पार्ट 3: बिन्नी की विलेन मम्मी
पार्ट 3: बिन्नी की विलेन मम्मी
"आँटी जी कहाँ हैं?" नीरज कुर्सी पर बैठते ही बोला
"कजिन की शादी में गयी हैं" मैंने जवाब दिया, ये पूछने का मन तो हो रहा था बिन्नी की मम्मी और लोग उसके घर आये तो क्या हुआ? लेकिन उसकी हालत देखकर हिम्मत नहीं हो रही थी, तो मैंने चुपचाप पानी लाकर उसके सामने रख दिया....
"वो लोग मेरे घर नहीं आये....मना कर दिया....आते भी किस मुँह से? शादी को 5 दिन रह गए हैं.....मेरी कुछ समंझ में नही आ रहा....
"क्या? ....
"हाँ"
"वो जानती हैं कि गलत हैं, इसीलिए ....." मैंने भी गुस्से में कहा
" हम्म सही कह रही हो ....रह रह कर लगता है घर में रखी पिस्टल निकालूं और खुद को मार दूँ.....लेकिन जैसे ही बिन्नी का ख्याल आता है.....ओह्ह "
"और बिन्नी का क्या होगा.....ऐसे हताश मत होइए....ये बताइए अब क्या करेंगे?"
"अब बस दो ही रास्ते हैं, हम कानूनी कार्यवाही करें या बिन्नी के घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर लें.....अगर कानूनी कार्यवाही की, शादी साइड में चली जायेगी और इसे वजह बनाते हुए बिन्नी को ये लोग मेरे खिलाफ आसानी से भड़का देंगें.........ऐसे में शायद मैं उसे हमेशा के लिए खो भी दूँ.....और मैं उसे किसी कीमत पर खो नहीं सकता.....तो शादी का ऑप्शन ही है "
अपनी बात पूरी करके उसने मेरी ओर देखा, मुझे समंझ नहीं आ रहा था क्या कहूँ
"लेकिन उसके लिए भी मुझे बिन्नी से बात करनी पड़ेगी, और बात किसी भी हालत में नहीं हो पा रही है" इतना बोलकर नीरज ने गिलास उठाकर पानी पिया और निराश होकर जमीन की ओर देखने लगा.....मैं किचिन में गयी और परांठा सेकने लगी
"अरे ....काम जरूरी है क्या.....(.फिर बुदबुदा कर) किसी को किसी की परेशानी से कोई फर्क नहीं पड़ता " नीरज का ये बुदबुदाना मैंने सुन लिया था.....प्लेट में तले हुए आलू,दही ऑयर परांठा रखकर मैंने उसे थमाते हुए कहा "लीजिए , लड़ने के लिए ताकत चाहिए होती है और आपने तो शायद कल से खाना भी नहीं खाया...."
"आपको कैसे पता....कि मैंने कल से खाना नहीं खाया? "
"कोई भी देख कर जान जाएगा, आप एक काम कीजिये, यहाँ बैठ जाइए मैं खाना भी बनाती जाऊँगी और बात भी हो जाएगी "
मैंने किचिन के सामने कुर्सी डालते हुए कहा, उसने छोटे बच्चे की तरह मेरे कहने पर फौरन अमल किया
"बिन्नी अक्सर तुम्हारे बारे में बात करती थी....एकबार मैंने पूँछा तुम सोना को दादी क्यों बुलाती हो.....उसने कहा जब आप मिलेंगे तो खुद जान जाएंगे.....अब मुझे समझ आया कि क्यों वो तुम्हें दादी बुलाती है" नीरज ने कहा और परांठा खाने लगा जिस हाल में वो था, ऐसे में उसका बात-बात पर भावुक होना लाजिमी है
मैं बस्स मुस्कुरा भर दी.....नीरज ने पूरे परांठे को चार टुकडों में बांटा और एक भाग मुँह में रख लिया, ओह। बेचारा।
"एक बात बताओ....ये बिन्नी के पापा कभी बात नहीं करते क्या?" उसने पूँछा
"मैंने उन्हें दो बार देखा है....एक बार तब, जब वो घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे थे........दूसरी बार जब देखा तब वो बिन्नी की मम्मी के पास बैठे बात कर रहे थे.....
"बात और मास्टर जी.....?"नीरज तंज के लहजे में बोला
"सही कहा.....बातचीत तो तब मानी जाती है, जब दोनों बोलें, मोटो उन्हें उँगली दिखाते हुए डाँट रही थी.....और वो चुपचाप अपना सिर हिला रहे थे"
"हा हा मोटो ........अच्छा लगा .....तुम्हारे मुँह से ये सुनकर .....मैं भी मन ही मन उन्हें मोटो कहता हूँ.....अब खुलकर कह सकूँगा हा हा"
"अच्छा.....?" मैंने हँसते हुए पूँछने के लहजे में प्रतिक्रिया दी और नीरज की प्लेट में एक परांठा और रख दिया
"हम्म........"
"मुझे लगा अंकल जी बेचारे .....उनकी घर में चलती नहीं है.....लेकिन बिन्नी ने बताया कि उन्हें किसी बात से कोई मतलब ही नहीं...."
"हम्म.....अक्सर ऐसा ही होता है, जो चुप रहता है हमें लगता है बहुत समझदार है या फिर ऐसा बेचारा है .....जबकि कई बार चुप रहने का मतलब होता है, सही को सही कहने की हिम्मत का ना होना या फिर अपने किसी स्वार्थ के कारण बेचारा बने रहने का ढोंग करना.....
"सही कह रहें हैं आप" कहने के साथ ही मैंने तीसरा परांठा नीरज की प्लेट में रखा
"अच्छा अब तुम्हें मेरी मदद करनी पड़ेगी, ध्यान से सुनो.....मेरे घरवाले हार मान चुके हैं इन लोगों के रवैये से.....और अब वो इस कोशिश में लगे हैं, कि कैसे भी कोई भी लड़की मिल जाये और मेरी शादी नियत तिथि पर हो जाये।
"क्या?....." सुनकर यकीन नहीं हो रहा था
"हाँ.....और इतना ही नहीं ....पिछले दो दिनों से मैंने रमेश जो मेरा दोस्त है, उसे लगाया है जासूसी के काम पर और उसके अनुसार बिन्नी के घरवाले भी किसी लड़के को जो कि छोटा-मोटा कोई कम्प्यूटर ऑपरेटर है बरेली में........उसको ये लोग मनाने में लगे हैं कि वो इतने शॉर्ट नोटिस पर बिन्नी से शादी के लिए मान जाये"
"क्या.....मतलब सब खत्म?" .....मैंने निराश होकर कहा
"अभी एक और आखिरी उम्मीद बाकी है .....जो तुम हो "
"मैं ?" आश्चर्य हुआ मुझे
"हाँ तुम....तुम चाहो तो 4 जिंदगियाँ बच सकती हैं .....
"मेरे चाहने से"?
हाँ........"
"कैसे"
"देखो.....मोटो मेरी बहन को देख चुकीं हैं, अपनी किसी कजिन को भेजूं तो बहुत संभव है कि बिन्नी ही ये कहकर 'वो उस लड़की को नहीं जानती मिलने से मना कर दे....इसलिए तुम ही उसके पास जा सकती हो और उसे समझा भी सकती हो"
"अर .....पर कैसे?"
"तुम्हारी फ्रेंड की शादी है 5 दिन बाद, तुम्हारा जाना बनता है कि नहीं"?
"हॉं लेकिन शादी तो टूट गयी ना"
"ओहहो.....ये तुम्हें पता है क्योंकि मैंने बताया, उन्होंने या बिन्नी ने नहीं .....तुम अनजान बनकर ही जाओ....और कैसे भी मेरी बात करा दो बिन्नी से बस्स ....साथ ही उसे समझाओ भी........ कैसे भी उसे दरवाजे के बाहर ले आओ बस्स "
"हे भगवान ये बहुत कठिन है, नहीं कर पाऊंगी मैं ऐसा.....और वो मोटो.....पिछली बार जब उन्होंने मुझे देखा भर था.....और मेरे पैर ऐसे काँपने लगे.....जैसे सड़क पर तमाशा दिखाने वाले तमाशाबीन के रस्सी पर चलते वक्त काँपते हैं....." मैंने चौथा परांठा नीरज की प्लेट में रखते हुए कहा.....
अभी बात पूरी भी नहीं कर पायी थी कि नीरज ने खाने की प्लेट साइड में रखी और बोला
"बस्स अब नहीं खा पाऊँगा.....एक मिनट .। तुम्हें लगता है कि हमारे साथ गलत हो रहा है.....हाँ या नहीं"?
"हाँ"
"मेरा प्यार बिन्नी के प्रति तुम्हें सच्चा लगता है या नहीं?"
"हाँ"
"इस वक़्त अगर तुमने मदद नहीं की तो..... मेरी, बिन्नी की, और वो दोनों जिन्हें बलि का बकरा बनाने जा रहे हैं, जिनसे हमारी शादी करायी जाएगी, उनकी .....सबकी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी.....सिर्फ उस मोटो के पागलपन की वजह से"
अपनी बात पूरी कर नीरज अपने घुटनों के बल जमीन पर हाथ जोड़कर बैठ गया।
"तुमने भाई बोला है मुझे, बिना बोले जान गईं कि मुझे भूख लगी है, तो बता कर भी क्यों नहीं समझ पा रहीं.... कि अगर तुमने मदद नहीं की.....तो बिन्नी और मैं.....हम सारी जिंदगी घुट -घुट कर मरेंगे".....
"देखिए ....ऐसे हाथ मत जोड़िए.....मैं जानती हूँ ....मोटो सरासर गलत हैं.....लेकिन ये बहुत कठिन काम है.....मैं नहीं कर पाऊँगी" मैं डर कर बोली
"अगर बिन्नी जरा भी समझदार होती तो बात ही क्या थी.....और तुम्हें क्या लगता है वो मोटो.....बस्स उनके हाथ पर अभी जाकर लाख रुपये भी रख दूँ ना, तो वो खुश हो जाएंगी....लेकिन अभी तो फांस ऐसी फँसी है ना.... कि ऐसा कुछ करूँगा तो बस्स मुझे कमतर दिखाने का एक और मौका मिल जाएगा उन्हें....क्योंकि बिन्नी पागल है ना".
"क्या बोल रहें हैं आप"?
"सच कह रहा हूँ, उन पागलों के बीच रहकर कोई कैसे सामान्य रह सकता है, बिन्नी पर असर पड़ना लाजिमी है.....ऐसे में उसका क्या दोष.....वो जरा सा लड़का हर्षित कल ही मिलने गया उससे उसके स्कूल में.....रमेश से सुनी बात कंफर्म करने....कम से कम पाँच बार पूछा होगा लेकिन कोई जवाब नहीं .....जैसे ही 200 रुपये दिए, बोल पड़ा "बिन्नी दीदी की शादी की बात चल रही है बरेली के एक लड़के के साथ.....ऐसे ही बिन्नी का नम्बर भी उसने मुझे अच्छा जानकर नहीं बल्कि साइकिल की डील पक्की होने के बाद दिया था....फिर बाद में दिलाई उसे मैंने साइकिल.................
"अच्छा" मैंने बड़े हल्की आवाज में कहा, सही कह रहा था नीरज .....बिन्नी ने मुझे साइकिल वाली बात बतायी थी.....
"कोई कम नहीं है.....क्यों..... पागलखाना बरेली में ही है ना.
....निश्चित ही कोई पागल चुना होगा" ये अंतिम लाइन बोलकर जब नीरज हँसा तो मुझे भी हँसी आ गयी
"हर्षित साला हो जाएगा आपका" मैंने मुस्कुरा कर कहा
"शादी करवा दो, सुधार दूँगा साले को.....रिश्वतखोर कहीं का।" उसने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया
"एक बात बताइए?"
"पूछो"
" मान लीजिए कि बिन्नी ने घर छोड़ दिया अपना....ये बहुत बड़ी बात होती है वैसे"
"हॉं बिल्कुल...."
".फिर कभी गुस्सा हो गए आप तो बोलेंगे उसको
कि 'जब तुम अपने घर की नहीं हुई तो मेरी क्या हो जाओगी'?
ये बात सुनते ही नीरज के चेहरे का रंग फीका हो गया....
"कुछ जाहिलों की करतूतों का खामियाजा दूसरों को झेलना पड़ता है.....कई बार तो पीढ़ियों तक.....तुम्हारी बिन्नी के प्रति ये चिंता जानकर मुझे अच्छा लग रहा है.....लेकिन तुम्हीं बताओ ....ऐसा क्या करूँ जो भरोसा हो जाये तुम्हें मुझ पर.....कि
ये घटिया शब्द बोलना तो दूर सोचना भी शर्मनाक है मेरे लिए"
अचानक उसे दुखी देखकर मुझे बुरा लगा
"ठीक है भरोसा है आप ऐसा नहीं करेंगे....."मुझे ना जाने क्यों भरोसा हो गया था उस पर
" आज मेरी मदद कर दो, वादा करता हूँ सारी जिंदगी जब भी तुम्हें मदद चाहिए होगी..... दौड़ा आऊँगा........रात हो या दिन कभी भी आजमा लेना, तुम्हारा सगा भाई चाहे तुम्हारा साथ छोड़ दे....मैं नहीं छोडूंगा........."
"ये क्या कह रहे हैं आप"
"सच कह रहा हूँ, अब ये मत सोचना कि मेरी जरूरत है इसलिए बड़ी बड़ी बातें कर रहा हूँ..... कल को भूल जाऊँगा।
क्या करोगी अब । क्या जाओगी
समझ नहीं आ रहा....अगर गयी तो सीधे ही फसाद में फंस जाऊँगी.....और ना गयी तो लगेगा मदद कर देती तो शायद दो लोगों को जिंदगी भर घुट-घुट कर जीना नहीं पड़ता.....सो भी मेरी वजह से
मैं इसी सोचा विचारी में थी कि नीरज मुझे किसी की फ़ोटो दिखाते हुए बोला "ये देखो....ये रमेश है....बिन्नी के घर के बाहर ये गाड़ी लेकर खड़ा मिलेगा.....और वहाँ से तुम्हें और बिन्नी को लेकर वो आ जायेगा...."
"आपने मुझसे सिर्फ बिन्नी को बताने के लिये कहा है........है ना....गाड़ी की क्या जरूरत?"
"अगर बिन्नी सब जानने के बाद निकलना चाहे तो? ....
वैसे भी आज ही का समय है.....या तो आज या कभी नहीं....बाहर निकलने का भी और कोर्ट में शादी करने का भी...."
"कोर्ट में शादी .....उसके लिए तो पहले से एप्लिकेशन देनी पड़ती है?"
"जैसे ही मोटो ने बिन्नी से फोन पर मुझसे बात करने के लिए मना किया.....तभी अंदेशा हो गया था मुझे....कोर्ट में एप्पलीकेशन दे दी थी मैंने.....कि कुछ ऐसा वैसा हुआ तो.....मुझे कहाँ पता था....ऐसा -वैसा ही होगा....तुम जाओ भी अब"नीरज ने फिर मेरे सामने हाथ जोड़ दिये।
....उफ अजीब मुसीबत है।
तो अब क्या करोगी.....
करना क्या जाना ही पड़ेगा.....लेकिन बस्स नीरज का मैसेज भर दे दूँगी उसे.....आगे वो जाने और उसका काम
"ठीक है.....जा रही हूँ"....मेरे ये कहते ही नीरज खुश हो गया
"उससे कहना जैसी है वैसी ही चली आये.....मैं सब सम्भाल लूँगा.....और हाँ जैसे ही तुम वहाँ से निकलो मुझे फोन करना....."
कहकर नीरज चला गया और मैंने फोन लगाकर संक्षेप में सारी बात अपनी माँ को बता दी सिवाय इसके कि नीरज बिन्नी के लिए गाड़ी लगाएगा और उसने कोर्ट में शादी का इंतज़ाम कर रखा है.....क्योंकि मैंने सोच लिया था बस्स बिन्नी को बता भर दूँगी।
"ठीक है .....जब तुम्हारा इतना ही मन है तो चली जाओ....दोस्त है तुम्हारी, इतनी मदद तो कर ही सकती हो" ये कहकर मेरी माँ ने मुझे इज़ाज़त दे दी
अगले तीस मिनट में मैं बिन्नी के सामने थी.....इसकी हालत तो नीरज से भी बुरी थी....सिर के थोड़े -थोड़े बाल निकलकर बाहर बिखरे थे, कोई दूर से ही देखकर बता दे कि घण्टों रोती रही है.....आँगन में बर्तनों का अंबार लगा था....और वो बर्तन धो रही थी.....मुझे देखा तो दौड़कर आई और गले लगकर रोने लगी.....मैंने सांत्वना देने के लिए उसकी पीठ पर रखने के लिए हाथ उठाया ही था.....कि मुझे खुद पर किसी पैनी नजर का अनुभव हुआ....सामने देखा मोटो.....मैंने उन्हें देख अपना हाथ बापस खींच लिया ।
सारी जिंदगी एक्टिंग नहीं की आज करनी पड़ेगी.....
पहली और शायद आखिरी बार भी
"अरे .....रोने की क्या बात है, शादी को बस पाँच दिन रह गए हैं, कार्ड नहीं आया तो सोचा कि खुद ही जाकर ले आऊँ और कुछ काम हो तो वो भी पूँछ लूँ.....नमस्ते आँटी जी.....(मैंने मोटो की ओर मुस्कुरा कर कहा) हाँ शादी की बात से भावुक होना तो बनता है वैसे"
वाह। अच्छी कोशिश की मैंने एक्टिंग की....हम्म मुझे उम्मीद नहीं थी इतनी
"आओ यहाँ आकर बैठो " आँटी ने मुझे कमरे में बुलाया
मैंने बिन्नी को प्यार से खुद से अलग किया तो दुखी होकर उसने "ना "में सिर हिला दिया....वो मुझे इशारे से बताना चाहती थी....कि शादी टूट गयी है
"जानती हूँ...."मैंने बहुत धीरे से कहा और आँटी के पास आकर बैठ गयी.....
"जानती हो.....वो लड़का.....क्या किया उसने " गुस्से में बोलना शुरू किया उन्होंने
"क्या?"
"जन्माष्टमी का उत्सव था....तो हम कुछ खाने.....वो जो नया होटल खुला है ना"
"हम्म"
"वहीं बिन्नी के साथ सब गए थे.....रात के साढ़े ग्यारह बजे होंगे, उस लड़के ने इसे फोन किया (बिन्नी की ओर इशारा करके....वो पास ही आकर खड़ी हो गयी थी....और साथ में उसकी मौसी भी ) और बोला इतनी रात हो गयी घर जाओ....."
"तो ?" मैंने कहा फिर आँटी की आँखे देख फौरन बात बदल दी
"मतलब आगे क्या हुआ?"
"एक बात बताओ लड़की किसकी ? मेरी.....तू होता कौन है हें, अभी शादी नहीं हुई .....कैसे हुक्म चला सकता है इस पर...."
"उन्होंने इसलिए कहा कि वहाँ शराब पीना शुरू कर देतें हैं लोग बारह बजे के आस -पास........बस्स इसिलए" बिन्नी मिनमिनी सी आवाज में बोली
"चुप रह ....मारूंगी एक चांटा खींचकर" आँटी ने उसे डपट दिया
"ऊपर से उसकी माँ ने बिना मुझसे पूँछे बताये इसे 2 सड़ी सी साड़ियां थमा दी, और ये (बिन्नी का हाथ पकड़कर उसमे पहनी अँगूठी मुझे दिखाई) ये देखो ये जर्किन की अंगूठी इसे क्या पहना दी.....ये साब दीवानी ही हो गयीं उन सबकी....."आँटी बोलीं
मैं चुप रही तो वो आगे बोलीं
" मैं नहीं करूँगी इसकी शादी अब नीरज से .....वो अच्छा नहीं है.....मुझे ऐसा लड़का चाहिए जो मेरी बात माने.....ना कि खुद को लाट साब समझे........विमल से होगी इसकी शादी अब.....वो कम्प्यूटर ऑपरेटर है.माँ बाप कितने ही लड़के देखते हैं.....तो क्या इसका मतलब ये है कि.....सबसे प्रेम प्रलाप किया जाए........"
आँटी की ये बात सरासर गलत है.....लेकिन मैं बोल नहीं सकती ....बिन्नी को पहली बार कोई लड़का पसंद आया है.....
"लेकिन मैं नीरज के अलावा किसी और से शादी नहीं करूँगी...." बिन्नी कहने के साथ ही रोने लगी
"क्या कर दिया है उसने ऐसा तेरे लिए........सिवाय इस अंगूठी के.....तो लो अभी किस्सा खत्म करती हूँ (वो उठीं और बिन्नी की उंगली से अंगूठी निकालने लगी और बिन्नी भरसक प्रयास कर रही थी कि मोटो अगूंठी ना निकाल पाएं.....इतने में बिन्नी की मौसी भी मोटो की मदद करने लगी....बिन्नी रोती भी जा रही थी....और खुद की उँगली से अँगूठी ना निकलने का प्रयास बजी कर रही थी.....आँटी उसे डाँटती भी जा रही थी.....ये सब मेरे लिए देखना असह्य हो गया....)
"रुक जाइये.....मत कीजिये ऐसा ....." मैं लगभग चीख पड़ी
"तुम नहीं समझ रही हो.....सारी फसाद की जड़ ये अगूंठी ही है ना....."
"नीरज कोई अँगूठी से बाहर नहीं आ जायेगा.....अँगूठी ही तो है..... रहने दीजिए. अगर बिन्नी को इतनी दिक्कत है तो...." ना जाने क्या हुआ कि वो मेरी बात मान गयी.....फिर काफी देर बुदबुदाई और बोलीं "नहा लूँ जाकर."
उनके जाते ही सिसिक रही बिन्नी को मैंने पास बिठाया और कहा "सुनो बिन्नी, टाइम बहुत कम है .....नीरज मेरे घर आये थे
"वो ठीक हैं ना" वो और तेज़ रोने लगी
"कैसे ठीक हो सकते हैं जब तुम्हारी शादी आज से पांच दिन बाद जैसे उस विमल से हो रही है उसी तरह उसकी शादी किसी लड़की से करना चाहते हैं उसके घरवाले...."
"क्या किसी और से .?." बिन्नी दुखी होकर बोली
"जैसे तुम्हारे घरवाले कर रहे हैं ना ....ठीक वैसे ही .....अब सुनो नीरज ने कोर्ट में आज की तारीख तय कर रखी है....तुमसे शादी के लिए....बाहर गाड़ी खड़ी है....नीरज ने कहा है सिर्फ आज का ही मौका है....उसके बाद कभी मौका नहीं मिलेगा.....तो तुम चाहो तो इसी वक़्त मेरे साथ चलो मैं तुम्हें नीरज तक पहुंचा दूँगी....उसने यही कहा है.....और तुम्हारी मम्मी क्या चाहती हैं ये भी तुम जान ही चुकी हो.....अब जो करना चाहो सो करो.....लेकिन फ़ैसला जल्दी करो"
मैंने जैसे ही ये बात पूरी की ....बिन्नी मेरे गले लग गई.....
"सच में सोना ....सारी जिंदगी तेरा एहसान नहीं भूलूँगी.....अभी आई" कहकर वो अंदर चली गयी
क्या कर करने वाली हो तुम....पता है
हाँ अच्छी तरह.....मैं उनकी मदद कर रही हूँ जो सहीं हैं, और एक दूसरे से प्यार करतें हैं.....
अच्छा.....बिन्नी को उसका नीरज मिल जाएगा और नीरज को बिन्नी .....तुम्हें क्या मिलेगा?.....
मुझे कुछ चहिए भी नहीं........बस्स ये दोनों.....
ओ बेवकूफों की लीडर इसे लड़की भगाना कहते हैं
आं
हाँ....कानून के मुताबिक ये जुर्म है....इसे बहला फुसला कर लड़की भगाना कहते हैं.
नहीं
तुम्हारे नहीं कहने से क्या हो जाएगा....तुम नीरज को जानती ही कितना हो? अगर उसने इस लड़की को छोड़ दिया तो....कहाँ जाएगी ये?
वो इसे छोड़ेगा क्यों"?
ना छोड़े इसकी गारंटी भी तो नहीं ?
फिर क्या करोगी, और ये लड़की इस वक़्त सामान्य नहीं है प्रेम में आधी पागल है....कल को नीरज ने इसे छोड़ा या ये दुखी हुई तो तुमसे कहेगी' बोलेगी अगर तुम उस दिन ना आती सोना, तो आज मैं सुखी होती.....फिर दुनिया में ऐसा कौन है जो एक बच्चे को उसकी माँ से ज्यादा प्यार करे.....अगर तुम बिन्नी के साथ ले गयी तो तुम पूरी जिम्मेदार हो उसकी जिंदगी की.....
ये सब बातें खुद से करते करते मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ गए....पूरा शरीर पसीने से भीग गया.....मैं सीधे सीधे जिम्मेदार हूँ....सब मुझसे ही सवाल करेंगे....ओह्ह कहाँ फस गयी मैं.....
"चल " एक काले रंग का गंदला सा बैग लिए बिन्नी मेरे सामने आकर बोली
"तुम.....तुम.... चल रही हो? " मैंने डरते हुए पूछा
"हाँ..... चल ना..... जल्दी कर" वो मेरा हाथ पकड़कर बोली....
हे भगवान अब क्या करूँ....
"मेरी बात सुन तू ये घर छोड़ रही है हमेशा के लिए.....देख ले। सोच ले। तुझे नीरज पर भरोसा है ना? ....मैं उससे बस दो बार मिली हूँ....देख कल को कुछ हो जाये तो बस्स मुझे दोष मत देना....मैं मदद करूँगी जितनी बन पड़ेगी....इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाऊँगी" मैं डरते हुए बोली
"सारी जिंदगी शिब जी की पूजा की है मैंने, पर कुछ नहीं मांगा सिवाय अच्छे पति के....नीरज को मन से पति मान चुकी हूँ....मुझे उस पर पूरा भरोसा है.... महीने भर भी रह ली उसके साथ.....तो भी सारी जिंदगी का सुख मिल जाएगा.....और फिर उसने छोड़ भी दिया तो चार घर का झाड़ू बर्तन पकड़ लूँगी....लेकिन तुझे दोष नहीं दूँगी....दूँगी भी क्यों जब किसी ने नहीं समझा तूने समझा.....मैं तो मानती हूँ तुझे शिव जी ने ही भेजा है मेरी मदद को.....मम्मी गलत हैं यार ....गलत हैं.....वरना मैं ऐसा करने की सपने में भी नहीं सोचती....वो किसी और के साथ मेरी शादी निश्चित ही कर देंगी.....कल भी पीटा हैं उन्होंने मुझे.........नहीं किसी और से शादी करने से पहले मरना पसंद करूँगी मैं....."
उसकी बात सुनकर मेरा मन खुद की सोच पर पछताने के साथ ही खुशी और सकारात्मकता से भर गया.....मैं जो अब तक कुर्सी पर बैठी थी.....तेज़ी से उठी और उसका हाथ पकड़कर उसके दरवाजे से बाहर लगभग दौड़ती हुई निकल आयी .....उस कमरे से,(जहाँ मैं बैठी थी )....दरवाजे की दूरी लगभग सात से आठ कदम होगी.....और मेरे पीछे-पीछे चल रही बिन्नी अचानक उसी मेन दरवाजे पर रुक गयी .....मैंने मुड़कर देखा उसने दरवाजे के बाहर अपना पैर हवा में ही उठाया हुआ था और वो रुक गयी थी.....इतने में ही घर के अंदर से किसी दरवाजे खुलने की आवाज सुनाई पड़ी....ऐसा लगा जैसे मेरे दिल ने धड़कना बन्द कर दिया........क्रमशः........