लिप् ऑफ फेथ
लिप् ऑफ फेथ
कभी हुआ करता था लैला मजनूँ और शीरी फ़रहाद की तरह वाला प्यार....कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को टाइप वाला...
लेकिन अब जमाना बदल गया है.. साथ ही प्यार करने का अंदाज भी...
वह लड़की अपने घर के सारे बंधन तोड़ माँ बाबा की सारी हिदायतों को अनसुना करते हुए सिर्फ और सिर्फ अपने प्यार के खातिर उस महफूज घर को छोड़ देती है और एक अनजान राह पर अपने प्रेमी संग चल पड़ती है....
वही प्रेमी जो उससे न जाने कितने सारे वादें किया करता है...
कभी चाँद के पार जाने के..
तो कभी उसके लिए चाँद को ही धरती पर लाने के...
एक दिन प्रेमी ने उसपर हाथ उठाया। हाँ, उसी प्रेमी ने जो प चाँद सितारों की बाते किया करता था....
क्या प्यार में ऐसा भी हो सकता है? उसे अचरज हुआ। उस इंडिपेंडेंट थॉट वाली लड़की के लिए पहले पहल तो समझ में ही नहीं आया। प्रेमी महाशय की सॉरी से उसे वह एक मामूली बात ही लगी थी। और उस मारपीट को वह भूल गयी ...
लेकिन धीरे धीरे बंदिशें बढ़ने लगी... लिव इन से शादी की बात से मारपीट की फ्रीक्वेंसी बढ़ने लगी। और बाद में कही जाने वाली सॉरी की भी....
ऐसे रिलेशनशिप से आज़ादी भली उसे अक्सर लगने लगा था।
कैसे कहूँ?
किससे कहूँ की आना है मुझे वापस घर?
घर?
क्योंकि घर वालों के हज़ार बार मना करने बाद जैसे वापसी के दरवाजे भी जैसे बंद हो गए थे....
आज इंस्टा, व्हाट्सएप्प और फेस बुक के जमाने में कोई इतना भी वोकल नहीं हो सकता कि कम से कम इस तरह के रिलेशन से आज़ाद होने की कोशिश करे?
और जाये आज़ाद होकर अपने घर...
हाँ, वही घर जहाँ वह रहा करती थी...
माँ अक्सर बचपन की जिसकी बातें किया करती थी ...बचपन में ठुनक ठुनक कर चलने वाली बातें..
लेकिन अब सब बदल गया है....
अब प्यार भी टुकड़े टुकड़े होकर यहाँ वहाँ बिखर गया...
अब न तो प्यार रहा और न ही श्रद्धा रही...