सदा खुश रहो सुगंधा
सदा खुश रहो सुगंधा
"-चाय अच्छे से उबालना, कम उबली चाय का स्वाद अच्छा नहीं होत। सब्जी मंदी आंच में अच्छी पकती है। दाल बनाने से पहले ढंग से बीनो। रोटियां हल्के हाथों से बेलो क्या नक्शे बनाती ? मुंह दूसरी तरफ करो आंखों से पानी टपक रहा है प्याज को आज इसी से धोना है क्या ? घुंघट नहीं तो बड़ों के सामने सर पर पल्ला तो होना ही चाहिए। कपड़े साफ धोओ। दिन में चार बार डस्टिंग के बाद भी धूल धूल ही धूल। टीवी को इतनी तेज आवाज में सुनती हो कानों में दर्द नहीं होता सब्जी लेने भेजा था क्या ले आई ? छठ कर लाना था.......................। और भी ऐसी कई बातें सुनकर बहुत बुरा लगता था ।
सुगंधाको पर विदाई के बाद मां पापा की कही बात हमेशा याद रहती थी। "- बड़ों की बातों में पे मुड़कर मत बोलना, नए घर को समझने में थोड़ा समय लगता है। संयम से काम लेना, बड़ों का आदर करना"
कई बार दिल की करता था कि पलट कर कह दूं जवाब दो संस्कार इसकी इजाजत नहीं देते थे समय गुजरने के साथ आदत पड़ चुकी थी सुनने की सुगंधा को
"-सारे दिमाग का दही बना दिया । मैं तो रोहित से कह कर आई हूं जब तुम मुझे घर से अलग रह लेकर रहोगे तभी आऊंगी" यह कहते हुए दिव्या मां के कमरे में दाखिल हुई। अभी महीना नहीं हुआ था सुगंधा की ननंद का विवाह हुए। "-अरे मां बड़ा पकाती है। बूढ़ी -खुशट जब देखो तब चिक -चिक, कल जरा खाने में नमक क्या ज्यादा हो गया बस ?
मां ने कहा "-तुझे तो पहले ही पता है कि उन्हें बीपी और शुगर है फिर?
"- बहुत हो गया मां मैं नहीं सुन सकती सब कुछ तो आता है मुझे ,पढ़ी लिखी हूं फिर क्यों दूसरों के ताने सुनउ "
शोर सुनकर सुगंधा दौड़ी हुई आई उसे देखकर मां भीगी आंखों से बोली"- तुझ से अधिक पढ़ी-लिखी तो तेरी भाभी है "
और उसे गले लगा कर बोली"- सदा खुश रहो सुगंधा"