सम्मोहन
सम्मोहन
पार्क में बैठे वेद प्रकाश जी बोले -बेटा गुड़िया को फोन किया था। ट्विंकल और टिंकू को याद कर रही थी। तभी दरवाजे पर घंटी बजी और बोली दादू लगता है। नये पापा आ गए हैं बाद में बात करते हैं। आज तो हमने बाहर घूमने जाना है। कहते हुए उनकी आंखें भर आई। भरा पूरा परिवार था वेद प्रकाश जी का, बेटा बेटी दोनों का विवाह कर दिया था। बेटी दूसरे शहर में रहती थी।अभी बेटे के विवाह को वर्ष भर भी नहीं हुआ था की एक सड़क दुर्घटना में उसका देहांत हो गया। उसके दो-तीन माह बाद ही बहू ने एक बच्ची को जन्म दिया। वही उनके जीने का सहारा थी। उसी में बेटे की छवि देखते थे ।थोड़ा बड़ी हुई तो शहर के बहुत बड़े विद्यालय उसका दाखिला करवाया।
कुछ समय से वेद प्रकाश जी व उनकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। वे अक्सर सोचते थे कि अगर हम ना रहे तो इनका क्या होगा। बहू की उम्र अभी बहुत कम है ।पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले कैसे कटेगी, गुड़िया का क्या होगा। हमने तो अपनी जिंदगी जी ली है। ना जाने कब क्या हो जाए ।वेद प्रकाश जी ने बहु को समझा-बुझाकर उसका पुनर्विवाह दूसरे शहर में करवा दिया। अब घर में दो जन दीवारें भी काटने को आती थी। -अंकल जी कोई बात नहीं, आप परेशान क्यों होते हो आज बात कर लेना गुड़िया से बात। ट्विंकल टिंकू चलो दादा जी के पैर छुओ सौम्या बोली।बच्चे भागे भागे आए और उन्होंने श्रीनिवास जी के चरण छुए। सौम्या गुड़िया की दोस्त ट्विंकल की मां थी वेद प्रकाश जी का बड़ा ही लगाव था उनके परिवार से, अक्सर वे पार्क में खेलते ट्विंकल और टिंकू से मिलने आया करते थे बच्चों को खेलते देख कुछ देर के लिए वे सभी दुखों को भूल जाया करते थे भोलापन मासूमियत निश्चल प्रेम एक "सम्मोहन" सा होता है बच्चों में बचपन में।