लफ़्ज़ भी झूठ बोलते हैं
लफ़्ज़ भी झूठ बोलते हैं
'तुम्हारी आँखे खूबसूरत है........'
वह अक्सर यही कहता रहता था। मैं झट उन लफ़्ज़ों का झूठ पकड़ लिया करती थी। मेरी खूबसूरती शायद उसे नज़र ही नही आती थी....
बात बेबात मुझे वह हँसते हुए कहता रहता था।'तुम मुझे बहुत क्यूट लगती हो।'हक़ीक़तन उसको मुझे उस वक़्त बेवकूफ़ कहना होता था.....
फिर से लफ़्ज़ झूठ बोलने लगते थे....….
हर बार वह कहा करता था, 'मेरे बग़ैर तुम कही भी आ जा सकती हो।'
लेकिन जैसे ही मैं तैयार होने लगती थी वह कहता था,'मैं तुम्हे छोड़ दूँगा।' और फिर साथ चलने की पेशकश करना। क्या वे आज़ादी की बात करने वाले लफ़्ज़ झूठ नही कहते थे?
अक्सर बातचीत में वह कहता रहता था।'तुम कह कर देखो, तुम्हारे लिए मैं चाँद भी ला सकता हूँ।'
हक़ीक़त में मेरे मनपसंद सीरियल देखते हुए वह अक्सर र
िमोट हाथ मे ले कर न्यूज़ चैनल लगा कर देखने लगता था।
चाँद लाकर देने वाले वे लफ़्ज़ फिर झूठ कहते थे।
कभी कभी मेरे हाथ पकड़कर वह कहा करता था, 'तुम मेरे ख़्वाबों की मलिका हो।' लेकिन मेहमानों के सामने जब तब उसका मुझे डॉमिनेट करते रहना...
मेहमानों के सामने ही लफ़्ज़ों का झूठ मैं फिर फिर पकड़ लेती थी।
'तुम अच्छा लिखती हो.........'वह मुझे अक्सर कहा करता था।लेकिन जब कभी दाल या सब्जी में जरा सा भी नमक ज्यादा होने पर उसका वह भवें तानकर कहना, 'तुम्हारा ध्यान सिर्फ कागज़ काले करने में रहता है, घर के कामों में नही.......'
क्या वे लफ़्ज़ झूठ नही कहते थे?
हक़ीक़तन हम ही भरम पाले हुए रहते है।लफ़्ज़ों की तो आदत होती है झूठ बोलने की.....
वे तो झूठ कहते रहते हैं!