जिंदगी का सफर
जिंदगी का सफर
"जिंदगी का सफर अनवरत जारी है, कभी गम - कभी ख़ुशी सब सामान्य है।" और अब तो नया साल भी लग गया है तो काफी कुछ बदलाव आएगा।
क्योंकि हर कोई चाहता है कि मैं बुरी आदत छोडूं। अच्छा बनूँ कोई मुझे जाने, कोई मुझसे बात करे। सब सामान्य है लेकिन, ये शब्दावली सुनने को मिलती है, और खास तौर पर जब नया साल हो। मैंने भी अपनी एक आदत छोड़ी है, हाँ सभी छोड़ते होंगे। हालांकि 2 जनवरी को मेरे पिताजी की दादी माँ चल बसी। मेरी परदादी जो कि लगभग 103 वर्ष की थी।
ये कहानी मैं इसीलिए बता रहा हूँ, क्योंकि उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा।
खास तौर पर जब उम्र ढलती है, तो वो बातें बताई जाती है, जो उनकी जिंदगी में घटित हुई है। और ये भी कि ये आपके साथ भी होगा।
झुर्रियों से परिपूर्ण एक चेहरा कहता है कि -
"गुरुर ना कर शाही शरीर पर , तेरे आते हुए कल का आईना हूँ मैं "
"अक्सर हमारे मन में यही सवाल रहता है , ये झुर्रियां हमें क्या सिखाएगी। हम खुद पढ़ सकते हैं और पढ़ते भी ह
ै। या फिर हमारी पीढ़ी इनसे ज्यादा शिक्षित है। लेकिन आप जानते कि चेहरे की झुर्रियां यूँ ही नहीं आती है। वर्षों तपाना पड़ता है जवानी के रंग को तब जाकर चेहरे का रंग फीका पड़ता है। और तब जाकर उम्र का तकाजा मिलता है। अगर एक दिन में सभी कुछ मिल जाता तो बुजुर्गों को कोई सम्मान नहीं देता। और ये अंकित की जाने वाली बातें है कि बुजुर्गों को सम्मान देना चाहिए।
मुझे शैलेश लोढ़ा की पंक्ति याद आती है -
"छत नहीं रहती दहलीज नहीं रहती दीवारों - दर नहीं रहता हैं।
बुजुर्ग ना हो घर में , घर - घर नहीं रहता हैं।
कई घर खुशनसीब होते है, जिनमें बुजुर्गों के वट की छाँव होती हैं।
मेरा घर उसी खुशनसीब की धरोहर है। क्योंकि- मेरे दादाजी की माताजी अभी तक जीवित है, और मैं खुद चाचा बन चुका हूँ। यानी मेरे घर में 5 पीढ़ी जीवित है , जो कि हमारे गाँव का उदाहरण है।
आज थोड़ा नर्वस था, अगले भाग में फिर मिलेंगे....