Sushil Pandey

Inspirational

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Sushil Pandey

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वो शालीन व्यक्तित्व कैसे आपको आतंकवादी प्रतीत होता है श्रीमान?

वो शालीन व्यक्तित्व कैसे आपको आतंकवादी प्रतीत होता है श्रीमान?

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एक बार मोहब्बत की बात करते हुए अगले जन्म में चैन से महबूब की बाँहों में जिंदगी गुजार देने की तमन्ना रखने वाले पंजाब के गबरू जवान, और गुलाम भारत में मौत को पत्नी के रूप में स्वीकार करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को संगरूर का सांसद आतंकवादी कहता है, मुझे पता है उसे कुछ कहने का अधिकार नहीं है मेरे पास, पर सच उसकी जीभ काट देनी चाहिए भारत की सरकार को। 

हमारे मतों के जरिये भारत के कुछ चुनिंदा लोगों में शुमार हो जाने वाले इस सांसद को इतनी हिम्मत मिली कहा से की वो कोई ऐसी बात कह जाये जिसे उसके बाप दादाओं ने सपने में भी नहीं सोचा हो।

सांसद जी आपको बताने लायक तो नहीं हूँ मैं पर जाने क्यों मुझे लगता है कि IPS की तैयारी के दिनों में भी उतना अध्ययन नहीं किया था शायद आपने वरना आतंकवादी जैसे शब्द शहीद-ए-आजम के लिए उपयोग में लाने से पहले आपके ज़ुबान को लकवा मार गया होता!

आजाद भारत में आजादी को लेकर टिप्पणी करने वाले तो तमाम मिलेंगे, पर आप से ये उम्मीद नहीं थी क्योंकि आप तो गुलाम भारत में ही पैदा हुये थे श्रीमान?

भगत सिंह का नाम लेकर मूंछ पर ताव देने की रवायत है इस देश में, भगत सिंह का नाम आते ही मूंछ पर ताव और हाथ में पिस्टल बरबस ही याद आता है सभी के दिलों में, पर सोचिए जरा इश्क करने की उम्र में बेहद रोमानी शख्स मौत को अपनी महबूब बनाने की अगर बात करता है तो किस हद तक माँ के प्रति लगाव होगा उसमें, उसे ये पता था कि आजादी अगर मिली भी तो भी वो उसके काम की तो नहीं रहेगी इस जन्म में, फिर भी उसने मौत को गले लगाया, जलियांवला बाग में मरने वाला एक शख्स भी उसका अपना नहीं था पर मिट्टी को हाथ में भरकर कसम खाने वाला वो बच्चा ही भगत बना था।

अक्सर बिरह की शायरी सुनते हुये भावुक हो जाने वाला और अम्मार इकबाल की शायरी पर तड़प उठने वाला वो नौजवान कैसे देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ने की कसम खा लेता है?

कैसे माँ को अगले जन्म में चाँद सी बहू देने का वादा कर देता है ये जानते हुये भी की जवान बेटे के लिए एक प्यारी सी बहू से ज्यादा माँ को कुछ नहीं भाता।

कैसे 300 से ज्यादा किताबें पढ़ चुकने वाला हिंसा का मार्ग पकड़ लेता है जबकि कहा जाता है कि ज्यादा किताबें पढ़ने वाले हिंसा का राह नहीं लेते।

कैसे भारत माता के पैरों में पड़ी बेड़ियों को ही अपना दुश्मन मान लेता है?

1924 में मतवाला में लिखे अपने लेख में वसुधैवकुटूंबकम के विचारधारा को लाने वाले लेखक को वो सर्वोपरि बताने वाला वो शालीन व्यक्तित्व कैसे आपको आतंकवादी प्रतीत होता है श्रीमान?

कैसे युरोपियन, ब्रिटिश, रसियन और अमेरिकन साहित्य का गहन अध्ययन करने वाला वो स्काॅलर आपको आतंकवादी लगने लगता है वो उसकी शहादत के 90 साल के बाद?

कैसे फांस-जर्मनी और अमेरिका-जापान के बीच भीषण कलह में उनके दोस्ताना व्यवहार में सकारात्मकता की गुंजाइश पर जोर देने वाला शख्स आपको आतंकवादी लगने लगता है श्रीमान?

भारत-ब्रिटिश में किसी को भी भारत छोड़कर न जाने देने कि वकालत करनेवाला वो शख्स आपको आतंकवादी लगता है? असल में वो ये नहीं चाहते थे कि अंग्रेज चले जायें वो तो असल में अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे जो हमारे लोगों को नहीं मिल रहा था।

काम कोई तो किया नहीं,

      फिर इतना क्यों है तुम्हें गुरूर, 

पुरखों को आतंकी कहते, 

      क्या था उनका भला कुसूर!

सच कहता हूँ अनपढ़ हूँ पर,

      इतना सीख लिया है शऊर, 

नाक न उनका कटने देता,

      मैं भरी सभा में कभी हुजूर!!


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