Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama

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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Drama

माला के बिखरे मोती (भाग ६३)

माला के बिखरे मोती (भाग ६३)

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 अब शांति धुलने के लिए कपड़े लेने के लिए भावना के कमरे में आई है। कपड़े लेना तो एक बहाना मात्र है। आज तो शांति सबके कमरों में जाकर सभी भाभियों के दिलों में ज़हर घोलने का इरादा लेकर आई है। इसी क्रम में उसका अगला शिकार भावना है। 


  शांति को अपने कमरे की ओर आती हुई देखकर भावना को तसल्ली हुई है। लेकिन कहीं न कहीं भावना का मन आशंकाओं से भी भरा है कि न जाने आज शांति ने इतनी देर किसके कमरे में लगा दी। क्या बातें हुई होंगी।


भावना: शांति, आज तो तूने बहुत देर कर दी आने में। कहां रह गई थी?


शांति: अरे भावना भाभीजी, मैं आपको क्या ही बताऊं कि मैं कहां रह गई थी। मैं अपने सही समय पर सबके कपड़े लेने आई थी। लेकिन आज न जाने क्यों, सब मुझे रोककर अपनी अपनी बातें कर रहे हैं। 


भावना: कौन अपनी अपनी बातें कर रहा है? ज़रा मुझे भी तो पता चले।


शांति: मैं तो रोज़ की तरह सबसे पहले आरती भाभीजी के कमरे में कपड़े लेने जा रही थी। लेकिन रास्ते के बीच से ही चांदनी भाभीजी ने मुझे पकड़ लिया। वे मुझे लगभग घसीटते हुए अपने कमरे में ले गईं। फिर कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया और खुशी के मारे नाचने सी लगीं। मैं तो हैरान रह गई कि अचानक चांदनी भाभीजी को क्या हो गया है।


भावना: अच्छा, तो चांदनी इतनी खुश है एकेडमी खुलने से, कि एकेडमी खुलने से पहले ही उसका नाचना शुरू हो गया, खुशी के मारे...!


शांति: हां भाभीजी, चांदनी भाभीजी बहुत खुश हैं। खुशी तो चलो एक बार फिर भी ठीक है। लेकिन मैंने देखा कि एकेडमी खुलने के नाम से ही उनमें बहुत ज़्यादा अहंकार आ गया है। जब एकेडमी खुल जाएगी और वे रोज़ सुबह बन ठनकर एकेडमी चली जाया करेंगी, तो भगवान ही जाने क्या होगा।


भावना: तुझे कैसे लगा कि चांदनी में अहंकार आ गया है। क्या उसने तुझसे कुछ कहा?


शांति: हां भाभीजी। वे बहुत अहंकार भरी बातें कर रही थीं। चांदनी भाभीजी कह रही थीं कि अब सबको मैं दिखाऊंगी कि पापाजी मम्मीजी की नज़रों में कैसे चढ़ा जाता है। अब मैं घर का कोई काम नहीं करने वाली। ये घर के काम घर की बाक़ी बहुएं करेंगी। मैं और ईशा तो रोज़ एकेडमी चली जाया करेंगी और मेहनत करके पैसे कमाएंगी। पूरे दिन घर में ख़ाली रहकर हाथ पर हाथ रखे हुए बैठकर जीना भी कोई जीना है।


भावना: अच्छा तो ऐसा कहा चांदनी ने? हम पूरे दिन घर में ख़ाली रहते हैं। हम घर में कोई काम नहीं करते हैं। सिर्फ़ हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहते हैं। अभी तो एकेडमी खुली भी नहीं है और चांदनी अभी से ये सब बातें करने लगी है। उसने मेरे बारे में भी कुछ कहा क्या?


शांति: हां भाभीजी। अब उन्हें यही लगने लगा है कि आप तीनों भाभियाँ यानि आरती भाभीजी, आप और देविका भाभीजी तो घर में कुछ काम ही नहीं करती हैं।

आपके बारे में उन्होंने क्या कहा, ये तो आप मुझसे मत ही पूछिए तो अच्छा है। मैं बता नहीं पाऊंगी।


भावना: ऐसा क्या कह दिया चांदनी ने मेरे बारे में, जो तू बता नहीं पाएगी? बोल न?


शांति: चांदनी भाभीजी आपकी खिल्ली उड़ाई रही थीं। वे कह रही थीं कि भला हो भावना भाभीजी का, जो उन्होंने सबसे पहले मेरी डांस एकेडमी की बात उठाई थी। उन्हीं की दिखाई राह से तो मेरा बरसों पुराना सपना अब हक़ीक़त में बदलने वाला है।


भावना: ये तो मेरी तारीफ़ की है चांदनी ने। इसमें उसने ग़लत क्या बोला मेरे बारे में? उसने सही तो कहा कि मैंने ही एकेडमी की बात सबसे पहले उठाई थी। उसने तो मेरा शुक्र अदा किया है।


शांति: आप बहुत भोली हैं भावना भाभीजी। आप उनके शब्दों पर जा रही हैं। लेकिन उनकी बात करने का तरीक़ा आपने नहीं देखा, जो मैंने देखा है। वे यह बात कहकर ख़ूब ज़ोर से हँसी थीं आप पर।


भावना: मैं तेरा मतलब नहीं समझी! खुलकर बता?


शांति: चांदनी भाभीजी ने यह बात व्यंग में कही थी। उनके कहने का मतलब था कि आपने ही ने उनको घर के बाहर काम करने का रास्ता दिखाया, जो कभी ख़ुद घर से बाहर जाकर कुछ कर नहीं पाईं। आपने ख़ुद उनको अपने आप से ऊपर और बड़ा दिखाने का मौक़ा देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। 


भावना: कैसे? मैंने ख़ुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कैसे मारी है? ज़रा समझा मुझे।


शांति: आप चांदनी भाभीजी की पूरी बात सुनेंगी, तो उनकी बात का मतलब ख़ुद ही समझ जाएंगी। वे कह रही थीं कि भावना भाभीजी तो ठहरीं इमोशनल फूल। आप तो बात बात पर आँखों से टसुए बहाने लगती हैं। सबकी बातों को दिल पर ले लेती हैं। आपसे तो घर का माहौल ही ठीक से हैंडल नहीं होता, तो घर के बाहर जाकर काम तो आपसे बिल्कुल न हो पाएगा। बाहर जाकर काम करने के लिए जो हौसला और हिम्मत चाहिए, भावना भाभीजी यानी आप में दूर दूर तक नहीं है।  


   यह सुनकर अब भावना की आँखों से आँसू निकल आए।


भावना (रोते हुए): शांति, तू ही बता कि क्या इमोशनल होना बुरा होता है? क्या दिल का साफ़ होना ग़लत होता है? लेकिन मेरे इमोशनल होने से चांदनी को बुरा क्यों लगता है? मैं नहीं हूं इतनी प्रैक्टिकल। मैं हर बात दिल से सोचती हूं।


शांति (कुटिलता से) : नहीं भाभीजी। इमोशनल होना बुरा थोड़े ही होता है। यह तो दिल का साफ़ होने की निशानी है। अब हर कोई चांदनी भाभीजी जैसा चालाक थोड़े ही होता है। आप तो सीधी सादी सी हैं। दिल की सच्ची हैं। आपको समझ नहीं आती दुनियादारी और छल कपट की बातें। लेकिन चांदनी भाभीजी जैसे लोग तो आपके जैसे लोगों को पागल समझते हैं। 


भावना (जोश में): मैं अभी जाकर चांदनी से पूछती हूं। उससे पूछती हूं कि क्या मैं उसको पागल दिखती हूं।


शांति (भावना का हाथ पकड़कर उसको रोकते हुए): अरे भाभीजी, आप यह क्या करने जा रही हैं। अभी चांदनी भाभीजी का दिमाग़ सातवें आसमान पर है। अभी आप उनसे कुछ सवाल जवाब करने जाएंगी, तो वे आपसे बदतमीज़ी करने पर उतर सकती हैं। आप उनको यह मौक़ा मत दीजिए। अगर एक बार उन्होंने आपका सामना पकड़ लिया, तो आपकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। फिर आपको हमेशा उनके सामने अपनी नज़रें झुकाकर जीना पड़ेगा।...अच्छा, अब मैं चलती हूं। देविका भाभीजी भी मेरी राह देख रही होंगी। 


   यह कहती हुई शांति राहत की गहरी साँस लेती हुई भावना के कमरे से निकल गई। (क्रमशः)


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