sonal johari

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पार्ट-4:बिन्नी की विलेन मम्मी

पार्ट-4:बिन्नी की विलेन मम्मी

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दरवाजे की खटक, मतलब ...मतलब मोटो बाथरूम से बाहर आ रहीं हैं। और ये लड़की अब क्या सोच रही है..... क्या बिन्नी का इरादा बदल चुका है ?

"क्या हुआ? " मैने घबराकर पूछा

"मैं इस घर में कभी लौट कर नहीं आ पाऊँगी,...सब मुझे गालियाँ देंगे, बहुत बेइज़्ज़ती हो जाएगी ना" वो कहीं खोई सी बोली

"सुना नहीं वो क्या कह रहीं थीं...तेरी शादी कर देंगी उस..उ स बिमल से..चल जल्दी कर " कहते हुए मैंने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया

"तो रह लूँगी..घुट -घुट कर मर जाऊँगी ...अगर उनकी खुशी इसी में है तो यही सही" वो रोते हुए बोली और अंदर की ओर मुड़ गयी...

ये क्या है यार । अभी -अभी तो ये बड़े -बड़े डायलॉग मार रही थी...ये तो पलट गई...अब क्या होगा

...क्या छोड़ दूँ इसे..और चली जाऊँ यहाँ से? बोल दूँगी नीरज से मैंने कहा लेकिन आयी ही नहीं ...

नहीं अब तक जो जान चुकी हूँ उससे तो लगता है जो मैं कर रही हूँ वही सबसे सही है... अगर अब इसका इरादा बदला है..तो ये बेबकूफी कर रही है ....इसका भला मैं इससे बेहतर जानती हूँ... बस्स ये घर छोड़ने के डर से भावुक हो रही है...

"लेकिन..." मेरे अंदर बसे व्यक्तित्व ने मुझसे कुछ कहना चान्हा .. 'चुप रहो अब ...जो होगा देखा जाएगा..मैं इसे लेकर ही जाऊँगी, खुद को ही ये डाँट लगाकर पूरे शरीर की शक्ति मैंने अपने उसी हाथ पर लगाकर आगे बढ़कर बिन्नी को झटके से बाहर की ओर खींचा और मैं बेतहाशा दौड़ने लगी पीछे पीछे बिन्नी.....शुक्र है बिन्नी का घर ज्यादा अंदर नहीं था...कुछ सेकेंड में हम गली के बाहर थे...रमेश ने गाड़ी बिल्कुल मेरे पास लाकर रोकी और हम जैसे ही उसमें बैठे, उसने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी....

मैं तेज़ साँस लेते हुए ऐसा महसूस कर रही थी, जैसे कोई कुंटल भर का पहाड़ उठा कर फेंका हो...दिमाग सुन्न हो गया था...

"भाभी जी, नमस्ते। मैं रमेश " रमेश गाड़ी चलाते हुए बिन्नी से बोला, अपने लिए भाभी शब्द सुनकर बिन्नी का चेहरा कमल की तरह खिल गया...

"नमस्ते ( फिर रुककर ) वैसे हवा अच्छी चल रही है " बिन्नी शर्मायी और अपना चेहरा खिड़की के पास ले जाकर ऐसे बोली, मानो कोई पेड़ की लता उससे अभी टकरा कर निकली हो..

लो यहाँ हालत खराब है..और ये ..सच कहता है नीरज इसमें पागलपन के लक्षण हैं, फिर उसी की बात याद आ गयी

पागलों के बीच में रहती है, कुछ असर तो आएगा ही*

"एक बात बता, एन मौके पर एकदम बातें चेंज कैसे कर दी तूने,और वहाँ हवा में पैर उठाये खड़ी हो गयी" मैंने खीजते हुए पूछा, वो मुस्कुरा दी तो मेरी खीज़ और बढ़ गयी

"तुझे मजाक लग रहा है ये सब, मेरी जान हलक में अटक गयी थी ..और तू.गेट पर जब हनुमान बनी खड़ी थी...उसी वक़्त मोटो ..मतलब तेरी मम्मी बाथरूम से निकलीं थी..अगर आज मैं उनके हाथ लग जाती ...शर्तिया चटनी बना देतीं वो मेरी...और बना तो खैर अब भी देंगी..."

"आज तक तो वो घण्टे भर से पहले निकलीं नहीं हैं बाथरूम से, आज क्या खाकर निकलेंगी..." वो बड़े हल्के अंदाज में बोली

क्या फर्क पड़ता है...हर तरफ से ठीकरा मेरे सिर पर ही फूटने वाला है...हे भगवान अगर मुझपे केस लगा तो सारी जिंदगी जेल में जाएगी...और मेरी माँ.(.मैं मन ही मन सोचने लगी) उनके हाथ से जल का लोटा गिर गया है, पानी फर्श पर फैल गया है, सारे टाइम मैं ध्यान रखती हूँ कहीं पानी ना फैल जाए, अगर वो फिसल गई तो...अरे मैं भी क्या सोच रही हूँ...लोटा गिरेगा ही क्यों ...


"जब सुनेगी उनकी बेटी ने ये कारनामा किया है... तो सदमे में लोटा गिर ही जाना है" मेरा अंतर्मन बोला 


"...हाँ सही कहा...ओह्ह मेरा दिमाग ...अब तक तो मोटो बाथरूम से निकल आयीं होंगी..कोर्ट पहुंच कर बिन्नी तो शादी करेगी, और मैं, मेरा मृत शरीर घर लाया जाएगा...मुझे सांस नहीं आ रही.. ..

घबराहट में मैंने बिन्नी की ओर देखा वो खिड़की के पार ऐसे देख रही थी जैसे पिकनिक पर आई हो, मैंने अपनी शर्ट की आस्तीन ऊपर समेटी...और रमेश से कहा " रमेश जरा खिड़की बन्द करके, ए.सी. चला दो सबसे लो टेंम्प्रेचर पर "

"हाँ...वैसे बस्स हम पहुँचने वाले हैं" उसने ए.सी. चलाकर टेंम्प्रेचर कम करते हुए कहा

पहुंचने वाली तो मैं हूँ सो भी स्वर्ग...मोटो .....मुझे माफ़ करना पहली बार उनके लिए हमदर्दी महसूस कर रही थी....सबसे पहले मेरे घर जाएँगी...चीख चीख कर मेरी माँ को मेरे बारे में बताएंगी...आस पास के सब लोगों को पता चल जाएगा...हे ईश्वर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जमीन फट जाए और मैं इसी कार में से सीधे जमीन में समा जाऊँ...

'उसके लिए आपको तपस्या करनी होती है...हमेशा सच बोलना पड़ता है तभी प्रकृति आपकी हर बात मानने के लिए मजबूर होती है...' ये मेरे अंदर का वही दुष्ट व्यक्तित्व बोला...आज तो ये भी दुष्ट ना होकर अच्छा ही लग रहा था..तुम तबसे कहाँ थे..मैं बिल्कुल अकेली पड़ गयी थी...तुम साथ होते हो तो कभी अकेलापन नहीं होता........सब अच्छे हैं सिवाय मेरे...

"इतना पसीना क्यों आ रहा है तुझे, ए सी चल तो रही है.." बिन्नी ने मुझसे पूँछा, मैंने कोई जवाब नहीं दिया..

"सुनो बिन्नी, मेरी मौत की वजह से ऐसा मत करना कि कोर्ट में शादी ना करो ...कर लेना समझी वरना मेरे इस बलिदान का क्या फायदा? " मैंने उससे कहा..

"क्या बोल रही है...कुछ सुनाई नहीं दे रहा है...अरे हुआ क्या है"

अब ये क्या बिन्नी का चेहरा मुझे इतना धुँधला क्यों दिख रहा है...

"@@@@@" बिन्नी ने कुछ कहा ...लेकिन मैंने "ना में सिर हिला दिया...कुछ सुनाई नहीं दे रहा मुझे......कुछ नहीं...अचानक सब तरफ अंधेरा दिख रहा है

***

"आँखे खोलो...सोना ...आँखे खोलो " ये नीरज की आवाज थी जो मेरे कानों में पड़ी

"आँखे खोल यार...तुझे मेरी कसम" ये बिन्नी ..इसे कोई समझाओ मैं होश में नहीं हूँ तो भला इसकी कसम कैसे निभा दूँ

"सुनो...डॉक्टर को बुला ही लो...इसे कुछ नहीं होना चाहिए"बिन्नी के रोने की आवाज मेरे कानों में पड़ी

जब से नीरज की आवाज सुनी मैंने तभी से कोशिश कर रही थी बोलने की, लेकिन मेरी आवाज बाहर नहीं निकल रही थी...सुनाई सब दे रहा था...नाहीं आँखे खोलने की हिम्मत थी

"हाँ हाँ कुछ नहीं होगा इसे, रमेश पूछ जरा अंदर जाकर अगर शादी का टाइम बढ़ जाये तो...इसे ऐसे छोड़कर शादी नहीं कर सकता मैं"

"नहीं शादी किसी कीमत पर नहीं रुकनी चाहिए..." इस बार मैं पूरी ताकत से चीखी और सबने सुन लिया..सबके चेहरे खुशी से खिल गए...बिन्नी ने मुझे गले लगा लिया..."तू बेहोश हो गयी थी पता है.."

"कितनी देर बेहोश रही मैं"

"ज्यादा नहीं मुश्किल से 10 मिनट"...बिन्नी ने जवाब दिया

अच्छा होता कल तक बेहोश रहती कम से कम वो नही सुनना पड़ता जो सुनने वाली हूँ ...

"तुमने कर दिखाया, मैं ना कहता था तुम ही जो कर सकती हो...इतना बड़ा काम करके तुम्हारा बेहोश होना बनता है.." नीरज ने मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर कहा और रमेश के हाथ से लेकर एक जूस की बोतल मुझे पकड़ा दी...

"सही कहा, मैंने तो डर के मारे मना ही कर दिया था...ये ही मुझे जबर्दस्ती खींच कर लायी अगर ये ना होती तो..." बिन्नी मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली

"और तुमसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है...हम यहाँ इतनी कोशिशें कर रहें हैं, और तुम साथ भी नहीं दे सकती" नीरज गुस्सा दिखाते हुए बोला...तो बिन्नी उदास हो गयी

"अरे । ऐसे मत कहिए..घर छोड़ना सो भी हमेशा के लिए बहुत बड़ा फैसला होता है" मैंने कहा तो बिन्नी और ज्यादा उदास हो गयी

"मैंने सुना है ऐसे केसेस में जैसे ही एक बच्चा हो जाता है, पेरेन्ट्स की नाराजगी भी खत्म हो जाती है" मैंने बिन्नी को उदास देखकर कहा तो उन दोनों ने एकदूसरे को देखा ..जहाँ बिन्नी शरमा गयी वहीं नीरज ने मुस्कराते हुए मुझसे कहा " मैंने तुमसे कहा था बिन्नी के घर से निकलते ही फोन करना ..तुमने किया क्यों नहीं? ...मैं तो इसलिए नहीं कर सकता था कि तुम कहीं मोटो के (फिर बिन्नी की ओर देखकर ) मेरा मतलब आँटी के सामने ना होओ"

ये देख और सुन कर मैं हँस दी...

"ओह्ह अब समझी..तुम दोनों मेरी मम्मी को मोटो कहते हो...चलो कोई बात नहीं...वैसे ये तो तब फोन करती जब होश में होती..बेहोश ही हो गईं महारानी" बिन्नी मुस्कुराते हुए बोली

इतने में एक टैक्सी आकर रुकी जिसमें से एक भारी भरकम से लगभग 80 वर्षीय एक बुजुर्ग रुआबदार मूंछो को उमेठते हमारी ओर आने लगे..और उनके पीछे एक महिला, एक लड़की और कोई पचपन छप्पन वर्षीय आदमी...मैंने घबराकर नीरज को सामने देखने का इशारा किया..तो उन्हें देखकर नीरज मुस्कुरा कर बोला

" मेरे घरवाले हैं..कल इन्हें भी मैंने अच्छी तरह ट्रेनिंग दे दी है...वो बड़ी मूँछो वाले मेरे दादू हैं,पापा, मम्मी और मेरी छोटी बहन...बिन्नी ने दुपट्टा सिर पर डाल लिया था...और पास आते ही उन सबके पैर छूने लगी

"सोना बिटिया कहाँ है ( फिर मेरी ओर देखकर) बिटिया...भगवान तुम्हें खूब खुश रखे..हमने तो उम्मीद ही खो दी थी...लेकिन सब नीरज ने बताया...मैं तो तुम्हारा मुरीद और एहसानमन्द हो गया.." मैं थोड़े आत्मविश्वास से भर गई..और मैंने नमस्ते की मुद्रा में अपने हाथ उन सबके आगे जोड़ दिए...

"यार वो दूसरी बार जज ने बुलाया है...जल्दी चलो" रमेश ने आकर कहा तो नीरज समेत हम सब जल्दी से भीतर की ओर चले गए...

"नीरज कौन है?"नाक पर चश्मा टिकाए काले कोट में बैठे जज ने पूँछा

"जी मैं" स्कूल के कोई बच्चा जैसे हाथ उठाकर ' प्रेजेंट सर' बोलता है नीरज ने भी वैसे ही अपना हाथ उठाकर कहा

"आपको क्या लगता है..मैं कोई पंडित हूँ जो बार - बार ये कहता रहता है लड़के को बुलाइये मुहूर्त निकला जा रहा है..दो बार बुला चुका हूँ आपको..दो पार्टियां और भी हैं जिनकी शादी करानी है ..(फिर एक रजिस्टर खिसकाकर) लीजिए साइन कीजिये"

नीरज ने मुस्कुराते हुए साइन किये...फिर बिन्नी ने..और विटनेस के तौर पर रमेश और मैंने बिन्नी की ओर से साइन किये

"हो गया क्या?"...नीरज ने लगभग उछलते हुए जज से पूँछा

"अब पंडित तो हूँ नहीं जो मंत्र पढ़ूँगा..अगर लाये हैं तो एक दूसरे को माला पहना दीजिये..और क्या" जज बहुत चिड़चिड़े मिज़ाज़ का लग रहा था...लेकिन उसका झुंझलाकर बोलना हममें से किसी को भी बुरा नहीं लग रहा था...

रमेश ने उन दोनों को मालाएं दे दी..नीरज और बिन्नी ने एकदूसरे को माला पहनाईं और हम सब ने तालियाँ बजा दी...फिर सबके पैर छूते हुए नीरज मेरे पैरों की ओर भी झुका

"अर..मेरे क्यों" मैं उसे टोकते हुए बोली

"क्यों तुम्हारे यहाँ बहनों के पैर छूने का भी रिवाज नहीं क्या?" जब उसने कहा तो मैं बोली "बिल्कुल है..." और दोनों ने मेंरे पैर छू लिए "

"भले ही तूने इन्हें भाई मान लिया है..लेकिन मेरे लिए तो तू मेरी सहेली ही रहेगी" बिन्नी इठलाकर बोली, जिन कपड़ों में वो वर्तन धो रही थी...उन्हीं कपड़ों में उसने शादी कर ली थी..बेचारी। लेकिन चेहरे पर उतनी ही खुशी और खूबसूरती थी जितनी कि खुद की पसंद से शादी करने वाली लड़की के चेहरे पर होती है...

"ठीक है ..तो पापा आप लोग बिन्नी को लेकर घर जाइये...मैं और दादू रमेश के साथ सोना को छोड़ने जा रहें हैं...क्योंकि बिन्नी की माँ सबसे पहले वहीं जाएंगी.." नीरज के ये कहते ही सबने हांमी भरी और बिन्नी मेरे गले लगकर नीरज से बोली

"इसे कुछ नहीं होना चाहिए"

"किसी को कुछ नहीं होगा...तुम आराम से घर जाओ"नीरज ने जवाब दिया..और सबके साथ बिन्नी टैक्सी की ओर चल दी...बिल्कुल टैक्सी के पास जाकर वो पलटी और मेरी ओर देखकर उसने विदाई लेते हुए हाथ हिला दिया ...

अब तक के प्रकरण में ये पहली बार था...जब मैं इतनी भावुक हो गयी कि अचानक रोने लगी..होऊँ भी क्यों ना। उस वक़्त उसका पूरा मायका सिर्फ मैं ही थी..

"चिंता मत करो..मैं उसे बहुत खुश रखूँगा..और हाँ ..कभी नहीं छोड़ूंगा" नीरज ने मेरे कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा तो

ये सुनते ही मैं रोते हुए भी मुस्कुरा दी ...लड़का समझदार है...मेरे मन का डर भांप लिया इसने....फिर मेरी ओर देख रही बिन्नी को हाथ हिलाकर मैंने बिदा दी...वो टैक्सी में बैठी और चली गयी...उसके बाद रमेश, नीरज, नीरज के दादू मेरे घर की ओर चल दिये...

"डरो मत बेटा, पंचायत में रहने का दस वर्ष का अनुभव है मुझे...लोगों को समझाना खूब आता है" गाड़ी में बैठते ही नीरज के दादू मुझसे बोले

***

"क्या तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा, सोना को"? मेरी माँ शायद पापा से बात कर रहीं थी...फिर जैसे ही नजर मुझ पर पड़ी " आ गयी ...कहाँ गयी थीं...फ़ोन क्यों नहीं उठा रहीं थी...(फिर नीरज और उसके पापा की ओर देखकर) आप लोग...आइये ...आइये"

"ये मेरे दादू हैं, आँटी जी" नीरज ने कहा

"ओह्ह..आइये (फिर मेरी ओर देखकर) पता है..तुम्हें फोन ना लगने के कारण ही मुझे इतनी जल्दी बापस आना पड़ा...है कहाँ फोन तुम्हारा? "

"बहिन जी, जब मुझे पता चला कि ये बिटिया इतनी समझदार है कि ना सिर्फ सही गलत का फैसला कर सकती है बल्कि सही के साथ खड़ी भी रह सकती है, तो मेरी बड़ी इच्छा हुई आपसे मिलने की"नीरज के दादू बोले

"लेकिन इसने ऐसा किया क्या है?"

"मैं बताती हूँ..."इतना सुनते ही सबकी नजरें दरवाजे की ओर घूम गयीं, डर के मारे मेरा बुरा हाल हो गया...मोटो आ गयी थीं...और उनके पीछे बिन्नी के पापा, दादू और हर्षित भी थे

"डरो मत..मैं तुम पर कोई आँच नहीं आने दूँगा" नीरज मुझे घबराते हुए देख कर, बोला...

"ये लड़की ...मेरी लड़की को भगा कर ले गयी"...

"क्या..." बोलने के साथ ही मेरी माँ ने अपने दोंनो हाथ अपने सिर पर रख लिए...और अगले पल मोटो ने अपना हाथ मेरी ओर उछाला...

हे भगवान आज तक जिस औरत से मैं चिढ़ती रही वही आज मुझे थप्पड़ मारने जा रही है...मैंने अपनी आँखें कसकर भींच लीं....बिन्नी तेरी खातिर ये भी सही..लेकिन अब तक तमाचा पड़ा क्यों नहीं...मैंने अपनी एक आँख खोली, देखा नीरज ने मोटो का हाथ पकड़ा हुआ था...मैंने अपनी दोनों आखें खोल लीं

"आप को जो भी कहना है मुझसे कहिए..सोना का इस सब में कोई दोष नहीं है...जो किया मैंने किया" नीरज ऊँचे स्वर में बोला

मैं नम्बर सिस्टम कैसे भूल गयी..आज सीधे ही इसे सौ में से सौ नम्बर देतीं हूँ..

"किसका दोष है ..ये तो पुलिस आएगी तो पता चलेगा...ये लड़की तब बोलेगी" (फिर अपने पति से ) जाओ पुलिस को बुलाकर लाओ" मोटो ने अपने पति को आदेश दिया

"खबरदार जो मेरी बेटी से अब कुछ भी कहा" अचानक मेरी माँ तेज़ आवाज में बोलीं और मेरे पास आकर खड़ी हो गईं

"वाह। ये तो बहुत अच्छा होगा...बुलाइये पुलिस को..बिन्नी बालिग है, और अब तो हमारी शादी भी हो गयी है..." नीरज मुस्कुराते हुए बोला, मोटो धम्म से कुर्सी पर बैठ गयीं...

"देखिए समधन जी..." नीरज के दादू ने बोलना शुरू ही किया था कि मोटो चीख पड़ीं" मैं किसी की समधिन-वमधिन नहीं"

"सुन तो लीजिए, बिन्नी और नीरज ने कोर्ट में शादी कर ली है...आप की नाराजगी किस वजह से है ये तो अब तक किसी की भी समंझ में नहीं आ पाया...लेकिन नीरज को आपने ही पसंद किया है...हम बड़े हैं...बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है...और फिर ऐसा करने के लिए बच्चों को मजबूर होना पड़ा...(फिर बिन्नी के पापा की ओर देखकर) क्यों भाईसाब कैसी कही"?

"हाँ..ठीक बात है" जैसे ही मास्टर साब यानी बिन्नी के पापा बोले तो सबने उनकी ओर आश्चर्य से देखा...मुझे तो अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। ये इंसान बोल भी सकता है

"बहिन जी, जिस लड़की से आप इतनी नाराज हो रही हैं उसी बच्ची की वजह से आपकी बेटी और मेरे पोते को जीवन भर की खुशी मिली है...और इसने हमें पाप करने से बचाया है वरना जिन बच्चों से इन दोंनो की शादी होती उनके साथ भी गलत ही होता...क्यों भाई साब कैसी कही?"

"हम्म सई है" इस बार बिन्नी के दादू बोले ...

"और हमें ये कहने का मौका तो मिला ही नहीं कि हमारे यहाँ एक रिवाज है ...जैसे ही लड़के की शादी हो जाती है ...वो पहली बार अपने सास-ससुर को शगुन देता है...नीरज " इतना बोल दादू ने नीरज की ओर देखा, और नीरज ने रमेश से दो बड़े से लिफाफे लेकर एक बिन्नी की मम्मी और दूसरा बिन्नी की पापा को पकड़ा दिया...

"मैं आपसे आग्रह करूँगा कि इस लिफाफे को खोल कर देखें"

दादू बोले तो मोटो ने "हुंह " कहकर मुँह फेर लिया और मास्टर साब ने लिफाफा खोल लिया..जैसे ही इतने सारे नोट देखे ..भौंचक होकर कभी मोटो तो कभी दादू की ओर देखने लगे।

"ये इक्यावन हजार एक रुपये आपके लिए...और इक्यावन हजार एक रुपये समधन जी के लिए..शगुन है...आप लोग नियत तिथि पर शादी कर दीजिए...सब तैयारी तो है ही..इज़्ज़त भी रह जाएगी...बच्चे भी खुश हो जाएंगे." दादू बोले

ऐसे किसी रिवाज के बारे में मैंने तो कभी सुना नहीं..कि नीरज की बात याद आ गयी...'लाख रुपये मोटो के हाथ पर रख दूँ..तो वो इस रिश्ते के लिए फौरन मान जाएंगी....ओह्ह तो ये

बात है...मैंने नीरज की ओर देखा .. वो मुझे देखकर मुस्कुरा दिया। सही कहा था उसने... मोटो मान गयीं थीं..

"ठीक है...लेकिन आप लोगों को बिन्नी को घर भेजना होगा, विदा तो उसकी माँ के घर से ही होगी" मोटो बहुत रुखाई से बोलीं

कहीं दादू हाँ ना कर दें, मुझे अब भी भरोसा नहीं मोटो पर

"देखिए, जो आपको ठेस पहुंची है..और देरी हुई है..तो तैयारियों में व्यवधान भी आया होगा, क्यों ना आप रिश्तेदारों समेत हमारे यहाँ ही आ जाये...अपने घर के पास वाले गेस्ट हाउस में आप सबके लिए व्यवस्था करा देता हूँ...बस्स शादी में जो कपड़े पहनने हैं...वो लेकर आप लोग आ जाइये...ये शादी हमारी तरफ से....क्यों साब कैसी कही ?"

"बहुत अच्छी" मोटो को छोड़कर सब ने एकसाथ कहा

मैंने और मेरी माँ ने चाय नाश्ते के इंतज़ाम किया ...

"बिटिया तुम चीफ गेस्ट रहोगी शादी की...कम से कम दो दिन पहले तो आ ही जाना...बिन्नी भी खुश रहेगी तुम्हारी वजह से..और हाँ सपरिवार आना" दादू मुझसे हँस कर बोले

"जब बच्चों को प्यार कर सकते हैं तो गलतियां होने पर डाँट भी सकते हैं...मन में कोई मैल मत रखना" बिन्नी की मम्मी जाते हुए मुझसे बोलीं, मैंने बहुत मुश्किल से मुस्कुरा कर हांमी में सिर हिलाया

...पैसा बोलता है...ये पता तो था...देखा पहली बार

उनके जाते ही मैंने पूरा प्रकरण अपनी माँ को कह सुनाया

"किया तो सही तुमने..लेकिन मैं चाहूँगी तुम दोबारा ऐसा कुछ ना करो...करो वादा " पूरी बात सुनकर मेरी माँ मुझसे बोलींऔर मैंने हांमी में सिर हिला दिया।दो दिन पहले तो नहीं मैं ठीक शादी वाले दिन ही गई..पहले नीरज की बारात में शामिल हुई...और उसके बाद जैसे ही वरमाला हुई...नीरज ने डी जे वाले को इशारा किया, और उसने एक पंजाबी गाना लगा दिया...और नीरज के कहने पर मैं और दुल्हन बनीं बहुत खूबसूरत लग रही बिन्नी, और नीरज... हम तीनों ने ही, बहुत डांस किया... नीरज के घरवाले तो खुश थे ही, बिन्नी के घरवाले भी बहुत खुश दिख रहे थे । सब अच्छा हो गया।

**

नीरज और बिन्नी अब एक प्यारी सी बच्ची के पेरेंट्स है। बिन्नी का रिश्ता उसके घरवालों के साथ बहुत अच्छा और सहज है। जैसा कि विश्वास था मुझे उसके ससुराल में भी सब खुश हैं उससे, हालांकि मैं उसे घर से लाने के बाद दुबारा उस घर में नहीं गयी। मोटो यदा -कदा मुझसे बात कर लेतीं हैं..लेकिन मैं उनसे बात करने में कोई उत्साह नहीं दिखा पाती हूँ..

बिन्नी या नीरज जब भी बात करें तो मुझे ये पूछने की जरूरत नहीं पड़ती कि वो कैसे हैं..आवाज में खुशी की खनक और जब मिलें तो उन दोंनो के चेहरे का नूर सब कह देता है...उन दोनों के बीच का प्यार जस का तस है। नीरज के कैरियर और जीवन में भी तरक्की हुई है।

जैसा कि नीरज ने मुझसे कहा था कि जब भी मेरे ऊपर कोई मुसीबत आएगी...वो मदद करेगा मेरी...भगवान की कृपा से मुझे अब तक तो किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है जो नीरज की मदद लेनी पड़े....और प्रार्थना है कोई मुसीबत आये भी ना।



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