नई सुबह
नई सुबह
"-देखो मां भैया नौकरानी को कैसे पढ़ा रहे हैं। मुझे तो कुछ ज्यादा ही मेहरबान लगते हैं उस पर सुना है- कॉरेस्पोंडेंस से आगे की पढ़ाई कर रही है जैसे आईएस बन जाएगी। मुझे तो कतई पसंद नहीं है।"
"-अरे बेटा कामवाली बाई मिलना कौन सा आसान काम है। वह तो भला हो शांता बहन का, जिसने मुझे मुग्धा के बारे में बताया। कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी। इसके माता पिता का एक दुर्घटना में निधन हो गया। इकलौती संतान थी, अपने-परायो ने इस दुख की घड़ी में इस का साथ छोड़ दिया ।
मिश्राइन के वहां काम कर रही थी,उसका ट्रांसफर हुआ तो बेचारी काम की तलाश में भटक रही थी। शांता ने मुझे बताया तो मुझे भी जरूरत थी मैंने इसे काम दे दिया। बेसमेंट वाले स्टोर में रहने को जगह भी दे दी। बड़ी भली है।सुबह से लेकर शाम तक घर का सारा काम करती है। झाड़ू, पोछा ,बर्तन ,कपड़े, खाना बनाना बेचारी यहां तक महीने में अपनी तनख्वाह तक नहीं मांगती। जानती हो इतने सारे काम के तो कम से कम पंद्रह -बीस हजार होंगे। तुम तो आज ही बाहर से आई हो और कमियां निकालने शुरू कर दी।
-वह गरीब है बेटा, उसे भी जीने का हक है। पढ़ने का अधिकार है। अगर कुछ नोट्स और थोड़ा मुदित ने पढ़ा दिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा । तुम्हें भी मौका मिले तो कुछ पढ़ा लिखा समझा देना बिन मां-बाप की बड़ी सुशील कन्या है।
अच्छे खानदान से ताल्लुक रखती है सब पता करवा लिया है मैंने, उसके बारे में ।
वहीं पास वाले कमरे में जाले साफ करते हुए मुग्धा सब सुन रही थी। इतने समय से वह काम कर रही थी पर हर पल डरी-डरी और दहशत में रहती थी।किंतु आज मालकिन की बातें सुनकर उसका दिल भर आया। और सोचने लगी। "-आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं जब सारे सहारे छूट जाते हैं। तो ईश्वर कुछ लोगों को अपने दूत बना कर भेज देता है। आशा की नई किरण लेकर, अंधेरी रात खत्म करने को
"नई सुबह" की रोशनी लेकर।