sonal johari

Horror Romance

2.7  

sonal johari

Horror Romance

क्या अनामिका वापस आएगी ??

क्या अनामिका वापस आएगी ??

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"दरवाजा खोल.. अंकित "

" मैं कहता हूँ ..खोल दरवाजा"

बहुत देर से दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे घनश्याम लेकिन अंकित दरवाजा नहीं खोल रहा था। घनश्याम मकान मालिक थे और अंकित उनके यहां किरायेदार है और 6 महीने से किराया नहीं दे पाया था इसीलिए आज घनश्याम बहुत नाराज थे और उनकी ये नाराजगी समझ कर ही अंकित डर की वजह से गेट नहीं खोल रहा था। 

"ठीक है मत खोल ..मैं भी देखता हूँ कब तक गेट नहीं खोलता तू यही बैठा रहूँगा दरवाजे के बाहर" और घनश्याम बरामदे में पड़े एक स्टूल पर बैठ गए। 

"अरे ..कभी मेरी भी तो सुना करो ..इतनी गुस्सा अच्छी नहीं.. हालात तो समझो उसकी.. अच्छा मैं ही ऊपर आती हूँ। "

घनश्याम की पत्नी अंकित से खास स्नेह रखती थीं खुद का कोई बच्चा ना होने के कारण उसे खुद के बेटे जैसा मानती थीं। 

"खबरदार, जो ऊपर आयीं ..अभी अभी तो तुम्हारा पैर ठीक ही हुआ है..वहीं नीचे रहो..तुम्हारी शह से ही, इसके कान पर जूं नहीं रेंगती मेरे कुछ भी कहने की। "

घनश्याम ने डांटते हुए रोक दिया सरोज को, शरीर से गोल मटोल सरोज ने अपना पैर सीढ़ी पर रखा ही था कि पीछे हटा लिया। 

हाल ही में पैर में फ्रेक्चर होने की वजह से उन्हें दो महीने बेड रेस्ट पर रहना पड़ा और अभी चलना फिरना शुरू ही किया था। 

"ठीक है नहीं आती ,पर तुम तो आओ नीचे" सरोज ने मनुहार करते हुए कहा। 

"तुमने सुना नहीं शायद ..जब तक ये दरवाजा नहीं खोलेगा ..मुझे मेरे किराये के पैसे नहीं देगा ..नहीं आऊंगा। "

खीजते हुए घनश्याम को देख सरोज फुसफुसा कर बोलीं। 

"शर्म नहीं आती तुम्हें, एक तो उसकी माँ नहीं रहीं और ऊपर से नौकरी चली गयी..और तुम हो...कि पैसे चाहिए। "

"पता है भागवान ...लेकिन उनको गए 5 महीने बीत गए हैं..तुम्हें तो कोई भी पागल बना दे..जरा प्यार से ये लड़का बात क्या कर लेता है तुमसे, तुम तो बेकार में ही भावुक हुई जाती हो ..ये नहीं समझ आता कि ये बेवकूफ़ समझता है तुम्हें। "

झुंझलाए से घनश्याम गले में पड़े गमछे से पसीना पोछते हुए बोले...

"हे राम बड़ी गर्मी है यहाँ".. फिर अंकित के कमरे के बाहर जाकर बोले

"आज की रात और रह ले..कल तुझे बाहर न निकाला तो कहना" बोलते हुए घनश्याम जीने से नीचे उतर आए..पचपन छप्पन साल उम्र रही होगी घनश्याम की..एक छोटी सी कपड़े की दुकान थी उनकी और स्वभाव से चिड़चिड़े और गुस्सैल थे वही उनकी पत्नी सरोज गेंहुए रंग की गोल मटोल सी शांत और भावुक महिला थीं। 

अगले ही दिन घनश्याम एक तगड़े से आदमी को साथ ले आये जिसे देखकर सरोज ने प्रश्नवाचक निगाहों से घनश्याम की ओर देखा लेकिन उन्होंने अनदेखा कर दिया...और सीधे सीढ़ियों से ऊपर चले गए। 

"देख ये रहा कमरा... तोड़ इसे और जो भी सामान है निकाल कर फेंक दे"

उसी तगड़े से आदमी को आर्डर सुना वो वहीं स्टूल पर बैठ गए...सरोज भी सीढ़ियाँ चढ़ आ गयीं थीं..

"सुनो जी..ये ठीक नहीं ..वो अभी है भी नहीं और किसी के घर को उसकी अनुपस्थिति में खोलना...नहीं ठीक नहीं।" 

सरोज हर सम्भव कोशिश कर रही थीं लेकिन घनश्याम अपनी जिद पर थे

"किसी का घर नहीं है ये सिवाय मेरे ..समझीं तुम..और तुम आयीं क्यों ऊपर ?..पूरे पांच हज़ार रुपये खर्च हुए हैं तुम्हारे पैर पर अब तक, लेकिन तुम्हें कोई फर्क नहीं। "

इतने में ही दरवाजा टूट गया..और अंकित का सामान फेंका जाने लगा अंकित ने सड़क से आते हुए जब ये देखा तो दौड़ता हुआ आया लेकिन सब नज़ारा देख ठिठक कर रह गया...कुछ नहीं बोला सामान के नाम पर कुछ खास था भी नहीं.. कुछ बर्तन, एक छोटा सा सिलिंडर, कुछ डिब्बे ..अंकित अपने कमरे में गया और बचे हुए कपड़े समेट एक चादर में बाँध पोटली बना ली और सरोज के पैर छूने झुका तो बिना बोले ही उन्होंने अपनी विवशता जताई..लाल बड़ी सी बिंदी के थोड़ा नीचे दोनों तरफ छोटी सी दो आंखों में उसने अपने लिए ममता देखी।  

"आप ने हमेशा मेरी माँ ना होते हुए भी हमेशा मेरी माँ का फ़र्ज़ निभाया.. लेकिन मैं आपके लिए कुछ ना कर सका.. आपसे मिलने आता रहूँगा और फ़ोन भी करूँगा। "और ये बोल अंकित तेज़ कदमों से बाहर निकल गया..

सरोज ने घनश्याम की तरफ देख कर कहा "आज के बाद मुझसे बात मत करना ..हमेशा पैसा पैसा करते रहते हो ..हुम्" और नीचे उतर गयीं...


घर के पास ही सारा सामान सड़क के किनारे रख अंकित ये सोच अफसोस में था कि अगर थोड़ी मनुहार कर ली होती तो घर के अंदर होता इस वक़्त, ज्यादा पढ़ा लिखा इंसान कोई छोटा काम भी नहीं कर सकता और आत्मसम्मान भी नहीं बेच सकता और उसे झुकना आता भी नहीं.. क्या जरूरत थी इतना पढ़ने की पोस्ट ग्रेजुएट हिस्ट्री में...अपने समय का कॉलेज टॉपर और हालात ये कि दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं..

यूं तो एक प्राइवेट इंटर कॉलेज में जॉब चल रही थी उसकी... कि माँ का देहांत हो गया...घर गया तो पूरे महीने गम और अवसाद से बाहर ही ना आ पाया..और जब वापस हिमाचल आया तो, बिना सूचना इतनी लंबी छुट्टी के कारण उसे जॉब से बाहर निकाल दिया गया। 

और अब यहाँ बोर्ड के एग्जाम के बाद कॉलेज बन्द हैं...

"प्लीज बात कीजिये ना..आप..मुझे लाना है.. गोल्ड मेडल हिस्ट्री में "

ये आवाज उसके कानों में पड़ी तो नजर उधर ही घूम गयी ..जरा सी दूरी पर एक लड़की फ़ोन पर बात कर रही थी ..हिस्ट्री का नाम सुना तो उसके ठीक सामने चला गया..थोड़ी सी हील वाली सेंडिल और नीलेंथ स्कर्ट के साथ वाइट टॉप ..कमर से थोड़े ऊपर तक खुले बाल और बड़ा सा मोबाइल हाथ में लिए वो किसी से मनुहार कर रही थी...यूँ खुद की ओर एक लड़के को घूरते देखा तो हाथ के इशारे से पूछा "क्या है "

और अंकित "ना" में सिर हिलाते हुए वापस हो लिया..

"एक्सक्यूज़ मी..यस यू ..मिस्टर ..व्हाट्स रॉंग विद यू"?

"अ ..अ ..नथिंग" अंकित ने अपनी झेंप छुपाते हुए कहा

"वरन्ट यू स्टेरिंग एट मी"?

"आइ एम सॉरी..इट सीमड लाइक दैट, बट.. एक्चुअली "हिस्ट्री बर्ड "ड्रेगड मी देयर इन फ्रंट ऑफ यू"

"सो आर यू टू ,लुकिंग फ़ॉर टीचर"?

"नो आई एम ..अ .अ टीचर इटसेल्फ"

"सो?"

कोई प्रतिउत्तर नहीं मिला उसे अंकित से तो उसने बोलना जारी रखा..

"ओके ग्रेट..सो क्या क्वालिफिकेशन हैं आपकी"?

"पोस्ट ग्रेजुएट इन हिस्ट्री एंड हेविंग टू इयर्स ऑफ टीचिंग एक्सपीरियंस "

"हम्म"

"मुझे गोल्ड मैडल चाहिए हिस्ट्री में..आप को लगता है ..इस लेवल का पढ़ा पायेंगे आप"

"मैं अपने कॉलेज का टॉपर रहा हूँ ..आप चाहे तो इसी वक्त मुझसे कोई भी क्वेश्चन पूछ सकती हैं" थोड़े से गर्व के साथ जब अंकित ने कहा तो ..वो बस मुस्कुरा भर दी..

"ठीक है कब से स्टार्ट करेंगे"

"जब से आप कहें ...मेरा क्या मैं तो अभी से स्टार्ट कर सकता हूँ"

अंकित ने बड़े जोश से कहा

"ठीक है, साथ ही चलिए फिर, घर दिखा दूँ?

"बड़ा खुश होते हुए वो साथ चलने को तैयार हो गया लेकिन जैसे ही अपने सामान का ख्याल आया ..ठिठक गया..अचानक ऐसे भाव अंकित के चेहरे पर आये देख उसने पूछा

"क्या हुआ, एनी प्रॉब्लम?

"न...नहीं..नहीं... कोई प्रॉब्लम नहीं आप मुझे एड्रेस दीजिये, मैं कल खुद आ जाऊँगा"

"मैं घर ही जा रही हूँ, आप को ख़ुद एड्रेस ढूंढने में प्रॉब्लम होगी..क्योंकि कोई लैंडमार्क नहीं है मेरे घर के पास..चलिए ना प्लीज़

"अ..वो" ..कुछ ना बोलकर वो कभी अपने सामान और कभी उसे देखता फिर कुछ सोचकर बोला "बस एक मिनट"

और जाकर मकान मालिक की डोर बेल बजा दी और मन ही मन कहा 'हे भगवान आंटी जी ही गेट खोलें'..हाँ आंटी ने ही गेट खोला

"आंटी जी ...मुझे जॉब मिल गयी प्लीज़ आप अंकल जी को बोलिये ना ..मुझे सामान रख लेने दे"..फिर कुछ सोचने के बाद "अच्छा में उनसे खुद बात कर लूँगा आप बस्स थोड़ी देर मेरा सामान देख लेंगी ना"

"कितना रेंट है ..आप के रूम का" उसकी आवाज सुन अंकित ने देखा तो वो वहीं खड़ी थी और शायद सब सुन चुकी थी

"देखिए आप" अंकित अचकचा कर रह गया

"मुझे बताइये ना, एडवांस तो देना ही है, तो में उस अनुसार आपको एडवांस दे दूंगी"

"तीन हज़ार"..एक महीने का किराया...ना जाने कैसे बता गया अंकित ..जबकि ये सब उसके उसूलों के खिलाफ है कि वो अपनी तकलीफें किसी और को दिखाए.

"ओ के ,ये लीजिये और जल्दी आइये मैं वहाँ.. उस पेड़ के नीचे आपका वेट कर रही हूँ" उसने चार हज़ार रुपये अंकित को थमाते हुए कहा

अंकित ने तीन हज़ार रुपये आंटी के हाथ पर रख दिये और बिना बोले ही वहां से निकल आया

अंकित अब उसके साथ चल रहा था..कभी कभी हवा के कारण उसके बाल अंकित को छू जाते तो उसे अच्छा लगता, दोनों काफी देर तक चुप रहे तो

"कौन सी क्लास की स्टूडेंट हैं आप? अंकित ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा

"बी.ए. ऑनर्स (हिस्ट्री) लास्ट ईयर"

"ओह, बहुत बढ़िया"

"आपने मुझे अपना नाम नहीं बताया"?

"आपने पूछा ही नहीं.. उसने हँसकर कहा, अनामिका..अनामिका नाम है मेरा"

"नाइस नेम, माइन इज अंकित"

ये लीजिये घर आ गया..

अंकित ने मन ही मन कहा ..इतनी जल्दी...

एक बेहतरीन और छोटा

..लेकिन ,खूबसूरत बंगला ..जैसे ही उन दोनों ने गेट पर कदम रखा ,गेट खुद व खुद खुल गया

और अंकित की आंखें चौंधिया गयीं........


क्रमशः.....



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