जिंदगी के सफर 2
जिंदगी के सफर 2
••• बैठक में जब बुजुर्गों की भीड़ होती है , वो अनेकों ह्रदयस्पर्शी बातें करते हैं। जिनको ग्रहण करना किसी सौभाग्य से कम नहीं हैं।
कई बातों का सिलसिला काफी लंबा चलता है और हम उन्हें सुनकर काफी कुछ बहस करते है।
"आज हमारे दादाजी एक किस्सा सुना रहे थे - " एक बार वो और उनके साथी ऊँट गाड़ी लेकर कहीं से भवन निर्माण के लिए पत्थर ला रहे थे।
पहले ट्रक तो थे नहीं , उन्हें चलते चलते रात हो गई। और वो अब कहीं रुकने वाले थे।
लकिन गाँव से दूर थे और रात के समय उन्होंने ऊँट गाड़ी को चलाना ठीक नहीं समझा।
इसीलिए गाँव के बाहर रुक गये , और रात में कुछ लकड़िया जलाकर रात बिताई।
काफी अंधेरा था तो उन्हें पता भी नहीं था कि हम कहाँ बैठे हैं।
और सुबह हुई तो उन्होंने हल्के अंधेरे में चाय बना ली और चाय पी रहे थे।
गाँव
में सुबह की हलचल शुरू हुई , और गाँव वाले उन्हें रुक रुक कर देखकर जा रहे थे।
धीरे - धीरे अंधेरा गायब हो रहा था , और वो गाँव के लिए प्रस्थान करने वाले थे।
अचानक गाँव से एक टोली आई , और उन्हें रोक लिया।
पूछताछ के बाद पता चला , कि वो किसी श्मशान भूमि में रुके हुए थे।
और उन गांवों वालों को लगा कि कोई , टोने- टोटके वाले हैं।
अब शब्दों में बयां तो नहीं किया जा सकता है ,लेकिन उस महफ़िल में हँसी की बाढ़ आ गई।
फिर हम युवा वर्ग उस पर विचार कर रहे थे , कि ये कैसे हो सकता है ,कि आप श्मशान भूमि में रुककर रात बिताई। और सुबह बिना किसी भय के आप रवाना हो गये।
आज हमारे लिए ये बहूत मुश्किल है , इसीलिए नहीं कि हम डरपोक है।
वो इसीलिए की उस भूमि को भय का पर्याय बताया जाता है।
इसी तरह रोज की नोकझोंक चलती रहती है।