sonal johari

Drama Romance

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sonal johari

Drama Romance

पार्ट 2: बिन्नी की विलेन मम्मी

पार्ट 2: बिन्नी की विलेन मम्मी

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उसे रोता देखकर मेरा मन आशंका से भर गया.....

"बता तो हुआ क्या....." मैंने घबराकर पूछा

"क्या बताऊँ.....मम्मी.....नीरज को फोन करके उसके बैंक के स्टेटमेंट के साथ रेस्टोरेंट में बुलाती हैं....पहले उससे मंगा कर ही खाना खाती हैं.....फिर उसे ताने मारती हैं"

"अकाउंट किसका"?

"नीरज का....."

"ओह्ह.....उन्हें बैंक स्टेटमेंट देखना आता है" मैंने आश्चर्य से पूछा क्योंकि मेरे मुताबिक वो टूटी-फूटी हिंदी के अलावा कुछ और भी पढ़ सकती है..... यकीन नहीं हो रहा था

"नहीं .....इसीलिए तो हर्षित को अपने साथ ले जाती हैं....."

"ओह....." मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या कहूँ इस पर

"अच्छा सुन, इसमें रोने जैसा क्या है, वो माँ हैं ....उन्हें जानने का हक है कि जिससे उनकी बेटी की शादी हो रही है वो कितना कमाता है ....या उसके पास कितना पैसा है.....इसमें गलत तो कुछ नहीं ." बोलने को बोल दिया लेकिन सच कहूँ तो मुझे भी सुनकर अजीब ही लग रहा था.....घर में और भी लोग हैं बिन्नी के पापा और बाबा....पास ही 2 चाचा भी रहते हैं उसके.....वो भी नीरज की फाइनेंशियल कंडीशन के बारे में पता कर सकते थे.....सो भी एक सभ्य तरीके से.....जो इतना अजीब नहीं लगता.....

" नहीं यार.....तुम नहीं समझ रही हो....मम्मी ऐसा तीन बार कर चुकी है....नीरज को बेइज़्जती महसूस होती है" 

"स्टेटमेंट चेक करने के लिए तीन बार बार बुलाने की क्या जरूरत ?"

"अलग -अलग बहाने से बुलाती हैं नीरज को, ताकि तानें मार सकें कि उसके अकाउंट में सिर्फ साढ़े चार लाख रुपये ही क्यों हैं........कितनी तारीफ की थी मैंने नीरज से अपनी मम्मी की, बता जरा । क्या सोच रहे होगे वो लोग"

"तुम बेकार ही इतना सोच रही हो, नीरज ये सब घर में नहीं बताएंगे.....लड़के इतने तो समझदार होते हैं कि....." मैं उसका मन रखने को बोली कि उसने मुझे बीच में ही टोक दिया

"एकाध बार होता तो नहीं बताते .....जब तीन बार मम्मी ने बुलाकर नीरज की इन्सल्ट की तो उन्हें चिंता होगी कि नहीं .....और वैसे भी बात अब सिर्फ हम दोनों की ही नहीं रही है" उसने अपनी उँगली मुझे दिखाते हुए कहा। जिसमें एक अँगूठी चमचमा रही थी, मेरा सारा ध्यान उसकी अँगूठी पर जा लगा

"इंगेजमेंट हो गयी?.....तुमने मुझे बताया तक नहीं?.....और जब इंगेजमेंट हो गयी है तो ये रोना धोना क्यों"? अचानक से मेरे लहजे में गुस्सा आ गया था.....

"जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं हुआ है" वो बड़ी शांत मुद्रा में बोली

"मतलब.....?"

"मतलब ये कि मैं नीरज के मम्मी, पापा और बहन सबसे बात करने लगी हूँ, सब बहुत अच्छे हैं.....और मुझसे खुश भी हैं, जब उन्होंने मुझसे पूछा कि बेटा तुम्हारी मम्मी नीरज के साथ ऐसा बर्ताव क्यों कर रहीं हैं, क्या तुम्हें पता है?

"ओह्ह.....अच्छा...."

"बता क्या जवाब देती?.........सासू माँ तो ये तक बोली, कि बेटी तुम हमें बहुत पसंद हो.....हम कुछ नहीं चाहते हैं सिवाय इसके कि तुम्हारी और नीरज की जल्दी से शादी हो जाये" बिन्नी कहीं खोई सी मुस्कुराने लगी....

उसे खोया देखकर मुझे एहसास हुआ, कुछ ही महीनों में ये लड़की किस कदर इस रिश्ते को लेकर संजीदा और समर्पित हो गयी है....

"हम्म.....फिर? "

"फिर मैंने नीरज से बात की....और हम दोनों ने तय किया.....कि एक कदम आगे बढ़ा जाए.....मैंने नीरज से कहा मेरे पापा मेरी माँ की इजाजत के बग़ैर साँस भी नहीं लेते.... तो बस्स उन्हें फ़ोन करके बता भर दो कि आज आप लोग आ रहें हैं.....और मौका देखकर नीरज की माँ मेरी गोद में कुछ रख दें.....फिर तो इसे सगाई माना जायेगा.....कोई क्या कर लेगा फिर?"

हम्म सही कहा है किसी ने, इंसान को जब कोई चीज़ भी चाहिए होती है, तो उसके लिए कोशिशें करता ही है.....और रास्ते भी खुद व खुद मिलने लगते हैं........

"फिर जब नीरज के पिताजी ने मेरे पापा को फोन किया तो वो कुछ जवाब दे ही नहीं पाए.....घर आकर जब मम्मी को बताया तो मम्मी बहुत नाराज हुईं, वो लोग दोपहर को ही आ गए.....और जब मम्मी नाश्ते के इंतजाम देखने गयी.....इसी बीच नीरज की मां ने मेरी गोद में 2 साड़ियां और मिठाई रख दी.....और अँगूठी भी पहना दी.....और एन अंगूठी पहनाते वक़्त ही मम्मी वहाँ आ गयी .....और सबके सामने ही नाराज होते हुए बोलीं....

"बहिन जी ये क्या तरीका हुआ.....कम से कम बताती तो, पता नहीं आज की तिथि कैसी हो, और फिर हमने कोई इंतजाम भी नहीं किया है सगाई का"

"अरे । फिर....."

"फिर क्या नीरज की मम्मी बहुत समझदार हैं बोलीं "बच्चे एक दूसरे को पसंद करते हैं.....सबसे बड़ी बात तो यही है.....हमने बस्स अपनी ओर से रिश्ता पक्का कर दिया है....रही बात इंतज़ाम ना कर पाने की ....तो आप अगर ग्यारह रुपये भी दे दें नीरज को .....तो भी शगुन हो जाएगा.....आशीर्वाद ही बहुत है"

"हम्म.....लगतीं तो समझदार हैं"

"हैं वो समझदार यार, जैसे ही वो लोग गए .....मम्मी ने ये कहते हुए " तुझे शादी की बहुत जल्दी है " मुझे दो चांटे मारे...."

"क्या ....."? मैं चौंक गई

"हॉं ....अब बता डरना चाहिये कि नहीं.....मम्मी विलेन बन रहीं हैं.........अचानक नीरज में उन्हें क्या बुरा लगने लगा है, समंझ नहीं आ रहा....जबकि ये रिश्ता उन्हें ही सबसे ज्यादा पसंद था.....उन्होंने ही मुझे कम से कम 10 बार कहा कि बात कर लिया करो नीरज से.....और अब देखो....."

उसकी सारी बात ध्यान से सुनने के बाद मैंने कहा

"हम्म........शायद मुझे समझ आ रहा है....."

"क्या .....बताओ ना ....."

"नीरज को तुम्हारी माँ ने पसन्द किया था.....अगर तुम चुपचाप शादी कर लेतीं....तो कोई समस्या नहीं थी.....लेकिन यहाँ हुआ ये , कि तुम और नीरज एक दूसरे को प्यार करने लगे हो ....और यही समस्या है"

"ये क्या समस्या.....इससे तो उन्हें खुश होना चाहिए" ? बिनीता हैरत से बोली

"यही..... तो परेशानी है.....अगर किसी लड़की ने अपने लिए लड़का खुद पसंद किया है.....तो चाहे फिर वो लड़का भगवान का अवतार ही क्यों ना हों.....घरवालों को वो लड़का दुनिया का सबसे नाकाबिल और बुरा लड़का लगता है....."

मेरी बात सुनकर बिन्नी मुझे आश्चर्य से देखने लगी .....मैंने कहना जारी रखा

"तुम्हारे घर मे हर छोटा बड़ा निर्णय तुम्हारी मम्मी ही लेती आयीं हैं........शादी के लिए हर बात अगर तुम्हारी मम्मी से पूँछ कर होती .....तब उन्हें कोई एतराज नहीं होता.....लेकिन हुआ ये लड़के वाले और नीरज तुम्हें पसंद करने लगे हैं.....और तुम उन्हें.....और तुम्हारी मम्मी को लग रहा है कि सब अपने आप हो रहा है....उनके हाथ से ये अधिकार जा रहा है ....उस पर नीरज की माँ का बिना तुम्हारी मम्मी से पूछे तुम्हें शगुन दे देना.....इसने तो उनके जख्म पर नमक डालने जैसा काम किया है .....समझीं'

"ओह्ह............तभी .....आज उन्होंने मुझे नीरज से बात करने के लिए भी मना किया"

"अच्छा .....?...."

"हम्म.....पता है सोना.....तुम्हें दादी यूँ ही नहीं कहती मैं.....ये जो तुमने समझा और कहा .....मैं कभी भी पता नहीं लगा पाती" वो हल्की मुस्कान के साथ बोली

"वो सब छोड़ो.....अपने पापा से बात करो .....उन्हें पता लगने दो कि तुम इस रिश्ते को लेकर कितनी संजीदा हो"

"पापा.....हुम्म.....मैंने जबसे होश संभाला है ना सोना.....तब से लेकर आज तक उन्हें बस सुबह खाना खाकर स्कूल जाते फिर लौटकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते और शाम को फिर खाना खाकर सोने के अलावा किसी और बात से मतलब रखते नहीं देखा "

"कह कर तो देखो.....आज तक नहीं बोले इसका मतलब ये तो नहीं आगे भी नहीं बोलेंगे?

उसने बिना मन होते हुए भी सिर हिलाकर मुझे आश्वासत किया कि वो बात करेगी.....

***

लगभग दो दिन बाद :--

मेरे मोबाइल पर बिन्नी का कॉल आया....जैसे ही उठाया उधर बिन्नी चहकती आवाज में बोली

"हे सोना .....पता है क्या हुआ"

"क्या.....?"

"शादी तय..... हो ....गयी है....." मुझे लगा उछल रही है उधर

"आँ....अरे वाह।.....कब की डेट निकली है " मैंने कुछ गलत ही सोच लिया था बिन्नी की मम्मी के बारे में, वो माँ हैं....लड़के के बारे में जानने का पूरा हक हैं उन्हें

"पता है आज से पंद्रह दिन बाद ही है शादी.....तुझे शादी का कार्ड देने मैं खुद आऊँगी.....लेकिन तुम तैयारी कर लो" बिनीता बोली

"हाँ हॉं तुम्हारी शादी में शामिल होने के लिए मुझे कार्ड की जरूरत नहीं हैं.....मेरे लिए कुछ काम हो तो बताओ " मैंने भी खुश होकर कहा

"काम- वाम कुछ नहीं है....तुम तो बस नीरज से मिल लो.....वो तुमसे और आँटी जी से मिलना चाहते हैं"

"अच्छा........ ?"

"हम्म....तुम सबसे अच्छी दोस्त हो मेरी.....उन्हें तुम्हारी मम्मी से बात करके उन्हें बहुत मदद मिलेगी .....कि क्या और कैसे किया जाए जो मेरी मम्मी खुश हो जाएं उनसे.....अब खुद की मम्मी से तो बात नहीं कर सकते ना....और तुझे तो पता है यार.....मुझे ज्यादा सामाजिकता का ज्ञान व्यान नहीं है"

"हाँ हाँ ये भी कोई पूछने की बात है....जब चाहे आ जाएं" मैंने कहा और फोन रख दिया.....और अपनी माँ को इस ख़ुशखबरी के साथ-साथ नीरज के घर आने की बात भी बता दी....वो भी खुश हुईं.....

***

लगभग 7 दिन बाद ,

मेरे मोबाइल पर एक अननोन नम्बर से कॉल आया.....मैंने जैसे ही पिक किया....."हैलो"

"हैलो.....आप का नाम सोना है ना"?

"ज....जी....आप ?"

"मैं नीरज.....

"नीरज ....बिन्नी मतलब बिनीता के .....??

"जी ....वही हूँ....जिससे बिन्नी मतलब बिनीता की शादी होने वाली है" उसने मेरे अंदाज़ में ही जवाब दिया.....

"ओह्ह.....हाइ.....नयी.....अ ....नमस्ते कैसे हैं आप....."मुझे समझ ना आये अचानक बोलूं क्या

"हाइ.....नमस्ते.....सोचता हूँ.....घर आकर ही आमने सामने बैठकर हालचाल पूछा जाए .....क्यों"?

"हॉं क्यों नहीं .....कब आएंगे बताइए"?

"अभी ....."

"जी ....."

"अरे भाई अभी आ रहा हूँ, जैसा कि बिन्नी ने बताया था मैं हनुमान मंदिर तक तो आ गया हूँ...अब आगे का रास्ता भूल गया....आगे के रास्ते के लिए गाइड कीजिये"

ये तो पहुंच गया है .....

"क्या हुआ.....आगे का रास्ता बताइए?" वो फिर बोला

"जी.....जी ....आप कौन सी साइड से आ रहें हैं"

"जी.टी.रोड की तरफ से...."

"ठीक है .....लगभग एक किलोमीटर और आगे आइये.....बिल्कुल सीधे.....

"ठीक है"

"फिर आपको एक स्कूल दिखेगा....ट्यूलिप इंग्लिश मीडियम स्कूल.....बस्स वहाँ से मुझे फोन कीजिये....."

"ओके"

मैंने फोन रखा और अपनी माँ को बताने दौड़ी, जो महीनेभर की राशन लिस्ट बना रहीं थी

"मम्मी वो....आ ....नीरज आ रहा है"

"कौन नीरज?"

"अरे वो बिन्नी का होने वाला हसबैंड"

"अच्छा ....कब ?"

"अरे अ....भी तो वो ट्यूलिप स्कूल के पास पहुँच भी चुका होगा शायद."

"हें?"

मैंने जैसे ही अपनी गर्दन हाँ में हिलाई, शांत मुद्रा में बैठी मेरी माँ तेज़ी से किचिन की ओर चली गयी....."सब कुछ है ना

.....नाश्ते में क्या रखोगी?"

"नमकीन, बिस्किट और चाय" मैंने कन्धे उचकाते हुए हल्के अंदाज़ में कहा

"वाह इतना सारा इंतज़ाम...." वो तंज भरे अंदाज़ में बोलीं

"तो? मैं आगे सुनने को बोली

".पता भी है.....सारे रिश्तेदार एक तरफ दामाद अकेला एक तरफ.....सबसे सम्मानित रिश्ता होता है दामाद का....."

"अर ....तो वो कौन सा रिश्तेदार है........वो तो बिन्नी का होने वाला....." मैं इतना बोल ही पायी थी कि वो डपटते हुए बोलीं

"चुप रहो.....तुम्हारी तो सहेली का पति है फिर भी.....अरे है तो दामाद ही.....एक काम करो .....तुम प्याज़ और आलू काटो पकौड़ी तल देना.....और अभी से नमकीन, बिस्किट प्लेट में लगा दो.....ट्रे में कप रख लो .....तब तक मैं बाहर गली में देखती हूँ.....कोई बच्चा दिखे तो उससे समोसे मंगा लूँ....."

कहने के साथ ही कुछ पैसे लेकर वो गेट से बाहर चली गयीं....मेरी माँ कितनी प्यारी हैं.....अभी मैंने प्याज़ काट भी नहीं पाया था....कि वो लौट आयीं

"क्या हुआ अभी तक कढ़ाही नहीं रखी गैस पर"?

"अभी से ....?"

"अरे । तब तक तेल गरम हो जाएगा ना.... तुम किचिन में लगी रहोगी..... .तो क्या मैं अकेले ही बात करूँगी उससे " कहते हुए उन्होंने कढ़ाही रखी और दूध का भगौना उठा कर कड़ाही में दूध डालने ही वाली थीं कि मैंने उन्हें रोका....

"अर माँ दूध है ये .....रबड़ी नहीं बनानी है....."

"अरे ....ओहहो ....तो क्या डालूँ" वो हड़बड़ाई सी बोलीं, जब अचानक से कोई आता है तो अक्सर उनकी हालत ऐसी ही हो जाती हैं.....और मेरा ये देखकर बड़ा मनोरंजन होता है.....शराफत के दायरे में रहकर तो बस्स माँ के साथ इतनी ही शरारत हो सकती हैं ना.....थोड़ी दुष्ट तो मैं भी हूँ

"तेल .....तेल डालिये....पकौड़ी बनानी हैं ना" मैंने हँसी रोकते हुए कहा

"(सिर पर हाथ रख कर) अच्छा हाँ तेल .....एक काम कर देशी घी के पकौड़े बना "

"ऐं ....देशी घी के ?"

"हाँ .....सबको पहली बार का ही मिलना याद रहता है .....बाद में चाहे सोने में तौल दो, कोई फर्क नहीं ...."

"क्या माँ.....सबका अपना स्वाद होता है.....अब मैं बटर में तल दूँ पकौड़ियाँ तो क्या स्वाद आएगा? पकौड़ियाँ तेल में ही अच्छी लगती हैं ना?"

"अच्छा .....हाँ ....तुम भी सही कह रही हो....."

"क्या यार.....क्या हुआ आपको ?"

"देखो जरा अभी से ये हालत है.....अपना दामाद आएगा तो पता नहीं क्या हालत होगी."

फिर मेरी ओर देखा और हताश होकर आँखें बंद करके ऐसे गर्दन हिलाई जैसे किसी से 'ना' बोल रहीं हो

ये क्या तरीका हुआ भला

अरे.....नहीं समझी?

नहीं'.....

जो बात उन्होंने बोली थी शायद तुम्हें शर्माना चहिए था....।

.कमाल है जब महसूस नहीं हो रहा ....तो क्यों शरमाऊं....?

अब दामाद का जिक्र हो और लड़की शर्माए भी ना.....ये भी कोई बात हुई

खुद से बात करके मैं हँस रही थी कि उनकी नजर मुझ पर पड़ गयी, मेरे हाथ में ये प्याज़ देखकर)" ये आज ही कटेगा ना....?" वो मुस्कुराते हुए बोलीं

मैं जल्दी से प्याज़ काटने लगी....

"ये बताओ टीका करके शगुन क्या दूँ"

"मैं क्या जानूँ कितने देने चाहिए"?

"जब पूँछ रही हूँ तो बता ना....अच्छा एक काम करते हैं "

"हम्म"

"मिठाई लेकर आया तो एक हज़ार एक रुपये दे दूँगी, और ऐसे ही आया तो पाँच सौ एक .....ठीक रहेंगे ना?"

"मिठाई होने या ना होने से क्या फर्क पड़ता है....वैसे भी 501 ज्यादा कम नहीं हैं.क्या? ....देते हुए अजीब नहीं लगेगा आपको"

"तुम्हें तो बिल्कुल सामाजिकता की अक्ल नहीं है.....(फिर रुककर) अच्छा ठीक है चलो .....पहली बार आ रहा है एक एक हज़ार एक ही दे दूँगी............कढ़ाही वाली गैस जला दी ना?"

"हॉं हाँ .....सब तैयार है "

.इतने में नीरज का फोन आ गया जैसे ही उठाया उधर से आवाज आई

"स्कूल के ठीक सामने हूँ, आगे बताइए"

"रोड के पार आपको एक जनरल स्टोर दिख रहा होगा"

"जी ....आ ये 'डेली नीड स्टोर'?

"जी.... जी.....वही....उसके पास से ही एक सड़क दिख रही होगी आपको"

"हाँ दिख रही है"

"बस्स उसी में दायीं तरफ .....तीसरा घर है....काले रंग का गेट है.....मैं गेट पर ही हूँ आ जाइये आप" मैंने ये बोलकर फोन रख दिया

"ये दस रुपये तुम्हारे लिए.....और ये लो समोसा" मेरी माँ ने पड़ोस के बच्चे प्रमोद से समोसे का पैकेट लेते हुए कहा, फिर मुझसे बोलीं

"गैस थीमी तो नहीं जल रही?.....तेल गरम हो गया ना "

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई, और उन्हें शांत रहने का इशारा किया, बस्स अब इससे ज्यादा उन्हें परेशान नहीं देख सकती

'इनका तेल गरम होने पर इतना जोर क्यों है....ऐसा लग रहा है गरम तेल में पकौड़ियों को नहीं.....नीरज को तलना है.....'मेरे दुष्ट अंर्तमन से आवाज आई

हा हा हा हा"

'जैसे ही नीरज आये उठाकर सीधे तेल में डाल दो उसे'

'हा हा हा'

खुद में बसे उस शरारती तत्व से बात करते हुए में हँस ही रही थी कि एक लड़का बाइक पर आते दिखा.....पिंक शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र में बेहद गोर रंग में..... किसी से फोन पर बात कर रहा था.....तो ये है ....नीरज? लग तो यही रहा है.....कि तभी उसने पानयुक्त लाल पीक सड़क के किनारे पर दे मारी....साफ सड़क पर एक लाल पिचकारी सी बन गयी.....और हैरत ये कि फौरन उसने एक सिगरेट भी जला ली,

हे भगवान .....तो ये .....ये ....है नीरज?.....अरे ये तो.....ओह्ह बेचारी बिन्नी .....

'अरे तो क्या हुआ....लड़का खाते पीते घर का है' मेरे अंतर्विरोधी की आवाज

"इसे खाता-पीता कहते हैं..... बकवास .... कम से कम इतनी अक्ल तो होनी चाहिए ना, कि बिल्कुल मेरे घर के सामने ही आकर सिगरेट पी ना पिये.....इतना भी क्या ....

फिर उसने बहुत भद्दे तरीके से चुटकी बजाकर सिगरेट पर बनी आयी राख झाड़ी .....अब तो मैं बुरी तरह चिढ़ गयी....ये तो अजीब नमूना है....क्या बिन्नी..... यही मिला था तुझे सारी दुनिया में....मेरा मन खिन्न हो गया था....अब उसने कान पर लगे मोबाइल में, किसी से "ठीक है' कह कर फोन रखा.... और आगे बढ़ गया

अरे ये तो .....ये तो आगे चला गया........

'जाने दे ना........'

क्या यार .... बिन्नी की बात है इसलिए बुलाना पड़ेगा मैंने खुद के अंदर बसे उस व्यक्ति से बात करते- करते मोबाइल से फिर नीरज का नम्बर डायल किया

"आप शायद आगे चले गए हैं....." मैंने उसे बताया

"अच्छा? " नीरज बोला

"जी.....मैंने कहा ना .....मैं गेट पर ही हूँ"

"ओह.....आप को मेरी वजह से परेशान होना पड़ रहा है....लेकिन मैं........मैं बस्स सड़क की ओर मुड़ने ही वाला हूँ"

"मतलब ....?."

"मतलब ये कि सामने देखिए.....आपने पिंक ड्रेस पहनी है .............है ना" उसने आगे कहा

"जी...."

मैंने सामने देखा एक गेहुएँ रंग का इकहरे बदन का लड़का, सफेद रंग की शर्ट और ग्रे ट्राउज़र में एक हाथ से सड़क पर ढ़रकती सी बाइक का हैंडल पकड़े और दूसरे हाथ में फोन पकड़े मेरे घर की ओर आ चला आ रहा था........ओह्ह तो ये है नीरज .....मैं किसी और लड़के को ही .....ओह्ह जरा सी गलतफहमी में क्या से क्या सोच लिया था मैंने ....

.........वैसे लड़का दिखने में तो अच्छा है मैं इसे सौ में से पचास नम्बर देतीं हूँ....

'क्यों नहीं....सबको बस तुम्हारे रिजल्ट का ही तो इंतज़ार है.........हा हा हा

'क्या.....यार कभी तो मेरी तरफदारी किया करो....मेरे अंदर रहकर मेरे ही खिलाफ।

"क्या हुआ..... नीरज आये नहीं अभी तक"....बोलते हुए मेरी माँ मेरे पास आकर खड़ी हो गईं....नीरज भी दरवाजे तक पहुंच गया था। मैंने नीरज से कहा

"ये मेरी माँ हैं और माँ ये हैं नीरज "मेरी बात पूरी होने से पहले ही नीरज मेरी माँ के पैर छूने को झुका तो वो पीछे हटते हुए बोलीं "अरर....हमारे यहाँ दामाद पैर नहीं छूते....बल्कि हमें छूने होतें हैं उनके पैर"

"क्या.....आँटी जी, बहुत बुरी रिवाज है.....मैं नहीं मानता इसे" उसने जब ये जवाब दिया तो मैंने मन में कहा 'सौ में से साठ'

"भइ.....या..... पानी " बोलते हुए मैंने पानी की ट्रे उसके आगे कर दी

"भइया क्यों..... जीजू बोलो " मेरी माँ ने टोका

"अगर भइया बोलूं तो चलेगा ना"? मैंने नीरज से पूछा, असल में मुझे ये 'जीजू' शब्द पसन्द नहीं

"अजी....दौड़ेगा.....बल्कि मैं तो कहूँगा....जो रिस्पेक्ट आप मुझे जीजू बोलकर नहीं दे पाएंगी वो भइया बोलकर देंगी" नीरज के ये बोलते ही मैंने खुद से कहा' सौ में से सत्तर'. फिर मैं किचिन में चली गयी और जब पकौड़े तल कर लायी तो देखा .....कि नीरज रुमाल से अपनी आँखे पोंछ रहा था....और मेरी माँ का मूड भी उखड़ा हुआ था.....और जैसे ही उनकी नजर मुझ पर पड़ी वो बोलीं

"बिन्नी की मम्मी ने रिश्ता तोड़ दिया है...."

"क्या........?." हैरानी और गुस्सा के जो भाव मैंने महसूस किए उससे हाथ में पकड़ी हुई ट्रे संभालना मुश्किल हो गया.....और अगर उस वक़्त मेरी माँ वहाँ मौजूद ना होतीं तो खुद पर कंट्रोल ना रख पाती.....ऐसे में निश्चित ही मैं अपने हाथों से वो ट्रे छोड़ देती....जैसा साठ सत्तर दशक की फिल्मों में खासकर नायिका या नायिका की माँ कोई बुरी खबर सुनकर हाथों में पकड़ी थाली गिरा देती थीं

"क्यों?.....कब?.....बिन्नी ने तो कहा था.....कि सब ठीक है..... शादी तय है.....उसने तो डेट भी बताई थी"  मुझे यकीन नहीं हो रहा था

"आपकी बात बिन्नी से आखिरी बार कब हुई थी"? नीरज ने मुझ से पूछा

"लगभग सात-आठ दिन पहले ....फिर मैंने उसे जानबूझकर फ़ोन नहीं किया मुझे लगा बिजी होगी.....हाँ कल मैंने उसे दो बार कॉल की लेकिन फोन स्विच ऑफ आ रहा था"

"हम्म.....फोन उससे छींन लिया गया है, परसों शाम आखिरी बार मेरी बात हुई थी बिन्नी से..... कल सुबह उसकी मम्मी का फ़ोन आया था..... हमलोगों को उन ने अपनी किसी बहिन के यहाँ बुलाया, ये कहकर कि शादी से जुड़ी कोई बात करनी है.....मैं मारे खुशी के अपने पेरेंट्स और दादा के साथ -साथ अपने दो दोस्तों को भी ले गया था.....मुझे क्या पता था सबके सामने ऐसी किरकिरी करेंगीं बिन्नी की मम्मी"

" क्या कहा उन्होंने? " मैं जानने को आतुर थी

"किया ये कि .....हम लोग जैसे ही पहुँचे वो बोलीं बिन्नी के दादू के कोई कजिन थे.....जिनके यहां हमारे खानदान से किसी लड़की की शादी हुई थी.....बहुत लंबा सा रिश्ता बताया भी था उन्होंने.....मुझे याद नहीं आ रहा अब....." नीरज सिर पर हाथ रखकर कुछ याद करने की कोशिश करने लगा

"रिश्ता याद नहीं आ रहा तो छोड़ो बेटा.....बात पूरी करो" मेरी माँ बोली

"हॉं तो.....इस हिसाब से हमारे खानदान की लड़की उनके खानदान में बहु बनकर जा चुकी है.....अब भला उसी खानदान में वो अपनी बेटी कैसे दे सकते हैं.....ये उल्टा हो जाएगा"

"हैं .....ये क्या बेतुकी वजह बताई है.....बिन्नी के बाबा के कजिन ....." मेरी माँ गुस्से में बोलीं

"हम्म यही तो, जब मेरे पापा ने कहा ये बेतुकी वजह है.....तो वो बोलीं कि 'मेरे ससुर ने कहा है अगर बिन्नी की शादी नीरज से हुई तो वो पूरे परिवार को ना सिर्फ घर से बल्कि जायदाद से बेदखल कर देंगें" ....

नीरज की बात सुनकर हम दोंनो गुस्से से भर गए.....और नीरज ने चाय का कप उठाकर एक बड़ा सा घूँट भरा साथ ही एक पकौड़ी खाकर मेरी ओर देखकर बोला

" आप चाय अच्छी बनातीं हैं.....और पकौड़ियाँ भी बहुत टेस्टी बनीं हैं"

मैं ये सुन मुस्कुरा भर दी .....मूड खराब हो चुका था....नीरज आगे बोला

" .... जब ये सुना तो मेरे दादू बोलें हम बात करेंगे आप के ससुर जी से, और उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे....सब तैयारियां हो चुकीं हैं.....कार्ड बंट चुके हैं.....ये सरासर गलत है.....भला ये भी कोई वजह हुई.....सो भी तब जब दोंनो बच्चे एक दूसरे को इतना पसंद करते हैं........लेकिन जैसे ही बिन्नी की मम्मी ने ये सुना .........वो उठीं और हाथ जोड़ कर अपनी जगह घूम गयी और बोलीं "आप लोग जो चाहें समझें.....लेकिन हम ये शादी नहीं कर सकते.....

"ये क्या बात हुई.....मतलब एन मौके पर शादी तोड़ रही हैं.....और वजह भी नहीं बता रहीं....." मैं गुस्से में बोली

"वजह हो,.....तब तो बताएं ना.....किसी ने कोई ज्यादा पैसे वाला लड़का बता दिया होगा.....अब बस्स वो खुद के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहती इसीलिए उन्हें लगता है वो हाथ जोड़ देंगी और सब खत्म हो जाएगा....समंझ में ये नहीं आता....कि बिन्नी के पापा इस दौरान एक शब्द नहीं बोले.....जबकि मेरे पापा और दादू ने उन् से कई बार पूछा इस बारे में...."

"तुम ही क्या बेटा ....सालों से मैं इन लोगों को जानती हूँ.....मैंने कभी मास्टर साब को बोलते नहीं देखा .....अगर वो इंसान चलता फिरता ना हो तो यकीन करना मुश्किल है कि वो जिंदा भी हैं" मेरी माँ सच में गुस्से में थीं

"अच्छा....हा हा.....बड़ी अजीब बात है.....(फिर संजीदा होकर) जब बच्चों के भविष्य पर बन आये तब तो बोलना चाहिए कम से कम" नीरज ने एक समोसा उठाया और खाने लगा

बेचारा.....

"अब क्या होगा.....?"

"होगा क्या .....उन्हें लगता है वो महिला हैं तो हम इसी वजह से चुप हो जाएंगे और बात खत्म.....नहीं.....ये कोई मजाक नहीं है.....आज हमने उन्हें अपने घर बुलाया है.....आप महिला हैं तो महिलाओं से बातचीत कर लीजिये.....मेरी मम्मी और बहनें बात करेंगी अब उनसे.....(फिर मुझे और मेरी माँ को उदास देखकर) अरे आप लोग उदास क्यों हो गए....चिंता मत कीजिये.....सब ठीक हो जाएगा....."

नीरज ने अपनी बात पूरी करके.....अपने सैम्पल की दवा वाले वाले बैग से एक मिठाई का डिब्बा निकालकर मेरी माँ की ओर बढ़ा दिया

"नहीं बेटा....तुम्हें ये नहीं लाना था....बच्चों को इस तक्कलुफ की क्या जरूरत ....." मेरी माँ ने नीरज से कहा

"आँटी.....आप मेरी ससुराल पक्ष की हैं.....सोना, बिन्नी की बेस्ट फ्रेंड है, इतनी खुशी हुई मुझे मिठाई ख़रीदते वक़्त आज,..... जितनी पहले कभी नहीं हुई,....फिर अब तो मैं (मेरी ओर इशारा करके) भाई भी बन गया हूँ.....दुगुनी खुशी हो गयी है.....प्लीज़ मना मत कीजिये"

फिर नीरज जाने के लिए उठ गया.....मेरी माँ ने नीरज का टीका किया और उसे, जोकि उन्होंने पहले ही निर्धारित कर रखा था, 1001 रुपये का शगुन दिया........और बहुत देर की ना नुकुर के बाद ही नीरज ने 500 रुपये लेना स्वीकार किया.....

"लड़का दिखने में ही नहीं....व्यवहार में भी बहुत अच्छा है".....नीरज के घर से निकलते ही मेरी माँ बहुत प्रभावित होकर बोलीं

***

दो दिन बाद

मेरी कजिन की शादी थी अलीगढ़ में, मुझे शादियों में शामिल होना पसंद नहीं, हाँ जिससे मेरा मन मिलता हो फिर बात अलग है.....सो तय हुआ पापा, मेरी माँ को वहाँ छोड़कर घर वापस आ जाएंगे और मम्मी एक दो दिन बाद आयेंगी.....

"माँ....क्या बिन्नी की शादी हो पाएगी नीरज से ? " मैंने अपनी माँ की साड़ी की प्लीट्स ठीक करते हुए पूछा

"जब बिना मेहनत के अच्छा रिजल्ट मिल जाये तो लोग उसकी कद्र नहीं करते....वही हुआ है....बिन्नी की मम्मी तो क्या पूरा खानदान मिल कर भी ऐसा लड़का नहीं ढूंढ पायेगा.....लेकिन लड़की के भाग्य से मिल गया है .....तो बेकार में ही अड़चन बनीं हैं अपनी बेटी की ख़ुशियों में"

"आप बात कीजिये ना उनसे"

"जो औरत अपनी बेटी की नहीं सुन रही, पति की नहीं सुन रही मेरी सुन लेगी?....

बात तो सही थी उनकी.....मैं चुप हो गयी.....

अगले दिन दोपहर में .....जब मैं खाना बना रही थी गेट पर नॉक हुआ.....दरवाजा खोला तो देखा ' नीरज, लाल सूजी हुई आँखों के साथ दरवाजे पर था....और बहुत कमजोर लग रहा था........

"अरे नीरज भइया....आप आइये "?

"तुम्हें मेरी मदद करनी होगी सोना........" कहने के साथ ही नीरज दरवाजे से अंदर आ गया।

........._______क्रमशः_______



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