तंग आ चुका हूं मैं जिंदगी का अभिनय करते- करते। तंग आ चुका हूं मैं जिंदगी का अभिनय करते- करते।
क्या वो सिर्फ त्याग के लिए ही बनी है ! क्या उसका अपना कोई अस्तित्व है भी या नहीं ? क्या वो सिर्फ त्याग के लिए ही बनी है ! क्या उसका अपना कोई अस्तित्व है भी या नहीं...
सकी खूब पिटाई की व उसे दूर जंगल में बहती नदी में छोड़ आए। सकी खूब पिटाई की व उसे दूर जंगल में बहती नदी में छोड़ आए।
जो सीधे धरती से आकाश तक फैल गए थे लड़का लड़की को खुश देखकर खुश था। जो सीधे धरती से आकाश तक फैल गए थे लड़का लड़की को खुश देखकर खुश था।
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद :आ. चारुमति रामदास लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद :आ. चारुमति रामदास
गुलाबी ललकार बनकर रात के सन्नाटे को चीरते हुए उसका जवाब दिया गुलाबी ललकार बनकर रात के सन्नाटे को चीरते हुए उसका जवाब दिया