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Sushil Pandey

Romance Others

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Sushil Pandey

Romance Others

तो सच में वो झांसी की रानी ही थी!!

तो सच में वो झांसी की रानी ही थी!!

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पिताजी का तबादला एक छोटे शहर से बड़े शहर में हुआ था तो हम सभी दूसरे शहर चले गए अब क्योंकि पिताजी का टूरिंग जॉब था तो ज्यादा समय वो बाहर ही रहते थे, भइया, मेरी बहन, माँ और मैं घर पर रहते थे हमेशा, हम सब के लिए शहर नया था मेरा भी दाखिला करीब के ही एक स्कूल में करा दिया गया, हाँ शायद मैं कक्षा ६ में पढ़ता था, मैं विद्यालय जाने लगा धीरे धीरे जिंदगी पुराने ढर्रे पे आने लगी थी दोस्त भी स्कूल में बन गए थे, सभी से अच्छी दोस्ती थी मेरी, परन्तु मेरे साथ ही एक लड़की थी जिससे मेरी दोस्ती नहीं हो पाई कभी क्यूंकि वो कभी मुझे दोस्त लगी नहीं क्यूंकि उसे दोस्त के अलावा बहुत कुछ होना था मेरे लिए, शायद वो दक्षिण भारत से थी कहीं से, उसके बाद वो स्कूल छोड़ के दूसरी जगह चली गई, दूसरी जगह मतलब किसी दूसरे स्कूल में शायद!

फिर हमारा वही रोज का हल्ला गुल्ला पढ़ाई लिखाई चलती रही धीरे धीरे सब भूल गए और फिर हाई स्कूल हो जाने के बाद मैंने दूसरे उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में दाखिला ले लिया क्योंकि वो विद्यालय ही हाईस्कूल तक था।

अच्छा अपने पुराने स्कूल से बिछड़ते हुए कौन छूट गया और कौन साथ रहा वो भी याद नहीं रहा पर पता नहीं क्यों, वो हमेशा मेरे दिमाग में बनी रही, पता नहीं मै कभी था की नहीं उसके दिमाग या यूँ कहें की दिल में कभी पता नहीं चला मुझे!

उसके बाद दूसरा स्कूल विज्ञान की पढ़ाई में व्यस्त हो गया अब उसका दिमाग में आना भी कम हो गया था। 

उसके बाद स्कूल की पढ़ाई भी ख़त्म हुई और मैंने स्नातक के लिए दूसरे शहर के विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया अब मैं वहां स्नातक के लिए चला गया, अब क्यों की सारे दोस्त अलग हो गए थे तो छुट्टियों में मिलना मिलाना होता था तो ऐसे ही एक बार मैं होली की छुट्टी में घर आया हुआ था तो होली के दिन सारे दोस्तों ने मिलकर स्कूल की कन्या सहपाठियों से उनके घर जाकर मिलने की योजना बनाई अब क्यूंकि मैं सबसे देर से पहुंचा था तो उस योजना में मेरा कोई योगदान नहीं था मतलब मैंने नहीं बनाया था वो प्लान, मुझे साथ में चलने का आदेश दिया गया और मैंने बिना पूछे चल देने में ही खैरियत समझा क्यूंकि जो ज्यादा सवाल पूछता है उसे दोस्त लोग ज्ञानी बोलकर अलग कर देते हैं तो मैंने चुपचाप योजना का हिस्सा बनने में ही भलाई समझी और चल पड़ा, शाम का वक़्त था होली का त्यौहार न गर्मी का एहसास न सर्दी की ठिठुरन मतलब मौसम बिलकुल सुहाना और उस पर होली का उत्साह मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ उस होली को याद करके। 

मुझे सच में नहीं पता था की हम कहा जा रहे थे, मैं बस चलता गया एक दोस्त की कार थी हम उसमें ही सारे सवार थे, हम पहुंचे घर उसके सच मै घर पहुंचकर भी नहीं समझ पाया था की असल में हम पहुंचे कहा थे। 

अब हम घर पहुचे तो उसके भाई ने उसे पुकारा की स्वीटी तेरे स्कूल के फ्रेंड्स आये हैं वो आई अब तक सच में मुझे नहीं पता था की कौन है स्वीटी, असल में स्वीटी उसके घर का नाम था शायद, पर उसका आना सामने जितना दुःख देने वाला था मुझे उससे कई गुना ज्यादा सुख दे गया था, उसको देखते ही जाने क्यों साँसे रुकी हुई सी महसूस हुई मुझे, जैसे कहा जाता है न, की मरने के बाद सब कुछ अच्छा होता है सब हल्का सा महसूस होता है तो ठीक वैसा ही मुझे महसूस होने लगा था, होली असल में रंग भरने आई थी इस बार की मेरे जिंदगी में शायद, बहुत शुक्रिया किया मैंने भगवान को! हालाँकि मैं ब्राह्मण हूँ फिर भी भगवान में मेरी बहुत ज्यादा श्रद्धा नहीं है पर उस दिन मन किया भगवान की पूजा करने का और वापस आकर किया भी मैंने। 

उसको कैसा लगा इसकी परवाह किये बिना मैं सातवें आसमान पर था उसकी इच्छा जाने बगैर ही मैंने उसकी हाँ समझ लिया था क्यूंकि मै उसे पसंद करने लगा था मन ही मन। मैंने ये मान लिया की वो भी पसंद करती ही होगी मुझको। 

काफी देर तक बैठने के बाद भी उससे बात करने का ज्यादा मौका तो नहीं मिला होली की बधाई दी बड़ों को प्रणाम किया और वापस आ गए, मुझे ख़ुशी इस बात की थी की उसको देखा मैंने ६-७ सालों के बाद बस। 

फिर मैं वापस वहीं चला गया अपने कॉलेज पढ़ाई के लिए छुट्टियां ख़त्म होने के बाद धीरे धीरे वो ख़ुशी भी हवा हो गई, कक्षाएं चलने लगी फिर परीक्षाएं हुई अगली कक्षा में गए दिन रात पढ़ाई में लग गए सब ख़तम हुआ वैसे तो कोई तकलीफ महसूस नहीं हुआ कभी, पर जाने क्यों कभी कभी उसकी बहुत याद आने लगी मैंने सोचा हो सकता है युवावस्था का कुछ आकर्षण सा हो गया है वो ठीक हो जायेगा समय के अनुसार। 

मै जब भी वापस घर आता उसके मोहल्ले में जरूर जाता था उसके घर के पास में ही एक डिग्री कॉलेज था जिसमें मेरे भी कई मित्र पढ़ते थे मैं उन्हीं से मिलने के बहाने चला जाता था ये सोचकर की शायद वो मिल जाएगी मुझे पर ऐसा कभी नहीं हुआ, पर हाँ जिससे मैं मिलना नहीं चाहता था वो जरूर मिल जाता था हर बार मतलब उसका बड़ा भाई। 

मैं उसके घर के आस पास जाता और खुश होकर वापस आ जाता की गया तो था ही मैं मिली न मिली उसकी और भगवान की मर्जी, मैं मेरा काम शिद्दत से करता रहा था पर वही ढाक के तीन पात, न मिली न दिखी ही कभी और इससे ज्यादा मुझमें हिम्मत नहीं थी की मैं घर पहुंच जाता कभी। 

मेरी डिग्री होने के बाद मैं स्नातकोत्तर के लिए भोपाल चला गया अब अपने घर आना जाना ही कम हो गया था तो उसके घर जाना कैसे हो पाता सो वो भी बंद हो गया, ये इतना लम्बा समय था की मेरे लिए क्या किसी के लिए भी स्वाभाविक था भूल जाना किसी को भी, सो मैं भी करीब करीब भूल ही गया था उसको, फिर नौकरी की तलाश फिर नौकरी मिली और करते हुए ५ वर्ष बीत गए, कभी कोई संपर्क नहीं कोई बात चित नहीं, ना ही देखना दिखाना हुआ एक दूसरे का, जब हम बिछड़े थे तब हमारे पास फ़ोन भी नहीं थे और उसके बाद कभी सम्पर्क ही नहीं हुआ। 

उसके बाद सोशल मिडिया का दौर शुरू हुआ orkut और फिर facebook में अपने सारे दोस्तों को मिलना बातें करना शुरू किया किसी से कोई पता नहीं चला उसका। इतने सालों में जब मेरे कई शहर बदल गए तो उसका भी बदलना लाज़मी था और ये बात मुझे पता होते हुए भी मै उसको ढूंढता रहा, ये मेरे लिए विशाल समुद्र में कोई विशेष मोती ढूंढने जैसा था पर मैं कोशिश में था लगातार मुझे भले भगवान में बहुत ज्यादा श्रद्धा नहीं थी पर गीता के उपदेश में मेरा विश्वास भरपूर था तो फल की चिंता किये बिना कर्म करते रहने की तर्ज पे मैं उसे लगातार ढूंढता रहा। मेरे पास बस उसका नाम था और मुझे ये भी लग रहा था की अगर उसकी शादी हो गई होगी तो उसका उपनाम भी बदल गया होगा इसलिए मैं सिर्फ उसके नाम के भरोसे उसको ढूंढ रहा था,

अंदाजा होगा आपको भी एक लड़की को सिर्फ उसके नाम के भरोसे १३५ करोड़ की आबादी में ढूंढ रहा था लगता है न असंभव, मेरे पास और कोई दूसरा चारा भी तो नहीं था और सबसे बड़ी बात उस लड़की को ये पता भी नहीं था की उसको कोई ढूंढ रहा है इतने सालों से। मैंने उसके नाम के करीब करीब हर लड़की को सन्देश भेज दिया था सोशल मिडिया के माध्यम से किसी का जवाब नहीं आया किसी का नहीं, हाँ कुछ गालियां जरूर आईं थी। 

अब घर का दबाब भी बन रहा था शादी के लिए जितना समय उसे ढूंढने में लग रहा था उतना ज्यादा दबाव और ये मेरी मुश्किलें बढ़ा रहा था इससे बेखबर वो जाने कहाँ थी पता नहीं अंदाजा भी था की नहीं उसको, अब मै निराश हो रहा था और फिर एक दिन मैंने भी घुटने टेक दिए अपने घर वालों के समक्ष और शादी के लिए हाँ कर दिया मैंने। 

शादी भी हो गई और पत्नी भी साथ आ गई अब उसको ढूँढना कम हो गया पर कई कई महीनों बाद फिर कभी उसकी याद मुझे बहुत बेचैन करने लगती मन नहीं लगता किसी काम में कई कई दिन फिर उसको ढूंढता पर फिर वही कहानी नहीं मिलती वो घरबार और काम के दबाव के कारण फिर भूल जाता और बंद कर देता था। 

समय कटता रहा धीरे धीरे मेरी बेचैनियों का सिलसिला बढ़ना वैसे ही बीच-बीच में चलता रहा, एक बात है कभी कभी जब भी वो याद आती तो इतनी आती की मन नहीं लगता किसी काम में कई कई दिन निराशा सी होती सब खत्म सा हो गया हो ऐसा महसूस होता था मुझे, जिंदगी को खत्म कर लेने का भाव भी आता मुझे कई कई बार, परन्तु शायद परवरिश का ही असर था ये की मैंने वो किया नहीं कभी। कम से कम इतना तो मजबूत बना ही दिया गया था मुझे, कुछ दिनों में वो दौर भी गुजर जाता फिर वही रोज रोज का घर गृहस्थी फिर सब ठीक भी हो जाता था। 

हाँ करीब करीब १५ वर्ष हो गए थे मैं कोलकाता में पोस्टेड था उस समय एक निजी कंपनी में लॉक डाउन के दौरान मैं अपने गांव गया हुआ था क्यूंकि कार्यालय और स्कूल दोनों बंद थे तो सपरिवार मैं गया हुआ था वहां एक शाम घूमते हुए मुझे किसी मेरे स्कूल के दोस्त ने whatsapp के किसी समूह में जोड़ा मैंने देखा उसमें मेरे साथ स्कूल में पढ़े वो सभी थे जिनको मै गाहे बगाहे याद कर लेता था सबसे बड़ी बात उस ग्रुप में वो भी थी जिसे मैं २०-२२ वर्षों से ढूंढ रहा था अब क्यूंकि हम सभी सबका चेहरा भी भूल गए होंगे ये सोच के किसी ने ये प्रस्ताव रखा की सभी अपनी अपनी तस्वीर भेज दें ताकि सभी सबको पहचान जाए मैंने भेजी अपनी और उसने भी, सच ऐसा लगा उस पर उम्र का कोई असर ही नहीं था ठीक मुझे वो वैसी ही लगी जैसे अब से करीब १५-१७ वर्ष पूर्व वो होली में लगी थी,

हर चीज का एक समय निर्धारित है मैं कैसा अनुभव कर रहा हूँगा शायद आप भी इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं सच कहा जाता है की जिसे आप शिद्दत से चाहते हैं उसे सारी कायनात आपसे मिलाने की कोशिश करती है और किया भी था सारी कायनात ने, ये मेरा निजी अनुभव भी रहा है, जिसे मैं 20 वर्षो से ढूंढ रहा था वो अब मिली, भले अब ये मिलना मुझे ज्यादा दुःख देने वाला था जो भी हो पर, क्या एहसास था मैं बता नहीं सकता? 

अब उसका फ़ोन नंबर था मेरे पास, मैंने फ़ोन किया उसे, उसने लिया नहीं मैंने सन्देश भेजा कोई जवाब नहीं आया मैं विचलित था, वो रात रात भर ग्रुप में बात करती पर मेरे फ़ोन का मेरे सन्देश का कोई जवाब नहीं देती। अब क्यूंकि मेरी दिनचर्या में काफी बदलाव आ गया था मैं रात में जल्दी सोने लगा था सुबह जल्दी उठने लगा था परन्तु इस दौरान मैं रात रात भर उसके सन्देश पढ़ता जो ग्रुप में आते और कई कई बार पढ़ता था पता नहीं क्यों मैं समझा नहीं पा रहा था खुद को, की जो मैं कर रहा था असल में वो अब ठीक नहीं था पर मैं किये जा रहा था भूचाल मचा हुआ था मेरे अंदर सिर्फ उससे जानने के लिए की पिछले २० वर्षों में मैंने जो महसूस किया क्या उसने भी किया था कभी की नहीं बस जानना चाहता था मै बस जानना था मुझे और कुछ नहीं। 

जबकि सबके साथ बात करते हुए वो मुझसे भी बात करती ऐसा बिलकुल नहीं था की वो मुझे नजरंदाज करती हो, मैं समझ नहीं पा रहा था की माजरा क्या है मैं असमंजस में था और बहुत तड़पा भी रहा था उसका ये कृत्य मुझे। मुझे कुछ २-४ सवाल पूछने थे उससे बस और कुछ नहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से उससे जानने की कोशिश भी करता रहा था पर वो समझदार बहुत थी बहुत आसानी से किनारा कर लेती थी वो मेरे सवालों से, मैंने करीब करीब सारी कोशिशें किया और मेरी तबीयत भी ख़राब सी होता महसूस किया मैंने और ग्रुप से अलग होने का निर्णय कर लिया था एक रात मैंने, और इसी उहापोह में मैं रात पता नहीं कब सो गया, क्यूंकि मैं रात में देर से सोने लगा था तो सुबह भी देर से ही उठ भी रहा था हालाँकि मेरा कार्यालय बंद था तो किसी को कुछ भी अजीब नहीं लगा सबने सोचा की छुट्टियां है तो थोड़ा उठने में देर हो जा रहा होगा उस सुबह भी मैं देर से ही उठा, तो मैंने देखा मेरे सन्देश का जवाब आया था उसकी तरफ से, की क्या पूछना चाहते हो सुशील तुम मुझसे, मैंने जवाब में "कुछ नहीं" और जवाब देने के लिए "धन्यवाद" लिख दिया।

और जैसा तय किया था रात में, ग्रुप में सभी से माफी मांगी और ग्रुप छोड़ दिया मैंने, किसी ने कुछ नहीं बोला क्योंकि असमर्थता पहले ही जाहिर कर दिया था मैंने, पर उसका फिर मुझे मैसेज आया शाम को कि क्यों छोड़ दिया ग्रुप तुमने, मैंने फिर कोई जवाब नहीं दिया मैंने सोच लिया था कि अब मैं कोई जवाब नहीं दूंगा उसे कभी भी, पता नहीं किस बात का मै उससे बदला ले रहा था? शायद मेरा पता चलने के बाद भी कई दिनों तक उसने मेरे मैसेज का जवाब नहीं दिया था शायद उसका, पता नहीं क्यों मुझे लग रहा था कि मेरे इतने वर्षों की तड़प का वो ही कारण थी जो कि सरासर गलत था।

मैं जानना चाहता था उससे की जितना मैं तड़पा था उसके लिए बीते २०-२२ सालों में तो क्या उसका कुछ अंदाजा था उसे या उसने भी ठीक वैसा ही महसूस किया था मेरे लिए भी की नहीं बस, क्यूंकि इससे ज्यादा और किसी चीज की गुंजाइश नहीं थी।

हर 3-4 दिन बाद उसका मैसेज आता रहा पुछती रही वो मुझसे मेरी नाराजगी का कारण, मेरे जवाब न देने का कारण? पर मैंने उसके किसी भी संदेश का कोई जवाब नहीं दिया!

फिर कई महीनों तक ये सिलसिला चलता रहा पर हाँ उसने सन्देश भेजना लगातार जारी रखा और मेरा भी जवाब न देना जारी रहा, एक रात दो बजे हाँ शायद रात के दो ही बज रहे थे फोन बजा मेरा मुझे अंदाजा था कि ये उसका ही फोन होगा मैंने फोन उठाया उसने बोला "मैं बोल रही हूं कैसे हो? और कहा कहां हो तुम अभी?" जवाब नहीं दिया मैंने, 

सुशील कुछ पुछ रही हूं मैं? मैंने फिर जवाब नहीं दिया, 

उसे लगा शायद काट दिया मैंने फोन।

हैलो! हैलो! किया उसने, मैंने कहा हाँ सुन रहा हूं तुम्हें घर पर हूँ और ठीक भी।

और तुम? 

बोली ठीक नहीं हूँ, तू बात जो नहीं कर रहा है मुझसे, मुझे पता है तेरी कोई तबीयत वबियत ख़राब नहीं है तू मझ से नाराज है बस 

मैंने कहा क्यों नाराज हूँगा मैं तुमसे, तुमने क्या बिगाड़ा है मेरा, फिर तो वो करीब करीब रोते हुए बोली बिगाड़ा है न मैंने तेरा, बहुत बिगाड़ा है सुशील!

मेरी आँखों में भी आंसू भर गए थे मैं बोल भी नहीं पा रहा था, मैंने फिर खुद को सँभालते हुए कहा की रात काफी हो गई है और मुझे नींद भी बहुत आ रही है तो सोते हैं कल बात करेंगे, फिर वो रोते हुए बोली मुझे पता है तू बोल नहीं पा रहा है तो मत बोल!! सिर्फ सुन ले सारी बात,

वही तड़प वही उदासी उसकी बातों में भी महसूस किया मैंने जो पिछले कई वर्षों से मैं झेलता आ रहा था अब उसके दुःख का अंदाजा हो रहा था मुझे, उसका दुःख मुझसे थोड़ा ज्यादा ही होगा पर कम तो एक रत्ती भी नहीं लगा मुझे। 

उसी ने बताया मुझे की स्कूल छोड़ने के बाद वो उसी स्कूल में थी जिसमें मेरी बहन पढ़ती थी मैं अपनी बहन को कभी पहुँचाने तो कभी लेने जाता था वो देखती थी मुझे पर कभी कहा नहीं मुझसे, वो मेरी बहन से बातें करती थी मेरे बारे में, कई कई बार मेरे बहन के साथ मेरे घर वाले रास्ते से ही वो अपने घर भी जाती थी की शायद मैं मिलूं कभी अकेले पर ऐसा कभी नहीं हुआ, उसे अच्छी तरह से याद था की मैंने कब ग्रेजुएशन किया और कब पोस्ट ग्रेजुएशन और कहा से, उसके कॉलेज की तरफ से होने वाले हर वो क्रियाकलाप में हिस्सा लेती जिसमें भोपाल आने जाने का मौका मिल सकता था क्यूंकि मैं भोपाल में था उस समय। 

मेरे साथ स्कूल में पढ़े हर उस लड़के से उसने मेरे बारे में पता किया जिससे उसे उम्मीद थी की मेरा पता लग सकता था पर बदकिस्मती से उसे भी कोई ऐसा नहीं मिला जो मेरा फ़ोन नंबर उसे दे सके। 

उसने भी इन्तजार किया मेरा जब तक संभव था अच्छा उसको दोष देना भी मेरा ठीक नहीं था क्यूंकि उसकी शादी भी मेरी शादी के २८ दिन बाद हुई थी। 

एक लड़की के तौर पर ये उसके लिए और ज्यादा मुश्किल था पर फिर भी लड़ाई तो उसने भी आखिरी दम तक लड़ा था उसने ही बताया की वो जब भी वहां (उसी शहर) जाती है हमारे पुराने सरकारी घर पर अब भी जाना नहीं भूलती, मेरा पता लगने तक लगातार मेरा पता करती रही थी वो। 

मैं सुनते हुए कहानी उसकी रोते जा रहा था और वो भी, चुप भी करा रही थी वो मुझे मैं वो भी नहीं कर पा रहा था, बहते आंसुओं में उसको ले के जो भावनाएं थी मुझ में की शायद वो याद नहीं करती थी मुझे धुलकर साफ़ हो गईं सारी, उसके बाद चुप होते हुए उसने मुझसे मेरे बारे में भी पूछा पर मैंने कुछ नहीं बताया उसे क्यूंकि अब मैं फिर से रुलाना नहीं चाहता था उसको, सुबह भी हो गई थी तो सुबह की सैर का बोलकर फ़ोन रख दिया मैंने फिर कभी कॉल नहीं किया मैंने उसको न उसने ही मुझे।

वो कई कई बार झांसी की रानी कहती थी खुद को, तो सच में वो झांसी की रानी ही थी!!


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