sonal johari

Drama Romance Fantasy

4  

sonal johari

Drama Romance Fantasy

पार्ट 9:मालबन में 'वो'

पार्ट 9:मालबन में 'वो'

15 mins
323


आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि राहुल, मंजरी को रिसोर्ट ले जाता है जहाँ उसे शादी के लिए प्रपोज करता है...मंजरी के मना मरने पर उसके साथ मारपीट करता है और जबरदस्ती करने की कोशिश करता है..तभी वहाँ देबू पहुँचता हैं और मंजरी से कहता है.."आओ पिक्चर दिखाता हूँ".... .अब आगे..


राहुल झूमर के नीचे दबे अपने पैर को पूरी ताकत से बाहर निकालने में लगा था ...पैर निकालते ही उसकी नजर सामने खड़ी मंजरी पर पड़ी और वो मंजरी की ओर जैसे ही लपका...देवांश ने उसके उसी चोट खाये पैर पर अपने पैर से एक जोरदार ठोकर मारी जिससे वो कराह उठा..फिर तीन -चार लाते उसके पेट में मार दी..और फिर राहुल के मुँह पर एक जोरदार पंच मारते हुए देवांश के मुंह से निकला "तूने मंजरी को हाथ लगाने की हिम्मत भी कैसे की...कैसे.."

चोट खाये राहुल के मुंह से खून निकलने लगा वो आवाज सुनकर अपनी गर्दन घुमाते हुए इधर- उधर देखने लगा लेकिन उसे कुछ ना दिखा "क...कौन है यहाँ..सामने आओ..."

वहीं खड़ी मंजरी ये सुन थोड़ा चौंक गयी...और खुद से ही बोली "सामने ही तो खड़ा है देबू..इसे दिख क्यों नहीं रहा..कहीं इसकी आँखों की रोशनी तो नहीं चली गयी...अच्छा ही है ऐसे जानवरों के साथ ऐसा ही होना चाहिए"...

राहुल ने हवा में ही पूरी फुर्ती से हाथ घुमाया...जिससे देवांश थोड़ा पीछे हटता हुआ बच गया...और तुरंत ही उसने एक जोरदार पंच मारते हुए राहुल को नीचे गिरा दिया...और गुस्से में चीखा "इस रिसोर्ट के बलबूते तू मंजरी का प्यार खरीदने चला था ना... जानवर ...अमूल्य है वो और उसका प्यार..."

थोड़ी दूरी पर खड़ी मंजरी ये सुन भाव विभोर होकर रोने लगी...

बस्स आवाज गूँजती सुनी तो राहुल उठ खड़ा हुआ और टूटे हुए फानूस में से लगभग एक फ़ीट का टुकड़ा उठाते हुए बोला.."कौन है तू ...हिम्मत है तो सामने आ (फिर मंजरी की ओर देखकर चीखते हुए) कौन सा मायाजाल है ये तेरा ..जादूगरनी..बोल "

मंजरी आश्चर्य से देवांश की ओर देखकर मन ही मन 'ये मुझे देख रहा है ..मतलब देख सकता है..तो ..तो ये देबू को क्यों नहीं देख पा रहा"..ये सोचते हुए उसने देवांश की ओर देखा ...देवांश शायद मंजरी के मन की शंका को भांप गया...और अपने जीवंत रूप में राहुल के सामने आ गया...उसके सामने आते ही

"आह..हा.."करते हुए राहुल एक झटके से पीछे हट गया...उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था..

"ले आ गया सामने ..अब बोल" देबू ने कहा और अब चौकने की बारी ...मंजरी की थी...मंजरी को अपनी आँखों के सामने छोटे-छोटे सितारे दिखने शुरू हुए..उसने अपने माथे पर हाथ रखा और दीवार के सहारे टिक गई..घिसटते हुए जमीन पर लुढ़की और बेहोश हो गयी...

राहुल अपने हाथ में पकड़ा हुआ रॉड पूरी ताकत उछालते हुए देवांश की ओर लपका जिसे देवांश ने पहले ही पकड़ लिया और पैर से एक किक राहुल के पेट पर दे मारी ..किवाड़ पर जा लगा राहुल ..गुस्से में दहाड़ा "है कौन तू साले...कुत्ते"..

"मैं वो हूँ ..जो मंजरी को दुखी नहीं देख सकता"...फिर राहुल के पास जाकर उसके सिर के बाल पकड़कर "ऐसे ही बाल पकड़े थे ना तूने मेरी मंजरी के" चीख उठा राहुल"आहह"

"मैं वो हूँ जो मंजरी को सताने वाले को माफ नहीं कर सकता"

दीवार से राहुल का चेहरा सटा कर उसे घसीटते हुए...

"मैं वो हूँ..जो उसके आँसुओं का हिसाब तुझ जैसे कमीने को मार कर लूँगा...

मैं वो हूँ जो उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ (फिर राहुल का हाथ पकड़कर उमेठते हुए ) इन्हीं हाथों से मारा ना तूने मेरी मंजरी को.."

राहुल दर्द से कराहते हुए "आहह..आहह छोड़ दे मुझे.."

लेकिन देवांश उसकी बाँह तब तक उमेठता रहा जब तक एक "चट्ट" की आवाज के साथ राहुल की बाँह की हड्डी नहीं टूट गयी...

राहुल दर्द में चीख़ते हुए बोला "मा... माफ कर दे...तू है कौन...मंजरी का कौ...कौन ..है तू" राहुल अपनी बाँह छुटाते हुए बोला...तो देवांश ने उसे जमीन पर धक्का दे दिया...अब राहुल जमीन पर गिर गया

देवांश गुस्से में चीखकर बोला "..मैं कुछ नहीं हूँ उसका..लेकिन वो ..वो सब कुछ है मेरी...आई लव मंजरी.."

निढाल पड़ी मंजरी के कानों में ये आवाज गयी तो उसने अपनी आँखें खोल दी..उसे होश आ गया..वो आश्चर्य से मुँह खोले देवांश की ओर देखने लगी...जो राहुल के सामने गुस्से में आगबबूला खड़ा था..और राहुल एक बेदम चोटिल जानवर सा जमीन पर अधलेटा पड़ा था...मंजरी हाँफते हुए दीवार के सहारे खड़ी हो गयी...देवांश ने अपना एक हाथ ऊपर की ओर उठाया और बोला" इस रिसोर्ट के बलबूते ही ख़रीदने चला था ना तू मंजरी का प्यार ...मेरी मंजरी का प्यार ...मुझसे पूछता है कौन हूँ मैं उसका..(मुस्कुराते हुए आँखें बंद करके) आई लव मंजरी..देख राहुल अपने घमंड को टूटते हुए देख ...एक-एक कर रिसोर्ट की दीवारें "धम्म धम्म " करती हुई गिरने लगीं..और राहुल बौखलाया सा जो दीवार गिरती उसी ओर देखने लगता

मंजरी जो हतप्रत सी बस्स आँखें फैलाये सब देख और सुन रही थी बस्स उसके मुंह से "देबू" ही निकल पाया और उसने अपनी हथेली खुद के खुले मुँह पर रख ली

अगले ही पल आगे बढ़कर देवांश ने राहुल से वो लोहे की रॉड छीन ली और अपना पैर राहुल के सीने पर कर चिल्लाया "मार दूँगा तुझे"

अब राहुल जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा था देवांश का एक पैर उसके सीने पर और दोनों हाथ जिनमें रॉड पकड़ी थी देवांश ने, वो दोनों हाथ हवा में..वो रॉड को राहुल के सिर में मारने ही वाला था...उसी पल मंजरी भागती हुई आई और घुटनों के बल देवांश के सामने गिरती हुई चीखी "..न...हीं..नहीं देबू...नहीं ..रुक जाओ"

"तुम इसे बचा रही हो " देवांश ने भी चीखते हुए कहा

"नहीं देबू..इसे मारकर अपने हाथ गंदे मत करो"

"मेरी फिक्र मत करो..मंजरी..अगर ये जिंदा रहा तो फिर तुम्हें परेशान करने की कोशिश करेगा...मैं नहीं चाहता ये कमीना तुम्हें देखे भी" गुस्से में देवांश चीखा

"देबू तुम्हें मेरी कसम.. रुक जाओ.. देबू हत्यारा नहीं हो सकता ..नहीं हो सकता हत्यारा"...मंजरी ने जब ये कहा तो देवांश का गुस्सा जाता रहा.. अपने हाथों में पकड़ी रॉड उसने फेंक दी...और एक कोने में जाकर खड़ा हो गया....रिसोर्ट की दीवारें अब भी गिर रही थीं..कुछ देर मंजरी को सिसकते हुए देखता रहा...फिर बोला "बहुत थक गई हो तुम मंजरी..चलो घर छोड़ दूँ तुम्हें.."

"सालों से मन ही मन तप तुम रहे हो ..और थकी मैं हूँ " उसने देवांश की ओर देख कर कहा ..तो देवांश ने नजरें नीची कर लीं

"वो सब...ऐसे ही कह दिया...उसे दिल से मत लगाओ मंजरी..गुस्से में ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया" देवांश, मंजरी की ओर पीठ करके बोला

"गुस्से में ही तो सच निकलता है देबू..." वो अब भी जमीन पर ही बैठी थी..

"मैंने कहा ना ...बस्स ऐसे ही ...भूल जाओ जो तुमने सुना"

"तुम तो नहीं भूल पाए मुझे...क्यों नहीं बताया देबू...बताओ क्यों नहीं बताया मुझे " मंजरी थोड़ी तेज़ आवाज़ में बोली

"कब बताता ...बोलो ना कब बताता"?

"जब भी महसूस हुआ तब ही बता देते देबू"

देवांश:-" हुम्..महसूस तो मुझे तब ही हो गया था मंजरी ....जब अपनी महीनों की पॉकेट मनी के पैसे बचा- बचा कर तुम्हारे लिए वो चांदी का कड़ा लाया था...(मंजरी ये सुनते ही और तेज़ सिसकी के साथ रोने लगती है) तब भी महसूस हुआ था...मंजरी...जब उस दिन फेयरवेल की पार्टी के बाद तुमसे पूछा था."कि क्या तुम मुझे पसंद करती हो...(हँसकर) उस दिन तुम कितनी तेज़ भागी थीं...मंजरी...उस दिन पूरे रास्ते तुम्हारे पीछे दौड़ा था ..वैसी खुशी ...फिर कभी महसूस नहीं हुई मंजरी

कभी नहीं..."

मंजरी:-" सच कहते हो ...वैसा कभी महसूस नहीं हुआ फिर

...बहुत ख़ुशनुमा पल थे वो...जब भी याद आये मैंने खुद से कहा ये बचपना था...बचपना था.."

देवांश:-"मैंने भी यही कहकर खुद की भावनाओं का कत्ल कर दिया......और ग्रेजुएशन में ..कितनी ही बार लड़कियों से फ्लर्ट करने की कोशिश की..रिश्ते में जाने की कोशिश की ...लेकिन सब फेल ..मैं नहीं कर पाया ...बार बार तुम्हारा चेहरा सामने आ जाता.. तब भी महसूस हुआ...प्यार करने लगा हूँ तुमसे..यहाँ तक कि ग्रेजुएशन की पहली साल में मैं भी फेल हो गया मैं.."

मंजरी मुस्कुराकर बोली " क्या ..? तुम पहली साल में फेल हो गए थे.."

देवांश भी मुस्कुरा कर बोला "हाँ मंजरी..तुम जो नहीं थी..बारहवीं में तो तुम्हारी वजह से ही पढ़ पाया था और अच्छे नम्बरों से पास हुआ....तुम क्या गयी ...मानो सब चला गया...

मंजरी:-"ओह्ह देबू" ....पूरा चेहरा आँसुओ से भीग गया था मंजरी का

"फिर गोवा आकर तुम्हे देखता था ...तुम्हीं से छुपकर..ना जाने कितनी बार...

".... सामने क्यों नहीं आये तुम"

"किस मुँह से आता मंजरी...तुम शुरू से ही इंटेलिजेंट रही हो..और मैं ..गधा ..यूँ ही सड़कों पर चप्पल चटकाता घूमता आवारा सा लड़का... जो ग्रेजुएशन भी पास नहीं कर पा रहा था..

"फर्क नहीं पड़ता इससे देबू."

हामी में सिर हिलाकर..." लेकिन उस वक़्त यही समझ पाया..फिर अन्नी की शादी में देखा तुम्हें..जैसे नई ऊर्जा मिली हो मुझे..यकीन हो गया...या ये मान लो क़ुबूल किया मैंने, उस दिन, कि तुम्हीं हो जिसे ईश्वर ने मेरे लिए रचा है.."

"और उस शादी में भी मैंने तुम्हें अनदेखा कर दिया था"

"तुम बेकार ये सोच कर खुद को तकलीफ दे रही हो मंजरी..मुझसे तो पूछो..मेरा तो उस ओर ध्यान ही नहीं गया....कि तुमने बात नहीं की या अनदेखा कर दिया...क्या फर्क पड़ता है .तुमने जो किया ,सही किया उस वक़्त...बस्स तुम्हे देखते ही ...ना जाने क्या हुआ मुझे...उसके बाद खुद को तुम्हारे लायक बनाने में पूरी ताकत झोंक दी मैंने ..जब भी हताश महसूस करता..बस्स छुपके से गोवा जाकर तुम्हें दूर से देख लेता...और दो सालों में ही मैंने आई.एफ.एस. की ये परीक्षा पास की..

"ये ख्याल नहीं आया, कि कोई और आ सकता है मेरी जिंदगी में इस दौरान...?"

"सोचा था...मगर मुझे यकीन था अपनी इस अटूट चाहत पर ..खुद पर, कि चाहे कितनी भी दूर चली जाओ तुम अपने प्यार का एहसास दिलाकर...ये यकीन दिलाकर कि उस ऊपरवाले ने मुझे ही बनाया है तुम्हारे लिए ...कहाँ भटक रही हो तुम..तुम्हारा प्यार यहां है...वापस ले आता तुम्हें.."

मंजरी ने एक तेज़ सिसकी लेकर ..दोनों हाथों से चेहरा ढँक लिया..

"तुमने इतना चाहा मुझे और मैं ...मैंने क्या किया .?..तुम हमेशा याद आते रहे मुझे..लेकिन मैं झुठलाती रही खुद को...ये सोच कर कि मन का वहम होगा मेरा बचपना होगा....तुम अपनी जिंदगी में मस्त होगे..काश तुम एक बार सामने आते देबू..काश एक बार आ जाते..

"भगवान ने हमें बहुत पहले ही मिला दिया था..लेकिन हम नहीं पहचान पाए, ये हमारा दोष रहा...या कहूँ जो हुआ अच्छा ही हुआ..भगवान कभी गलती नहीं करते...

"तुम तो जानते हो मुझे, हमेशा से कितनी बेबकूफ़ हूँ मैं..तुम्हे आना चाहिए था..'

फिर उठकर देवांश के पास जाकर उसने देवांश के गले लगना चाहा ..तो देवांश कुछ कदम पीछे हट गया..इससे मंजरी को बड़ा आश्चर्य हुआ..."ये क्या ..अब तुम्हें गले भी नहीं लगा सकती मैं..इतना भी हक़ नहीं दोगे मुझे देबू..."

"वो बात नहीं मंजरी...एक तुम्हारे सिवा और था ही क्या..मेरे पास.."

" तो फिर..." कहते हुए वो फिर देवांश की ओर बढ़ी और उसे गले लगा लिया..."हंन.." उसके मुँह से निकला जब उसके हाथ खुद के कंधों पर ही आ लगे...आंखें फैलाये नज़र थोड़ी ऊपर की ओर डाली तो देखा, देवांश आँखें बन्द किये रो रहा है आँसुओं से पूरा चेहरा भीगा है..लेकिन वो चेहरे से नीचे नहीं गिर रहे हैं...मंजरी ने देवांश के आँसू पोंछने के लिए अपना हाथ बढ़ा कर उसके चेहरे पर रखा.. उसके हाथों ने नर्म बादल को छुआ हो जैसे... वो चेहरा ना होकर सफेद बादल जैसा था ..अपनी हथेली को उसने उलट पलट कर देखा उसी सफेद धुंए में देखा..और मंजरी का चेहरा तनाव से जैसे जड़ हो गया ...आंखें फाड़े वो "आ....ह ...आहहहहह" चीखती पीछे हटी और अपनी दोनों हथेलियाँ पीछे की ओर दीवार पर रख काँपने लगी...पूरी हिल रही थी वो...फिर कुछ पल बाद उसने हिम्मत बटोर कर सामने देखा ...देवांश उसी को देख रहा था..उसकी आँखों से अब भी झर-झर आँसू बह रहे थे...

"क्या .....अहहह..क्या ...है.... य....ये...है क्या " वो बड़ी मुश्किल से हाँफती हुई बोली..

"तुम पूछ रही थी ना...क्यों नहीं बताया मैंने..? ये थी वजह ..ये थी मंजरी." रोते हुए देवांश चीखा

"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा ...कुछ नहीं...कुछ भी नहीं" मंजरी डर से अब भी कांप रही थी

"....जो मर जाते हैं मंजरी उनका शरीर उनके साथ नहीं होता"

मंजरी:-"मम्...मत....लब...क...क्या मतलब"

"मतलब ये मंजरी... मैं मर चुका हूँ"

"व्हाट नॉनसेंस...क्या बकवास है ये...हाथ जोड़ती हूँ तुम्हारे देबू...बन्द करो ये मैजिक गेम...तुम पहले भी ..ऐसे जादू वादू में इंट्रेस्टिड थे...ये सही वक्त नहीं...बेहूदा है ये देबू ..बेहूदा है बन्द करो प्लीज़" वो डर से चीख कर बोली

देवांश हताश आवाज में बोला" काश गेम ही होता...काश ..तो मुझसे ज्यादा भाग्यशाली कौन होता इस धरती पर..मैं बस्स आत्मा हूँ

(फिर मंजरी के पास जाकर अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाकर) छुओ मुझे..हाथ पकड़ कर देखो मेरा .."

मंजरी ने डरते हुए हाथ पकड़ने की कोशिश की लेकिन उसके हाथ लगाते ही देवांश का हाथ धुंए में तबदील होकर बिखर गया...आश्चर्य से मंजरी ने देवांश की ओर देखा और तेज़ सिसकी भरकर रोने लगी

"मत रोओ मंजरी ....मत रोओ"

"ये क्या हो गया...कब...कैसे ...कैसे देबू"?

"सब बताता हूँ मंजरी...सब...जॉब लगने के बाद मेरी जॉइनिंग इसी जंगल में हुई थी..सोचा अपनी माँ को लेकर तुम्हारे पास जाऊँगा...नहीं शादी की बात करने नहीं ..ये सोचकर माँ साथ होगी तो कम से कम तुम्हारे घर या तुम्हारे सामने बैठ पाऊँगा..फिर बाद में मां को बता दूँगा ये है तुम्हारे बेटे की पसंद...लेकिन उन दिनों उनकी आंखों की रोशनी नाममात्र को रह गयी थी बस्स किसी के होने की छाया अनुभव कर लेती थी वो....सोचा पहले उनका ऑपरेशन करा लूँ ताकि वो तुम्हें देख सकें..(हाथ से इशारा करके) इसी जंगल के किनारे वो गंदला सा नाला, उसी के पास से ऑपरेशन के लिए पैसों का इंतज़ाम करके लौट रहा था मैं, उन्हीं पैसों के लिए कुछ गुंडो से झड़प हो गयी मेरी...और उन्होंने मुझे मार डाला ...उसी गंदले नाले में..कई दिनों मेरा मृत शरीर पड़ा रहा..

"क्या"?

-"हाँ मंजरी...बाद में उसे लावारिस मान कर पुलिस ने जला दिया..

"हे भगवान...और तुम्हारी माँ"? मंजरी ने बिलखते हुए पूछा

"उन्हें मोहल्ले वालों ने जब ये खबर सुनाई ...तो वो ये सदमा सह नहीं पाई..और चल बसी ...ओह..मैं उन्हें मुखाग्नि तक नहीं दे पाया...इस जंगल से कितने ही लोग गुजरे ...रुके भी...ना कोई मुझे देख पाया और ना ही सुन पाया...लेकिन उस दिन ...जब तुम्हें उन गुंडो ने छेड़ा...तुमने ना सिर्फ मुझे देखा बल्कि सुना भी"

"तुम उस वक़्त भी..?" मंजरी ने आश्चर्य से पूछा

"हाँ उस वक़्त भी एक आत्मा के रूप में ही था.."

"यकीन नहीं होता"

"मुझे भी अपनी मौत स्वीकार करने में बहुत वक़्त लगा मंजरी ...मुझे तो ये भी नहीं पता था...कि आत्मा के रूप में भी ताकतवर हूँ..वो भी तब जाना जब तुम्हें देखा... बहुत नाराज़गी थी ईश्वर से मेरी.. लेकिन जब उसने तुमसे मिलवाकर मेरी दो सबसे बड़ी इच्छाये पूरी कर दीं हैं..अब उनसे भी कोई नाराजगी नहीं मेरी"

"कौन सी इच्छाये देबू" मंजरी अपने आंसू पोछते हुए बोली

"पहली तो ये कि कुछ ख़ुशनुमा पल तुम्हारे साथ बिताना चाहता था..और दूसरी इच्छा ,सोचता था कि अपने प्रेम का इज़हार कर पाऊं...दोनों इच्छाएँ पूरी कर जैसे भगवान ने मेरी अकाल मृत्यु की क्षतिपूर्ति कर दी है" फिर खिसियानी से हँसी हँसता है

ये सुन कर मंजरी फिर रोने लगी..और बोली

" इस दुनिया से जाने के बाद भी तुमने मेरे साथ दिया..कितनी बार मदद की देबू तुमने मेरी"

"देखो ना, तुम्हें जितना हँसाया उससे कहीं ज्यादा तो रुला दिया मंजरी..मत रोओ अब...एक सुखद जीवन और अर्जुन तुम्हारे  इंतज़ार में है चलो घर छोड़ आऊँ तुम्हें "

जैसे ही घर छोड़ने की बात सुनी मंजरी ने, बोली

"देखो ना देबू...तुम्हारे आने से पहले तक सोच रही थी..कैसे भी घर चली जाऊँ..और अब कहीं जाने का मन नहीं हो रहा..क्या कुछ और देर बात नहीं कर सकते हम"?

"समय देखा है मंजरी..तुम्हारे घरवाले कितने परेशान होंगे"

मंजरी लापरवाही से बोली "बजे होंगे आठ -नौ ..और क्या ..कुछ वक़्त और सही"

"बुध्दू रानी..सुबह के पांच बजने को आये हैं..."देवांश मुस्कुराते हुए बोला

" क्या..देखा..में कहती हूँ ना जब तुम साथ होते हो तो समय का पता ही नहीं चलता"

देवांश ने बेहोश पड़े राहुल को एक हाथ से उठा लिया लेकिन मंजरी को वो हवा में लटका दिखा..उसे देख घृणा से बोली

"इसे क्यों देबू"?

"तुम्हीं ने अपनी कसम देकर इसे मारने से रोका था..तुम्हारी कसम कैसे तोड़ दूँ? तुम्हें छोड़ने के बाद इसे एक आवाज करके हॉस्पिटल के बाहर तक छोड़ दूँगा.ताकि वो लोग इसका इलाज कर दें...फिर जैसी भगवान की इच्छा"

भारी मन से मंजरी,देवांश के साथ चलने लगी ..साथ चलते देवांश पर नजर गयी उसकी तो एकबार फिर से मंजरी के चेहरे पर हवाईयां उड़ गई ...देवांश के शरीर मे से दूसरी ओर लगे पेड़-पौधे भी आसानी से देखे जा सकते थे...लेकिन इस बार वो डरी नहीं ...बल्कि दुखी हो गयी..देवांश से छिपा कर उसने फिर से भीग आये आँखो के किनारे पोंछ लिए..

"मंजरी ..ये सब अर्जुन को मत बताना...

"राहुल की बात भी नहीं"?

"राहुल की बात ही तो नहीं.."

"छिपाना नहीं कहेंगे इसे"?

"नहीं ...वो वैसे भी पसंद नहीं करता था राहुल को ..इसे ऐसे समझो राहुल इतना जरूरी नहीं जिसके बारे में तुम अर्जुन को बताकर उसका और खुद का मूड खराब करो..खराब चीज़े भूल जाना चाहिए"....

मंजरी ने सहमति में सिर हिलाया और 'ओह्ह ' कहने के साथ नीचे झुक गयी...देवांश ने देखा, बड़ा सा एक कांटा मंजरी के पैर में चुभ गया था..देवांश नीचे बैठा..मंजरी के चेहरे पर एक नजर डाली और मुस्कुराते हुए एक हाथ से उसका पैर का तलवा थोड़ा सहलाया..और बड़े प्यार से पैर के अंगूठे के पास लगा कांटा निकाल दिया ...मन्जरी को महसूस हुआ जैसे रुई के फाहे ने छुआ हो उसे...देवांश उठ कर खड़ा हो गया...और मंजरी पैर जमीन पर रखते ही "आहह" करती दर्द से कराह उठी , कुछ पल देवांश उसे देखता रहा फिर राहुल को एक पेड़ पर रख देवांश ने अपने हाथ मंजरी की ओर बढ़ा कर आँखों ही आँखों में उसे छूने की इजाज़त माँगी..जिसे मंजरी ने अपनी गर्दन "हाँ "में हिला कर खुशी से स्वीकार किया..देवांश ने मंजरी को अपनी बाँहो में उठाया और चलने लगा....असीम सुख मिलते ही जैसे चेहरे पर सुकून आ जाता है ..वैसा ही असीम सुख इस वक़्त मंजरी के चेहरे पर आ गया..उसने आँखे बंद कर ली..घण्टों से रोती हुई मंजरी के चेहरे पर अब अमिट मुस्कान ठहर गयी थी...जमीन से थोड़ा ऊपर देवांश उसे बाँहो में उठाये जैसे हवा में तैर रहा था...और मंजरी के चेहरे पर नजर गढ़ाये उसे मुस्कुराते देख, खुद भी मुस्कुरा रहा था...

कुछ पल ऐसे ही बीते होंगे ...कि देवांश बोला:-"मंजरी...घर आ गया तुम्हारा..."

मंजरी ने आँखें खोल दी...अनमने मन से वो आँखें खोलकर खड़ी हो गयी...और बोली :-"देबू क्या तुम रुक नहीं सकते...मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा तुम्हारे बगैर...कौन बचाएगा मुझे मुसीबतों से"

"नहीं मंजरी ...कुदरत का कानून मानना ही पड़ता है...पहले ही बहुत दया दिखायी गयी है मुझ पर...परसों पूर्णमासी का चाँद निकलते ही मैं उस असीम शक्ति से मिलने यात्रा पर निकल जाऊँगा...(फिर मंजरी को दुखी होता देख) मत दुःखी हो मंजरी..प्रेम का मतलब साथ रहना ही नहीं होता ..मुझे याद कर तुम मुसकुराओगी क्या ये बहुत नहीं...मैं संतुष्ट हूँ...तुम अपनी दुनिया में जाओ मैं अपनी दुनिया मे चला"

-"अगले जन्म में मिलोगे"? फिर से आँसू निकलने लगे थे मंजरी के,उसे रोता देख देवांश उसका मन हल्का करने को हँसते हुए बोला" अगला जन्म...लेकिन तुम तो सात जन्मो के लिए बंधने वाली हो अर्जुन के साथ"

"नहीं ...नहीं...बस इसी जन्म के लिए..अगला जन्म तुम्हारे साथ देबू" वो बड़ी अधीरता से बोली..तो देवांश हँसते हुए बोला

"लो जन्म भी फिक्स कर दिया तुमने"

मंजरी ने रोते हुए अपनी आँखें बंद की और भाव विभोर होकर अपना चेहरा देवांश की ओर बढ़ा दिया...देवांश बहुत प्रेम से उस चेहरे को कुछ पल नजर भर देखता रहा .... उसे अपनी लाचारगी पर बहुत दुख महसूस हुआ....

उसी पल "आ गयी..मंजरी ...अरररे मत डर कुछ नहीं कहूँगी...तेरे भाई ने बता दिया है मुझे कि तू कोई जरूरी काम में उलझी है आजकल ..सुन तो कल के लिए तेरी इंगेजमेंट फिक्स कर दी है अर्जुन से" एक ही सांस में मंजरी की माँ उसकी ओर आते हुए बोल गयीं... ..मंजरी उनकी आवाज को सुन उन्हें देखती रही फिर तेज़ी से देवांश की ओर पलटी ...तो उसके सीने में 'धक्कक 'सी हो गयी...

.................क्रमशः................



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama