sonal johari

Drama Romance Fantasy

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sonal johari

Drama Romance Fantasy

पार्ट 10: मालवन में 'वो'

पार्ट 10: मालवन में 'वो'

15 mins
240


आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि देवांश राहुल को पीटता है और मंजरी से अपने प्रेम का इज़हार करता है, साथ ही बता देता है कि अब वो महज आत्मा है...और मंजरी को उसके घर तक छोड़ आता हैजहाँ मंजरी की माँ उसे बताती है कि अर्जुन के साथ उसकी सगाई फिक्स कर दी है....अब आगे..


मंजरी का दिल बैठ गया ....देबू वहाँ नहीं था...जहाँ कुछ देर पहले तक वो खड़ा था... उसी जगह पर वो खरगोश जरूर बैठा था जिसे उसने मंजरी को दिया था,मंजरी उसे देखकर बिलख पड़ी..."ओह..देबू तुम्हारा दिया हुआ ये प्यारा सा तोहफा मैं वहीं भूल आई थी ...लेकिन तुम नहीं भूले...तुम नहीं भूले" उसने खरगोश को गोद में उठाया और घर की ओर चल दी.....और उसके पीछे सुशीला चल दीं

सुशीला-"कल ही अर्जुन की माँ का फोन आया था...बोलीं, हमें बच्चों की सगाई कर देनी चाहिये...मैंने फौरन हाँ कर दी..तू खुश है ना.? (खुद के माथे पर उंगलियां रखकर) उहुँ.. मै भी क्या पूछ रही हूँ....तू तो खुश होगी ही.."

मंजरी जड़वत अपने कमरे की ओर चलती जा रही थी

..."ये ख़रगोश कहाँ से उठा लायी ...(हँसकर) मंजरी तू भी ना...कल सगाई है तेरी और तू ये बच्चों जैसी हरकते करती फिर रही है...

अब मंजरी अपने बेड के पास पहुंच गई

..."अच्छा सुन..कल सुबह वट सावित्री की पूजा रखवा दी है...और शाम को सगाई ....अब तू आराम कर ...मैं तेरी पसन्द के आलू के परांठे बना कर लाती हूँ....खाकर सो जाना थकी होगी ना...ये क्या मंजरी..मैं ही बोले जा रही हूँ..कुछ बोल ना...तू तो कुछ बोल ही नहीं रही..."

कोई प्रतिक्रिया ना कर, मंजरी कटे पेड़ की तरह बेड पर ढह गई...उसे लेटते देख,सुशीला कमरे से बाहर निकल आयीं और बुदबुदाई ..

." बच्चियां चाहे लाख मॉर्डन होने का दावा करें ...शादी तय होने की बात सुनकर उदास हो ही जाती हैं..."फिर किचिन में जाकर परांठे बनाने की तैयारी करने लगीं

बेड पर लुढ़की मंजरी की नज़र कमरे में घूमते पंखे पर टिक गई...उसकी आँखो के आगे वही सीन घूम रहे थे..जो रिसोर्ट में उसने आज देखे और महसूस किए...

..

"मैं मंजरी से प्यार करता हूँ.....

'मुझसे पूछता है कौन हूँ मैं उसका?..मैं कोई नहीं लेकिन वो सब कुछ है मेरी...

'आई लव हर....'

'मंजरी..तुम क्या गयी ...मानो सब चला गया...'

मंजरी की दोनों आँखों के किनारे से आँसू निकले और तकिया पर गिर गए...उसने आँखे बंद कर ली ..तो उसके कानों में देवांश के कहे हुए शब्द गूंजने लगे...

'भगवान ने हमें बहुत पहले ही मिला दिया था..लेकिन हम नहीं पहचान पाए, ये हमारा दोष रहा..'

'यकीन था अपनी इस अटूट चाहत पर ..खुद पर, कि चाहे कितनी भी दूर चली जाओ तुम, अपने प्यार का एहसास दिलाकर...ये यकीन दिलाकर कि उस ऊपरवाले ने मुझे ही बनाया है तुम्हारे लिए ....बापस ले आता..."

'इस रिसोर्ट के बलबूते ही ख़रीदने चला था ना तू मंजरी का प्यार ...मेरी मंजरी का प्यार ...मुझसे पूछता है कौन हूँ मैं उसका... आई लव मंजरी..

"मंजरी ..ये देख तेरी पसंद का आलू पराठा...जल्दी उठ..."हाथ मे प्लेट लिए सुशीला मंजरी के पास पहुंच कर बोलीं...फिर देखा कि मंजरी आँखे बंद किये लेटी है और कोई जवाब भी नहीं दे रही तो उसके सिर पर हाथ फिरा कमरे से बाहर आ गयीं

मंजरी तो अब भी देवांश के ख्यालों को जी रही थी...लेकिन जागी और थकी आँखो के लिए अब और खुले रहना असंभव हो गया था...

"उहम्म..थक कर सो गई..." सुशीला आँगन में आते हुए बुदबुदाई फिर अपने बेटे को आवाज देते हुए "अजय ..पूजा का सामान ले आया.....

***

बहुत से लोगों का हुजूम लगा था..मंजरी साड़ी पहने एक चौकी पर सजी धजी बैठी थी बैठी थी..सामने बैठे पंडित जी जोर जोर से मंत्र पढ़ रहे थे....अचानक लडकों के हँसी के ठहाके गूंजे और..कुछ लड़कों के साथ अर्जुन ने प्रवेश किया ...अर्जुन मंजरी को देख कर मुस्कुराने लगा...लेकिन मंजरी को उसका चेहरा धुंधला दिख रहा था...अर्जुन के ठीक पीछे उसे एक और धुंधला चेहरा दिखा जिस पर मंजरी ने अपनी निगाहें जमा दीं..पल भर में वो चेहरा साफ साफ दिखने लगा था ..वो देवांश का चेहरा था..उसकी आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे... मंजरी जोर से बोली "देबू" उसकी आवाज सुन देवांश के चेहरे पर बल पड़ गए और वो जाने के लिए मुड़ गया

"देबू" मंजरी जोर से चीखी ..वहाँ उपस्थिति सब लोग उसकी ओर अचरज से देखने लगे..मंजरी उठी और देवांश के पीछे चल दी... सुशीला ने उसकी बाँह पकड़ कर रोक लिया लेकिन मंजरी ने जब देवांश को दौड़ते देखा तो झटके के साथ अपना हाथ छुड़ाया और देवांश के पीछे दौड़ने लगी...तभी उसके सामने आकर अर्जुन खड़ा हो गया जिसे मंजरी ने एक पल के लिए देखा और फिर देवांश की ओर दौड़ने लगी..

"रुक जाओ देबू….मुझे छोड़ कर मत जाओ ..मत जाओ देबू..."

चीखती हुई मंजरी उसके पीछे दौड़ती जा रही थी ..

देवांश अब तेज़ दौड़ रहा था...

..."नहीं जी पाऊँगी तुम्हारे बिना देबू...देबू.." बोलती हुई मंजरी अपनी पूरी ताकत से दौड़ रही थी....देवांश के पीछे-पीछे....अचानक एक खड्डे में उसका पैर अटका और वो एक जोरदार "धड़ाम" की आवाज के साथ गिर पड़ी.. "दे.....बू....." गिरते ही जोर से चीखीं वो..

उसी पल......

"मंजरी".......'भड़ाक 'की तेज आवाज के साथ उसके कमरे का दरवाजा खुला और सुशीला आ गयी..

"...मंजरी तू ठीक तो है" मंजरी के सिर पर हाथ फिरा वो बड़े प्यार से बोली

मंजरी ने अपनी आँखें खोल दी...इधर उधर देखा और उठ कर बैठ गयी...अपने दोनों हाथों की उंगलियां सिर के बालों में फंसा वो बुदबुदाई "ओह..सपना था "....

"कोई बुरा सपना देखा क्या मंजरी ?..सुशीला ने पूछा

मंजरी ने बस्स ना में सिर हिला दिया

" अच्छा..जल्दी तैयार हो जा..पंडित जी आते ही होंगे..."

"पंडित जी" मंजरी प्रश्नवाचक निगाहों से बोली

"बताया तो था तुझे, कि सुबह पूजा रखवाई है,वट सावित्री की..हमारे परिवार में होती आई है..(फिर मंजरी को गले लगाकर) परिवार में जब बेटियों की शादी करते हैं ना तो ये पूजा ये सोचकर कराते हैं कि आने वाले समय मे 'भगवान ना करे ...अगर उसके जीवनसाथी पर कोई मौत का साया आये भी तो बेटी यमराज से झगड़कर अपने जीवनसाथी को बचा लाये....समझी...अब तू तैयार हो जा...मुझे बहुत काम है" मुस्कुराती हुई वो उसके कमरे से निकली और पूजा की तैयारी में जुट गई


चार कमरों और एक बड़े से आँगन वाले घर को अजय ने फूलों की लड़ियों और झालरों से सजा दिया था .

....मंजरी साड़ी पहन कर शीशे के सामने तैयार होने बैठ तो गयी थी..लेकिन जी उन्हीं लम्हो को रही थी जिनमे देवांश,राहुल को पीटते हुए मंजरी के साथ खुद का रिश्ता बता रहा था...

..वो शीशे में देख खुद से बोली..."अगर माँ की आवाज से पीछे चौंक कर पीछे ना देखा होता तो क्या पता शायद तुम कुछ और कहते "

.. वो सुबक उठी..".आहह देबू... ..तुम्हें रोका क्यों नहीं .. हे भगवान मैं कितनी पागल हूँ " 

सोच में डूबी मंजरी ने अपना आँसुओं से भीगा चेहरा आगे बढ़ाकर शीशे पर सटा दिया..."मुझे माफ़ कर दो देबू....नहीं समंझ पाई ...मैं वेबकूफ नहीं समंझ पाई तुम्हारे प्यार की गहराई ...माफ़ कर दो...लेकिन ये सजा मत दो...मत दो ...मत दो" वो फूट-फूट कर रोने लगी...

"क्यों रो रही हो मंजरी... ..अर्जुन से सगाई के लिए कबसे सपने देख रही हो तुम..और जब आज सगाई होने जा रही है ...तब तुम देबू की याद में डूबी हो"

आवाज सुनकर मंजरी ने सामने देखा तो उसे शीशे में अपना ही अक्स दिखा...ये उसी की आवाज थी

"क्यों ना रोऊ मैंने उसे खोया है,जो सिर्फ मेरे लिए जीता रहा और इस दुनियां से जाने के बाद भी मेरे लिए ही भटकता रहा"

"हम्म ..खोयी तो सबसे कीमती चीज़ है तुमने...इसमें कोई शक नहीं...लेकिन जो हुआ उसे बदला तो नहीं जा सकता ...

"काश... काश बदल पाती "

"जब जानती ही हो तब ये रोना किसलिये मंजरी...अगर पश्चाताप भी है ..तब भी बहुत रो लीं तुम..भूल जाओ सब ..और आगे बढ़ो ..तैयार हो जाओ ..आज सगाई है तुम्हारी "

(चीख कर) नहीं करनी सगाई...नहीं करनी ..वो मर चुका है...और मैं सगाई रचा लूं.. "

" ये तुम्हारा दुख....अस्थायी है ...टेम्परेरी है..ये फीलिंग कुछ वक्त बाद खुद ब खुद बदल जायेगी मंजरी, अर्जुन का प्रेम पाकर सब भूल जाओगी तुम"

"हरगिज़ नहीं...हर...गिज़ नहीं...बल्कि जब भी मैं अर्जुन के साथ होती हूँ...मुझे सब कुछ याद रहता है चिंता बढ़ जाती है..अपने जॉब की चिंता, माँ की चिंता...हर बात सोच समझकर करनी पड़ती है उसके सामने, मैं राहुल या किसी भी लड़के के बारे में कुछ नहीं कह सकती उसके सामने, धोखे से भी अगर अर्जुन के बिजनेस के बारे में कोई शब्द निकल जाए तो चिढ़ जाता है वो, कहीं भी चिल्लाने लगता है मुझ पर...वो मुझे पैसों का लालची समझता है...सबसे बड़ी बात ..उसे यकीन ही नहीं है मुझ पर"

"अच्छा ...अर्जुन में इतनी कमियां थी तो तुम उसके लिए इतनी पागल क्यों हो रही थी"?

"हाँ सही कहा ...मैं जिद्द पर अड़ी थी ..ये सोचकर कि उसे चुन लिया है ..तो अब जिंदगी उसके साथ ही बितानी है .प्रेम का इज़हार जो कर दिया था उससे...या शायद कोई खुशी की वजह ही नहीं दिखी सिवाय उसके."

"कहीं ये कमियां इसलिये तो नहीं दिख रही मंजरी कि अब तुम देबू से मिल ली हो"

मंजरी बस्स चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही

"बोलो मंजरी...कहीं ...कहीं...देबू से ..देबू से प्यार तो नहीं करनी लगी तुम..?"

मंजरी ने दोंनो हाथ अपने दिल पर रखे और सिसकने लगी

".नहीं ...ऐसा मत करना..वो तो जीवित तक नहीं..."

"मैं ये सोचूं कि वो जीवित नहीं...लेकिन उसका क्या..वो जीते जी भी...और मरने के बाद भी मुझे चाहता रहा ...

नहीं ..मत बनो पागल.."

"देबू ने क्या नहीं किया मेरे लिए..वो इतना बड़ा ऑफिसर बना, मुझे गुंडो से बचाया....खुशी के पल दिए..

राहुल से बचाया..वो अर्जुन को वापस लाया ..वरना अर्जुन कभी वापस नहीं आता"

-"क्या फायदा अब इस सब का..?"

"कितनी बार ऐसा होता है चीज़े हमारे सामने होतीं हैं ..और उन्हें देखकर भी समझ नही पाते...यही मेरे साथ हुआ...मेरा दिल जानता है...पसंद करती थी उसे, फिर भी...अहह अहह..अगर आज अर्जुन से सगाई कर ली तो ..तो कभी सुकून नहीं मिलेगा मुझे."

-"मंजरी सबसे क्या कहोगी..आज सगाई है ..ये समाज..."

"अरे किसी की परवाह नहीं मुझे....ये एहसास भी तब हुआ ...जब देबू सामने आया"

"सम्भालो खुद को, वो तो इस दुनिया तक का नहीं...

कैसे रहोगी उसके साथ?"

"हाँ पता है...पता है..नहीं है वो दुनिया का ..जैसे उसके साथ बीते दिनो रही हूँ..वैसे ही सारी जिंदगी रह लूँगी...बहुत खुशी से रह लूँगी ..जो उसने किया मेरे लिए और कौन कर सकता है ..कोई नहीं..कौन उससे ज्यादा प्यार कर सकता है मुझे ? कोई भी नहीं .जब उसके साथ होती हूँ कुछ याद नहीं आता ...कुछ भी सोचने की जरूरत महसूस नहीं होती...कोई चिंता नहीं सताती..मैं बस्स देबू की हूँ ..."

"तो फिर अब किस बात का इंतज़ार कर रही हो मंजरी पहले ही बहुत देर हो चुकी है"

"हाँ ...सही कहा..(आगे बढ़कर दरवाजा खोलती है बाहर जाने के लिए ..उसी वक़्त सुशीला तेज़ी से कमरे में आ जाती हैं ...

"ये क्या ...अभी तक तैयार नहीं हुई...? ...(फिर चेहरे की ओर देखकर) ये क्या हाल कर लिया है तूने अपना...क्या हुआ है ..बता...मुझे? सुशीला ने हैरानी से पूछा, मंजरी

सुशीला की ओर पीठ करते हुए बोली

"कुछ नहीं"

"अच्छा..रो रो कर आँखे सूज गयी हैं तेरी, पूरा मुँह सुजा लिया है ..क्या हुआ है... .बोल"

"आप नहीं समझ पाएंगी"

"क्यों भला"?

"क्योंकि माँ बाप बच्चों को प्यार बहुत करते हैं, लेकिन समंझ नहीं सकते"

"चल आज तेरी ये गलतफहमी भी दूर कर दूँ...बोल कर तो देख " वो बेड पर बैठते हुए बोलीं

"रोक सकतीं ये एंगेजमेंट "? मंजरी बड़े सपाट अंदाज में बोली

ये सुन कर वो आश्चर्य से मंजरी की ओर देखती हुए बेड से उठ कर खड़ी हो गयीं

"क्या कर बैठी है ....लगा ही था मुझे कुछ तो गड़बड़ है..फिर लगा गलतफहमी होगी मेरी ..."?

"देखा..आपसे ही मिला है मुझे ये गुण, महसूस होता रहेगा.. लेकिन मानना नहीं...सब बाद में समंझ आता है...बेबफाई हो गयी मुझसे..बेबफाई कर दी मैंने उसके साथ..."

"बेबफाई..किससे और किसके लिए"? सुशीला ने चौंकते हुए पूँछा

"मेरे साथ की है बेबफाई इसने.. .. राहुल के लिए " मंजरी को घूरता हुआ अर्जुन कमरे में आया और दोंनो चौंक गयीं,उसने सुशीला जी की ओर हाथ जोड़े और बोला

"मुझे मंजरी से अकेले में बात करनी है"

सुशीला ने मंजरी की ओर देखा तो मंजरी ने भी उन्हें बाहर जाने का इशारा कर दिया...और सुशीला कमरे से बाहर चली गयी

"राहुल से मिल कर आ रहा हूँ..ये तो अच्छी हुआ कि उसकी माँ ने मुझे फोन किया...और मैं उससे मिलने चला गया...एक्सीडेंट हुआ है उसका..एक हाथ मे तीन फैक्चर हुये हैं..बहुत सी चोटें आयीं हैं...इतना ही नहीं याददाश्त खो दी उसने अपनी"

"अच्छा हुआ....ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए" वो बुदबुदाई, इस पर अर्जुन मुस्कुरा कर बोला

" कमाल है तुम उसे बुरा कह रही हो?..ओह्ह समझा उसकी याददाश्त जो चली गयी..अब वो तुम पर अपने पैसे जो नहीं लुटा पायेगा....

"अ...र्जुन..."मंजरी चीखी

"चीखने से सच्चाई छिप नहीं जाएगी, मंजरी..परसों तुम उसके ही साथ थी ना..बोलो...क्या कर रही थी तुम उसके साथ..(दाँत मीसते हुए) ओह्ह... प्रोजेक्ट पर बात कर रही होगी ..है ना" अर्जुन ने भी चीख़ते हुए कहा तो मंजरी इस बार चुप ही रही

"...सोचता था तुमसे कहूँगा कि इंगेजमेंट के बाद छोड़ दो जॉब और घर पर रहकर मेरी माँ की सेवा करो...और समय मिले तो मेरे बिजनेस में मेरी मदद करो....लेकिन... आज राहुल है ..कल कोई उससे भी ज्यादा पैसे वाला आ गया तो..सारी जिंदगी मैं कहाँ तक चौकीदारी करूँगा तुम्हारी ...तुम पैसे की लोभी ही नहीं बल्कि चरित्रहीन भी हो मंजरी.."

मंजरी को सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर उसे दे मारा हो...गुस्से में उसने अपनी आँखे जोर से भींच लीं लेकिन इस पर भी चुप ही रही

.."बहुत धूल झोंक ली तुमनें मेरी आँखों में...मैं ऐसे इंसान के साथ जिन्दगी नहीं गुजार सकता...जिस पर भरोसा नहीं कर सकता...मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता मंजरी...."

मंजरी की आँखों से आँसू निकलते देख वो चीखा

"ओह्ह..बन्द करो ये नाटक...पक गया हूँ देख -देख कर या हमेशा की तरह अपनी सफाई में कुछ कहने वाली हो "

"सब सच बताने ही वाली थी तुम्हें, बल्कि मैं तो खुद को तुम्हारी दोषी महसूस कर रही थी.....लेकिन मेरे प्रति, तुम्हारी ये राय सुनने के बाद इतना ही कहूँगी ...कि सच में.. जिस पर भरोसा ही ना हो ..उसके साथ जिंदगी नहीं गुजारनी चाहिए अर्जुन..."

"अलविदा मंजरी" इतना बोलकर लगभग भागता सा अर्जुन मंजरी के घर से निकल गया और उसके जाते ही सुशीला जी कमरे में आकर बोलीं

"मैंने सब सुन लिया..सब..इस लड़के से कितना प्यार किया तूने ..और इसकी सोच ..हे राम..अच्छा हुआ सब सगाई से पहले पता लग गया ..तू कह रही थी ना सब बाद में समंझ आता है...शुक्र है कम से कम ..सब खत्म होने से पहले तो समझ आ जाता है ना....अगर इससे बेबफाई कर बैठी है ..तो तूने..अच्छा ही किया"

"माँ"...मंजरी भावविभोर होकर बोली

"हाँ ...माँ....तेरी खुशी से बढ़कर कुछ नहीं मेरे लिए"

"आप जानती है, दुनिया की सबसे अच्छी माँ है आप.."

अच्छा मुझे जाना होगा माँ" वो दरवाजे की ओर लपकी

"बस्स इतना बता ..कहाँ जा रही है"? सुशीला ने पूछा

"भरोसा है ना आपको मुझ पर?"

"शादी के लायक लड़की रात भर घर से बाहर रहे..और उसकी माँ उससे पूछे तक ना कि वो कहाँ थी...बता मुझे, इससे बड़ी भरोसे की प्रमाणिकता क्या दूँ तुझे"?

मंजरी ने एक बच्चे की तरह सुशीला का चेहरा पकड़ा और माथे को चूम कर बोली "सही कहा आपने...मैं भी आपके इस यकीन को तोड़ूंगी नहीं .और ना ही तोड़ा है.."

"ये बता ...जो बेबफाई की बात कर रही थी तू... क्या राहुल के लिए अर्जुन के साथ बेबफाई की तूने"?

"अर्जुन को तो सुन और जान चुकी हैं आप....कोई बेवफाई नहीं उसके साथ मैंने और राहुल ...वो तो बात किये जाने लायक भी नहीं,

" तो फिर कौन?" सुशीला ने हैरान होते हुए पूछा

"...सब बाद में बताऊंगी ..अभी वक़्त नहीं .. उसे लेने जा रहीं हूँ जो सिर्फ मेरा है और मैं उसकी..जाने दो मुझे माँ"

"जा...अच्छा..मैं यहाँ सब सम्भाल लूँगी" सुशीला दृढ़ता से बोलीं

मंजरी ने एक नजर सुशीला को गर्व से देखा और दौड़कर कार तक पहुँची, कार स्टार्ट की और निकल गयी,उसके जाते ही

"माँ पंडित जी आ गए....और सब मेहमान भी आ चुके हैं ..मंजरी कहाँ गयी है..और मैंने देखा अर्जुन भी आकर चले गए" अजय ने हैरानी से सुशीला से पूछा

"कुछ जरूरी काम से गयी है मंजरी...जा तू देख कोई बिना खाना खाएं ना जाये"

"एंगेजमेंट से जरूरी क्या हो सकता है"

"एंगेजमेंट से भी जरूरी बहुत से काम होते हैं..बस्स हमें कभी कभी देर से याद आते हैं" वो आँखे पोछते हुए बोलीं

"लेकिन माँ.."

"जो कहा है सो कर जाकर...कोई एंगेजमेंट नहीं होगी आज यहाँ " ये बोलकर सुशीला घर के मंदिर में गयी और हाथ जोड़कर बोलीं "मेरी पूजा और व्रत का प्रसाद दे दो भगवान.... मेरी मंजरी को उसकी खुशियां दे दो"


कार नियत जगह पर लगा मंजरी हड़बड़ाती सी कार से उतरी और जंगल मे भीतर की ओर दौड़ गयी...और जोर से बोली..."देबू...देबू..सामने आओ ...प्लीज़ सामने आओ...मुझे माफ कर दो ...मुझे माफ कर दो..देखो सब छोड़ कर आई हूँ....तुम्हारे लिए...देर हो गयी है लेकिन ये अंत नहीं है...देबू...(हाथ जोड़कर) हाथ जोड़ती हूँ तुम्हारे...सामने आ जाओ .."

(जहां स्टेज बनाई थी देबू ने उसके लिए उस पर खड़े होकर)

"तुम्हारे जीते जी कद्र नहीं की मैंने ..लेकिन ये सजा..ये सजा मत दो देबू..मुझे ये सजा मत दो..."

देबू नहीं दिखा उसे...."कहीं देबू अपनी अंतिम यात्रा पर तो नहीं निकल गया...नहीं ..नहीं ..ऐसा नहीं हो सकता"

ये ख्याल आते ही आँखों में भय व्याप्त हो गया..वो डरी और बौखलाई सी जंगल से बाहर निकल आयी ...बाहर देखा तो खूब रोशनी थी......वो फिर चीखी

"दे.......बू....एक बार सामने आओ...बस्स एक बार...इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे "

लेकिन कई मिनट बीत जाने के बाद भी ना तो देवांश आया ना ही कोई उसके होने का एहसास हुआ मंजरी को..वो जमीन पर ही लेटकर रोने लगी..

फिर एक घण्टा बीत गया...अब मंजरी को दुख के साथ घबराहट होने लगी...कि "पीं पीं पीं की तेज़ आवाज पर उसका ध्यान चला गया..उसे एक ट्रक सड़क पर आता दिखा...

"ओ बल्ली ....ये ब्रेक तो काम ही नहीं कर रहा "उसी ट्रक को चला रहे बलविंदर ने घबराकर खुद से ही कहा और हैंड ब्रेक को चेक किया..लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि हैंड ब्रेक भी काम नहीं कर रहा था...

"तू बेकार ही घबरा रहा है ...यहाँ इस सड़क पर ज्यादातर कोई होता तक नहीं" उसने खुद को ही समझाया और ट्रक की स्पीड को और बढ़ा दिया....

...सड़क पर दौड़ते ट्रक को देखकर मंजरी के मन मे ख्याल आया "तुम मुझे किसी मुसीबत में नहीं देख सकते ना "

वो दौड़ कर सड़क पर आ गयी और सड़क के बीचोबीच उस तेज़ रफ़्तार ट्रक के सामने खड़ी हो गयी ...

"ना सही जिंदगी ...मौत के सफर में हम साथ चलेंगे "

वो आंखे बंद कर बोली

बल्ली ने मंजरी को सड़क पर देखा तो खिड़की से बाहर झांक कर चीखा "अरररे ...हट जाओ बहन जी...मेरी गाड़ी के ब्रेक फेल हैं...सुना नहीं...हट जाओ...ये तो सुन ही नहीं रही क्या मुसीबत है ( फिर गाड़ी बन्द करने के कोशिश करते हुए) ...क्या करुँ... क्या करूँ" वो हड़बड़ाहट में गाड़ी बन्द नहीं कर पा रहा था..मंजरी आँखें बन्द किये खड़ी थी..और ट्रक पास आता जा रही थी...जल्द ही बल्ली ने ट्रक से पूरी तरह कंट्रोल खो दिया और खुद को बचाने के लिए वो ट्रक से बाहर कूद गया...ट्रक अब बिल्कुल मंजरी के पास आ गया था....मंजरी आँखे बंद किये खड़ी रही ..और अगले ही पल...एक जोरदार धमाका हुआ .."बू...म्म"........

..…...............................क्रमशः..............................



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