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Geeta Upadhyay

Others

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Geeta Upadhyay

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माता-पिता हैरान थे"

माता-पिता हैरान थे"

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"अरे यार अंकुर आज तो मजा आ गया। साइकिलिंग में,तेरी साइकिल तो बड़ी मस्त है।सचिन थोड़ी देर और रोक ले अंकुर को" रोहित बोला।

"अभी तो घर जाने का दिल भी नहीं कर रहा थोड़ी देर और खेलते हैं। अभी तो बहुत टाइम है अंधेरा होने में अंकुर कौन सा तेरे पापा अभी आ रहे हैं। क्यों टेंशन ले रहा है? अभी तो 5:00 ही बजे हैं 6:00 बजे के बाद आते हैं।घंटा और खेलते हैं।"

 तभी शिवम बोल पड़ा "अबे क्यों इतना डरता है? दूध पीता बच्चा थोड़े ही है 12 साल का हो चुका है।अब देख कुछ दिनों में दाढ़ी मूछें आ जाएंगी तू तो शेर है शेर।

"ओए देख सचिन की तो थोड़ी मूछें दिखने भी लगी है।" कहकर सारे दोस्त खिलखिला कर हंसने लगे।अंकुर भी बेमन सा मुस्कुरा दिया। 

वह सोच रहा था पापा ने कुछ प्रश्न उत्तर याद करने को कहा था जो इम्तिहान में आने थे।उन्हें अच्छे से याद करना तो दूर मैंने तो देखा भी नहीं है। घंटे में थोड़ा बहुत पढ़ तो लेता मगर अब तो इज्जत का सवाल बन गया है। चला गया तो सारे दोस्त मुझ पर हसेंगे।

"दोस्तों पता है अंकुर के पापा ने बहुत बढ़िया लैपटॉप लिया है। लेटेस्ट वर्जन चलो कभी सब मिलकर उसके घर पर लैपटॉप पर गेम खेलेंगे। एक दिन मैं उसके घर गया था तो देखा था। बहुत अच्छा है यार।" शिवम बोला 

यह सुनकर अंकुर फूला नहीं समाया उसके पास अपने दोस्तों मैं सबसे अच्छी साइकिल थी सब उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे यह सब उसकोअच्छा लगता था। अब मैं चलता हूं कहकर वह घर आ गया।" मां कुछ खाने को है छोटीछोटी भूख लगी है।" 

"रोटी बना दूं"

"मां यह कौन सा रोटी खाने का टाइम है। कुछ और दो ना।"

" पापा आने वाले हैं वही तेरे लिए कुछ ले आएंगे"

_" इतनी देर तक कहां था। दोतीन घंटे हो गए कपड़े कितने गंदे करके आया है। अपने हाथ पैरों को देख धूल मिट्टी चिपकी है ।अच्छे से नहा ले ऐसे पापा देखेंगे तो गुस्सा होंगे। जा फटाफट।"

"ठीक है जा रहा हूं। अच्छा पहले कल का बचा हुआ चिप्स का पैकेट ही दे दो ना मां "

"ले पकड़ नहाने के बाद ही खाना समझा।" 

मां कितनी अच्छी है डांटती फटकारती भी है तो भी उससे डर नहीं लगता। लेकिन पापा हर वक्त पढ़ाई के पीछे हाथ धोकर पड़े रहते हैं। आज कितना पढ़ा? क्या याद किया? स्कूल में क्या हुआ ?पढ़ाई है या मुसीबत यह भी कोई जिंदगी है। सचिन शिवम और रोहित के पापा तो बिल्कुल भी ऐसे नहीं है।

 नहाकर अंकुर पढ़ने बैठ गया। अभी दो मिनट भी नहीं हुए थे कि पापा आ गए।

" सारी किताबें ऐसे फैला रखी है कि सारी की सारी घोट के पी ली होगी। सलीका है ही नहीं बिल्कुल पढ़नी एक किताब है। कौन समझाए तुमने भी सिर पर चढ़ा रखा है। इसे कुछ कहती ही नहीं जो कहता है तुम वही करती हो।'

"अरे बस करो बैठा तो है पढ़ने के लिए "

"पढ़ रहा है या खाली किताबें पकड़ी है।" यह कहते हुए विनय अंदर चले गए। विनीता भी चुप हो गई। 

"मातापिता सोचते हैं कि उनके बच्चे ऊंचाइयों की हर सीमा छुए ।अरे बच्चे हैं यार कोई जवान थोड़े हैं। बच्चों के भी कुछ अरमान होते हैं। अपना बचपन याद क्यों नहीं करते ? हमें जी भर के जी तो लेने दो। पढ़ना तो कमाने के लिए है ना, इतना तो पढ़ ही लूंगा कि कुछ कमा सकूं।" अंकुर बुक हाथ में लिए यही सोच रहा था ।मातापिता की इकलौती संतान था अंकुर । वह अधिक पढ़ेलिखे नहीं थे चाहते थे कि वह खूब पढ़े लिखे पर अंकुर का मन पढ़ने में कम ही लगता था। वह पढ़ाई में अक्सर से जी चुराया करता था। यह बात पिता को कतई गंवारा नहीं थी। इसी वजह से अक्सर घर में कलेश का माहौल रहता था।


"सो गया है शायद" लाइट बंद करके विनय अपने कमरे में आए और बोले 

"विनी मुझे भी तो अच्छा नहीं लगता उसे बारबार कहना । अगर नहीं कहूंगा तो शायद बहुत बड़ी गलती करूंगा।"

अपना दौर जब पिताजी पढ़ने के लिए कहते थे तो मुझे भी बहुत बुरा लगता था ।मां कहती थी "अरे क्यों डांटते रहते हो दो रोटी तो कमा ही लेगा। पिताजी के जाने के बाद उनकी जगह पर मुझे नौकरी मिली। अच्छा पढ़ा लिखा ना होने की वजह से छोटे से ओहदे पर ही रहा ताउम्र, पर अपने बेटे को इस हालत में कैसे देखूंगा ? 

अंकुर सोया नहीं था उसने पिता की सारी बातें सुन ली। वह तो पापा को ऑफिस का बहुत बड़ा अधिकारी समझता था। पापा ने उसे कभी भी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। शहर के बड़े विद्यालय में पढ़ता था। दोस्तों पर भी खूब रोब मारता था । आज उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और पूरी मेहनत से जुट गया पढ़ाई लिखाई में अचानक अंकुर में आए परिवर्तन को देखकर "मातापिता हैरान थे।"


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