पार्ट-11:मालबन में 'वो'
पार्ट-11:मालबन में 'वो'
आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि मंजरी को एहसास होता है कि वो देवांश से किस कदर प्यार करती है, अर्जुन नाराज होकर उससे सगाई तोड़ देता है, और मंजरी देवांश से मिलने मालवन के जंगल पहुंच जाती है जहॉं बहुत बार बुलाने पर भी देवांश नहीं आता तो वो एक ट्रक के आगे खड़ी हो जाती है ....और एक तेज़ धमाका होता है, अब आगे.....
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बल्ली ट्रक से कूदा तो सड़क के किनारे बने ढ़लान से लुढ़कते हुए हुए नीचे गिर गया और डर से होश खो बैठा... एक तेज़ हवा का तूफानी ऐसा बबन्डर, जो घरों और बड़े बड़े पशुओं तक को उड़ा कर ले जाये ...ट्रक और मंजरी के बीच में आ गया..एक तेज़ टक्कर ने ट्रक को रोक दिया ..और ट्रक भरभरा के वहीं रुक गया..कुछ देर उसमें से आवाज आती रही फिर शांत हो गयी..
...उसी ट्रक के आगे मंजरी बेसुध सड़क पर पड़ी थी..
...चमकते झिलमिल सितारों के बीच से वो मुस्कुराता हुआ उसी की ओर चलता आ रहा था..मंजरी की आँखो से खुशी के आँसू बहने लगे..वो उसके पास आकर बैठ गया...और मंजरी के गाल पर हल्के से थपकी दी और मंजरी की खुशी का ठिकाना ना रहा.....
."मंजरी ...मंजरी ..आँखे खोलो...आँखे खोलो...तुम ठीक तो हो ना..मंजरी"...ये आवाज उसके कानों में गूँजी तो मंजरी ने होश में आते हुए धीरे से आँखे खोल दी..पलके झपका कर देखा तो घबराया हुआ देवांश उसके गालों पर थपकी देकर उठा रहा था
.."देबू..."मंजरी खुशी से चीखी और इस बार खुशी में दो आंसू लुढ़क गए उसकी आँखों से...
"मंजरी ...तुम ठीक हो ..आह ..शुक्र है" देवांश ने आसमान की ओर सिर करके एक तसल्ली की साँस छोड़ते हुए कहा
"तुमने बचाया ना मुझे आकर..मैं जानती थी तुम जरूर आओगे..मुझे दुखी जो नहीं सकते" वो चहकती हुई बोली
"लेकिन मुझे ये तुम्हारा तरीका अच्छा नहीं लगा मंजरी..." वो उसकी ओर पीठ करके कुछ कदम चलता हुआ बोला
"जानती हूँ...लेकिन इतना बुलाने के बाद भी जब तुम सामने नहीं आये...तो मेरे पास और क्या रास्ता था सिवाय इसके"?
"लेकिन ...आज तो तुम्हारी इंगेजमेंट थी ना..? तुम यहां क्यों आयीं"?
"यहाँ तो बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था मुझे" वो चलती हुई देवांश के पास आकर खड़ी हो गयी
"(मंजरी के चेहरे पर नजरें टिकाकर)" मंजरी ..."
"(सिर हिलाकर) हाँ देबू..हमेशा तुम्हीं को चाहां..तुम्हीं से प्रेम किया....लेकिन इसे बस स्वीकारा अब है"
"मंजरी...(आँखे बंद कर मुस्कुराते हुए) इसे सुनने के लिए जीते जी मेरे कान तरस गए थे....मरने के बाद ही सही सुनने को तो मिला... ये जिंदगी मेरे बिना ही जी लो मंजरी...वादा करता हूँ अगला जन्म तुम्हारे बिना नहीं जिऊंगा...अब चलो तुम्हे घर छोड़ आऊँ "
"कहीं नहीं जाना मुझे..सगाई तोड़ आयी हूँ और अर्जुन से रिश्ता भी"
"(अवाक सा मुँह खोले) मं...ज..री..."
"हाँ देबू...लौट जाने का हर रास्ता बंद कर आई हूँ..."
"(ना में सिर हिलाकर) होश में आओ मंजरी...सब कुछ जानने के बाद ये सब...क्या मतलब है इस सबका.."
"इसका मतलब बस्स इतना सा है देबू, ना सही जिंदगी का सफर, कम से कम जिंदगी के बाद का सफर खुद के साथ तय करने दो"
"हरगिज नहीं...तुम होश में नहीं हो "? देवांश तनिक आवेग में आते हुए कहा
" अब ही तो होश आया है....पहले होश में होती तो तुमसे बेबफाई क्यों करती देबू...मुझे माफ कर दो, ना जाने कैसे ये भृम हो गया कि मैं अर्जुन से प्रेम करती हूँ.."
"क्या कहे जा रही हो मंजरी, तुम और बेबफाई..सो भी मुझसे"?
(बस्स आँसू पोछते हुए हांमी में सिर हिलाती है)
"किसने कहा तुमसे ऐसा....तुम तो जानती तक ना थी मेरे मन मे क्या चल रहा है...बचपना था तब ...वक़्त के साथ हम दोनों ही इसे भूल कर आगे बढ़ गए...फिर उस गुनाह की सज़ा खुद को क्यों दे रही हो जो तुमने किया ही नहीं..." देवांश थोड़ा नाराज़ होते हुए बोला
"तुम हो ही इतने अच्छे, कि मुझे बुरा कहोंगे ही नहीं" मंजरी बोली
"बुद्धू रानी, तुम ने कुछ बुरा किया भी तो हो ...कब से रोये जा रही हो...तुम्हें मेरी कसम जो अब एक भी आँसू गिरा तो...(मंजरी ने अपने आंसू पोंछ लिए तो देवांश ने कहना जारी रखा मंजरी तुमने प्रेम का इज़हार कर मेरा जीवन सार्थक बना दिया...अब कोई इच्छा बाकी नहीं बची..अब तो खुशी -खुशी जाऊँगा...और तुम भी खुशी से जियो.."
"तुम्हारे बिना कैसी खुशी"?
"खुशी तो महसूस करने की बात होती है ना मंजरी, दिल छोटा मत करो...भगवान से प्रार्थना करूँगा कि वो हमें अगले जन्म में मिला दें..अब चलो छोड़ आऊँ तुम्हें"
"कहाँ छोड़ने जाओगे..."
"कहाँ का क्या मतलब...वहीं ...
मंजरी ने बात पूरी भी ना करने दी देवांश को, बीच में ही बोल पड़ी "तुमने शायद सुना नहीं देबू, मैं बापस जाने का हर रास्ता बंद कर आई हूँ...तुम इसी रूप में रह जाओ मेरे साथ..मुझे और कुछ नहीं चाहिए..सुना तुमने ..कुछ नहीं"
"तुम मेरे इस रूप के साथ रह सकती हो"देवांश ने खुशी मिश्रित हैरानी से पूछा
"हाँ क्यों नहीं ..यहीं तुम्हारे साथ ही तो खुशी है मेरी"
"ओह ..इतना प्रेम करती हो मुझसे" ? देवांश की खुशी सातवें आसमान पर थी
"तुमने सच कहा था देबू, तुम जब चाहों,जहाँ से चाहो मुझे बापस ला सकते हो...चलो अब साथ रहते हैं"
"काश.. रह पाता मंजरी..तो मुझसे ज्यादा सुखी और कौन होता" देवांश अपनी विवशता पर खीजते हुए बोला
"अब तक भी तो रह रहे थे"
देवांश:-"वो इसलिए कि एक निश्चित समय मिला था मुझे..जो खत्म हुआ, अब मुझे जाना होगा..मैं मजबूर हूँ " वो मंजरी के पास से थोड़ा दूर हटा और दुखी होकर दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया ...मंजरी उसे कुछ पल देखती रही और विचारों के भंवर में डूबती उतराती रही...फिर एकाएक कुछ तय करते हुए उसने अपने दोंनो से एक बड़ा सा पत्थर उठा लिया और बोली
"ठीक है देबू, तो चलो साथ चलते हैं.." ये सुनकर देवांश ने उसकी ओर देखा,मंजरी बड़ी फुर्ती से वो पत्थर अपने सिर के बिल्कुल पास ले आयी और अपने सिर पर मारती इससे पहले ही देवांश ने वो पत्थर उसके हाथ से छीन कर फेंक दिया, और हाँफते हुए चिल्लाया "पागल हो गयी हो क्या..ये क्या करने जा रही थीं"
(रोते हुये) "मैं तुम्हारे बिना ना तो रह सकती हूँ ना ही जी सकती हूँ"
"और मैं तुम्हें मरते हुए नहीं देख सकता मंजरी" देवांश दुखी होकर बोला
"मैं नहीं रह सकती तुम्हारे बिना..मार दूँगी मैँ खुद को अगर तुम ना मिले तो"
".आह..क्या करूँ ...कुछ समंझ नहीं आ रहा...कुछ नहीं" देवांश उलझन की स्थिति में बोला
"क्या कोई रास्ता नहीं देबू...सोचो ना ..कोई रास्ता तो होगा"? मंजरी रोते हुए बोली...और जमीन पर बैठ गयी..देवांश उसे बहुत देर चुप रहकर प्यार से देखता रहा ..फिर उसकी आँखों मे चमक आ गयी..वो मंजरी की आँखो में देखते हुए बोला "तुम्हारा इतना प्यार देखकर सोचता हूँ..(फिर एक उँगली आसमान की ओर उठाकर) उससे बगावत कर ही लूँ"
"सच..."? मंजरी खड़ी होकर खुशी में चहकते हुये बोली
" हम्म.. तुम्हारा साथ पाने की इच्छा मेरे मन मे भी आ गयी है मंजरी...और एक शख्स है जो इसमें हमारी मदद कर सकता है.." हांमी में सिर हिलाकर...मुस्कुराते हुए बोला देवांश
"कौन है वो? उसके पास जल्दी चलो देबू"
"हम्म" मुस्कुराते हुए देवांश ने अपने हाथ बढ़ाकर मंजरी को अपनी बांहों में उठा लिया..मंजरी हवा में उठ गई..और जमीन से थोड़ा ऊपर उठकर देवांश उसे हवा में उड़ते हुए ले जा रहा था...
***
एक वीरान सी जगह पर एक झोंपड़ीनुमां छोटी सी कुटिया बनी थी,उसी में से एक बेहद मद्दम रोशनी बाहर आ रही थी और रह-रह कर खाँसने और कराहने की आवाज भी
देवांश वहीं रुक गया और उंगली से इशारा करते हुए बोला "इसी कुटिया में वो इंसान है जो हमारी मदद कर सकतें हैं"
ये सुनकर मंजरी उस कुटिया की ओर लपकी कि देवांश ने उसकी बाँह पकड़कर रोक लिया........क्रमशः........