कैसी है ये विरासत ?
कैसी है ये विरासत ?
हमने प्राथमिक कक्षाओं मे पढ़ा था कि हड़प्पा और सिंधु घाटी सभ्यता के विनाश के कई कारणो मे महामारी का फैलना भी था, जिसमे मध्य एशिया से आये आर्य किसी महामारी या आपसी कलह मे लड़कर खत्म हो गये। चाहे महामारी हो या आपसी कलह दोनो ही की जड़ों मे प्रकृति का दोहन ही मुख्य कारण था।
महामारी का संबंध प्रकृति के अत्यधिक दोहन से है तो आपसी कलह का भी सीधा संबंध अपर्याप्त प्राकृतिक संपदा ही थी।
मुझे याद नही आता कि अपने जन्म के बाद से कभी भी प्रकृति को अपनी चिंता का कारण बनाया होगा मैने।
मेरी चिंता का हमेशा कारण अपना धन, अपनी संपत्ति, अपना खाना,अपनी गाड़ी ही रही कभी अपना बच्चा तो कभी अपना भाई था पर मैने कभी अपने बच्चे और अपने भाई को सलामत रखने वाले पानी और आक्सीजन को अपनी चिंता का कारण नही बनाया।
पर क्या आपने बनाया कभी?? नही न! मुझे पता है आपका जबाब यही होगा।
हां सच हमने गंगा, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी की कभी अपनी मां की तरह खातिरदारी नही की। क्यों नही करते हम चिंता इनकी जैसे मेरी मां ने मुझे जिंदा रखने के लिए वो सब कुछ दिया जो जरूरी था।
तो क्या इन नदियों ने हमारे पूर्वजों और हमारे लिए जीवन के अत्यधिक आवश्यक सामग्री मुहैया नही कराया हमे?
तो क्या वातावरण ने सांस, खाना और पानी का इंतजाम नही किया हमारे लिए?
हां माँ ने दुध पिलाया हमे, तो क्या पानी और आक्सीजन की महत्ता को हम दुध से कम करके आंकते है? क्योंकि इसकी अभी तक बोली नही लगी है बाजार मे?
हम कोयले की चिंता करते हैं हम पेट्रोल की चिंता करते है मतलब हम हर उस चीज को अपनी प्राथमिकताओं मे रखते जिसकी कीमत हमे चुकानी पड़ती है? पानी और हवा की महत्ता को न समझने का मुख्य कारण उसकी मुफ्त उपलब्धता है? अगर सच मे ऐसा है तो सच मानिए इनकी कीमत हमे एक दिन जिंदगी बचाने के लिए भी जिंदगी देकर चुकानी पडे़गी।
कौन है जो चिंता करता है गंगा की दुर्गति की?
कौन है जो वातावरण में हो रहे ऑक्सीजन की कमी को लेकर चिंतित है?
कौन है जो गर्मियों में पड़ने वाली सर्दी और सर्दियों में पड़ने वाली गर्मी को लेकर व्यथित है?
कौन है जो ओज़ोन परत के छेद की चिंता में पागल है?
क
ौन है? कौन है?
मैं ये बिलकुल नहीं कहता कि चिंता में पागल होकर अपनी तबीयत ख़राब कर लें, पर श्रीमान् इस संसार का जीवित हिस्सा होते ही हमारी जिम्मेदारी बन जाती है कि कम से कम उतने हिस्से की चिंता हमें करनी होगी, जो हम या हमारा परिवार उपयोग करता है।
मैं एक भयावह असलियत से रूबरू कराता हूं देखिए एक स्वस्थ व्यक्ति एक दिन मे कम से कम 550 लीटर आक्सीजन का उपयोग करता है जिसका सरकारी दर 19.69 से भी कीमत करीब-करीब 11000/- रूपये प्रतिदिन होता है तो फिर कैसे हम इतने आत्म शुन्य हो सकते हैं कि संसार की सबसे कीमती वस्तु की हमने चिंता करना ही छोड़ दिया है और ये गलती की श्रेणी मे नही आयेगा श्रीमान, अपराध है ये अपराध!! जिसकी सजा भी हमे ही भुगतना होगा।
देखिये मेरे दादा जी के समय में नदियों का पानी भी पीने लायक होता था और वे पीते थे, पिता जी क़े समय में नदी का पानी पीने लायक नहीं रहा, पर पिताजी ने कुएं क़े पानी से काम चला लिया।
अब मेरे समय में फिल्टर (साफ किया गया) पानी की जरूरत पड़ने लगी, मैंने भी किसी तरह बोतल व आरओ क़े पानी से काम चला लिया, हो सकता है कि मेरे बच्चे क़े समय भी इससे काम चल जाये।
मगर यह तय है कि उनके बच्चों क़े समय पर ये आर.ओ. का पानी काम नहीं आएगा या उसकी कीमत इतनी ज्यादा होगी, की उसे खरीदना हमारी औकात से बाहर की बात होगी, और मजबूरन हमारे बच्चों को उस पीड़ा को झेलना पड़ेगा, जिसके बारे में हम सोच कर भी पागलों जैसा व्यवहार करने लगते हैं।
कितना हृदय विदारक होगा वह दृश्य, जब आपका बच्चा आपसे पानी की मांग करेगा और आपको मजबूरन उसे कहना पड़ेगा कि 'मेरे लाल आज बियर पी लो, अगली तनख्वाह मिलेगी, तो पानी जरूर ले आऊंगा'।
मुझे पता है कि ऐसा समय मेरे या आपके समय में नहीं आएगा, परन्तु आएगा जरूर। तो सोचिये हम अपनी अगली पीढ़ी क़े लिए विषैली हवा क़े साथ साथ विषैले पानी का भी इंतजाम कर रहे हैं. तो सोचिये कैसी जहरीली विरासत तैयार कर रहे हैं हम अपनी आने-वाली पीढ़ी क़े लिए।
जाने क्यों इसका कोई मलाल नही करता,
हवा खराब होने पे भी कोई बवाल नही करता।
जिंदगी के दो ही सहारे हैं जमीं पे फिर भी,
गंगा की दुर्गति पर कोई सवाल नही करता।।