sonal johari

Romance

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sonal johari

Romance

पार्ट:7-मालवन में 'वो'

पार्ट:7-मालवन में 'वो'

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आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि अर्जुन मंजरी को याद करता है ..और एक लड़की को गिरने से बचाता है, जिसमे उसे मंजरी की शक़्ल दिखती है..तब एक लड़का उसे आकर बताता है कि वो लड़की उसकी गर्लफ्रैंड थी ...अर्जुन वहाँ से तेज़ी से भाग जाता है और उसके बाद वो लडका भी गायब हो जाता है ...अब आगे..

अर्जुन ने कार स्टार्ट की और दौड़ा दी राहुल के ऑफिस की ओर, थोड़ी देर में ही रावत का फोन आ गया, अर्जुन के फोन उठाते ही वो बोला " अर्जुन सर अचानक कहाँ चले गए आप..सब ठीक तो है " उसने चिंतित होकर पूछा

"हम्म ..सुनो रावत तुम नांगिया के साथ मीटिंग कर लो..बहुत जरूरी काम है मुझे जाना पड़ेगा" अर्जुन ने सपाट अंदाज़ में कहा

"अच्छा... कोई बात नहीं..मैं पूरी कोशिश करूँगा कि नांगिया हमारी मदद को मान जाये"

"मुझे पूरा भरोसा है तुम पर रावत.. तुम कर लोगे " इतना बोल अर्जुन ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया ..फिर जब उसकी नज़र थोड़ी दूरी पर सड़क किनारे एक छोटी सी फूलों की दुकान पर गयी तो मंजरी की बात याद आ गयी

अर्जुन, कुछ ख़रीदना हो तो सड़क के किनारे खड़े इन लोगों को वरीयता देना चाहिए,मुस्कुराते हुए उसने दुकान के पास जाकर गाड़ी रोक दी

"सुनो क्या नाम है तुम्हारा एक बढ़िया सा बुके बना कर दो" उसने दुकान वाले लड़के से कहा

"सर,बबलू है मेरा नाम...कौन से फूल लगाऊँ"? फूलों की दुकान पर खड़े लड़के ने पूछा

बुदबुदाते हुए कौन से फूल..अ...हम्म.. फिर सोचते हुए मंजरी को तो नीले और सफेद फूलों का कॉम्बिनेशन ज्यादा पसंद है..मैं खुद चुनूंगा फूल उसके लिये

कार से निकलकर फूलों को देखते हुए उँगली से इशारा कर वो फूल बताने लगा "देखो बबलू.. वो नीले फूल लगाओ..थोडे और ...और वो सफेद..अच्छा.. और वो पन्द्रह बीस गुलाब के फूल भी लगाओ... एक बड़ा और खूबसूरत सा बुके देखकर उसके चेहरे पर खुशी आ गयी..".बहुत बार बुके लिया..लेकिन खुद फूल चुनकर पहली बार बनवाया है ..सच मे बड़ी खुशी हो रही है..तुम सच कह रही थी मंजरी..तुम हमेशा सच कहती हो.." वो बुदबुदाते हुए खुद से बोला फिर बबलू को रुपये दिए और बुके को कार में बगल वाली सीट पर रखकर गाना गुनगुनाते हुए कार चलाने लगा...जल्द ही वो राहुल के ऑफिस के पास था...उसने वहीं इंतज़ार करना ठीक समझा...थोड़ी देर में उसे मंजरी भी आते हुए दिख गयी ...अपने चेहरे के सामने रखते हुए, उसने बुके को पकड़ा और मंजरी के आगे जाकर खड़ा हो गया...मंजरी को एकदम से कुछ बोलते और समझते ना बना

"माफ कर पाओगी मंजरी" वो अपना मुंह बुके की ओट में छिपाए ही बोला .मंजरी आवाज पहचानते ही लगभग चीख ही पड़ी खुशी से "अ...र्जुन"... अर्जुन ने बुके उसे थमाते हुए कहा "खुद ही फूल चुने आज मैंने..वो भी सड़क किनारे वाली दुकान से, जैसा कि तुम कहती हो ...बुके कैसा लगा"?

"ओह अर्जुन ..ये बहुत सुंदर है .." वो पनीली आँखो से बोली तो अर्जुन ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और बोला..."मुझे माफ़ कर दो मंजरी"

"माफ तो तब करुँ अर्जुन, जब नाराज होऊं..तुम लौट आए

...और क्या चाहिए मुझे" मंजरी भावुक होकर बोली

"सच " उसने खुश होकर पूछा

"हाँ..एकदम सच" मंजरी उसके दोनो हाथ पकड़ कर बोली

"अच्छा जल्दी बैठो मंजरी तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है" अर्जुन उसे कार की ओर लगभग खींचते हुए बोला

"कहाँ चलना है बताओ ना" मंजरी कार में बैठते हुए बोली

लेकिन अर्जुन मुस्कुराते हुए कार चलाने लगा..उसके मन मे खुद से कह रहा था .."राहुल ने तुम्हें कार दी है ना मंजरी ..उससे भी अच्छी कार दूँगा..तुम्हें बापस लाऊँगा मंजरी" .....और अपनी कार को , एक कार शोरूम के आगे लाकर रोक दिया..मंजरी का हाथ पकड़े वो उसे अंदर ले गया और बोला

"मंजरी, कार पसंद करो अपने लिए.." ट्राउजर की दोनों जेबो में हाथ डाले अर्जुन बड़े सधे अंदाज़ में बोला..

"अर्जुन.."बस्स इतना ही बोल मंजरी अर्जुन को घूरने लगी

"देखो मंजरी, (कारों की ओर इशारा करके) जो कार पसंद हो बस्स उस पर हाथ रख दो"

"लेकिन अर्जुन, मुझे कार नहीं चाहिए..मुझे बस्स अपना अर्जुन चाहिए.."

"अर्जुन तो तुम्हारा है ही, तुम कार सेलेक्ट करो ना मंजरी"चिढ़ते हुए वो बोला

"अर्जुन..अभी तुम्हारा बिजनेस थोड़ा स्लो है..फिर कार की जरूरत भी नहीं है.." मंजरी उसे समझाते हुए बोली

"(गुस्से में)किसने कहा ये तुमसे..जरूर उस राहुल ने कहा होगा..है ना.."

"नहीं अर्जुन ..बल्कि मैं खुद...

"(चीखकर) चुप रहो..ये क्यों नहीं कहती कि ..बस्स तुम्हारी आँखों के सामने उस कमीने की दी हुई कार की चमक ज्यादा है ..या उसका रुतवा"

"अर्जुन ..क्या कहे जा रहे हो..होश में तो हो" जो अतिरिक्त गंभीर चेहरे के साथ मंजरी ने कहा तो एकदम अर्जुन को अपनी गलती का एहसास हो आया..वो सामान्य हो गया ..और ये सोचते हुए कि उसे मंजरी को नाराज नहीं करना, बोला

"अच्छा अगर नहीं चाहती तो मत लो..आओ घर छोड़ दूँ.." उसने जाकर कार स्टार्ट कर दी..और मंजरी चुपचाप बगल वाली सीट पर बैठ गयी..

तन्वी जो शोरूम के बाहर मौजूद थी उसने जब मंजरी को अर्जुन के साथ देखा तो हैरत से देखती रही फिर कान पर फोन लगा आगे बढ़ गयी..चलती हुई कार से मंजरी खिड़की से बाहर की ओर देख रही थी..उसे देवांश खड़ा दिखा जो उसी की ओर देख रहा था,मंजरी ने खिड़की का ग्लास खोला और दोंनो हाथ खिड़की पर रख बाहर की ओर झांकने लगी "देबू.."उसने कहा, फिर अर्जुन का ध्यान आते ही चुप बैठ गयी ...उसके चेहरे पर देवांश को देख मुस्कान आ गयी थी....

"हम्म ...क्या कहा मंजरी.." अर्जुन ने पूछा

"नहीं कुछ नहीं" वो कनखियों से देवांश को देखते हुए बोली

"तुम नाराज तो नहीं ना मंजरी " उसने कार की स्पीड बढाते हुए कहा

"उहुम्म..नहीं" यूंही अपना नाखून कुतरते हुए जवाब दिया उसने....

अगले दिन मंजरी ऑफिस से काम करते वक़्त लगातार सोच रही थी," कि अर्जुन की बापसी देवू की वजह से ही हुई है,मुझे उसका शुक्रिया कहना चाहिए" ये सोच वो शाम को मालवन निकल गयी...नियत जगह पर कार रोककर वो आगे बढ़ी ....जहाँ जहाँ कदम रख रही थी..वहाँ वहाँ फूल बिछे हुए थे..खुशी में मुंह खोले और दोंनो हाथ कमर पर रख चलती जा रही थी..कि पेड़ के पीछे से देवांश निकल कर बाहर आया .."खुश तो हो ना मंजरी"? उसने पूछा

"बेहद ...बेहद ...क्या किया तुमने जो अर्जुन बापस आ गया ...बोलो " वो भावविभोर होकर बोली

"जाने दो इस बात को...ये बताओ तुम खुश तो हो"

"(गहरी सांस छोड़ते हुए) हम्म ...खुश हूँ देबू..अच्छा मैंने तुम्हें कल देखा था"

देवांश:-"हम्म..सोचा तुम्हें खुश होते हुए देखूं..."

इस पर मंजरी कुछ नहीं बोली

मंजरी:-"हम्म.. तुमने अपना वादा निभाया देबू.. .(फिर बैठते हुए) अच्छा तुमने कहा था किसी का इंतजार है...बताओ ना किसका"?

"ये इंतज़ार अब शायद अगले जन्म में पूरा हो ...मेरा दिल कहता है अगले जन्म में पूरा हो जाएगा" देवांश आकाश की ओर देखते हुए बोला

"(चौंक कर) अगले जन्म में ...ऐसा क्यों कह रहे हो..देबू...मुझे बताओ ना"

"मुझे लम्बी यात्रा पर जाना है मंजरी ..."

"लम्बी यात्रा...कहाँ जाना है तुम्हें ..बोलो" अचानक ये सुना तो चौंकी और उठकर खड़ी हो गई

"छोडो इसे..पहले ये बताओ तुम यहाँ आई क्यों"?

(आश्चर्य से) "क्या मेरे आने से तुम खुश नहीं हुए"?

(धीमी आवाज में बुदबुदाते हुए)"और है ही क्या सिवाय इस खुशी के " .(फिर तेज़ बोलते हुए).मेरा मतलब था..तुम्हें अर्जुन के साथ होना चाहिए था...कितने वक़्त बाद वो लौटकर आया है....." यूँ ही कुछ कदम मंजरी के सामने से हट कर वो बोला

"तुम्हारी वजह से अर्जुन बापस आया है..शुक्रिया अदा करने भी ना आती "? मंजरी ने अचरज़ से पूँछा

(मुस्कुराते हुए) हम्म..मतलब आखिरी बार आई हो .." देवांश ने तल्खी से पूँछा

"ऐसा क्यों सोचते हो तुम..तुम्हें कैसे भूल सकती हूँ ..आऊँगी लेकिन हर रोज़ तो नहीं आ सकती ना अब देबू"

"मंजरी ...एक बात तो बताओ तुम सच में अर्जुन से प्यार करती हो"

"(हँसकर) ऐसे क्यों पूछ रहे हो .."

"इसलिए ..कि जहाँ तक तुम्हे जानता हूँ , तुम हर मामले में अपने दिमाग की सुनती हो .. .स्कूल के दिनों में भी ऐसा ही करतीं थी ..फिर बाद में पछताती थीं। याद है ना...लेकिन दिल के मामले तो दिल से ही सुनने चाहिए ना मंजरी..कहीं अनसुना तो नहीं कर रही अपने दिल की आवाज को " .. .

(बहुत देर चुप रहकर) " तुमने कल शायद हमें देखा इसलिए कह रहे हो ना..(हँसकर ) अर्जुन को जल्दी गुस्सा आ जाता है और फिर जल्दी ही वो सामान्य भी हो जाता है,छोटे मोटे झगड़े कहाँ नहीं होते...मैं बेशक उससे प्यार करती हूँ देबू..तुम्हें तो बेकार ही में चिंता करने की आदत है"  

इस पर देवांश ने कुछ नही कहा ...और वो दोंनो फिर कुछ देर चुप रहे ..फिर देवांश कुछ सोचते हुए बोला

"सुनो मंजरी, तुम कहती हो ना..कैसे रहते हो इस जंगल में..आओ दिखाऊँ..( वो कुछ कदम आगे बढ़ा...और मंजरी उसके पीछे चल दी) उसने वहीं रखे एक कालीन की ओर इशारा करते हुए कहा

"मंजरी तुम इसे बिछाओ तो जरा" ये सुन कर मंजरी कालीन को बिछाने लगी...फिर कुछ कदम आगे बढ़कर देवांश ने अपने हाथ हवा में अजीब तरह से हिलाए..और थोड़ी दूरी पर एक गोल स्टेज जैसी बन गयी ...ठंडी और हल्की हवा बहने लगी...उसने मंजरी की ओर देखा वो अभी भी कालीन बिछाने में लगी थी ..वो उसे देख मुस्कुराया और फिर हवा में हाथ घुमाया उस गोल स्टेजनुमा के ऊपर जुगनुओं की गोल कतार मंडराने लगी....फूलों से लदे पेड़ उस घेरे के आस-पास सिमट आये...लताओं की लड़िया उस गोल स्टेज के आस पास लहराने लगी...ठंडी हल्की हवा जब फूलों से टकराई तो खुशबू से वो जगह महक उठी...जुगनुओं ने उस गोल स्टेज को रोशनी से भर दिया...रोशनी जल बुझ रही थी..मंजरी, रोशनी की आभा से पलटी तो आश्चर्य और खुशी में उसने अपने हाथो को मुँह पर रख लिया आँखे गोल कर वो देवांश की ओर देखकर बोली " देबू ये .…ये कितना सुंदर है..तुमने देखा "

देवांश उसे खुश देखकर मुस्कुराया और बोला

"मंजरी..तुम्हें याद है..तुम अन्नी की शादी में स्टेज पर चढ़कर कितना नाचीं थी" अन्नी जो उन दोनों की क्लासमेट थी और को- फ्रेंड भी

"हॉं ..हमारे गोवा शिफ्ट होने के बाद मैं अन्नी की शादी में मालवन आई थी ...हाँ ...अच्छे से याद है मुझे ..पागलों की तरह खूब नाचीं थी मैं..तुम भी उस शादी में मौजूद थे ना..(फिर आखे नीची कर शर्मिंदा होकर) मैंने तुमसे ना जाने क्यों बात नहीं की थी ..अनदेखा कर दिया था तुम्हें.. .मैं हमेशा गलतियां करती हूँ देबू" वो नजरें चुराती सी बोली

"अरे मैंने इसलिये तो नहीं कहा ...बस्स मन है तुम्हे वैसे ही खुल कर खुशी में मगन.. नाचते देखूं...लेकिन तभी जब तुम्हें एतराज़ ना हो " वो मुस्कुरा कर बोला

अभी देवांश उसके उत्तर की प्रतीक्षा में ही था...कि मंजरी उस स्टेज पर चढ़ी और थिरकने लगी .फिर खुशी में चीख कर उसने अपनी दोंनो बाहें हवा में लहराते हुए कहा "मैंने इतनी सुंदर स्टेज की वो भी जंगल मे होने की कल्पना भी नहीं की थी...अगर म्यूज़िक होता तो और मज़ा आ जाता देबू..."

कमर पर पीछे अपने दोनों हाथ रखे देवांश मंजरी को देख और सुन रहा था...उसने हाथ आगे किये तो बाइलिन था उसके हाथ में.. "बाइलिन का म्यूजिक काफी रहेगा ना मंजरी" वो बाइलिन को कंधे पर रखकर बोला

मंजरी ने जब वाइलिन देखा तो खुद की हथेलियों को गालों पर रखकर बोली "वाउ ...ये भी है...बजाओ तो देबू" देबांश उसी गोल स्टेज के पास घूमते हुए बाइलिन बजाने लगा और मंजरी खुशी में नाचने लगी..बाइलिन से निकलती ध्वनि से अपने कदमताल मिलाती हुई ..वो ऐसे नाच रही थी जैसे कुछ और याद ही ना हो.. चार से पांच मिनट खुशी में थिरकने के बाद वो बैठते हुए बोली "बस्स अब थक गई देबू..लेकिन तुम ...कितना अच्छा बाइलिन बजाते हो ...मुझे तो पता ही ना था..मज़ा आ गया सच में"वो आंखे बंद किये बोली...देवांश ने देखा मंजरी अपने दोनों हाथ उसी गोल स्टेज पर टिकाए आसमान की ओर मुँह किए बैठी थी..जैसे असीम सूकून मिला हो ..हवा उसके मुस्कुराते चेहरे को छू रही थी जिससे उसके बाल लहरा लहरा कर उसके चेहरे पर खेल रहे थे..

देवांश ने फिर अपने हाथ हवा में घुमाये छोटे छोटे सितारे कालीन पर बिखर गए जो जल्द ही तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवानों में तब्दील हो गए..

"तो आओ कुछ खा लेते हैं" देवांश उसके लिए प्लेटें एक तरफ करते हुए बोला

"क्या..तुमने खाने का इंतजाम भी किया है..क्या बात है.. देबू"

"बात खुशी की है मंजरी..तुम्हें अर्जुन जो मिल गया है ..और तुम्हारी खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं...और फिर कौन जाने अब कब मुलाकात हो"

"ऐसा क्यों कह रहे हो देबू..." वो अब कालीन पर आकर बैठ गयी थी..और खाना खाने लगी थी

"बताया था ना..लम्बी यात्रा पर जाना है मंजरी"

"हाँ..बताया था लेकिन ये तो नहीं बताया ना ..कि कहाँ..बताओ मुझे..मैं भी साथ चलूँ तुम्हारे देबू"

"अरे अरे ऐसे नहीं कहो मंजरी..कितनी मुश्किल से तो खुशियां आई हैं तुम्हारे पास..तुम्हें तो उन खुशियों को जीना है "

"तो क्या मिलोगे भी नहीं मुझसे ..छोड़कर जा रहे हो' ? वो बच्चों जैसी इठला कर बोली

"मेरा बस चलता तो कभी ना छोड़ता मंजरी...सारी दुनिया से लड़ जाता "

ये सुन मंजरी संजीदा हो गयी "क्या बात है सच बताओ मुझे..ऐसे बात क्यों कर रहे हो देबू" मुँह तक ले जाता निवाला बापस प्लेट में रखकर वो देवांश पर नजर टिकाकर बोली

"यही कि तुम बुद्धू हो ..पता है कितना वक़्त हो चुका है..बापस नहीं जाना क्या तुम्हें" देवांश बात बदलते हुए बोला

(अपने माथे पर चपत लगाते हुए) "हे भगवान..मुझे तो बिल्कुल याद ही ना रहा...मेरा क्या दोष..ये सब इतना अच्छा जो है..तुमने ये सब इतनी खूबसूरती से किया कि हमेशा याद रहेगा,तुम्हारे साथ वक़्त कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता सो भी इतनी खूबसूरती से" वो कार की ओर लगभग दौड़ते हुए बोली…

"एक मिनट रुको मंजरी कुछ है तुम्हारे लिए..."

देवांश ने अपने हाथों में पकड़ा एक ख़ूबसूरत सा सफेद खरगोश उसे पकड़ाते हुए कहा

"ओह्ह...ये बहुत खूबसूरत है ...शुक्रिया देबू" वो चहकती हुई बोली

"तुम बिल्कुल भी नहीं बदली...एकबार को तो मुझे लगा अब शायद तुम्हें खरगोश पसंद ना हो "

"तुम्हें सब याद रहता है ना देबू...ये भोले और खूबसूरत ख़रगोश हमेशा से मेरे सबसे प्रिय जानवर रहे हैं...समंझ नहीं आता तुम्हें शुक्रिया कौन कौन सी बात के लिए कहूँ ...और कैसे कहूँ."

"हमेशा खुश रहकर "

"आं ..." वो कार में बैठते हुए बोली

"हाँ ..हमेशा ऐसी ही खुश रहने का वादा करो ..यही शुक्रिया चाहिए मुझे तुमसे" और हमेशा की तरह देबू ने कार की छत पर हल्की सी थपकी दे दी .. ये उसकी तरफ से जाने का इशारा होता था ...मंजरी के चेहरे पर उसके जाने के ख्याल से ही गंभीरता उभर आई थी ...देवांश उसे देख मुस्कुराया और जंगलों की ओर मुड़ गया...मंजरी उसे जाते हुए एकटक देखती रही ...उसकी नजरों से ओझल होने के बाद मंजरी ने एक नज़र पास की सीट पर बैठे खरगोश पर डाली और बड़े प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेर, अपनी गाड़ी स्टार्ट कर दी..

***

कुछ आधे घण्टे की दूरी ही तय कर पाई होगी मंजरी कि राहुल ने बिल्कुल उसके पास अपनी कार रोकी और बोला "मंजरी, तुम यहाँ कर रही हो"

मंजरी:-"वो बस ऐसे ही रिसॉर्ट् देखने का मन था तो..."उसे खुद पर ही झल्लाहट हुई कि आखिर झूठ बोलने की जरूरत क्या थी उसे, सो भी राहुल से..लेकिन अब तो बोल चुकी थी

"अच्छा...आओ मेरे नजरिए से रिसॉर्ट दिखाता हूँ तुम्हें ..जल्दी बैठो" वो कार का दरवाजा खोलते हुए बोला

"नहीं राहुल...अब घर जाऊँगी...पहले ही देर हो गयी है..कल देख लेंगे रिसोर्ट"

"इतनी बात भी नहीं मान सकती मंजरी...प्लीज़ बस्स थोड़ी देर की बात है" चुप रही मंजरी,तो राहुल फिर बोला

"इतना क्या कहलवा रही हो मंजरी, बहुत जरूरी डिस्कशन करना है रिसॉर्ट दिखाकर तुमसे..जल्दी बैठो"

मंजरी उचाट मन से अपनी कार से उतरी और खरगोश को गोद में उठाते हुए राहुल की कार में बैठ गई...

"नहीं मंजरी..मत जाओ उसके साथ" मंजरी को जैसे देबू की आवाज़ सुनाई दी..उसने बाहर की ओर झाँककर देखा कोई नहीं था ..."मेरे भी कान बजने लगे हैं" वो बुदबुदाई

"क्या ..कुछ कहा तुमने" राहुल ने कार की स्पीड बढ़ाने के साथ ही मंजरी से पूछा, जिस पर मंजरी ने "ना" में सिर हिला दिया

और राहुल ने कार की स्पीड को और तेज़ कर, कार सड़क पर दौड़ा दी...इससे मंजरी के चेहरे पर कुछ चिंता के भाव आ गए

--------------- --------------क्रमशः-----------------


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