लड़कियां हैं वो जिस्मो के खेल नहीं
लड़कियां हैं वो जिस्मो के खेल नहीं
जब कोई मुझे गले लगाने की कोशिश करता है तो मै सिहर जाती हूँ, उस रोज की घटना को याद कर जीना मुश्किल हो जाता है, एक रोज सेशन शुरू होने के बाद मुझे असहज महसूस होने लगा, मै अपने शरीर पर रगड़ महसूस कर रही थी, मैने देखा कोच मेरे शरीर पर अपना शरीर रगड़ रहे थे, मै अपमानित महसूस कर रही थी, मैने सेशन रोकने को कहा पर उनने ऐसा करने नही दिया मुझे!
ये शब्द 7 महिला बास्केटबॉल खिलाड़ियों मे से एक के हैं जिसने महिला बास्केटबॉल कोच पी.नागराजन पर ये आरोप लगाया था फिर बाद मे बाकि 6 खिलाड़ियों ने भी उसकी बात से सहमति जताई।
ये सिर्फ एक नही ऐसी तमाम कहानियां हैं जो इंसानियत पर मर्दानगी की बढ़त को प्रदर्शित करती हैं इस पुरूष प्रधान देश मे।
2009 मे तुलसी ने मुक्केबाजी के कोच पर आरोप लगाया,
2010 मे रंजीता ने हाॅकी के कोच पर आरोप लगाया,
2011 मे बाक्सिंग के कोच पर आरोप लगा,
2014 मे मनोज राणा पर आरोप लगा,
2015 मे अपर्णा रामचंद्रन के साथ 03 और महिला खिलाड़ियों ने तो आत्महत्या तक कर लिया उनमे से 03 को बचा लिया गया पर अपर्णा को बचाया नही जा सका।
एक लंबी कतार है ऐसे आरोपों कि पर सजा एक भी मामले मे नही हुआ।
रोंगटे खड़े कर देने वाले इन आरोपों की लड़ी मेरी आत्मा कँपा देती हैं क्या महिलाओं को खेल मे अपना भविष्य बनाने की ये कीमत चुकानी होती है ?
किसी ने उनकी उस बेचैनी को समझने का प्रयास ही किया नही कभी ?
कैसे हम किसी को सिर्फ इसलिए बख्श सकते हैं कि वो उत्तर प्रदेश या बिहार के खिलाड़ियों को आगे बढ़ने मे मदद करता है ?
कैसे इसे हम हरियाणा विरूध्द उत्तर प्रदेश अथवा बिहार या जाट विरूध्द राजपूत का रंग देकर दिल्ली मे धरने पर बैठे खिलाड़ियों की लड़ाई को कमजोर कर सकते हैं ?
हम कैसे किसी भी हालत मे ऐसे व्यक्ति को गलती से भी उसकी मनमानी मे रूकावट ना बनकर उसका अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर सकते हैं ?
संसद मे सवाल उठा कि कितने खेल से संबंधित अधिकारियों पर ऐसे आरोप लगे हैं स्पोर्ट्स अथाॅरिटी ऑफ इंडिया ने गर्व के साथ जबाब दिया सिर्फ 49 शिकायतें दर्ज हुई है मतलब स्पोर्ट्स ऑथारिटी ऑफ इंडिया को ये आंकड़े कम लगते हैं, अच्छा इसके एवज मे एस सवाल और उठा कितने मामलो मे सजा हुई तो एक भी नही, मतलब 49 के 49 मामले फर्जी दर्ज हुये थे ?
नही! जनाब नही, एक मामला भी फर्जी नही था बहुत सारे मामले तो दर्ज ही हुये नही क्योंकि पुरूष प्रधान ये देश महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने पर सबूत की मांग करने लगता है और अदालतों के चक्कर लगाने से डरती है वो महिला खिलाड़ी जो यहां तक न जाने कितनी लड़ाइयां लड़के पहूँची है, मोहल्ले से घर से रिश्तेदारों से और न जाने कहां कहां वो इस बात को लेकर सब चौपट नही करना चाहती, क्यों कि मुश्किल बहुत होता है उनका यहां तक पहुँचना, और उन्हे पता भी होता है कि आरोप के विरूध्द कुछ होना भी नही है तो शिकायतें तक दर्ज नही कराती वों।
विनेश फोगाट ने कहा टोकियो ओलम्पिक मे बहुत अच्छा प्रदर्शन न होने के एवज इस कदर मानसिक प्रताड़ना दिया गया था माननीय बृज भूषण शरण सिंह द्वारा कि वो आत्महत्या के बारे विचार करने लगी थी।
खेल जगत के देश के पाँच बड़े नाम अध्यक्ष जी के खिलाफ लामबंद है पर इस मामले मे भी खेलमंत्री बिचौलिए की भूमिका मे हैं माननीय बृज भूषण शरण सिंह जी ने कहा कि आरोपों के कारण मै त्यागपत्र नही दूंगा मेरा कार्यकाल मार्च 2023 तक ही है तो मै उसके बाद चुनाव ही नही लडूंगा तब तक मेरी गरिमा का सम्मान करिये, उस व्यक्ति की क्या गरिमा जिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप है और वैसे भी उसकी गरिमा स्पोर्ट्स ऑथारिटी ऑफ इंडिया से बढ़कर तो नही हो सकती।
तो क्या देश के खेल मंत्री बिचौलिए की भुमिका में आकर जघन्य आरोपों लिप्त अध्यक्ष की इज्ज़त बचा रहे हैं महिला खिलाड़ियों इज्ज़त दाँव पर लगाकर ?
खेल मंत्री जी समझाइये उसे कि..
*लड़कियां हैं वो जिस्मों के खेल नही...*