अभिनय
अभिनय
"जिंदगी भी त्रिशंकु की तरह अटक के रह गई है, ना उगलते बनती है और ना ही निगलते।
बीत तो रही है पर कटती नहीं। सातों आसमान से भी भारी बोझ लगता है। सिर पर, थकान इतनी है कि अब उठा भी नहीं जाता। सांसे तो आ रही है। भीतर की घुटन जाती ही नहीं।"
बिस्तर पर पड़े पड़े गजेंद्र सोच रहे थे। तभी दरवाजे पर घंटी बजी "-श्यामू आजा दरवाजा खुला है।
"मालिक अगर मुझे पता होता तो मैं आपकी नींद खराब ना करता।
"नींद कहां आती है। वह तो तुम्हारी मालकिन अपने साथ ही ले गई। आज पांच साल हो चुके हैं उसे दुनिया छोड़ें। तब से तो खुली आंखों से ही सोता हूं "
कहते हुए उनकी आंखें भर आई "-एक बेटा था उच्च शिक्षा के चक्कर में उसे विदेश क्या भेजा लौट कर आज तक ना आया। अब तो यह घर भी काटने को आता है।"
"रात का खाना टिफिन में है यह चाय पी लीजिए।"
कप में चाय डालता हुआ श्यामू बोला "-खाली चाय से पेट में गैस होगी।"
स्टील के डिब्बे मैं से बिस्किट निकाल कर देते हुए बोला "-मालिक इन्हें भी खा लो वरना तबीयत बिगड़ जाएगी।"
"- काश तबीयत बिगड़ ही जाए अब और नहीं सहा जाता। अब तो इस नाटक का अंत हो ही जाता ,काश पंछी पिंजरा तोड़ के उड़ जाता। तंग आ चुका हूं मैं जिंदगी का अभिनय करते- करते।