Bhavna Thaker

Horror

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Bhavna Thaker

Horror

लाल दुपट्टा

लाल दुपट्टा

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आज वेदांत का दिल अजीब सी कश्मकश में घिरा था। एक 27 साल के लड़के का सपना पूरे होने जा रहा था। एसा लग रहा था मानों शिव जी दोनों हाथों से उसके उपर अपनी कृपा बरसा रहे थे। जैसे एक पहाड़ी लड़का सहरा के रेत के समुन्दर में पहली बार नहा रहा हो, या कोई छुई-मुई ललना जवानी की दहलीज़ के सोलहवे साल में कदम रखने जा रही हो। बस एसे ही वेदांत मनचाहे खयालों को लज्जत ले लेकर दोहरा रहा था। खुश होते सोच रहा था ओह माय गोड मेरी पाँच साल की मेहनत को आज अपनी मंजिल अपना मुकाम मिल रहा है। जी हाँ वेदांत बहल पागलपन की हद तक पेंटिंग के पीछे पागल था। अपनी कल्पनाओं की तस्वीरों में इंद्रधनुष के सारे रंगों को भरकर न्याय देता था। एक से बढ़कर एक तस्वीरों का कलेक्शन देखकर वेदांत के पापा के दोस्त श्री संदीप शुक्ला जी ने अपने शहर नैनीताल में वेदांत की पेंटिंग का एक्ज़िबिशन रखने के लिए वेदांत को आमंत्रित किया। और बस एक हफ़्ते बाद वेदांत का सपना पूरा होने वाला था। पर वेदांत की मम्मी की शर्त थी जैसे ही पहला एक्ज़िबिशन पक्का होगा उनकी बचपन की सहेली सीमा आंटी की बेटी राधिका से वेदांत की सगाई की बात चलाऊँगी। वेदांत ने राधिका को कुछ साल पहले देखा था सीधी सी क्यूट सी थी तो हाँ बोल दिया और निकल पड़ा अपने सपने को साकार करने नैनीताल। वेदांत को दो तीन दिनों से अजीब अनुभव हो रहा था। सोने के लिए आँखें बंद करते हो एक लाल दुपट्टा अपनी पलकों को छूता हुआ महसूस हो रहा था पर अपनी मंज़िल को पाने की खुशी में वो बात नज़र अंदाज़ हो गई।

एक्ज़िबिशन में दो दिन बाकी थे शुक्ला अंकल ने सारी तैयारियां कर रखी थी ऑडिटोरियम से लेकर पब्लिसीटी तक सबकुछ। ओर शहर और आसपास के इलाके के नामी लोगों को भी इन्वाइट कर दिया था। तो वेदांत के हिस्से करने के लिए ज़्यादा कुछ काम नहीं था। अंकल ने बोल दिया यु एन्जॉय यंग मैन सब रेडी है। आज तो सफ़र से थका था तो वेदांत कंबल तान कर सो गया।

पर दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर नैनीताल की खुशनुमा रंगत को साँसों में भरने और वादियों की सुंदरता को कैद करने अपने कैमरे को गले में ड़ालकर निकल पड़ा शुक्ला अंकल की स्विफ्ट बिना संकोच मांग ली ओर पूरा दिन यायावर सा घूमता रहा। शाम होते ही सनसेट प्वाइंट पर पहूँच गया। आहा! क्या नज़ारा था दुधिया बादलों से छनकर आती डूबते सूरज की केसरी रश्मियाँ कायनात को थोड़ा कत्थई तो थोड़ा जामुनी रंग में ढ़ाल रही थी। वेदांत कैसे रोक सकता था खुद को इस नज़ारे को अपने कैमरे के दिल में कैद करने से। फोकस किया ही था की छन-छन सी रूनझुन सी नूपूर की आवाज़ ने वेदांत के कानों में असंख्य तारों को झंकृत कर दिया। और कैमरे में एक अद्भुत रुप सुंदरी, दूध नहाई मासूम लड़की लाल दुपट्टा लहराती मानों आसमान से उतरी हो एक ही क्लिक में कैद हो गई। और वेदांत के पलक झपकते ही दौड़ती, नाचती कूदती कहाँ अद्रश्य हो गई पता ही नहीं चला।

वेदांत बांवरा सा इधर-उधर ढूँढने लगा पर वो परी वादियों में कहाँ गुम हो गई पता ही नहीं चला। वो उदास होते घर वापस लौट गया। पर पता नहीं क्या गजब का हुश्न था वेदांत के दिलो दिमाग पर ख़ुमारी सी छा गई थी। वो लड़की पीले सलवार कमीज पर लाल बाँधनी का वही दुपट्टा जो आँखें बंद करते ही दिखाई देता था, कानों में मोती के बूँदें, पैरों में पतली सी पाजेब ये तो उसके उपरी आवरण थे जो गजब ढ़ा रहे थे। उस मासूम कली को खूबसूरती का वर्णन शायद कालीदास की मेघदूत में भी ना मिले। वेदांत की तिश्नगी बढ़ती गई रात के चार बजे कैमरे में कैद हुए उस चाँद को देखने कैमरा लेकर बैठ गया झूम कर करके आगे पीछे देखता रहा पर उस हसीना की तस्वीर मिली ही नहीं। वेदांत बाँवरा हो गया एसा कैसे हो सकता है जब फोटो खिंची तब तो दिख रही थी वेदांत की समझ में कुछ नहीं आया वो मन ही मन उसे चाहता रहा पर दिल उदास हो रहा था। क्या फ़ायदा क्यूँ मोह जाग रहा था उस अनदेखी अन्जान के प्रति। कल एक्ज़िबिशन है ओर परसों तो वापस लखनऊ के लिए निकलना है कहाँ ढूँढ पाऊँगा उसे ना अता-पता मालूम ना ठौर ठिकाना।

ओये वेदांत सो जा बच्चू ख़ाँमख़ाँ खुली आँखों से सपने मत देख कल सुबह नौ बजे ऑडिटोरियम पहुँचना है और कब वेदांत की आँख लग गई पता ही नहीं चला। 

सुबह संदीप अंकल के साथ एक्ज़िबिशन स्थल पर पहुँच गया वेदांत की कल्पना से परे लोगों की भीड़ देखकर वो खुश हो गया। लोगों के मुँह से उसकी कला को देख कर तारिफ़ो के फूल झर रहे थे। और धड़ाधड़ कुछ पेंटिंग बिक भी गई। और अच्छी खासी लाखों रूपये की कमाई हो गई अपनी ज़िंदगी की पहली कमाई पाकर वेदांत बेहद खुश था। पर उस खुशियों के बीच एक चेहरा बार-बार उसकी तसव्वुर में झलक दिखला कर उदास कर जाता था।

एक चेहरे की कशिश ने इतना बेकरार तो कभी नहीं किया था। वो रुप नगर की शहज़ादी कौन होगी कहाँ ढूँढूं। कल एक्ज़ीबिशन खत्म हो जाएगा परसो वापस लखनऊ के लिए निकल जाऊँगा।

लखनऊ में भी तो बहुत से काम अटके थे जाना जरूरी था। दिल ने एक अकुलाहट के साथ वेदांत के निराश खयालों को टपार कर दिमाग को हिदायत दी। तन-मन में आग लगाने वाली ललना को ढूँढने से ज़्यादा जरूरी और कोई काम नहीं वरना ये कसक ज़िंदगी भर जीने ना देंगी।

खयालों में ही शाम हो गई कल का दिन भी एक्ज़ीबिशन में ही कटेगा परसों एक दिन रुक जाऊँगा एसे कोशिश किए बिना हार मानना कमज़ोरी होगी। एक ठोस निर्णय के साथ वेदांत शाम को थोड़ा टहलने निकल पड़ा नैनीताल का नजारा बड़ा प्यारा और खुशनुमा था तो मन को सुकून मिल रहा था। तरह-तरह के खयालों से घिरा चला जा रहा था की दौड़ते हुए आकर पीछे से किसीने वेदांत को कस कर पकड़ लिया वो थोड़ा हड़बड़ा गया और पीछे मूड़ कर देखा तो वेदांत की आँखों की पुतलियाँ बाहर निकलते-निकलते रह गई। जिसके खयालों ने दो दिन से दिमाग में खलबली मचा रखी थी वो साक्षात उससे लिपटी हुई थी। वेदांत कुछ पूछे या बोले उससे पहले घबराते हुए वो बोली प्लीज़ मुझे बचा लीजिए मेरे पीछे दो गुंडे पड़े है।

वेदांत ने आहिस्ता से उस घबराई हुई हुश्न की मल्लिका को खुद से अलग किया। हथेलियाँ पसीज गई तन-मन में बिजली कौंध गई और शब्द हलक में ही अटक गए। इतनी सुंदर लड़की कभी देखी नहीं थी बस गीतों और गज़लों में वर्णित रुप सुना और पढ़ा था। आज साक्षात्कार हो गया। गुंडे तो वेदांत को देखकर फ़रार हो गए पर वेदांत ने मन ही मन गुंडों का आभार प्रकट किया।

वो नाजुक परी नखशिख हूर लग रही थी नैंन झुकाए चुपचाप खड़ी थी। सर झुकाए ही शुक्रिया बोलती जाने लगी वेदांत हक्का-बक्का रह गया। आज कैसे जाने देता तो सुनों आपका नाम तो बताईये पूछकर रोक लिया। सिर्फ़ नित्या बोलकर चल दी। पर वेदांत को उससे ढ़ेरों बातें करनी थी असंख्य सवाल करने थे तो फिर रोकने के लिए पूछा कहाँ पर रहती हो अता-पता तो बताओ।

बालों के बीच में से चिठ्ठी निकाल कर उसने वेदांत के हाथ में थमा दी और जाते जाते कुछ एसी नज़रों से देख रही थी मानों आँखों से ही वेदांत को निगल जाएगी। पर वेदांत उस सूर परी के रुप का मोहाँध ठहरा कहाँ वो कशिश महसूस होती। पर ज़िंदगी जिसे समझ लिया था उससे बिछड़ जाने के खयाल से वेदांत काँप उठा। कुछ नहीं सुझा तो सरेआम लोगों से भरी सड़क पर उस सुंदरी के सामने घुटनों के बल बैठ गया और हाथ जोड़कर आँखें मूँदकर प्रपोज़ करते बोला सुनों जानता हूँ हम एक दूसरे से अंजान है पर क्या मुझसे शादी करोगी। 

चंद पलों तक जवाब नहीं मिला तो आँखें खोलकर देखा भीड़ के बीच मैं पागलों की तरह अकेला बैठा था सब लोग वेदांत को अजीब नज़रों से देख रहे थे। पल भर में वो परी कहाँ गायब हो गई पता ही नहीं चला शायद शर्मा कर भाग गई होगी। वेदांत ने वो चिट्ठी खोली कुछ पता लिखा था वो संभालकर जेब में रख दी। सोचा कल इस पते पर जाऊँगा। और घर आ गया।

रात के करीब साढ़े तीन बजे होंगे वेदांत नींद में था या जगा हुआ, सपना था या हकिकत समझ नहीं आया। उसी हूर परी का लाल दुपट्टा वेदांत की पलकों के उपर लहरा रहा था एक मघमघती खुशबू आस-पास सराबोर सी महकने लगी। वेदांत के कानों में कोई गुनगुनाया वेदांत चलो ना मेरी दुनिया में। वेदांत आहिस्ता से उठा उस दुपट्टे को थामने, अपनी आगोश में भरने सीढ़ियों से होते छत पर आ गया। टेरेस की दीवार पर चढ़कर आसमान की और उड़ते दुपट्टे को पकड़ने चढ़ ही रहा था की वेदांत का पाँव पानी की पाइप लाइन से ज़ोर से टकराया वो दर्द के मारे कराह उठा। वेदांत को लगा सपना होगा पर ना... वो छत पर बैठा ढूँढ रहा था दुपट्टे वाली परी को। कुछ अजीब लगा वेदांत को नैनीताल की नर्म ठंड में भी पसीने से तर बतर हो चला था। ये कैसी दीवानगी थी उस अजनबी के प्रति समझ नहीं पा रहा था। एक कशिश खिंच रही थी वेदांत को एक जुनून जग रहा था उसे पाने का शायद ये उसका असर था समझ कर नीचे आकर सो गया।

दूसरे दिन सुबह ही तैयार होकर वेदांत उस पते पर अपने प्यार को ढूँढने निकल पड़ा। आधे घंटे कार चलाई होगी की उसके दिए हुए पते पर पहुँच गया। पुराने खंडहर सा घर था मानों सालों से किसी इंसानी बस्ती को तरसता खड़ा हो। कुछ अजीब भाव उठ रहे थे मन में और थोड़ी घबराहट भी। एसी सुंदरता की मूरत एसे इस घर में रहती होंगी। दिल ज़ोरों से धड़कने लगा मन उस रुप सुंदरी की झलक पाने को बेताब सा मचलने लगा। वेदांत ने दरवाज़े पर हौले से दस्तक दी दस्तक के साथ ही एक चमकादड़ कहीं से आकर एक लाल दुपट्टा मुँह में दबाए वेदांत के सर के उपर से गुज़र गया। वेदांत को अजीब लगा पर उस अन्जान लड़की के मोह ने एसे ज़कड़ा था की असामान्य गतिविधियों के बारे में और कुछ सोचने की स्थिति में नहीं था। फिर से दस्तक दी पर कोई जवाब नहीं मिला। दो चार बार दरवाज़ा खटखटाने पर किचूड़-किचूड़ की आवाज़ के साथ खखड़धज्ज दरवाज़ा धड़ाम से खुला पर खोलने वाला कोई दिखाई नहीं दिया। वेदांत ने अंदर जाने के लिए कदम उठाया ही था की किसीने ज़ोर से धक्का देकर उसे बाहर की और गिरा दिया। वो कुछ समझे उसके पहले एक बुज़ुर्ग ने आवाज़ लगाई भागो यहाँ से इससे पहले की वो लाल दुपट्टा तुम्हारा गला घोंट दे। वेदांत घबरा कर उल्टे पाँव भागा पर एसा लग रहा था मानों एक साया उसे पकड़ने उसके पीछे आ रहा हो। 

उस बुज़ुर्ग ने कुछ दूर जाकर वेदांत का हाथ पकड़ लिया और बोला रुको अब कोई खतरा नहीं तुम मेरे मंत्रों के दायरे में आ गये हो।

वेदांत असमंजस में घबराया हुआ था उस बुज़ुर्ग ने पानी पिलाया तो अच्छा लगा।थोड़ा स्वस्थ होकर वेदांत ने पूछा अंकल ये सब क्या है आपने मुझे उस घर में जाने से क्यूँ रोका? उस बुज़ुर्ग ने कहा तुम जिस लड़की की तलाश में यहाँ पर आए हो उसकी मृत्यु चार साल पहले हो चुकी है। बहुत प्यारी बच्ची थी दो गुंडों ने उसका बलात्कार करके उसके ही दुपट्टे से गला घोंटकर मार दिया था। तब से उसकी आत्मा नैनीताल में यहाँ-वहाँ भटक रही है और नौजवानों को अपनी खूबसूरती के जाल में फंसाकर मार देती है। मैंने तुम्हारी गाड़ी देखी तभी समझ गया की नित्या की आत्मा ने नया मुर्गा फंसा लिया है। इसलिए मैंने तुम्हें उस घर में जाने से रोका।

मैं यहाँ रोज़ माता रानी का मंत्रोच्चार करके हवन करता हूँ तो इस दायरे में वो नहीं आ सकती। बेटा इस आत्मा को असाधारण मत समझो अब तुम जल्दी से निकलो और घर चले जाओ।

वेदांत का मन अब भी मानने को तैयार नहीं था की वो लड़की नहीं बल्कि कोई आत्मा थी। वेदांत खयालों में डरावने दृश्य देखता गाड़ी चलाते कुछ आगे तक गया होगा की एक डरावनी बुढ़ी औरत रास्ते के बीच खड़ी होकर हाथ हिलाकर लिफ्ट मांग रही थी। वेदांत ने गाड़ी रोकी और पूछा माँ जी कहाँ जाना है आपको चलिए छोड़ देता हूँ। बुढ़ी औरत गाड़ी में बैठ गई...पर आज तक कोई नहीं जानता वेदांत ने उस बुढ़ी औरत को कहीं छोड़ा या उस बुढ़ी औरत ने वेदांत को। नैनीताल की प्रेतावाधित पहाड़ीयों पर अब एक रुप सुंदरी और एक नवयुवक का साम्राज्य पसरा हुआ है।


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