Sushil Pandey

Tragedy

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Sushil Pandey

Tragedy

ये कीमत विकास की ?

ये कीमत विकास की ?

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मुझे समझ नही आता ये समाज सुधारक कहां चले जातें है जब...

एक बिटिया ने क्या गजब कर दिया था!वैद्यों से भूख न लगने की दवा मां लिया था!!

जब महानगरों की सड़कों पर बच्चे भूख से तिल-मिलाते हैं दिन-दिनभर पेट-भर खाने के लिए काम न करने की उम्र मे भी हाड़तोड़ मजदूरी करते हैं, तब कहां चले जाते है हिंदू-मुस्लिम दोनो ही धर्मो के ये रहबर।

याद है 2016 का वो केरल वाला, अखिला-जहान मामला, जिसमे अखिला ने इस्लाम कुबूल किया और हादिया बन गई, इस पर कुछ धर्म के ठेकेदारों ने बड़ा बबेला मचाया, मुझे समझ नही आता कि ये पता होते हुए भी कि कीसी को भी जीवन साथी चुनने का अधिकार उसका अपना निजी मामला है, कहां से आ जाते हैं ये समाज के सुधारक? और इन समाज सुधारकों का वर्चस्व इतना कि केरल की उच्च न्यायालय का इस मामले मे आया फैसला भी उन्ही समाज सुधारकों के विचारों से ओतप्रोत लगा, वरना कहां कभी अदालतों ने संविधान के इतर कोई फैसला दिया है कभी।

केरल के उच्च न्यायालय का फैसला था कि 24 साल की अखिला जो अब हादिया बन गई है की उम्र कच्ची है को अपना जीवन साथी चुनने के लिए परिवार के मदद की जरूरत है। गजब का ऐतिहासिक फैसला था वो केरला के हाईकोर्ट का।

हालांकि बाद मे यही मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा और उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को उलट दिया ये कहकर कि जिस उम्र मे संविधान ने देश का भविष्य बनाने का अधिकार दे दिया उसे,तो अदालतें उसके अधिकारों का हनन कैसे कर सकती है बेशक वो शादी किसी अपराधी से ही क्यों ना करें, पति चुनने का अधिकार उसका सर्वथा अपना और निजी है।

 मोहब्बत की रगों मे भी,मवाद भर गया कोई,

खुन के रिश्तो से भी, फसाद कर गया कोई।

हमे ही संभालना नही आया रिश्तों को तभी तो

इश्क का ही नाम, लव-जिहाद धर गया कोई।।

लव-जिहाद को रोकने की मंशा रखने वाले धर्म के ठेकेदारों को तब क्या हो जाता है जब आदिवासी महिलायें दिन दिन भर काम करके भी 15-20 रूपये रोजाना कमाती है? जो पुरे परिवार के नमक-रोटी खाने के लिए पर्याप्त नही होता है क्यो नही करते जुगाड़ उनके दोनो जून की रोटी का?

एक नया शब्द ईजाद हुआ है लव-जिहाद पिछले 5-7 सालों मे हो सकता है इससे थोड़ा-बहुत पहले भी हुआ हो पर जोर इन्ही सात सालों मे पकड़ा है इस शब्द ने।

इन पिछले 5-7 सालो ने इस नायाब और उच्चतम मानवीय मूल्यों को आधार मानकर चलने वाले देश के इतिहास को मिट्टी मे मिला दिया हमने।

इन्ही 5-7 सालों मे इंसान को पीट-पीटकर मार डालना सीख लिया और उसका mob lynching नाम भी दे दिया हमने।

कैसे विश्व को कारात्मकता को परिभाषित करने वाले देश के एक घर के फ्रीज मे रखे एक मां के टुकड़े को सिर्फ गाय का मानकर, घर के मालिक को मौत के घाट उतार दिया हमने?

इतनी निर्ममता आई कहां से हममे, विकास के नाम पर ये क्या कर दिया हमने? 

रोको इस विकास और इसकी प्रतिदिन तेज होती रफ्तार को, अगर देश के विकास की कीमत ये है तो क्या करेंगें हम इस विकास का ?

नहीं चाहिए विकास हमें।


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