जिंदगी का सफर
जिंदगी का सफर
सिलवटें लेता चेहरा कहता है कि - गुरूर न कर हुस्न के पुलिंदे तेरे आते हुये कल का आईना हूँ मैं।
अब जवान शरीर है तो जवानी तपेगी ही ना, लेकिन बिना बुजुर्गों के घर और बिना तुजुर्बे के जीवन नीरस बन जाता है।
आप क्या सोचते हैं, क्या करते हैं और क्यों करते हैं। ये सवाल खुद के लिए नहीं होने चाहिए। अगर ये सवाल है तो किसी और के लिए है जो आपसे अपेक्षा रखता है। और लोगों से आपकी अपेक्षा कभी खत्म नहीं होती है, हाँ अगर आप कहें कि बस इतना बहुत है।
तो जवाब होंगे - ये बहुत है, ये बेहतर है लेकिन अगर आप कहेंगे कि नहीं अभी बहुत कुछ बाकी है तो जवाब फिर बदल जाएंगे।
हाँ अभी बहुत कुछ बाकी है।
अब आप कितना ऑब्जर्व करते हैं ये आप पर निर्भर है।
एक कहानी सुनाता हूँ सुने -
"एक जवान लड़का है, जिसकी उम्र अभी 19 -20 साल है और तपती जवानी के कारण वो कुछ करना चाहता है। कुछ ऐसा जो कभी किसी ने नहीं किया हो, लेकिन एक समस्या है कि वो अभ
ी तक कभी घर के बाहर नहीं गया है। अब उसका मानना है कि पैसे कहीं बंडल में मिल जायेंगे और मैं कहीं न कहीं सैटल होकर अपनी लाइफ इंजॉय करूँगा। हर रात यही सोचता रहता है, और हर सुबह उसका टारगेट बदल जाता है। वो दिन में जिससे भी बात करना चाहे, यही बात करेगा कि मुझे जॉब चाहिए। और ज्यों ही रात हुई, फिर वही काल्पनिक दुनिया जिसमें एक नोटों का बण्डल मिल गया। अच्छा घर बना लिया, एक अच्छी गाड़ी ले ली। और अब इंजॉय कर रहा है लेकिन ज्यों ही सुबह उठा तो उसका अच्छा घर और अच्छी गाड़ी दोनों गायब।
एक दिन तंग आ गया और ये सब सोचना ही बंद कर दिया कि एक गाड़ी और घर होगा। अब अगली सुबह जब उठा तो देखा कि - आज दिन की शुरुआत अच्छी हुई हैं और पूरा दिन अच्छा बीतेगा। धीरे धीरे दिन गुजर रहे हैं, और वो अपने पुराने घर में खुश है। सोचने की दो बातें ये है कि - उसकी खुद की अपेक्षा खुद से पूरी नहीं हो रही हैं। लोगों की क्या खाक करेगा। और सेकंड ये कि - या तो सहन करो, या फिर बदल दो।