती चांदनी को रोता हुआ देखकर खड़ी होकर चांदनी के पास आई है और उसको सांत्वना देने लगी है। ईशा भी चांदनी के पास आकर उसको तसल्ली दे रही है।
यश : अरे चांदनी बहू, तुमने मेरी पूरी बात सुने बिना ही रोना शुरू कर दिया। यह क्या बात हुई भला? मैं तो यह कह रहा हूं कि एकेडमी खोलने में जो भी बाधाएं आएंगी, उनको दूर भगा दिया जाएगा और एकेडमी हर हाल में खोली जाएगी।
यह कहते हुए यश ठाकुर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे हैं। यश ठाकुर के मुंह से यह सब सुनकर माला और घर के बेटों को तो ख़ास उत्तेजना नहीं हुई, क्योंकि इनको तो फ़ैसले के बारे में पहले से पता था। लेकिन फिर भी बहुओं का हौसला बढ़ाने के लिए इन्होंने ताली बजाकर यश की बात का समर्थन किया है।
चांदनी को एक बार जैसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ है। वह तो हैरान सी होकर ईशा की ओर देख रही है। ईशा ने चांदनी की ओर बिना कुछ बोले मुस्कुराकर सिर्फ़ हां में सिर हिलाकर जैसे अपनी चांदनी भाभी को भरोसा दिलाया है कि उन्होंने जो अभी सुना है, वह सही सुना है। चांदनी खड़ी होकर खुशी के मारे ईशा से लिपट गई है। चांदनी और ईशा बहुत देर तक एक दूसरे से लिपटी रहीं। फिर चांदनी बारी बारी से आरती, भावना और देविका के गले लगकर खुशी से रोने लगी है। देविका ने चांदनी के आँसू पोंछे हैं।
फिर चांदनी ने माला के पास जाकर उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया है। इसके बाद उसने यश ठाकुर के चरण स्पर्श किए हैं और उनसे आशीर्वाद लिया है। इसके बाद चांदनी ने अपने दोनों जेठों जय और अजय से आशीर्वाद लिया है। फिर उसने आरती और भावना के पैर भी छुए हैं। आरती और भावना ने एक बार फिर से बहुत स्नेह से चांदनी को गले लगाकर शुभकामनाएं दी हैं। छाया और काया ने भी अपनी भाभी चांदनी को गले लगाकर शुभकामनाएं दी हैं।
तभी अचानक बहुत चहककर काया बोली,
"चांदनी भाभी, इस खुशी के मौक़े पर हम सब लेडीज़ का एक डांस हो जाए...!"
चांदनी ने काया की बात पर हल्के से शर्माते हुए हामी भर दी है। फिर छाया ने माला को भी कुर्सी से हाथ बढ़ाकर उठाया है और सब महिलाएं डाइनिंग टेबल से हटकर घेरा बनाकर खड़ी हो गई हैं। चांदनी ने इस खुशी के मौक़े पर सिचुएशन पर फिट बैठता हुआ एक गाना सोचा और फटाफट उस गाने को फ़ोन में बजा दिया है। यह गाना कुछ इस तरह है,
ये तो सच है कि भगवान है...
है मगर फिर भी अंजान है...
धरती पे रूप माँ बाप का...
उस विधाता की पहचान है...
यह गाना बजते ही जैसे सब लोग इमोशनल से हो गए हैं। सभी महिलाएं गोल घेरे में नाचने लगी हैं। महिलाओं को नाचते हुए देखकर सब बच्चे भी उनके साथ नाचने के लिए उनमें शामिल हो गए हैं। फिर ईशा यश की ओर बढ़ी है और उनका हाथ थामकर उनको डांस में शामिल किया है। फिर देविका ने संजय को उठाया है। फिर तीनों जेठों जय, अजय और विजय को उठाया है। साथ ही देवर धनंजय को भी मुस्कुराकर अपनी आँखों से उठने का इशारा किया है। अब तो बच्चे क्या बड़े क्या, सभी लोग कुछ पलों के लिए खाना भूलकर डांस की मस्ती में खो गए हैं। (क्रमशः)